"सूर्यकुण्ड (लोहार्गल)": अवतरणों में अंतर

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'''सूर्यकुण्ड''' [[राजस्थान]] के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसकी धार्मिक मान्यता है। यह [[लोहार्गल]] की पहाड़ियों में स्थित है, जिसका अर्थ होता है- "जहाँ [[लोहा]] गल जाए"। यह राजस्थान में [[पुष्कर]] के बाद दूसरा सबसे बड़ा [[तीर्थ]] है। इस तीर्थ का सम्बन्ध [[पांडव|पांडवों]], [[परशुराम|भगवान परशुराम]], [[सूर्य देवता|भगवान सूर्य]] और [[विष्णु|भगवान विष्णु]] से है। [[झुंझुनू ज़िला|झुंझुनू ज़िले]] के दक्षिण में ज़िला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर [[अरावली पर्वत शृंखला]] में स्थित यह पवित्र स्थल सीकर-नीम का थाना सड़क मार्ग पर [[सीकर]] से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। यहाँ का अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय है, जो यात्रियों को सहज ही आकर्षित करता है। [[भाद्रपद मास]] में [[जन्माष्टमी|श्रीकृष्ण जन्माष्टमी]] से [[अमावस्या]] तक प्रत्येक [[वर्ष]] लोहार्गल के पहाड़ों में हज़ारों लाखों नर-नारी पैदल परिक्रमा करते हैं और [[अमावस्या]] के दिन सूर्यकुण्ड में पवित्र [[स्नान]] के साथ यह परिक्रमा विधिवत संपन्न होती है।
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==पांडवों को पाप से मुक्ति==
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==मान्यता==
==मान्यता==
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यह क्षेत्र पहले ब्रह्मक्षेत्र था। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां [[विष्णु|भगवान विष्णु]] ने शंखासुर नामक [[दैत्य]] का संहार करने के लिए [[मत्स्य अवतार]] लिया था। शंखासुर का वध कर विष्णु ने [[वेद|वेदों]] को उसके चंगुल से छुड़ाया था। इसके बाद इस जगह का नाम ब्रह्मक्षेत्र रखा।
 
==कथा==
==कथा==
यहां प्राचीन काल से निर्मित सूर्य मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके पीछे भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में [[काशी]] में सूर्यभान नामक राजा हुए थे, जिन्हें वृद्धावस्था में अपंग लड़की के रूप में एक संतान हुई। राजा ने भूत-भविष्य के ज्ञाताओं को बुलाकर उसके पिछले जन्म के बारे में पूछा। तब विद्वानों ने बताया कि पूर्व के जन्म में वह लड़की मर्कटी अर्थात बंदरिया थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। शिकारी उस मृत बंदरिया को एक [[बरगद]] के पेड़ पर लटका कर चला गया, क्योंकि बंदरिया का मांस अभक्ष्य होता है। हवा और धूप के कारण वह सूख कर लोहार्गल धाम के जलकुंड में गिर गई किंतु उसका एक हाथ पेड़ पर रह गया। बाकी शरीर पवित्र [[जल]] में गिरने से वह कन्या के रूप में आपके यहाँ उत्पन्न हुई है। विद्वानों ने राजा से कहा, आप वहां पर जाकर उस हाथ को भी पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची का अंपगत्व समाप्त हो जाएगा। राजा तुरंत लोहार्गल आए तथा उस बरगद की शाखा से बंदरिया के हाथ को जलकुंड में डाल दिया। जिससे उनकी पुत्री का हाथ स्वतः ही ठीक हो गया। राजा इस चमत्कार से अति प्रसन्न हुए। विद्वानों ने राजा को बताया कि यह क्षेत्र भगवान [[सूर्यदेव]] का स्थान है। उनकी सलाह पर ही राजा ने हजारों [[वर्ष]] पूर्व यहां पर सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवा कर इस [[तीर्थ]] को भव्य रूप दिया।
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==परशुराम की प्रायश्चित स्थली==
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[[विष्णु]] के छठे अंशअवतार [[परशुराम|भगवान परशुराम]] ने [[क्रोध]] में [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] का संहार कर दिया था, लेकिन शान्त होने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। तब उन्होंने यहां आकर पश्चाताप के लिए [[यज्ञ]] किया तथा पाप मुक्ति पाई थी।




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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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10:18, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

सूर्यकुण्ड (लोहार्गल)
सूर्यकुण्ड
सूर्यकुण्ड
विवरण 'सूर्यकुण्ड' राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है, जो लोहार्गल में स्थित है। यह राजस्थान में पुष्कर के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ है।
राज्य राजस्थान
ज़िला झुँझनू
निर्माता राजा सूर्यभान
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक स्थल
संबंधित लेख राजस्थान, लोहार्गल, राजस्थान पर्यटन, परशुराम, पांडव, महाभारत


अन्य जानकारी यह क्षेत्र पहले ब्रह्मक्षेत्र था। माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहां भगवान विष्णु ने शंखासूर नामक दैत्य का संहार करने के लिए मत्स्य अवतार लिया था।

सूर्यकुण्ड राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसकी धार्मिक मान्यता है। यह लोहार्गल की पहाड़ियों में स्थित है, जिसका अर्थ होता है- "जहाँ लोहा गल जाए"। यह राजस्थान में पुष्कर के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ है। इस तीर्थ का सम्बन्ध पांडवों, भगवान परशुराम, भगवान सूर्य और भगवान विष्णु से है। झुंझुनू ज़िले के दक्षिण में ज़िला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित यह पवित्र स्थल सीकर-नीम का थाना सड़क मार्ग पर सीकर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है। यहाँ का अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय है, जो यात्रियों को सहज ही आकर्षित करता है। भाद्रपद मास में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से अमावस्या तक प्रत्येक वर्ष लोहार्गल के पहाड़ों में हज़ारों लाखों नर-नारी पैदल परिक्रमा करते हैं और अमावस्या के दिन सूर्यकुण्ड में पवित्र स्नान के साथ यह परिक्रमा विधिवत संपन्न होती है।

पांडवों को पाप से मुक्ति

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन जीत के बाद भी पांडव अपने परिजनों की हत्या के पाप से चिंतित थे। लाखों लोगों के पाप का दर्द देख श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे, वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पाण्डव लोहार्गल आ पहुँचे तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुण्ड में स्नान किया, उनके सारे हथियार गल गये। इसके बाद शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधि से विभूषित किया।

मान्यता

यह क्षेत्र पहले ब्रह्मक्षेत्र था। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक दैत्य का संहार करने के लिए मत्स्य अवतार लिया था। शंखासुर का वध कर विष्णु ने वेदों को उसके चंगुल से छुड़ाया था। इसके बाद इस जगह का नाम ब्रह्मक्षेत्र रखा।

कथा

यहां प्राचीन काल से निर्मित सूर्य मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके पीछे भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में काशी में सूर्यभान नामक राजा हुए थे, जिन्हें वृद्धावस्था में अपंग लड़की के रूप में एक संतान हुई। राजा ने भूत-भविष्य के ज्ञाताओं को बुलाकर उसके पिछले जन्म के बारे में पूछा। तब विद्वानों ने बताया कि पूर्व के जन्म में वह लड़की मर्कटी अर्थात बंदरिया थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। शिकारी उस मृत बंदरिया को एक बरगद के पेड़ पर लटका कर चला गया, क्योंकि बंदरिया का मांस अभक्ष्य होता है। हवा और धूप के कारण वह सूख कर लोहार्गल धाम के जलकुंड में गिर गई किंतु उसका एक हाथ पेड़ पर रह गया। बाकी शरीर पवित्र जल में गिरने से वह कन्या के रूप में आपके यहाँ उत्पन्न हुई है। विद्वानों ने राजा से कहा, आप वहां पर जाकर उस हाथ को भी पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची का अंपगत्व समाप्त हो जाएगा। राजा तुरंत लोहार्गल आए तथा उस बरगद की शाखा से बंदरिया के हाथ को जलकुंड में डाल दिया। जिससे उनकी पुत्री का हाथ स्वतः ही ठीक हो गया। राजा इस चमत्कार से अति प्रसन्न हुए। विद्वानों ने राजा को बताया कि यह क्षेत्र भगवान सूर्यदेव का स्थान है। उनकी सलाह पर ही राजा ने हजारों वर्ष पूर्व यहां पर सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवा कर इस तीर्थ को भव्य रूप दिया।

परशुराम की प्रायश्चित स्थली

विष्णु के छठे अंशअवतार भगवान परशुराम ने क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था, लेकिन शान्त होने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। तब उन्होंने यहां आकर पश्चाताप के लिए यज्ञ किया तथा पाप मुक्ति पाई थी।


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