"महादेवी वर्मा": अवतरणों में अंतर

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|अन्य जानकारी=स्वाधीनता प्राप्ति के बाद [[1952]] में महादेवी वर्मा उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गईं।  
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महादेवी वर्मा (जन्म- [[26 मार्च]], [[1907]], [[फ़र्रुख़ाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]], मृत्यु- [[22 सितम्बर]], [[1987]], [[प्रयाग]]) [[हिन्दी भाषा]] की प्रख्यात कवयित्री हैं। महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ [[सुमित्रानन्दन पन्त]], [[जयशंकर प्रसाद]] और [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला]] के साथ की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। महादेवी वर्मा ने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया, व्यष्टि मूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। महादेवी वर्मा के गीतों का नाद-सौंदर्य, पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है।<ref name="sjngth">{{cite web |url=http://www.srijangatha.com/Hastakshar_Mar2k7 |title=सृजनगाथा |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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==जन्म==
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महादेवी वर्मा का जन्म [[होली]] के दिन 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी थीं। महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे।<ref>{{cite web |url=http://shabdokiunjali.blogspot.com/2009/09/blog-post_10.html |title=शब्दांजलि |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीराबाई कहा जाता है। महादेवी जी छायावाद रहस्यवाद के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हिन्दुस्तानी स्त्री की उदारता, करुणा, सात्विकता, आधुनिक बौद्धिकता, गंभीरता और सरलता महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में समाविष्ट थी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विलक्षणता से अभिभूत रचनाकारों ने उन्हें 'साहित्य साम्राज्ञी, हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि', 'शारदा की प्रतिमा' आदि विशेषणों से अभिहित करके उनकी असाधारणता को लक्षित किया। महादेवी जी ने एक निश्चित दायित्व के साथ भाषा, साहित्य, समाज, शिक्षा और संस्कृति को संस्कारित किया। कविता में रहस्यवाद, छायावाद की भूमि ग्रहण करने के बावज़ूद सामयिक समस्याओं के निवारण में महादेवी वर्मा ने सक्रिय भागीदारी निभाई।
<div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:5px">
 
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==शिक्षा==
! महादेवी वर्मा की रचनाएँ
महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा [[इन्दौर]] में हुयी। महादेवी वर्मा ने बी.ए. जबलपुर से किया। महादेवी वर्मा अपने घर में सबसे बड़ी थी उनके दो भाई और एक बहन थी। [[1919]] में [[इलाहाबाद]] में क्रास्थवेट कॉलेज से शिक्षा का प्रारंभ करते हुए महादेवी वर्मा ने [[1932]] में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। तब तक उनके दो काव्य संकलन 'नीहार' और 'रश्मि' प्रकाशित होकर चर्चा में आ चुके थे।<ref>{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/m/mahadeviverma.htm |title=अभिव्यक्ति |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> महादेवी जी में काव्य प्रतिभा सात वर्ष की उम्र में ही मुखर हो उठी थी। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी कविताऐं देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगीं थीं।
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<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%">
==विवाह==
{{महादेवी वर्मा की रचनाएँ}}
उन दिनों के प्रचलन के अनुसार महादेवी वर्मा का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था परन्तु महादेवी जी को सांसारिकता से कोई लगाव नहीं था अपितु वे तो [[बौद्ध धर्म]] से बहुत प्रभवित थीं और स्वयं भी एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं। विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। महादेवी वर्मा की शादी [[1914]] में डॉ स्वरूप नरेन वर्मा के साथ [[इंदौर]] में 9 साल की उम्र में हुई, वो अपने माँ पिताजी के साथ रहती थीं क्योंकि उनके पति [[लखनऊ]] में पढ़ रहे थे।  
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==विरासत==
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शिक्षा और साहित्य प्रेम महादेवी जी को एक तरह से विरासत में मिला था। महादेवी जी में काव्य रचना के बीज बचपन से ही विद्यमान थे। छ: सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुयी माँ पर उनकी तुक्बन्दी:
'''महादेवी वर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mahadevi Verma'', जन्म: [[26 मार्च]], [[1907]], [[फ़र्रुख़ाबाद]]; मृत्यु: [[11 सितम्बर]], [[1987]], [[प्रयाग]]) [[हिन्दी भाषा]] की प्रख्यात कवयित्री हैं। महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के [[छायावादी युग]] के चार प्रमुख स्तंभ [[सुमित्रानन्दन पन्त]], [[जयशंकर प्रसाद]] और [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला]] के साथ की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। महादेवी वर्मा ने [[खड़ी बोली]] हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया, व्यष्टिमूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। महादेवी वर्मा के गीतों का नाद-सौंदर्य, पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है।<ref name="sjngth">{{cite web |url=http://www.srijangatha.com/Hastakshar_Mar2k7 |title=सृजनगाथा |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
==जीवन परिचय==
महादेवी वर्मा अपने [[परिवार]] में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्नहुई। उनके परिवार में दो सौ [[साल|सालों]] से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी, यदि होती तो उसे मार दिया जाता था। [[दुर्गा|दुर्गा पूजा]] के कारण आपका जन्म हुआ। आपके दादा [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[उर्दू भाषा|उर्दू]] तथा पिताजी [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] जानते थे। माताजी [[जबलपुर]] से [[हिन्दी]] सीख कर आई थी, महादेवी वर्मा ने [[पंचतंत्र]] और [[संस्कृत]] का अध्ययन किया। महादेवी वर्मा जी को काव्य प्रतियोगिता में 'चांदी का कटोरा' मिला था। जिसे इन्होंने [[महात्मा गाँधी|गाँधीजी]] को दे दिया था। महादेवी वर्मा कवि सम्मेलन में भी जाने लगी थी, वो [[सत्याग्रह आंदोलन]] के दौरान कवि सम्मेलन में अपनी कवितायें सुनाती और उनको हमेशा प्रथम पुरस्कार मिला करता था। महादेवी वर्मा [[मराठी भाषा|मराठी]] मिश्रित हिन्दी बोलती थी।
====जन्म====
महादेवी वर्मा का जन्म [[होली]] के दिन [[26 मार्च]], [[1907]] को [[फ़र्रुख़ाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। महादेवी वर्मा के [[पिता]] श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और [[माता]] श्रीमती हेमरानी देवी थीं। महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे।<ref>{{cite web |url=http://shabdokiunjali.blogspot.com/2009/09/blog-post_10.html |title=शब्दांजलि |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> महादेवी वर्मा को 'आधुनिक काल की मीराबाई' कहा जाता है। महादेवी जी छायावाद [[रहस्यवाद]] के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हिन्दुस्तानी स्त्री की उदारता, करुणा, सात्विकता, आधुनिक बौद्धिकता, गंभीरता और सरलता महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में समाविष्ट थी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विलक्षणता से अभिभूत रचनाकारों ने उन्हें 'साहित्य साम्राज्ञी', 'हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि', 'शारदा की प्रतिमा' आदि [[विशेषण|विशेषणों]] से अभिहित करके उनकी असाधारणता को लक्षित किया। महादेवी जी ने एक निश्चित दायित्व के साथ [[भाषा]], [[साहित्य]], समाज, शिक्षा और [[संस्कृति]] को संस्कारित किया। कविता में रहस्यवाद, छायावाद की भूमि ग्रहण करने के बावज़ूद सामयिक समस्याओं के निवारण में महादेवी वर्मा ने सक्रिय भागीदारी निभाई।
====शिक्षा====
महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा [[इन्दौर]] में हुई। महादेवी वर्मा ने बी.ए. [[जबलपुर]] से किया। महादेवी वर्मा अपने घर में सबसे बड़ी थी उनके दो भाई और एक बहन थी। [[1919]] में [[इलाहाबाद]] में 'क्रॉस्थवेट कॉलेज' से शिक्षा का प्रारंभ करते हुए महादेवी वर्मा ने [[1932]] में [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। तब तक उनके दो काव्य संकलन 'नीहार' और 'रश्मि' प्रकाशित होकर चर्चा में आ चुके थे।<ref>{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/m/mahadeviverma.htm |title=अभिव्यक्ति |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> महादेवी जी में काव्य प्रतिभा सात वर्ष की उम्र में ही मुखर हो उठी थी। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी कविताएँ देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगीं थीं।
====विवाह====
उन दिनों के प्रचलन के अनुसार महादेवी वर्मा का [[विवाह]] छोटी उम्र में ही हो गया था परन्तु महादेवी जी को सांसारिकता से कोई लगाव नहीं था अपितु वे तो [[बौद्ध धर्म]] से बहुत प्रभावित थीं और स्वयं भी एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं। विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। महादेवी वर्मा की शादी [[1914]] में 'डॉ. स्वरूप नरेन वर्मा' के साथ [[इंदौर]] में 9 साल की उम्र में हुई, वो अपने माँ पिताजी के साथ रहती थीं क्योंकि उनके पति [[लखनऊ]] में पढ़ रहे थे।
====विरासत====
शिक्षा और [[साहित्य]] प्रेम महादेवी जी को एक तरह से विरासत में मिला था। महादेवी जी में काव्य रचना के बीज बचपन से ही विद्यमान थे। छ: सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुई माँ पर उनकी तुकबन्दी:
<poem>ठंडे पानी से नहलाती
<poem>ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन उन्हें लगाती
ठंडा चन्दन उन्हें लगाती
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तब भी कभी न बोले हैं
तब भी कभी न बोले हैं
मां के ठाकुर जी भोले हैं।</poem>
मां के ठाकुर जी भोले हैं।</poem>
वे हिन्दी के भक्त कवियों की रचनाओं और भगवान बुद्ध के चरित्र से अत्यन्त प्रभावित थी। उनके गीतों में प्रवाहित करुणा के अनन्त स्त्रोत को इसी कोण से समझा जा सकता है। वेदना और करुणा महादेवी वर्मा के गीतों की मुख्य प्रवृत्ति है। असीम दु:ख के भाव में से ही महादेवी वर्मा के गीतों का उदय और अन्त दोनों होता है।
वे हिन्दी के भक्त कवियों की रचनाओं और [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के चरित्र से अत्यन्त प्रभावित थी। उनके गीतों में प्रवाहित करुणा के अनन्त स्रोत को इसी कोण से समझा जा सकता है। वेदना और करुणा महादेवी वर्मा के गीतों की मुख्य प्रवृत्ति है। असीम दु:ख के भाव में से ही महादेवी वर्मा के गीतों का उदय और अन्त दोनों होता है।
==महिला विद्यापीठ की स्थापना==
==महिला विद्यापीठ की स्थापना==
महादेवी वर्मा ने अपने प्रयत्नों से [[इलाहाबाद]] में प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। महादेवी वर्मा पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर [[ब्रजभाषा]] में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर तत्कालीन खड़ीबोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ीबोली में रोला और हरिगीतिका छन्दों में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छन्दों में एक खण्डकाव्य भी लिख डाला। [[1932]] में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका 'चाँद' का कार्यभार सँभाला। प्रयाग में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद हिन्दी के प्रति गहरा अनुराग रखने के कारण महादेवी वर्मा दिनों-दिन साहित्यिक क्रियाकलापों से जुड़ती चली गई। उन्होंने न केवल 'चाँद' का सम्पादन किया वरन् हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयाग में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की। उन्होंने 'साहित्यकार' मासिक का संपादन किया और 'रंगवाणी' नाट्य संस्था की भी स्थापना की।
महादेवी वर्मा ने अपने प्रयत्नों से [[इलाहाबाद]] में 'प्रयाग महिला विद्यापीठ' की स्थापना की। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। महादेवी वर्मा पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर [[ब्रजभाषा]] में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर तत्कालीन [[खड़ी बोली]] की कविता से प्रभावित होकर खड़ी बोली में [[रोला]] और [[हरिगीतिका|हरिगीतिका छन्दों]] में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छन्दों में एक [[खण्डकाव्य]] भी लिख डाला। [[1932]] में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका 'चाँद' का कार्यभार सँभाला। [[प्रयाग]] में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद हिन्दी के प्रति गहरा अनुराग रखने के कारण महादेवी वर्मा दिनों-दिन साहित्यिक क्रियाकलापों से जुड़ती चली गईं। उन्होंने न केवल 'चाँद' का सम्पादन किया वरन् हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयाग में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की। उन्होंने 'साहित्यकार' मासिक का संपादन किया और 'रंगवाणी' नाट्य संस्था की भी स्थापना की।
 
==काव्य संग्रह==
महादेवी वर्मा के [[1934]] में नीरजा, तथा [[1936]] में सांध्यगीत नामक संग्रह प्रकाशित हुए। [[1939]] में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में 'यामा' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। महादेवी वर्मा ने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए। इसके अतिरिक्त उनके 18 काव्य और गद्य कृतियाँ हैं जिनमें 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'शृंखला की कड़ियाँ' और 'अतीत के चलचित्र' प्रमुख हैं।
==कृतियाँ==
==कृतियाँ==
महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ एक विशिष्ट गद्यकार थीं। 'यामा' में उनके प्रथम चार काव्य-संग्रहों की कविताओं का एक साथ संकलन हुआ है। 'आधुनिक कवि-महादेवी' में उनके समस्त काव्य से उन्हीं द्वारा चुनी हुई कविताऐं संकलित हैं। कवि के अतिरिक्त वे गद्य लेखिका के रूप में भी पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। 'स्मृति की रेखाऐं' (1943 ई.) और 'अतीत के चलचित्र' (1941 ई.) उनकी संस्मरणात्मक गद्य रचनाओं के संग्रह हैं। 'श्रृंखला की कड़ियाँ' (1942 ई.) में सामाजिक समस्याओं, विशेषकर अभिशप्त नारी जीवन के जलते प्रश्नों के सम्बन्ध में लिखे उनके विचारात्मक निबन्ध संकलित हैं। रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त 'महादेवी का विवेचनात्मक गद्य' में तथा 'दीपशिखा', 'यामा' और 'आधुनिक कवि-महादेवी' की भूमिकाओं में उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा का भी पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं -  
महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ एक विशिष्ट गद्यकार थीं। 'यामा' में उनके प्रथम चार काव्य-संग्रहों की कविताओं का एक साथ संकलन हुआ है। 'आधुनिक कवि-महादेवी' में उनके समस्त काव्य से उन्हीं द्वारा चुनी हुई कविताएँ संकलित हैं। कवि के अतिरिक्त वे गद्य लेखिका के रूप में भी पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। 'स्मृति की रेखाएं' (1943 ई.) और 'अतीत के चलचित्र' ([[1941]] ई.) उनकी संस्मरणात्मक गद्य रचनाओं के संग्रह हैं। 'श्रृंखला की कड़ियाँ' ([[1942]] ई.) में सामाजिक समस्याओं, विशेषकर अभिशप्त नारी जीवन के जलते प्रश्नों के सम्बन्ध में लिखे उनके विचारात्मक निबन्ध संकलित हैं। रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त 'महादेवी का विवेचनात्मक गद्य' में तथा 'दीपशिखा', 'यामा' और 'आधुनिक कवि-महादेवी' की भूमिकाओं में उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा का भी पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं -  
====काव्य====
{| class="bharattable-pink"
*नीहार (1930) : यह कवयित्री का प्रथम काव्य-संग्रह है।
|-valign="top"
*रश्मि (1932) : इसकी रचनाएँ आध्यात्मिकता से प्रभावित हैं।
|
*नीरजा (1935) : कवयित्री की जीवन दृष्टि का विकसित रूप इसके गीतों में व्यक्त हुआ है।
; काव्य  
*सांध्यगीत (1936) : इसके गीत मिलनोत्कंठा से ओत-प्रोत हैं।
*[[नीहार -महादेवी वर्मा|नीहार]] (1930)<ref>यह कवयित्री का प्रथम काव्य-संग्रह है।</ref>
*दीपशिखा (1942) : इसके गीतों में रहस्य भावना का मधुर संस्पर्श है।
*[[रश्मि -महादेवी वर्मा|रश्मि]] (1932)<ref>इसकी रचनाएँ आध्यात्मिकता से प्रभावित हैं।</ref>
*यामा : यह भावसाम्य से युक्त गीतों तथा चित्रों का अभिनव संग्रह है।
*[[नीरजा -महादेवी वर्मा|नीरजा]] (1934)<ref>कवयित्री की जीवन दृष्टि का विकसित रूप इसके गीतों में व्यक्त हुआ है।</ref>
*सप्तपर्णा : यह [[ॠग्वेद]] के मंत्रों का हिन्दी में काव्यानुवाद है।
*[[सांध्यगीत -महादेवी वर्मा|सांध्यगीत]] (1936)<ref>इसके गीत मिलनोत्कंठा से ओत-प्रोत हैं।</ref>
 
*[[दीपशिखा -महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] (1942)<ref>इसके गीतों में रहस्य भावना का मधुर संस्पर्श है।</ref>
====गद्य====
*[[यामा -महादेवी वर्मा|यामा]] <ref>यह भावसाम्य से युक्त गीतों तथा चित्रों का अभिनव संग्रह है।</ref>
*रेखाचित्रः अतीत के चलचित्र।
*[[सप्तपर्णा -महादेवी वर्मा|सप्तपर्णा]] <ref>यह [[ऋग्वेद]] के मंत्रों का हिन्दी में काव्यानुवाद है।</ref>
*स्मृति की रेखाएँ।
; गद्य  
*पथ के साथी।
*[[अतीत के चलचित्र -महादेवी वर्मा|अतीत के चलचित्र]]
*मेरा परिवार।
*[[स्मृति की रेखाएँ -महादेवी वर्मा|स्मृति की रेखाएँ]]
====निबंध====
*[[पथ के साथी -महादेवी वर्मा|पथ के साथी]]
*आलोचनाः श्रृंखला की कड़ियाँ।
*[[मेरा परिवार -महादेवी वर्मा|मेरा परिवार]]
*विवेचनात्मक गद्य।
|
*क्षणदा साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध।
; विविध संकलन<ref>इनके अतिरिक्त महादेवी वर्मा ने [[बंगाल]] के [[अकाल]] के समय 'बंग दर्शन' तथा [[चीन]] के आक्रमण के समय 'हिमालय' का संपादन भी किया।</ref>
*संकल्पिता।
*स्मारिका
====विविध संकलन====
*स्मृति चित्र
*स्मारिका।
*संभाषण
*स्मृति चित्र।
*संचयन
*संभाषण।
*दृष्टिबोध
*संचयन।
;पुनर्मुद्रित संकलन
*दृष्टिबोध।
*[[यामा -महादेवी वर्मा|यामा]]  ([[1940]])
इसके अतिरिक्त महादेवी वर्मा ने [[बंगाल]] के अकाल के समय 'बंग दर्शन' तथा [[चीन]] के आक्रमण के समय 'हिमालय' का संपादन भी किया।
*[[दीपगीत -महादेवी वर्मा|दीपगीत]]  ([[1983]])
==विशेषताएँ==
*[[नीलाम्बरा -महादेवी वर्मा|नीलाम्बरा]] ([[1983]])
महादेवी के काव्य में भाव समृद्धि तथा शैल्पिक सौन्दर्य का आकर्षक समन्वय है। आपके काव्य की उभयपक्षीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
*[[आत्मिका -महादेवी वर्मा|आत्मिका]] (1983)
====<u>भाव पक्ष</u>====
|
महादेवी जी के काव्य में आत्मनिवेदन का स्वर प्रधान है। अपने हृदय की विविध अनुभूतियों को ही कवयित्री ने काव्य का विषय बनाया है। अज्ञात प्रियतम के प्रति विरह व्यथा का निवेदन, मिलन का संकल्प, रहस्यमयी संवेदनाएँ और प्रकृति का कोमलकान्त दृश्यांकन आपके गीतों के प्रधान विषय हैं। आध्यात्मिकता और दार्शनिकता के झीने अंचल से आवृत्त आपके मृदुल उदगार एक मोहक भाव जगत की सृष्टि करते हैं।
; निबंध
====<u>रस योजना</u>====
*[[श्रृंखला की कड़ियाँ -महादेवी वर्मा|श्रृंखला की कड़ियाँ]]
महादेवी जी के काव्य का प्रधान रस श्रृंगार है। यद्यपि श्रृंगार के संयोग तथा वियोग दोनो ही पक्षों को कवयित्री ने काव्य का विषय बनाया है, तथापि वियोग की अभिव्यक्ति ही अधिक तल्लीनता से हुई है। यह वियोग लौकिक धरातल पर स्थित होते हुए भी अपनी भव्यता से अलौकिकता के अम्बर का स्पर्श करता चलता है। वह [[कबीरदास|कबीर]] की भाँति वियोगिनी आत्मा का प्रियतम परमात्मा के प्रति प्रेम निवेदन बनकर सहृदयों के हृदयों को भाव तरंगों में झुलाने लगता है।
*[[विवेचनात्मक गद्य -महादेवी वर्मा|विवेचनात्मक गद्य]]
 
*[[साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध]]
==रेखाचित्रकार==
; ललित निबंध
महादेवी वर्मा एक सफल रेखाचित्रकार, कवयित्री, और विचारक है। उन्होंने कई रेखाचित्र लिखें हैं जिनमें नीलकंठ मोर, घीसा, सोना, गौरा आदि काफ़ी प्रसिद्ध हैं। मानव एक श्रेष्ठ प्राणी होने पर भी पशुओं के प्रति उसका व्यवहार सराहनीय नहीं हैं। उनके द्वारा रचित सोना और गौरा नामक रेखाचित्र में मानव के निष्ठुर व्यवहार पर महादेवी वर्मा ने प्रकाश डाला हैं। पशु-पक्षी भी प्रेम के लिए ललायित रहते हैं और प्रेम दिखाने पर आनंदविभोर हो उठते हैं। बेजुबान होने पर भी स्नेह के कई मूक प्रर्दशन होते हैं। अपने असीम आनंद की अभिव्यक्ति सुंदर आँखों के भाव से प्रकट करते हैं। परन्तु मानव अपने स्वार्थ के कारण इन बेजुबान जानवरों पर इतना अत्याचार और निर्दय व्यवहार करता है और उन पर कितना जुल्म करता है इसका कोई अंत नहीं। मानव द्वारा इतनी यातना सह कर भी पशु मानव के स्वभाव से अब तक अनजाना है। मानव का यह स्वार्थ अंत में वेदना का कार्य और कारण बन जाता है, इसी बात पर प्रकाश डालना ही महादेवी वर्मा का मुख्य ध्येय है।<ref>{{cite web |url=http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/C/CRRajshree/mahadevi_rekhachitr_Alekh.htm |title=साहित्य कुंज |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
*[[क्षणदा -महादेवी वर्मा|क्षणदा]]
==वेदना==
|}
{{highright}}पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर महादेवी वर्मा ब्रजभाषा में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर महादेवी वर्मा ने तत्कालीन खड़ीबोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ीबोली में रोला और हरिगीतिका छन्दों में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर महादेवी वर्मा ने सौ छन्दों में एक खण्डकाव्य भी लिख डाला।{{highclose}}
====काव्य संग्रह====
महादेवी का समस्त काव्य वेदनामय है। यह वेदना लौकिक वेदना से भिन्न आध्यात्मिक जगत की है, जो उसी के लिए सहज संवेद्य हो सकती है, जिनसे उस अनुभूति-क्षेत्र में प्रवेश किया हो। वैसे महादेवी इस वेदना को उस दु:ख की भी संज्ञा देती हैं, "जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है"<ref>रश्मि भूमिका, पृष्ठ 7</ref> किन्तु विश्व को एक सूत्र में बाँधने वाला दु:ख सामान्यतया लौकिक दु:ख ही होता है, जो भारतीय साहित्य की परम्परा में [[करुण रस]] का स्थायी भाव होता है। महादेवी ने इस दु:ख को नहीं अपनाया है। कहती तो हैं कि "मुझे दु:ख के दोनों ही रूप प्रिय हैं, एक वह, जो मनुष्य के संवेदनशील हृदय को सारे संसार से एक अविच्छिन्न बन्धनों में बाँध देता है और दूसरा वह जो काल और सीमा के बन्धन में पड़े हुए असीम चेतन का क्रन्दन है"<ref>रश्मि भूमिका, पृष्ठ 7</ref> किन्तु उनके काव्य में पहले प्रकार का नहीं, दूसरे प्रकार का 'क्रन्दन' ही अभिव्यक्त हुआ है। यह वेदना सामान्य लोक हृदय की वस्तु नहीं है। सम्भवत: इसीलिए [[रामचन्द्र शुक्ल]] ने उसकी सच्चाई में ही सन्देह व्यक्त करते हुए लिखा है, "इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता"<ref>हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ 719</ref>
महादेवी वर्मा के [[1934]] में 'नीरजा', [[1936]] में 'सांध्यगीत' नामक संग्रह प्रकाशित हुए। [[1939]] में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में 'यामा' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। महादेवी वर्मा ने गद्य, काव्य, शिक्षा और [[चित्रकला]] सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए। इसके अतिरिक्त उनके 18 काव्य और गद्य कृतियाँ हैं जिनमें 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'श्रृंखला की कड़ियाँ' और 'अतीत के चलचित्र' प्रमुख हैं।
 
वेदना की इस एकान्त साधना के फलस्वरूप महादेवी की कविता में विषयों का वैविध्य बहुत कम है। उनकी कुछ ही कविताएं ऐसी हैं, जिनमें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक उद्बोधन अथवा प्रकृति का स्वतन्त्र चित्रण हुआ है। शेष सभी कविताओं में विषयवस्तु और दृष्टिकोण एक ही होने के कारण उनकी काव्यभूमि विस्तृत नहीं हो सकी है। इससे उनके काव्य को हानि और लाभ दोनों हुआ है। हानि यह हुई है कि विषय-परिवर्तन न होने से उनके समस्त काव्य में एकरसता और भावावृत्ति बहुत अधिक है। लाभ यह हुआ है कि सीमित क्षेत्र के भीतर ही कवयित्री ने अनुभूतियों के अनेकानेक आयामों को अनेक दृष्टिकोण से देख-परखकर उनके सूक्ष्मातिसूक्ष्म भेद-प्रभेदों को बिम्बरूप में सामने रखते हुए चित्रित किया है। इस तरह उनके काव्य में विस्तारगत विशालता और दर्शानगत गुरुत्व भले ही न मिले, पर उनकी भावनाओं की गम्भीरता, अनुभूतियों की सूक्ष्मता, बिम्बों की स्पष्टता और कल्पना की कमनीयता के फलस्वरूप गाम्भीर्य और महत्ता अवश्य है। इस तरह उनके काव्य विस्तार का नहीं गहराई का काव्य है।


==प्रकृति निरुपण==
==काव्य विशेषताएँ==
प्रकृति के सौन्दर्य के प्रति कवयित्री की संवेदनशीलता में कोई कमी नहीं है, किन्तु प्रकृति को आलम्बन के रूप में कम ही कविता का विषय बनाया गया है। यह स्वल्प शब्द चित्र भी बड़े मौलिक और मनोहारी हैं। प्रकृति को उद्दीपन विभाव के रूप में महादेवी ने बड़े कलात्मक और मर्मस्पर्शी रूप में प्रस्तुत किया है। वे भावों को प्रखरता तथा अनुभूतियों को तरल गम्भीरता प्रदान करके, कथ्य को अत्यन्त हृदयग्राही बना देती है। महादेवी जी का काव्य छायावादी काव्यशैली की सभी विशेषताओं से विभूषित है। वैयक्तिकता, प्रकृति का मानवीकरण, श्रृंगार की साध्वी अभिव्यक्ति, सौन्दर्य निरुपण, लाक्षणिक अभिव्यक्ति तथा मानवतावादी दृष्टि आदि आपकी रचनाओं में मौलिक भाव-भंगिमा में प्रस्तुत है। कबीर और [[जायसी]] के पश्चात काव्यपरक रहस्यवाद के दर्शन हिन्दी में महादेवी जी के ही काव्य में होते हैं। महादेवी अज्ञात प्रियतम के प्रति प्रणय निवेदन के क्षणों में आध्यात्मिक छोरों का स्पर्श करने लगती हैं। महादेवी जी ने लोक चेतना से भी स्वयं को पूर्णतया विच्छिन्न नहीं किया है। उनके पास भी सन्देश हैं, प्रेरणा मार्ग-दर्शन है।
महादेवी के काव्य में भाव समृद्धि तथा शैल्पिक सौन्दर्य का आकर्षक समन्वय है। आपके काव्य की उभयपक्षीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
====भाव पक्ष====
महादेवी जी के काव्य में आत्मनिवेदन का स्वर प्रधान है। अपने [[हृदय]] की विविध अनुभूतियों को ही कवयित्री ने काव्य का विषय बनाया है। अज्ञात प्रियतम के प्रति विरह व्यथा का निवेदन, मिलन का संकल्प, रहस्यमयी संवेदनाएँ और प्रकृति का कोमलकान्त दृश्यांकन आपके गीतों के प्रधान विषय हैं। आध्यात्मिकता और दार्शनिकता के झीने अंचल से आवृत्त आपके मृदुल उदगार एक मोहक भाव जगत् की सृष्टि करते हैं।
====रस योजना====
महादेवी जी के काव्य का प्रधान [[रस]] श्रृंगार है। यद्यपि श्रृंगार के संयोग तथा वियोग दोनो ही पक्षों को कवयित्री ने काव्य का विषय बनाया है, तथापि वियोग की अभिव्यक्ति ही अधिक तल्लीनता से हुई है। यह वियोग लौकिक धरातल पर स्थित होते हुए भी अपनी भव्यता से अलौकिकता के अम्बर का स्पर्श करता चलता है। वह [[कबीरदास|कबीर]] की भाँति वियोगिनी [[आत्मा]] का प्रियतम परमात्मा के प्रति प्रेम निवेदन बनकर सहृदयों के हृदयों को भाव तरंगों में झुलाने लगता है।
====वेदना====
{{दाँयाबक्सा|पाठ=पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर महादेवी वर्मा ब्रजभाषा में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर महादेवी वर्मा ने तत्कालीन खड़ी बोली की कविता से प्रभावित होकर [[खड़ी बोली]] में [[रोला]] और [[हरिगीतिका]] छन्दों में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर महादेवी वर्मा ने सौ छन्दों में एक खण्डकाव्य भी लिख डाला।|विचारक=}}
महादेवी का समस्त काव्य वेदनामय है। यह वेदना लौकिक वेदना से भिन्न आध्यात्मिक जगत् की है, जो उसी के लिए सहज संवेद्य हो सकती है, जिनसे उस अनुभूति-क्षेत्र में प्रवेश किया हो। वैसे महादेवी इस वेदना को उस दु:ख की भी संज्ञा देती हैं, "जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है"<ref>रश्मि भूमिका, पृष्ठ 7</ref> किन्तु विश्व को एक सूत्र में बाँधने वाला दु:ख सामान्यतया लौकिक दु:ख ही होता है, जो भारतीय साहित्य की परम्परा में [[करुण रस]] का स्थायी भाव होता है। महादेवी ने इस दु:ख को नहीं अपनाया है। कहती तो हैं कि "मुझे दु:ख के दोनों ही रूप प्रिय हैं, एक वह, जो मनुष्य के संवेदनशील हृदय को सारे संसार से एक अविच्छिन्न बन्धनों में बाँध देता है और दूसरा वह जो काल और सीमा के बन्धन में पड़े हुए असीम चेतन का क्रन्दन है"<ref>रश्मि भूमिका, पृष्ठ 7</ref> किन्तु उनके काव्य में पहले प्रकार का नहीं, दूसरे प्रकार का 'क्रन्दन' ही अभिव्यक्त हुआ है। यह वेदना सामान्य लोक हृदय की वस्तु नहीं है। सम्भवत: इसीलिए [[रामचन्द्र शुक्ल]] ने उसकी सच्चाई में ही सन्देह व्यक्त करते हुए लिखा है, "इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता"<ref> हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ 719</ref>
====विषयवस्तु और दृष्टिकोण====
वेदना की इस एकान्त साधना के फलस्वरूप महादेवी की [[कविता]] में विषयों का वैविध्य बहुत कम है। उनकी कुछ ही कविताएं ऐसी हैं, जिनमें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक उद्बोधन अथवा प्रकृति का स्वतन्त्र चित्रण हुआ है। शेष सभी कविताओं में विषयवस्तु और दृष्टिकोण एक ही होने के कारण उनकी काव्यभूमि विस्तृत नहीं हो सकी है। इससे उनके काव्य को हानि और लाभ दोनों हुआ है। हानि यह हुई है कि विषय-परिवर्तन न होने से उनके समस्त काव्य में एकरसता और भावावृत्ति बहुत अधिक है। लाभ यह हुआ है कि सीमित क्षेत्र के भीतर ही कवयित्री ने अनुभूतियों के अनेकानेक आयामों को अनेक दृष्टिकोण से देख-परखकर उनके सूक्ष्मातिसूक्ष्म भेद-प्रभेदों को बिम्बरूप में सामने रखते हुए चित्रित किया है। इस तरह उनके काव्य में विस्तारगत विशालता और दर्शनागत गुरुत्व भले ही न मिले, पर उनकी भावनाओं की गम्भीरता, अनुभूतियों की सूक्ष्मता, बिम्बों की स्पष्टता और कल्पना की कमनीयता के फलस्वरूप गाम्भीर्य और महत्ता अवश्य है। इस तरह उनके काव्य विस्तार का नहीं गहराई का काव्य है।
====प्रकृति निरूपण====
प्रकृति के सौन्दर्य के प्रति कवयित्री की संवेदनशीलता में कोई कमी नहीं है, किन्तु प्रकृति को आलम्बन के रूप में कम ही कविता का विषय बनाया गया है। यह स्वल्प शब्द चित्र भी बड़े मौलिक और मनोहारी हैं। प्रकृति को उद्दीपन विभाव के रूप में महादेवी ने बड़े कलात्मक और मर्मस्पर्शी रूप में प्रस्तुत किया है। वे भावों को प्रखरता तथा अनुभूतियों को तरल गम्भीरता प्रदान करके, कथ्य को अत्यन्त हृदयग्राही बना देती है। महादेवी जी का काव्य छायावादी काव्यशैली की सभी विशेषताओं से विभूषित है। वैयक्तिकता, प्रकृति का मानवीकरण, श्रृंगार की साध्वी अभिव्यक्ति, सौन्दर्य निरूपण, लाक्षणिक अभिव्यक्ति तथा मानवतावादी दृष्टि आदि आपकी रचनाओं में मौलिक भाव-भंगिमा में प्रस्तुत है। [[कबीर]] और [[जायसी]] के पश्चात् काव्यपरक [[रहस्यवाद]] के दर्शन [[हिन्दी]] में महादेवी जी के ही काव्य में होते हैं। महादेवी अज्ञात प्रियतम के प्रति प्रणय निवेदन के क्षणों में आध्यात्मिक छोरों का स्पर्श करने लगती हैं। महादेवी जी ने लोक चेतना से भी स्वयं को पूर्णतया विच्छिन्न नहीं किया है। उनके पास भी सन्देश हैं, प्रेरणा मार्ग-दर्शन है।
[[चित्र:Mahadevi-Verma-1.jpg|thumb|महादेवी वर्मा]]
[[चित्र:Mahadevi-Verma-1.jpg|thumb|महादेवी वर्मा]]
==अनुभूतियाँ==
====अनुभूतियाँ====
महादेवी वर्मा का काव्य अनुभूतियों का काव्य है। उसमें देश, समाज या युग का चित्रांकन नहीं है, बल्कि उसमें कवयित्री की निजी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति हुई है। उनकी अनुभूतियाँ प्रायः अज्ञात प्रिय के प्रति मौन समर्पण के रूप में हैं। उनका काव्य उनके जीवन काल में आने वाले विविध पड़ावों के समान है। उनमें प्रेम एक प्रमुख तत्त्व है जिस पर अलौकिकता का आवरण पड़ा हुआ है। इनमें प्रायः सहज मानवीय भावनाओं और आकर्षण के स्थूल संकेत नहीं दिए गए हैं, बल्कि प्रतीकों के द्वारा भावनाओं को व्यक्त किया गया है। कहीं-कहीं स्थूल संकेत दिए गए हैं-
महादेवी वर्मा का काव्य अनुभूतियों का काव्य है। उसमें देश, समाज या [[युग]] का चित्रांकन नहीं है, बल्कि उसमें कवयित्री की निजी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति हुई है। उनकी अनुभूतियाँ प्रायः अज्ञात प्रिय के प्रति मौन समर्पण के रूप में हैं। उनका काव्य उनके जीवन काल में आने वाले विविध पड़ावों के समान है। उनमें प्रेम एक प्रमुख तत्त्व है जिस पर अलौकिकता का आवरण पड़ा हुआ है। इनमें प्रायः सहज मानवीय भावनाओं और आकर्षण के स्थूल संकेत नहीं दिए गए हैं, बल्कि प्रतीकों के द्वारा भावनाओं को व्यक्त किया गया है। कहीं-कहीं स्थूल संकेत दिए गए हैं-
<poem>मेरी आहें सोती है इन ओठों की ओटों में,
<poem>मेरी आहें सोती है इन ओठों की ओटों में,
मेरा सर्वस्व छिपा है इन दीवानी चोटों में।</poem>
मेरा सर्वस्व छिपा है इन दीवानी चोटों में।</poem>
कवियत्री ने सर्वत्र अपनी प्रणय-भावना का उन्नयन और परिष्कार किया है। इनके प्रेम का आलंबन विराट् एवं विशाल है, जो अलौकिक है-
कवयित्री ने सर्वत्र अपनी प्रणय-भावना का उन्नयन और परिष्कार किया है। इनके प्रेम का आलंबन विराट एवं विशाल है, जो अलौकिक है-
<poem>बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ ।
<poem>बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ ।
नींद भी मेरी अचल निस्पंद कण-कण में,
नींद भी मेरी अचल निस्पंद कण-कण में,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पंदन में,
प्रथम जागृति थी जगत् के प्रथम स्पंदन में,
प्रलय में मेरा पता पद-चिन्ह जीवन में।</poem>
प्रलय में मेरा पता पद-चिह्न जीवन में।</poem>
इन्होंने अन्य छायावादी कवियों की तरह प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है और उसके साथ विविध मधुर संबंधों की कल्पनाएँ की हैं-
इन्होंने अन्य छायावादी कवियों की तरह प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है और उसके साथ विविध मधुर संबंधों की कल्पनाएँ की हैं-
<poem>रजनी ओढ़े जाती थी !
<poem>रजनी ओढ़े जाती थी !
पंक्ति 118: पंक्ति 137:
परिचय इतना इतिहास यही,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी थी कल मिट आज चली।<ref name="sjngth"></ref></poem>
उमड़ी थी कल मिट आज चली।<ref name="sjngth"></ref></poem>
 
महादेवी का काव्य वर्णनात्मक और इतिवृत्तात्मक नहीं है। आन्तरिक सूक्ष्म अनुभूतियों की अभिव्यक्ति उन्होंने सहज भावोच्छवास के रूप में की है। इस कारण उसकी अभिव्यंजना- पद्धति में लाक्षणिकता और व्यंजकता का बाहुल्य है। रूपकात्मक बिम्बों और प्रतीकों के सहारे उन्होंने जो मोहक चित्र उपस्थित किये हैं, वे उनकी सूक्ष्म दृष्टि और रंगमयी कल्पना की शक्तिमत्ता का परिचय देते हैं। ये चित्र उन्होंने अपने परिपार्श्व, विशेषकर प्राकृतिक परिवेश से लिए हैं पर प्रकृति को उन्होंने आलम्बन रूप में बहुत कम ग्रहण किया। प्रकृति महादेवी वर्मा के काव्य में सदैव उद्दीपन, [[अलंकार]], प्रतीक और संकेत के रूप में ही चित्रित हुई है। इसी कारण प्रकृति के अति परिचित और सर्वजनसुलभ दृश्यों या वस्तुओं को ही उन्होंने अपने काव्य का उपादान बनाया है। उसके असाधारण और अल्पपरिचित दृश्यों की ओर उनका ध्यान नहीं गया है। फिर भी सीमित प्राकृतिक उपादानों के द्वारा उन्होंने जो पूर्ण या आंशिक बिम्ब चित्रित किए हैं, उनसे उनकी चित्रविधायिनी कल्पना का पूरा परिचय मिल जाता है। इसी कल्पना के दर्शन महादेवी वर्मा के उन चित्रों में भी होते हैं, जो उन्होंने शब्दों से नहीं, [[रंग|रंगों]] और तूलिका के माध्यम से निर्मित किए हैं। उनके ये चित्र 'दीपशिखा' और 'यामा' में कविताओं में प्रकाशित हुए हैं।
महादेवी का काव्य वर्णनात्मक और इतिवृत्तात्मक नहीं है। आन्तरिक सूक्ष्म अनुभूतियों की अभिव्यक्ति उन्होंने सहज भावोच्छवास के रूप में की है। इस कारण उसकी अभिव्यंजना- पद्धति में लाक्षणिकता और व्यंजकता का बाहुल्य है। रूपकात्मक बिम्बों और प्रतीकों के सहारे उन्होंने जो मोहक चित्र उपस्थित किये हैं, वे उनकी सूक्ष्म दृष्टि और रंगमयी कल्पना की शक्तिमत्ता का परिचय देते हैं। ये चित्र उन्होंने अपने परिपार्श्व, विशेषकर प्राकृतिक परिवेश से लिए हैं पर प्रकृति को उन्होंने आलम्बन रूप में बहुत कम ग्रहण किया। प्रकृति महादेवी वर्मा के काव्य में सदैव उद्दीपन, अलंकार, प्रतीक और संकेत के रूप में ही चित्रित हुई है। इसी कारण प्रकृति के अति परिचित और सर्वजनसुलभ दृश्यों या वस्तुओं को ही उन्होंने अपने काव्य का उपादान बनाया है। उसके असाधारण और अल्पपरिचित दृश्यों की ओर उनका ध्यान नहीं गया है। फिर भी सीमित प्राकृतिक उपादानों के द्वारा उन्होंने जो पूर्णया आंशिक बिम्ब चित्रित किए हैं, उनसे उनकी चित्रविधायिनी कल्पना का पूरा परिचय मिल जाता है। इसी कल्पना के दर्शन महादेवी वर्मा के उन चित्रों में भी होते हैं, जो उन्होंने शब्दों से नहीं, रंगो और तुलिका के माध्यम से निर्मित किए हैं। उनके ये चित्र 'दीपशिखा' और 'यामा' में कविताओं में प्रकाशित हुए हैं।
====भाषा-शैली====
 
महादेवी अपनी काव्य [[भाषा]] की निर्मात्री स्वयं ही हैं, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। अभिव्यक्ति की जो सामर्थ्य, भाव व्यंजना का जो मार्मिक सौष्ठव, आपकी भाषा वहन करती है, वह अन्यत्र [[सुमित्रा नंदन पंत|पंतजी]] में ही प्राप्त होता है। आपकी भाषागत कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
==भाषा==
महादेवी अपनी काव्य भाषा की निर्मात्री स्वयं ही हैं, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। अभिव्यक्ति की जो सामर्थ्य, भाव व्यंजना का जो मार्मिक सौष्ठव, आपकी भाषा वहन करती है, वह अन्यत्र पंतजी में ही प्राप्त होता है। आपकी भाषागत कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
*आपकी भाषा का एक विशिष्ट स्तर है, जो स्वभावतः संस्कृत शब्दावली की ओर झुका हुआ है। तत्सम शब्द प्रधान होते हुए भी इस भाषा रूप में क्लिष्टता या रूक्षता नहीं हैं। उसमें प्रवाह है, लय है।  
*आपकी भाषा का एक विशिष्ट स्तर है, जो स्वभावतः संस्कृत शब्दावली की ओर झुका हुआ है। तत्सम शब्द प्रधान होते हुए भी इस भाषा रूप में क्लिष्टता या रूक्षता नहीं हैं। उसमें प्रवाह है, लय है।  
*संस्कृत तत्सम शब्दावली के प्रति महादेवी की कोई प्रतिबद्धता नहीं है। आपने अपेक्षाकृत सरल शब्दावली का भी सहज भाव से प्रयोग किया है; यथा-
*संस्कृत तत्सम शब्दावली के प्रति महादेवी की कोई प्रतिबद्धता नहीं है। आपने अपेक्षाकृत सरल शब्दावली का भी सहज भाव से प्रयोग किया है; यथा-
<blockquote>विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना,<br />
<blockquote>विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना,<br />
परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी कल थी मिट आज चली।</blockquote>
परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी मिट आज चली।</blockquote>
*महादेवी जी ने भाषा को अद्भुत मृदुता और मधुरता प्रदान की है। भाव और लय का मनोहारी संगम प्रस्तुत करने में आपकी भाषा का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है।
*महादेवी जी ने भाषा को अद्भुत मृदुता और मधुरता प्रदान की है। भाव और लय का मनोहारी संगम प्रस्तुत करने में आपकी भाषा का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है।
*लाक्षणिकता महादेवी जी की शब्द चित्रकारिता में सहायक तूलिका कही जाय तो अनुचित नहीं होगा। शब्द से कहाँ- क्या अर्थ ध्वनित होना है, इसे उनकी भाषा मर्मज्ञता भली-भाँति जानती है।
*लाक्षणिकता महादेवी जी की शब्द चित्रकारिता में सहायक तूलिका कही जाय तो अनुचित नहीं होगा। शब्द से कहाँ- क्या अर्थ ध्वनित होना है, इसे उनकी भाषा मर्मज्ञता भली-भाँति जानती है।
====<u>शैली</u>====
* महादेवी जी की रचना-शैली की प्रमुख विशेषताएँ उसकी भावतरलता, वैयक्तिकता, प्रतीकात्मकता, चित्रात्मकता, आलंकारिता, छायावादी तथा रहस्यात्मक अभिव्यक्ति आदि हैं।
महादेवी जी की रचना-शैली की प्रमुख विशेषताएँ उसकी भावतरलता, वैयक्तिकता, प्रतीकात्मकता, चित्रात्मकता, आलंकारिता, छायावादी तथा रहस्यात्मक अभिव्यक्ति आदि हैं।
====अलंकरण====
====<u>अलंकरण</u>====
महादेवी जी ने परम्परागत एवं नवीन, सभी [[अलंकार|अलंकारों]] का कलात्मकता से उपयोग किया है। उपमानों की मौलिकता एवं मनमोहक विधान आपके अलंकरण की विशेषताएँ हैं। [[रूपक अलंकार|रूपक]] आपका प्रिय अलंकार है:-
महादेवी जी ने परम्परागत एवं नवीन, सभी अलंकारों का कलात्मकता से उपयोग किया है। उपमानों की मौलिकता एवं मनमोहक विधान आपके अलंकरण की विशेषताएँ हैं। रूपक आपका प्रिय अलंकार है:-
<blockquote>ले उषा ने किरण अक्षत, हास रोली,<br />
<blockquote>ले उषा ने किरण अक्षत, हास रोली,<br />
रात अंकों से पराजय राख धोली।</blockquote>
रात अंकों से पराजय राख धोली।</blockquote>
महादेवी जी ने छायावादी गीत लिखे हैं और गीतों के छन्द बद्ध में वह पूर्ण दक्ष हैं। अनेक स्थलों पर उनकी गीति लोकगीत की लहरियों में तरंगित प्रतीत होती है। इनके गीतों में लय, संगीतात्मकता तथा नाद सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। अपनी काव्यगत विशिष्टिताओं के लिए महादेवी जी काव्य-प्रेमियों के लिए सदैव सम्मानीय और स्मरणीय रहेंगी। उनका काव्य विश्व-साहित्य की निधि है।
महादेवी जी ने छायावादी गीत लिखे हैं और गीतों के छन्द बद्ध में वह पूर्ण दक्ष हैं। अनेक स्थलों पर उनकी गीति लोकगीत की लहरियों में तरंगित प्रतीत होती है। इनके गीतों में लय, संगीतात्मकता तथा नाद सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। अपनी काव्यगत विशिष्टिताओं के लिए महादेवी जी काव्य-प्रेमियों के लिए सदैव सम्मानीय और स्मरणीय रहेंगी। उनका काव्य विश्व-साहित्य की निधि है।
 
====रेखाचित्रकार====
{{दाँयाबक्सा|पाठ=एक बार [[मैथिलीशरण गुप्त]] ने उनकी कर्मठता की प्रशंसा करते हुए पूछा कि आप कभी थकती नहीं। उनका उत्तर था कि [[होली]] के दिन जन्मी हूं न, इसीलिए होली का [[रंग]] और उसके उल्लास की चमक मेरे चेहरे पर बनी रहती है।|विचारक=}}
महादेवी वर्मा एक सफल रेखाचित्रकार, कवयित्री, और विचारक है। उन्होंने कई रेखाचित्र लिखें हैं जिनमें नीलकंठ मोर, घीसा, सोना, गौरा आदि काफ़ी प्रसिद्ध हैं। मानव एक श्रेष्ठ प्राणी होने पर भी पशुओं के प्रति उसका व्यवहार सराहनीय नहीं हैं। उनके द्वारा रचित 'सोना और गौरा' नामक रेखाचित्र में मानव के निष्ठुर व्यवहार पर महादेवी वर्मा ने प्रकाश डाला हैं। पशु-पक्षी भी प्रेम के लिए लालायित रहते हैं और प्रेम दिखाने पर आनंदविभोर हो उठते हैं। बेजुबान होने पर भी स्नेह के कई मूक प्रदर्शन होते हैं। अपने असीम आनंद की अभिव्यक्ति सुंदर [[आँख|आँखों]] के भाव से प्रकट करते हैं। परन्तु मानव अपने स्वार्थ के कारण इन बेजुबान जानवरों पर इतना अत्याचार और निर्दय व्यवहार करता है और उन पर कितना जुल्म करता है इसका कोई अंत नहीं। मानव द्वारा इतनी यातना सह कर भी पशु मानव के स्वभाव से अब तक अनजाना है। मानव का यह स्वार्थ अंत में वेदना का कार्य और कारण बन जाता है, इसी बात पर प्रकाश डालना ही महादेवी वर्मा का मुख्य ध्येय है।<ref>{{cite web |url=http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/C/CRRajshree/mahadevi_rekhachitr_Alekh.htm |title=साहित्य कुंज |accessmonthday=[[12 अक्टूबर]] |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
==धार्मिक विचार==
महादेवी ने स्वयं लिखा है, ”मां से पूजा और [[आरती]] के समय सुने [[सूरदास|सूर]], [[तुलसीदास|तुलसी]] तथा [[मीरा]] आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। माँ से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पड़ोस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र लिखे थे जो उस समय की पत्र्किाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण [[बौद्ध साहित्य]] भी मुझे प्रिय रहा है।“ महादेवी वर्मा ने अपने आराध्य को, प्रियतम को करुणामय (ब्रह्म) के रूप में सम्बोधित किया है। महादेवी पूजा और अर्चना के बाह्य उपकरणों को स्वीकार नहीं करती हैं। उनका लघुतम जीवन ही उस असीम का सुन्दर मंदिर है।
<poem>क्या पूजा क्या अर्चना रे
उस असीम का सुन्दर मंदिर
मेरा लघुतर जीवन रे।<ref name="RSA">{{cite web |url=http://rsaudr.org/show_artical.php?&id=2518 |title=शीर्ष कवयित्री महीयसी महादेवी वर्मा |accessmonthday= 31 मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= राजस्थान साहित्य अकादमी|language=हिंदी }} </ref></poem>
====आधुनिक मीरां====
महादेवी वर्मा को आधुनिक [[युग]] की मीरां भी कहा जाता है। [[भक्ति काल]] में जो स्थान [[कृष्ण]] भक्त [[मीरां]] को प्राप्त है, आधुनिक काल में वह स्थान महादेवी वर्मा को मिला है। मीरां का प्रियतम सगुण, साकार गिरधर गोपाल है जिसके प्रति वे समर्पित रही, तो दूसरी ओर महादेवी के प्रियतम असीम निर्गुण निराकार (ब्रह्म) हैं और उसके प्रति वे समर्पित हैं। महादेवी अपने आप में एक जीवन गाथा हैं। महादेवी का प्रसिद्ध गीत, ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ इस बात का परिचायक है कि उनका यह जीवन दर्शन है जो मीरांबाई जैसा ही है।<ref name="RSA"/>
==व्यक्तित्व में एकाकीपन की झलक==
महादेवी की घनिष्ठतम मित्र, सहपाठिनी कवि [[सुभद्रा कुमारी चौहान]] और महादेवी के अन्तरंग क्षणों की बात का उल्लेख करते हुए प्रसिद्ध कथाकार और [[प्रेमचन्द]] की जीवनी 'कलम का सिपाही' के लेखक [[अमृत राय]] ने लिखा हैः-
"दोनों स्त्रियां अपनी बातों में लीन, अपने परितृप्त बाल बच्चों में मगन बतियाये जा रही थीं कि एकाएक लगा कि जैसे कोई फूट फूट कर रो पड़ा। वह रोना जैसे फूटा था वैसे ही भीतर समा भी गया पर कमरे में एकाएक सन्नाटा छा गया। जो व्यक्ति रो पड़ा उसका यह रूप इतना अप्रत्याशित था कि सब जैसे सकते में आ गये। शुभ्रवसना, प्रसन्नवदना महादेवी जी जिनको लोगों ने सदा हंसते ही देखा था, वो कभी इस तरह फूट कर रो भी पड़ेंगी, इसकी किसी को कल्पना भी नहीं थी पर अनजाने ही, अपने सुख दुःख में भूली, अपने परिवार में मगन उन गृहणियों ने उनकी कौन सी दुखती रग छू दी थी कि उनका वह हंसमुख मुखौटा बरबस हट गया। उस क्षण मैंने जिस निचाट सूने एकाकीपन की एक झलक पायी, वह सचमुच डरा देने वाली थी पर उसी के साथ साथ ऐसी स्त्री के लिए मेरे मन का आदर जैसे और सौ गुना बढ़ गया जिसने इस पुरुषशासित रूढ़िग्रस्त समाज में अकेले रह कर जीवन को बिना किसी दैन्य या कमज़ोरी के इस बहादुरी के साथ जिया।"<ref>जिनकी याद सदा रहेगी -[[अमृत राय]]</ref>
==विशिष्ट स्थान==
==विशिष्ट स्थान==
महादेवी वर्मा छायावाद के कवियों में औरों से भिन्न अपना एक विशिष्ट और निराला स्थान रखती हैं। इस विशिष्टता के दो कारण हैं-
महादेवी वर्मा छायावाद के कवियों में औरों से भिन्न अपना एक विशिष्ट और निराला स्थान रखती हैं। इस विशिष्टता के दो कारण हैं-
#एक तो उनका कोमल हृदया नारी होना।
#एक तो उनका कोमल हृदया नारी होना।
#अंग्रेज़ी और बांग्ला के रोमानी और रहस्यवादी काव्य से प्रभावित होना। इन दोनों कारणों से एक ओर तो उन्हें अपने आध्यात्मिक प्रियतम को पुरुष मानकर स्वाभाविक रूप में अपनी स्त्री-जनोचित प्रणयानुभूतियों को निवेदित करने की सुविधा मिली, दूसरी ओर प्राचीन भारतीय साहित्य और दर्शन तथा सन्त युग के रहस्यवादी काव्य के अध्ययन और अपने पूर्ववर्ती तथा समकालीन छायावादी कवियों के काव्य से निकट का परिचय होने के फलस्वरूप उनकी काव्याभिव्यंजना और बौद्धिक चेतना शत-प्रतिशत भारतीय परम्परा के अनुरूप बनी रही। इस तरह उनके काव्य में जहाँ कृष्ण भक्ति काव्य की विरह-भावना गोपियों के माध्यम से नहीं, सीधे अपनी आध्यात्मिक अनुभूति की अभिव्यक्ति के रूप में प्रकाशित हुई है, वहीं सूफी पुरुष कवियों की भाँति उन्हें परमात्मा को नारी के प्रतीक में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
#[[अंग्रेज़ी]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] के रोमानी और रहस्यवादी काव्य से प्रभावित होना। इन दोनों कारणों से एक ओर तो उन्हें अपने आध्यात्मिक प्रियतम को पुरुष मानकर स्वाभाविक रूप में अपनी स्त्री-जनोचित प्रणयानुभूतियों को निवेदित करने की सुविधा मिली, दूसरी ओर प्राचीन भारतीय साहित्य और [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] तथा सन्त युग के रहस्यवादी काव्य के अध्ययन और अपने पूर्ववर्ती तथा समकालीन छायावादी कवियों के काव्य से निकट का परिचय होने के फलस्वरूप उनकी काव्याभिव्यंजना और बौद्धिक चेतना शत-प्रतिशत भारतीय परम्परा के अनुरूप बनी रही। इस तरह उनके काव्य में जहाँ कृष्ण भक्ति काव्य की विरह-भावना गोपियों के माध्यम से नहीं, सीधे अपनी आध्यात्मिक अनुभूति की अभिव्यक्ति के रूप में प्रकाशित हुई है, वहीं सूफी पुरुष कवियों की भाँति उन्हें परमात्मा को नारी के प्रतीक में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
==सम्मान और पुरस्कार==
सन [[1955]] में महादेवी जी ने [[इलाहाबाद]] में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और [[पं. इला चंद्र जोशी]] के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद [[1952]] में वे [[उत्तर प्रदेश]] [[विधान परिषद]] की सदस्या मनोनीत की गईं। [[1956]] में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए '[[पद्म भूषण]]' की उपाधि और [[1969]] में '[[विक्रम विश्वविद्यालय]]' ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से अलंकृत किया। इससे पूर्व महादेवी वर्मा को 'नीरजा' के लिए [[1934]] में 'सेकसरिया पुरस्कार', [[1942]] में 'स्मृति की रेखाओं' के लिए 'द्विवेदी पदक' प्राप्त हुए। [[1943]] में उन्हें 'मंगला प्रसाद पुरस्कार' एवं उत्तर प्रदेश सरकार के 'भारत भारती पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। 'यामा' नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें [[भारत]] का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' प्राप्त हुआ।
====पुरस्कार सूची====
*[[1934]] :सेकसरिया पुरस्कार
*[[1942]] :द्विवेदी पदक
*[[1943]] :मंगला प्रसाद पुरस्कार
*[[1943]] :भारत भारती पुरस्कार
*[[1956]] :[[पद्म भूषण]] 
*[[1979]] :साहित्य अकादेमी फेलोशिप
*[[1982]] :[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] 
*[[1988]] :[[पद्म विभूषण]]
==गूगल डूडल==
[[चित्र:Mahadevi-Verma-Google-Doodle.jpg|thumb|250px|महादेवी वर्मा पर जारी गूगल डूडल]]
सर्च इंजन गूगल ने साहित्य जगत की आधुनिक 'मीरा' महादेवी वर्मा पर भी अपना डूडल बनाया। अक्सर गूगल किसी महान शख्स के जन्मदिवस या पुण्यतिथि पर डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देता है, लेकिन [[27 अप्रॅल]], [[2018]] को गूगल ने महादेवी वर्मा पर किसी और वजह से डूडल बनाया। उल्लेखनीय है कि 27 अप्रॅल ही के दिन साल [[1982]] में महादेवी वर्मा को भारतीय साहित्य में योगदान के लिए '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। इस गूगल डूडल को कलाकार सोनाली ज़ोहरा ने बनाया था। डूडल में महान कवयित्री को हाथों में डायरी और कलम लिए अपने विचारों में खोया हुआ दिखाया गया है।<ref>{{cite web |url=https://navbharattimes.indiatimes.com/tech/computer-mobile/google-celebrates-mahadevi-varma-with-doodle/articleshow/63934057.cms |title=गूगल डूडल: महान कवयित्री महादेवी वर्मा को किया जा रहा है याद |accessmonthday=27 अप्रॅल |accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=navbharattimes.indiatimes.com |language=हिंदी }}</ref>
 


==उपाधि==
महादेवी वर्मा को 'मॉडर्न मीरा' भी कहा जाता है। गूगल के ब्लॉग के मुताबिक़, 'माता-पिता दोनों ने ही महादेवी को उनकी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन उनका मां ही थीं, जिन्होंने अपनी बेटी को [[संस्कृत]] और [[हिंदी]] में लिखने की प्रेरणा दी।' संस्कृत में मास्टर डिग्री की पढ़ाई के दौरान, उन्होंने अपना पहला [[छंद]] संस्कृत में लिखा, जिसे बाद में उनकी दोस्त और रूममेट रहीं जानी-मानी कवयित्री [[सुभद्रा कुमारी चौहान]] ने खोजा।
सन [[1955]] में महादेवी जी ने इलाहाबाद में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद [[1952]] में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गईं। [[1956]] में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए 'पद्म भूषण' की उपाधि और [[1969]] में विक्रम विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से अलंकृत किया। इससे पूर्व महादेवी वर्मा को 'नीरजा' के लिए [[1934]] में 'सक्सेरिया पुरस्कार', [[1942]] में 'स्मृति की रेखाओं' के लिए 'द्विवेदी पदक' प्राप्त हुए। [[1943]] में उन्हें 'मंगला प्रसाद पुरस्कार' एवं उत्तर प्रदेश सरकार के 'भारत भारती' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 'यामा' नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ।
==संस्मरण==
अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखायाई पाठ के साथी, मेरा परिवार, यहाँ महादेवी वर्मा के 'मेरे बचपन के दिन लेख के कुछ दृश्य साकार किये जा रहे हैं। बचपन की यादों में एक विचित्र सा आकर्षण होता है। महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीड़ियों के बाद उत्पन हुई। उनके परिवार में दौ सो सालों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी यदि होती तो उसे मार दिया जाता था। दुर्गा पूजा के कारण आपका जन्म हुआ। आपके दादा [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[उर्दू भाषा|उर्दू]] तथा पिताजी [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] जानते थे। माताजी [[जबलपुर]] से हिन्दी सीख कर आई थी, महादेवी वर्मा ने पंचतंत्र और संस्कृत का अध्ययन किया। महादेवी वर्मा जी को काव्य प्रतियोगिता मे चांदी का कटोरा मिला था। जिसे इन्होंने [[महात्मा गाँधी|गाँधीजी]] को दे दिया था। महादेवी वर्मा कवि सम्मेलन में भी जाने लगी थी, वो [[सत्याग्रह आंदोलन]] के दौरान कवि सम्मेलन में अपनी कवितायें सुनाती और उनको हमेशा प्रथम पुरस्कार मिला करता था। महादेवी वर्मा [[मराठी भाषा|मराठी]] मिश्रित हिन्दी बोलती थी।
==पुनर्मुद्रित संकलन==
*यामा  ([[1940]])।
*दीपगीत  ([[1983]])।
*नीलाम्बरा ([[1983]])।
*आत्मिका  (1983)। 
==कुछ प्रतिनिधि कविताएँ==
*अधिकार,
*अलि! मैं कण-कण को जान चली,
*अलि अब सपने की बात, 
*अश्रु यह पानी नहीं है उत्तर,
*कहाँ रहेगी चिड़िया, 
*किसी का दीप निष्ठुर हूँ,
*कौन तुम मेरे हृदय में,
*क्या जलने की रीत, 
*क्या पूजन क्यों इन तारों को उलझाते?, 
*जब यह दीप थके,
*जाग-जाग सुकेशिनी री!,
*जाग तुझको दूर जाना, 
*जाने किस जीवन की सुधि ले,
*जीवन दीप,
*जीवन विरह का जलजात,
*जो तुम आ जाते एक बार, 
*जो मुखरित कर जाती थीं, 
*तुम मुझमें प्रिय, 
*तेरी सुधि बिन, 
*दिया क्यों जीवन का वरदान,
*दीपक अब रजनी जाती रे, 
*दीपक चितेरा, 
*दीपक पर पतंग, 
*धीरे-धीरे उतर क्षितिज से, 
*धूप सा तन दीप सी मैं, 
*नीर भरी दुख की बदली | 
==पुरस्कारों से सम्मानित किया गया==
*1934 :सक्सेरिया पुरस्कार
*1942 :द्विवेदी पदक
*1943 :मंगला प्रसाद पुरस्कार
*1943 :भारत भारती पुरस्कार
*1956 :पद्म भूषण 
*[[1979]] :साहित्य अकादेमी फेल्लोव्शिप 
*[[1982]] :ज्ञानपीठ पुरस्कार 
*[[1988]] :पद्म विभूषण 
==निधन==
==निधन==
महादेवी वर्मा का निधन [[22 सितम्बर]], [[1987]], को [[प्रयाग]] में हुआ था।
महादेवी वर्मा का निधन [[11 सितम्बर]], [[1987]], को [[प्रयाग]] में हुआ था। महादेवी वर्मा ने निरीह व्यक्तियों की सेवा करने का व्रत ले रखा था। वे बहुधा निकटवर्ती ग्रामीण अंचलों में जाकर ग्रामीण भाई-बहनों की सेवा सुश्रुषा तथा दवा निःशुल्क देने में निरत रहती थी। वास्तव में वे निज नाम के अनुरूप ममतामयी, महीयसी महादेवी थी। [[भारतीय संस्कृति]] तथा भारतीय जीवन दर्शन को आत्मसात किया था। उन्होंने भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में कभी समझौता नहीं किया। महादेवी वर्मा ने एक निर्भीक, स्वाभिमाननी भारतीय नारी का जीवन जिया। राष्ट्र भाषा [[हिन्दी]] के सम्बन्ध में उनका कथन है ‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुड़ी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’ <ref name="RSA"/>
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.apnihindi.com/2009/04/poems-by-mahadevi-verma.html महादेवी वर्मा की कवितायें]
*[http://www.apnihindi.com/2009/04/poems-by-mahadevi-verma.html महादेवी वर्मा की कवितायें]
*[http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80_%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF कविताकोश]
*[http://kavita.hindyugm.com/2008/09/mahadevi-verma-receiving-jyanpeeth.html महादेवी वर्मा का आशीर्वाद भरा हाथ (हिन्द-युग्म)]
*[http://kavita.hindyugm.com/2008/09/mahadevi-verma-receiving-jyanpeeth.html हिन्द-युग्म]
*[http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE_/_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80_%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE बिन्दा / महादेवी वर्मा (गद्य कोश)]
*[http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE_/_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80_%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE गद्य कोश]
*[http://lti1.wordpress.com/2009/01/31/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A5-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87/ पंथ होने दो अपरिचित – महादेवी वर्मा (वर्ड प्रेस ब्लॉग)]
*[http://lti1.wordpress.com/2009/01/31/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A5-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87/ वर्ड प्रेस]
*[http://www.hindikunj.com/2010/10/mahadevi-verma-poems.html तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना - महादेवी वर्मा (हिन्दी कुंज)]
*[http://www.hindikunj.com/2010/10/mahadevi-verma-poems.html हिन्दी कुंज]
*[http://taptilok.com/pages/details.php?detail_sl_no=422&cat_sl_no=8 वेदना की कवियित्री महादेवी वर्मा : व्यक्तित्व परिचय ]
*[http://taptilok.com/pages/details.php?detail_sl_no=422&cat_sl_no=8 ताप्तीलोक]
*[http://www.manaskriti.com/kaavyaalaya/madhur.stm मेरे दीपक (काव्यालय)]
*[http://www.manaskriti.com/kaavyaalaya/madhur.stm काव्यालय]
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09:55, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

महादेवी वर्मा
पूरा नाम महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च, 1907
जन्म भूमि फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 11 सितम्बर, 1987
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
अभिभावक गोविन्द प्रसाद वर्मा, हेमरानी देवी
पति/पत्नी डॉ. स्वरूप नरेन वर्मा
कर्म भूमि इलाहाबाद
कर्म-क्षेत्र अध्यापक, लेखिका
मुख्य रचनाएँ दीपशिखा, मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार
विषय गीत, रेखाचित्र, संस्मरण व निबंध
भाषा हिन्दी
विद्यालय क्रास्थवेट कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा एम.ए. (संस्कृत)
पुरस्कार-उपाधि सेकसरिया पुरस्कार (1934), द्विवेदी पदक (1942), भारत भारती पुरस्कार (1943), मंगला प्रसाद पुरस्कार (1943) पद्म भूषण (1956), साहित्य अकादेमी फेल्लोशिप (1979), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982), पद्म विभूषण (1988)
नागरिकता भारतीय
विधा गद्य और पद्य
अन्य जानकारी स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में महादेवी वर्मा उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गईं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
महादेवी वर्मा की रचनाएँ

महादेवी वर्मा (अंग्रेज़ी: Mahadevi Verma, जन्म: 26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद; मृत्यु: 11 सितम्बर, 1987, प्रयाग) हिन्दी भाषा की प्रख्यात कवयित्री हैं। महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। महादेवी वर्मा ने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया, व्यष्टिमूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। महादेवी वर्मा के गीतों का नाद-सौंदर्य, पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है।[1]

जीवन परिचय

महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्नहुई। उनके परिवार में दो सौ सालों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी, यदि होती तो उसे मार दिया जाता था। दुर्गा पूजा के कारण आपका जन्म हुआ। आपके दादा फ़ारसी और उर्दू तथा पिताजी अंग्रेज़ी जानते थे। माताजी जबलपुर से हिन्दी सीख कर आई थी, महादेवी वर्मा ने पंचतंत्र और संस्कृत का अध्ययन किया। महादेवी वर्मा जी को काव्य प्रतियोगिता में 'चांदी का कटोरा' मिला था। जिसे इन्होंने गाँधीजी को दे दिया था। महादेवी वर्मा कवि सम्मेलन में भी जाने लगी थी, वो सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कवि सम्मेलन में अपनी कवितायें सुनाती और उनको हमेशा प्रथम पुरस्कार मिला करता था। महादेवी वर्मा मराठी मिश्रित हिन्दी बोलती थी।

जन्म

महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी थीं। महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे।[2] महादेवी वर्मा को 'आधुनिक काल की मीराबाई' कहा जाता है। महादेवी जी छायावाद रहस्यवाद के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हिन्दुस्तानी स्त्री की उदारता, करुणा, सात्विकता, आधुनिक बौद्धिकता, गंभीरता और सरलता महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में समाविष्ट थी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विलक्षणता से अभिभूत रचनाकारों ने उन्हें 'साहित्य साम्राज्ञी', 'हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि', 'शारदा की प्रतिमा' आदि विशेषणों से अभिहित करके उनकी असाधारणता को लक्षित किया। महादेवी जी ने एक निश्चित दायित्व के साथ भाषा, साहित्य, समाज, शिक्षा और संस्कृति को संस्कारित किया। कविता में रहस्यवाद, छायावाद की भूमि ग्रहण करने के बावज़ूद सामयिक समस्याओं के निवारण में महादेवी वर्मा ने सक्रिय भागीदारी निभाई।

शिक्षा

महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। महादेवी वर्मा ने बी.ए. जबलपुर से किया। महादेवी वर्मा अपने घर में सबसे बड़ी थी उनके दो भाई और एक बहन थी। 1919 में इलाहाबाद में 'क्रॉस्थवेट कॉलेज' से शिक्षा का प्रारंभ करते हुए महादेवी वर्मा ने 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। तब तक उनके दो काव्य संकलन 'नीहार' और 'रश्मि' प्रकाशित होकर चर्चा में आ चुके थे।[3] महादेवी जी में काव्य प्रतिभा सात वर्ष की उम्र में ही मुखर हो उठी थी। विद्यार्थी जीवन में ही उनकी कविताएँ देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाने लगीं थीं।

विवाह

उन दिनों के प्रचलन के अनुसार महादेवी वर्मा का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था परन्तु महादेवी जी को सांसारिकता से कोई लगाव नहीं था अपितु वे तो बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं और स्वयं भी एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं। विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। महादेवी वर्मा की शादी 1914 में 'डॉ. स्वरूप नरेन वर्मा' के साथ इंदौर में 9 साल की उम्र में हुई, वो अपने माँ पिताजी के साथ रहती थीं क्योंकि उनके पति लखनऊ में पढ़ रहे थे।

विरासत

शिक्षा और साहित्य प्रेम महादेवी जी को एक तरह से विरासत में मिला था। महादेवी जी में काव्य रचना के बीज बचपन से ही विद्यमान थे। छ: सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुई माँ पर उनकी तुकबन्दी:

ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन उन्हें लगाती
उनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी न बोले हैं
मां के ठाकुर जी भोले हैं।

वे हिन्दी के भक्त कवियों की रचनाओं और भगवान बुद्ध के चरित्र से अत्यन्त प्रभावित थी। उनके गीतों में प्रवाहित करुणा के अनन्त स्रोत को इसी कोण से समझा जा सकता है। वेदना और करुणा महादेवी वर्मा के गीतों की मुख्य प्रवृत्ति है। असीम दु:ख के भाव में से ही महादेवी वर्मा के गीतों का उदय और अन्त दोनों होता है।

महिला विद्यापीठ की स्थापना

महादेवी वर्मा ने अपने प्रयत्नों से इलाहाबाद में 'प्रयाग महिला विद्यापीठ' की स्थापना की। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। महादेवी वर्मा पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर तत्कालीन खड़ी बोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ी बोली में रोला और हरिगीतिका छन्दों में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छन्दों में एक खण्डकाव्य भी लिख डाला। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका 'चाँद' का कार्यभार सँभाला। प्रयाग में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद हिन्दी के प्रति गहरा अनुराग रखने के कारण महादेवी वर्मा दिनों-दिन साहित्यिक क्रियाकलापों से जुड़ती चली गईं। उन्होंने न केवल 'चाँद' का सम्पादन किया वरन् हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयाग में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की। उन्होंने 'साहित्यकार' मासिक का संपादन किया और 'रंगवाणी' नाट्य संस्था की भी स्थापना की।

कृतियाँ

महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ एक विशिष्ट गद्यकार थीं। 'यामा' में उनके प्रथम चार काव्य-संग्रहों की कविताओं का एक साथ संकलन हुआ है। 'आधुनिक कवि-महादेवी' में उनके समस्त काव्य से उन्हीं द्वारा चुनी हुई कविताएँ संकलित हैं। कवि के अतिरिक्त वे गद्य लेखिका के रूप में भी पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। 'स्मृति की रेखाएं' (1943 ई.) और 'अतीत के चलचित्र' (1941 ई.) उनकी संस्मरणात्मक गद्य रचनाओं के संग्रह हैं। 'श्रृंखला की कड़ियाँ' (1942 ई.) में सामाजिक समस्याओं, विशेषकर अभिशप्त नारी जीवन के जलते प्रश्नों के सम्बन्ध में लिखे उनके विचारात्मक निबन्ध संकलित हैं। रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त 'महादेवी का विवेचनात्मक गद्य' में तथा 'दीपशिखा', 'यामा' और 'आधुनिक कवि-महादेवी' की भूमिकाओं में उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा का भी पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं -

काव्य
गद्य
विविध संकलन[11]
  • स्मारिका
  • स्मृति चित्र
  • संभाषण
  • संचयन
  • दृष्टिबोध
पुनर्मुद्रित संकलन
निबंध
ललित निबंध

काव्य संग्रह

महादेवी वर्मा के 1934 में 'नीरजा', 1936 में 'सांध्यगीत' नामक संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में 'यामा' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। महादेवी वर्मा ने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए। इसके अतिरिक्त उनके 18 काव्य और गद्य कृतियाँ हैं जिनमें 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'श्रृंखला की कड़ियाँ' और 'अतीत के चलचित्र' प्रमुख हैं।

काव्य विशेषताएँ

महादेवी के काव्य में भाव समृद्धि तथा शैल्पिक सौन्दर्य का आकर्षक समन्वय है। आपके काव्य की उभयपक्षीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

भाव पक्ष

महादेवी जी के काव्य में आत्मनिवेदन का स्वर प्रधान है। अपने हृदय की विविध अनुभूतियों को ही कवयित्री ने काव्य का विषय बनाया है। अज्ञात प्रियतम के प्रति विरह व्यथा का निवेदन, मिलन का संकल्प, रहस्यमयी संवेदनाएँ और प्रकृति का कोमलकान्त दृश्यांकन आपके गीतों के प्रधान विषय हैं। आध्यात्मिकता और दार्शनिकता के झीने अंचल से आवृत्त आपके मृदुल उदगार एक मोहक भाव जगत् की सृष्टि करते हैं।

रस योजना

महादेवी जी के काव्य का प्रधान रस श्रृंगार है। यद्यपि श्रृंगार के संयोग तथा वियोग दोनो ही पक्षों को कवयित्री ने काव्य का विषय बनाया है, तथापि वियोग की अभिव्यक्ति ही अधिक तल्लीनता से हुई है। यह वियोग लौकिक धरातल पर स्थित होते हुए भी अपनी भव्यता से अलौकिकता के अम्बर का स्पर्श करता चलता है। वह कबीर की भाँति वियोगिनी आत्मा का प्रियतम परमात्मा के प्रति प्रेम निवेदन बनकर सहृदयों के हृदयों को भाव तरंगों में झुलाने लगता है।

वेदना

पाठशाला में हिन्दी-अध्यापक से प्रभावित होकर महादेवी वर्मा ब्रजभाषा में समस्या पूर्ति भी करने लगीं। फिर महादेवी वर्मा ने तत्कालीन खड़ी बोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ी बोली में रोला और हरिगीतिका छन्दों में काव्य लिखना प्रारम्भ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर महादेवी वर्मा ने सौ छन्दों में एक खण्डकाव्य भी लिख डाला।

महादेवी का समस्त काव्य वेदनामय है। यह वेदना लौकिक वेदना से भिन्न आध्यात्मिक जगत् की है, जो उसी के लिए सहज संवेद्य हो सकती है, जिनसे उस अनुभूति-क्षेत्र में प्रवेश किया हो। वैसे महादेवी इस वेदना को उस दु:ख की भी संज्ञा देती हैं, "जो सारे संसार को एक सूत्र में बाँधे रखने की क्षमता रखता है"[12] किन्तु विश्व को एक सूत्र में बाँधने वाला दु:ख सामान्यतया लौकिक दु:ख ही होता है, जो भारतीय साहित्य की परम्परा में करुण रस का स्थायी भाव होता है। महादेवी ने इस दु:ख को नहीं अपनाया है। कहती तो हैं कि "मुझे दु:ख के दोनों ही रूप प्रिय हैं, एक वह, जो मनुष्य के संवेदनशील हृदय को सारे संसार से एक अविच्छिन्न बन्धनों में बाँध देता है और दूसरा वह जो काल और सीमा के बन्धन में पड़े हुए असीम चेतन का क्रन्दन है"[13] किन्तु उनके काव्य में पहले प्रकार का नहीं, दूसरे प्रकार का 'क्रन्दन' ही अभिव्यक्त हुआ है। यह वेदना सामान्य लोक हृदय की वस्तु नहीं है। सम्भवत: इसीलिए रामचन्द्र शुक्ल ने उसकी सच्चाई में ही सन्देह व्यक्त करते हुए लिखा है, "इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता"[14]

विषयवस्तु और दृष्टिकोण

वेदना की इस एकान्त साधना के फलस्वरूप महादेवी की कविता में विषयों का वैविध्य बहुत कम है। उनकी कुछ ही कविताएं ऐसी हैं, जिनमें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक उद्बोधन अथवा प्रकृति का स्वतन्त्र चित्रण हुआ है। शेष सभी कविताओं में विषयवस्तु और दृष्टिकोण एक ही होने के कारण उनकी काव्यभूमि विस्तृत नहीं हो सकी है। इससे उनके काव्य को हानि और लाभ दोनों हुआ है। हानि यह हुई है कि विषय-परिवर्तन न होने से उनके समस्त काव्य में एकरसता और भावावृत्ति बहुत अधिक है। लाभ यह हुआ है कि सीमित क्षेत्र के भीतर ही कवयित्री ने अनुभूतियों के अनेकानेक आयामों को अनेक दृष्टिकोण से देख-परखकर उनके सूक्ष्मातिसूक्ष्म भेद-प्रभेदों को बिम्बरूप में सामने रखते हुए चित्रित किया है। इस तरह उनके काव्य में विस्तारगत विशालता और दर्शनागत गुरुत्व भले ही न मिले, पर उनकी भावनाओं की गम्भीरता, अनुभूतियों की सूक्ष्मता, बिम्बों की स्पष्टता और कल्पना की कमनीयता के फलस्वरूप गाम्भीर्य और महत्ता अवश्य है। इस तरह उनके काव्य विस्तार का नहीं गहराई का काव्य है।

प्रकृति निरूपण

प्रकृति के सौन्दर्य के प्रति कवयित्री की संवेदनशीलता में कोई कमी नहीं है, किन्तु प्रकृति को आलम्बन के रूप में कम ही कविता का विषय बनाया गया है। यह स्वल्प शब्द चित्र भी बड़े मौलिक और मनोहारी हैं। प्रकृति को उद्दीपन विभाव के रूप में महादेवी ने बड़े कलात्मक और मर्मस्पर्शी रूप में प्रस्तुत किया है। वे भावों को प्रखरता तथा अनुभूतियों को तरल गम्भीरता प्रदान करके, कथ्य को अत्यन्त हृदयग्राही बना देती है। महादेवी जी का काव्य छायावादी काव्यशैली की सभी विशेषताओं से विभूषित है। वैयक्तिकता, प्रकृति का मानवीकरण, श्रृंगार की साध्वी अभिव्यक्ति, सौन्दर्य निरूपण, लाक्षणिक अभिव्यक्ति तथा मानवतावादी दृष्टि आदि आपकी रचनाओं में मौलिक भाव-भंगिमा में प्रस्तुत है। कबीर और जायसी के पश्चात् काव्यपरक रहस्यवाद के दर्शन हिन्दी में महादेवी जी के ही काव्य में होते हैं। महादेवी अज्ञात प्रियतम के प्रति प्रणय निवेदन के क्षणों में आध्यात्मिक छोरों का स्पर्श करने लगती हैं। महादेवी जी ने लोक चेतना से भी स्वयं को पूर्णतया विच्छिन्न नहीं किया है। उनके पास भी सन्देश हैं, प्रेरणा मार्ग-दर्शन है।

महादेवी वर्मा

अनुभूतियाँ

महादेवी वर्मा का काव्य अनुभूतियों का काव्य है। उसमें देश, समाज या युग का चित्रांकन नहीं है, बल्कि उसमें कवयित्री की निजी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति हुई है। उनकी अनुभूतियाँ प्रायः अज्ञात प्रिय के प्रति मौन समर्पण के रूप में हैं। उनका काव्य उनके जीवन काल में आने वाले विविध पड़ावों के समान है। उनमें प्रेम एक प्रमुख तत्त्व है जिस पर अलौकिकता का आवरण पड़ा हुआ है। इनमें प्रायः सहज मानवीय भावनाओं और आकर्षण के स्थूल संकेत नहीं दिए गए हैं, बल्कि प्रतीकों के द्वारा भावनाओं को व्यक्त किया गया है। कहीं-कहीं स्थूल संकेत दिए गए हैं-

मेरी आहें सोती है इन ओठों की ओटों में,
मेरा सर्वस्व छिपा है इन दीवानी चोटों में।

कवयित्री ने सर्वत्र अपनी प्रणय-भावना का उन्नयन और परिष्कार किया है। इनके प्रेम का आलंबन विराट एवं विशाल है, जो अलौकिक है-

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ ।
नींद भी मेरी अचल निस्पंद कण-कण में,
प्रथम जागृति थी जगत् के प्रथम स्पंदन में,
प्रलय में मेरा पता पद-चिह्न जीवन में।

इन्होंने अन्य छायावादी कवियों की तरह प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है और उसके साथ विविध मधुर संबंधों की कल्पनाएँ की हैं-

रजनी ओढ़े जाती थी !
झिलमिल तारों की जाली,
उसके बिखरे वैभव पर,
जब रोती थी उजियाली।

दुःख-पीड़ा और विषाद महादेवी वर्मा के काव्य का मूल स्वर है और इन्हें सुख की अपेक्षा दुःख अधिक प्रिय है। परन्तु इनमें विषाद का वह भाव नहीं है जो कर्म शक्ति को कुंठित कर देता हो। इनमें संयम और त्याग है तथा दूसरों का हित करने की प्रबल आकांक्षा है-

मैं नीर भरी दुःख की बदली !
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा कभी न अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी थी कल मिट आज चली।[1]

महादेवी का काव्य वर्णनात्मक और इतिवृत्तात्मक नहीं है। आन्तरिक सूक्ष्म अनुभूतियों की अभिव्यक्ति उन्होंने सहज भावोच्छवास के रूप में की है। इस कारण उसकी अभिव्यंजना- पद्धति में लाक्षणिकता और व्यंजकता का बाहुल्य है। रूपकात्मक बिम्बों और प्रतीकों के सहारे उन्होंने जो मोहक चित्र उपस्थित किये हैं, वे उनकी सूक्ष्म दृष्टि और रंगमयी कल्पना की शक्तिमत्ता का परिचय देते हैं। ये चित्र उन्होंने अपने परिपार्श्व, विशेषकर प्राकृतिक परिवेश से लिए हैं पर प्रकृति को उन्होंने आलम्बन रूप में बहुत कम ग्रहण किया। प्रकृति महादेवी वर्मा के काव्य में सदैव उद्दीपन, अलंकार, प्रतीक और संकेत के रूप में ही चित्रित हुई है। इसी कारण प्रकृति के अति परिचित और सर्वजनसुलभ दृश्यों या वस्तुओं को ही उन्होंने अपने काव्य का उपादान बनाया है। उसके असाधारण और अल्पपरिचित दृश्यों की ओर उनका ध्यान नहीं गया है। फिर भी सीमित प्राकृतिक उपादानों के द्वारा उन्होंने जो पूर्ण या आंशिक बिम्ब चित्रित किए हैं, उनसे उनकी चित्रविधायिनी कल्पना का पूरा परिचय मिल जाता है। इसी कल्पना के दर्शन महादेवी वर्मा के उन चित्रों में भी होते हैं, जो उन्होंने शब्दों से नहीं, रंगों और तूलिका के माध्यम से निर्मित किए हैं। उनके ये चित्र 'दीपशिखा' और 'यामा' में कविताओं में प्रकाशित हुए हैं।

भाषा-शैली

महादेवी अपनी काव्य भाषा की निर्मात्री स्वयं ही हैं, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। अभिव्यक्ति की जो सामर्थ्य, भाव व्यंजना का जो मार्मिक सौष्ठव, आपकी भाषा वहन करती है, वह अन्यत्र पंतजी में ही प्राप्त होता है। आपकी भाषागत कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • आपकी भाषा का एक विशिष्ट स्तर है, जो स्वभावतः संस्कृत शब्दावली की ओर झुका हुआ है। तत्सम शब्द प्रधान होते हुए भी इस भाषा रूप में क्लिष्टता या रूक्षता नहीं हैं। उसमें प्रवाह है, लय है।
  • संस्कृत तत्सम शब्दावली के प्रति महादेवी की कोई प्रतिबद्धता नहीं है। आपने अपेक्षाकृत सरल शब्दावली का भी सहज भाव से प्रयोग किया है; यथा-

विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी मिट आज चली।

  • महादेवी जी ने भाषा को अद्भुत मृदुता और मधुरता प्रदान की है। भाव और लय का मनोहारी संगम प्रस्तुत करने में आपकी भाषा का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • लाक्षणिकता महादेवी जी की शब्द चित्रकारिता में सहायक तूलिका कही जाय तो अनुचित नहीं होगा। शब्द से कहाँ- क्या अर्थ ध्वनित होना है, इसे उनकी भाषा मर्मज्ञता भली-भाँति जानती है।
  • महादेवी जी की रचना-शैली की प्रमुख विशेषताएँ उसकी भावतरलता, वैयक्तिकता, प्रतीकात्मकता, चित्रात्मकता, आलंकारिता, छायावादी तथा रहस्यात्मक अभिव्यक्ति आदि हैं।

अलंकरण

महादेवी जी ने परम्परागत एवं नवीन, सभी अलंकारों का कलात्मकता से उपयोग किया है। उपमानों की मौलिकता एवं मनमोहक विधान आपके अलंकरण की विशेषताएँ हैं। रूपक आपका प्रिय अलंकार है:-

ले उषा ने किरण अक्षत, हास रोली,
रात अंकों से पराजय राख धोली।

महादेवी जी ने छायावादी गीत लिखे हैं और गीतों के छन्द बद्ध में वह पूर्ण दक्ष हैं। अनेक स्थलों पर उनकी गीति लोकगीत की लहरियों में तरंगित प्रतीत होती है। इनके गीतों में लय, संगीतात्मकता तथा नाद सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। अपनी काव्यगत विशिष्टिताओं के लिए महादेवी जी काव्य-प्रेमियों के लिए सदैव सम्मानीय और स्मरणीय रहेंगी। उनका काव्य विश्व-साहित्य की निधि है।

रेखाचित्रकार

एक बार मैथिलीशरण गुप्त ने उनकी कर्मठता की प्रशंसा करते हुए पूछा कि आप कभी थकती नहीं। उनका उत्तर था कि होली के दिन जन्मी हूं न, इसीलिए होली का रंग और उसके उल्लास की चमक मेरे चेहरे पर बनी रहती है।

महादेवी वर्मा एक सफल रेखाचित्रकार, कवयित्री, और विचारक है। उन्होंने कई रेखाचित्र लिखें हैं जिनमें नीलकंठ मोर, घीसा, सोना, गौरा आदि काफ़ी प्रसिद्ध हैं। मानव एक श्रेष्ठ प्राणी होने पर भी पशुओं के प्रति उसका व्यवहार सराहनीय नहीं हैं। उनके द्वारा रचित 'सोना और गौरा' नामक रेखाचित्र में मानव के निष्ठुर व्यवहार पर महादेवी वर्मा ने प्रकाश डाला हैं। पशु-पक्षी भी प्रेम के लिए लालायित रहते हैं और प्रेम दिखाने पर आनंदविभोर हो उठते हैं। बेजुबान होने पर भी स्नेह के कई मूक प्रदर्शन होते हैं। अपने असीम आनंद की अभिव्यक्ति सुंदर आँखों के भाव से प्रकट करते हैं। परन्तु मानव अपने स्वार्थ के कारण इन बेजुबान जानवरों पर इतना अत्याचार और निर्दय व्यवहार करता है और उन पर कितना जुल्म करता है इसका कोई अंत नहीं। मानव द्वारा इतनी यातना सह कर भी पशु मानव के स्वभाव से अब तक अनजाना है। मानव का यह स्वार्थ अंत में वेदना का कार्य और कारण बन जाता है, इसी बात पर प्रकाश डालना ही महादेवी वर्मा का मुख्य ध्येय है।[15]

धार्मिक विचार

महादेवी ने स्वयं लिखा है, ”मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। माँ से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पड़ोस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र लिखे थे जो उस समय की पत्र्किाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।“ महादेवी वर्मा ने अपने आराध्य को, प्रियतम को करुणामय (ब्रह्म) के रूप में सम्बोधित किया है। महादेवी पूजा और अर्चना के बाह्य उपकरणों को स्वीकार नहीं करती हैं। उनका लघुतम जीवन ही उस असीम का सुन्दर मंदिर है।

क्या पूजा क्या अर्चना रे
उस असीम का सुन्दर मंदिर
मेरा लघुतर जीवन रे।[16]

आधुनिक मीरां

महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरां भी कहा जाता है। भक्ति काल में जो स्थान कृष्ण भक्त मीरां को प्राप्त है, आधुनिक काल में वह स्थान महादेवी वर्मा को मिला है। मीरां का प्रियतम सगुण, साकार गिरधर गोपाल है जिसके प्रति वे समर्पित रही, तो दूसरी ओर महादेवी के प्रियतम असीम निर्गुण निराकार (ब्रह्म) हैं और उसके प्रति वे समर्पित हैं। महादेवी अपने आप में एक जीवन गाथा हैं। महादेवी का प्रसिद्ध गीत, ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ इस बात का परिचायक है कि उनका यह जीवन दर्शन है जो मीरांबाई जैसा ही है।[16]

व्यक्तित्व में एकाकीपन की झलक

महादेवी की घनिष्ठतम मित्र, सहपाठिनी कवि सुभद्रा कुमारी चौहान और महादेवी के अन्तरंग क्षणों की बात का उल्लेख करते हुए प्रसिद्ध कथाकार और प्रेमचन्द की जीवनी 'कलम का सिपाही' के लेखक अमृत राय ने लिखा हैः- "दोनों स्त्रियां अपनी बातों में लीन, अपने परितृप्त बाल बच्चों में मगन बतियाये जा रही थीं कि एकाएक लगा कि जैसे कोई फूट फूट कर रो पड़ा। वह रोना जैसे फूटा था वैसे ही भीतर समा भी गया पर कमरे में एकाएक सन्नाटा छा गया। जो व्यक्ति रो पड़ा उसका यह रूप इतना अप्रत्याशित था कि सब जैसे सकते में आ गये। शुभ्रवसना, प्रसन्नवदना महादेवी जी जिनको लोगों ने सदा हंसते ही देखा था, वो कभी इस तरह फूट कर रो भी पड़ेंगी, इसकी किसी को कल्पना भी नहीं थी पर अनजाने ही, अपने सुख दुःख में भूली, अपने परिवार में मगन उन गृहणियों ने उनकी कौन सी दुखती रग छू दी थी कि उनका वह हंसमुख मुखौटा बरबस हट गया। उस क्षण मैंने जिस निचाट सूने एकाकीपन की एक झलक पायी, वह सचमुच डरा देने वाली थी पर उसी के साथ साथ ऐसी स्त्री के लिए मेरे मन का आदर जैसे और सौ गुना बढ़ गया जिसने इस पुरुषशासित रूढ़िग्रस्त समाज में अकेले रह कर जीवन को बिना किसी दैन्य या कमज़ोरी के इस बहादुरी के साथ जिया।"[17]

विशिष्ट स्थान

महादेवी वर्मा छायावाद के कवियों में औरों से भिन्न अपना एक विशिष्ट और निराला स्थान रखती हैं। इस विशिष्टता के दो कारण हैं-

  1. एक तो उनका कोमल हृदया नारी होना।
  2. अंग्रेज़ी और बांग्ला के रोमानी और रहस्यवादी काव्य से प्रभावित होना। इन दोनों कारणों से एक ओर तो उन्हें अपने आध्यात्मिक प्रियतम को पुरुष मानकर स्वाभाविक रूप में अपनी स्त्री-जनोचित प्रणयानुभूतियों को निवेदित करने की सुविधा मिली, दूसरी ओर प्राचीन भारतीय साहित्य और दर्शन तथा सन्त युग के रहस्यवादी काव्य के अध्ययन और अपने पूर्ववर्ती तथा समकालीन छायावादी कवियों के काव्य से निकट का परिचय होने के फलस्वरूप उनकी काव्याभिव्यंजना और बौद्धिक चेतना शत-प्रतिशत भारतीय परम्परा के अनुरूप बनी रही। इस तरह उनके काव्य में जहाँ कृष्ण भक्ति काव्य की विरह-भावना गोपियों के माध्यम से नहीं, सीधे अपनी आध्यात्मिक अनुभूति की अभिव्यक्ति के रूप में प्रकाशित हुई है, वहीं सूफी पुरुष कवियों की भाँति उन्हें परमात्मा को नारी के प्रतीक में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं पड़ी।

सम्मान और पुरस्कार

सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गईं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए 'पद्म भूषण' की उपाधि और 1969 में 'विक्रम विश्वविद्यालय' ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से अलंकृत किया। इससे पूर्व महादेवी वर्मा को 'नीरजा' के लिए 1934 में 'सेकसरिया पुरस्कार', 1942 में 'स्मृति की रेखाओं' के लिए 'द्विवेदी पदक' प्राप्त हुए। 1943 में उन्हें 'मंगला प्रसाद पुरस्कार' एवं उत्तर प्रदेश सरकार के 'भारत भारती पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। 'यामा' नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ।

पुरस्कार सूची

गूगल डूडल

महादेवी वर्मा पर जारी गूगल डूडल

सर्च इंजन गूगल ने साहित्य जगत की आधुनिक 'मीरा' महादेवी वर्मा पर भी अपना डूडल बनाया। अक्सर गूगल किसी महान शख्स के जन्मदिवस या पुण्यतिथि पर डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देता है, लेकिन 27 अप्रॅल, 2018 को गूगल ने महादेवी वर्मा पर किसी और वजह से डूडल बनाया। उल्लेखनीय है कि 27 अप्रॅल ही के दिन साल 1982 में महादेवी वर्मा को भारतीय साहित्य में योगदान के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। इस गूगल डूडल को कलाकार सोनाली ज़ोहरा ने बनाया था। डूडल में महान कवयित्री को हाथों में डायरी और कलम लिए अपने विचारों में खोया हुआ दिखाया गया है।[18]


महादेवी वर्मा को 'मॉडर्न मीरा' भी कहा जाता है। गूगल के ब्लॉग के मुताबिक़, 'माता-पिता दोनों ने ही महादेवी को उनकी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन उनका मां ही थीं, जिन्होंने अपनी बेटी को संस्कृत और हिंदी में लिखने की प्रेरणा दी।' संस्कृत में मास्टर डिग्री की पढ़ाई के दौरान, उन्होंने अपना पहला छंद संस्कृत में लिखा, जिसे बाद में उनकी दोस्त और रूममेट रहीं जानी-मानी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने खोजा।

निधन

महादेवी वर्मा का निधन 11 सितम्बर, 1987, को प्रयाग में हुआ था। महादेवी वर्मा ने निरीह व्यक्तियों की सेवा करने का व्रत ले रखा था। वे बहुधा निकटवर्ती ग्रामीण अंचलों में जाकर ग्रामीण भाई-बहनों की सेवा सुश्रुषा तथा दवा निःशुल्क देने में निरत रहती थी। वास्तव में वे निज नाम के अनुरूप ममतामयी, महीयसी महादेवी थी। भारतीय संस्कृति तथा भारतीय जीवन दर्शन को आत्मसात किया था। उन्होंने भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में कभी समझौता नहीं किया। महादेवी वर्मा ने एक निर्भीक, स्वाभिमाननी भारतीय नारी का जीवन जिया। राष्ट्र भाषा हिन्दी के सम्बन्ध में उनका कथन है ‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुड़ी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’ [16]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 सृजनगाथा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2010।
  2. शब्दांजलि (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2010।
  3. अभिव्यक्ति (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2010।
  4. यह कवयित्री का प्रथम काव्य-संग्रह है।
  5. इसकी रचनाएँ आध्यात्मिकता से प्रभावित हैं।
  6. कवयित्री की जीवन दृष्टि का विकसित रूप इसके गीतों में व्यक्त हुआ है।
  7. इसके गीत मिलनोत्कंठा से ओत-प्रोत हैं।
  8. इसके गीतों में रहस्य भावना का मधुर संस्पर्श है।
  9. यह भावसाम्य से युक्त गीतों तथा चित्रों का अभिनव संग्रह है।
  10. यह ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी में काव्यानुवाद है।
  11. इनके अतिरिक्त महादेवी वर्मा ने बंगाल के अकाल के समय 'बंग दर्शन' तथा चीन के आक्रमण के समय 'हिमालय' का संपादन भी किया।
  12. रश्मि भूमिका, पृष्ठ 7
  13. रश्मि भूमिका, पृष्ठ 7
  14. हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ 719
  15. साहित्य कुंज (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2010।
  16. 16.0 16.1 16.2 शीर्ष कवयित्री महीयसी महादेवी वर्मा (हिंदी) राजस्थान साहित्य अकादमी। अभिगमन तिथि: 31 मार्च, 2013।
  17. जिनकी याद सदा रहेगी -अमृत राय
  18. गूगल डूडल: महान कवयित्री महादेवी वर्मा को किया जा रहा है याद (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 27 अप्रॅल, 2018।

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