"दीवान सिंह दानू": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(''''दीवान सिंह दानू''' (अंग्रेज़ी: ''Diwan Singh Danu'', जन्म- 4 मार्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''दीवान सिंह दानू''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Diwan Singh Danu'', जन्म- [[4 मार्च]], [[1923]]; बलिदान- [[3 नवम्बर]], [[1947]]) [[भारत]] के वीर सैनिक थे। वह [[4 मार्च]], [[1943]] को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। सन [[1947]] को देश की आजादी के बाद [[पाकिस्तान]] के साथ [[कश्मीर]] में लड़ाई छिड़ गई। [[3 नवंबर]], 1947 को बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए कबालियों ने दीवान सिंह दानू की प्लाटून पर हमला कर दिया। डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान सिंह दानू ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया। इस हमले वह वीरगति को प्राप्त हुए। तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] ने उन्हें मरणोपरांत '[[महावीर चक्र]]' प्रदान किया।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.jagran.com/uttarakhand/nainital-dewan-singh-danu-of-uttarakhand-is-the-first-mahavir-chakra-winner-of-the-country-23106675.html|title=उत्तराखंड के दीवान सिंह दानू हैं देश के पहले महावीर चक्र विजेता|accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= jagran.com|language=हिंदी}}</ref>
{{सूचना बक्सा सैनिक
|चित्र=Diwan-Singh-Danu.jpg
|चित्र का नाम=दीवान सिंह दानू
|पूरा नाम=दीवान सिंह दानू
|अन्य नाम=
|प्रसिद्ध नाम=
|जन्म=[[4 मार्च]], [[1923]]
|जन्म भूमि=पुरदम,  [[पिथौरागढ़]]
|शहादत=[[3 नवम्बर]], [[1947]]
|मृत्यु=[[जम्मू और कश्मीर]]
|स्थान=
|अभिभावक=[[माता]]- रमुली देवी<br/>
[[पिता]]- उदय सिंह
|पति/पत्नी=
|संतान=
|सेना=[[भारतीय सेना]]
|बटालियन=4 कुमाऊँ
|पद=
|रैंक=
|यूनिट=
|सेवा काल=
|युद्ध=[[भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947)]]
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|सम्मान=
|प्रसिद्धि=[[महावीर चक्र]] सम्मानित भारतीय सैनिक।
|नागरिकता=भारतीय
|विशेष योगदान=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|शीर्षक 3=
|पाठ 3=
|शीर्षक 4=
|पाठ 4=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|अन्य जानकारी=दीवान सिंह दानू के सौर्य के किस्से 'कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास' नामक पुस्तक में भी है। उनकी जब आखिरी सांस उखड़ी, तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|16:05, 20 अक्टूबर 2022 (IST)}}
}}'''दीवान सिंह दानू''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Diwan Singh Danu'', जन्म- [[4 मार्च]], [[1923]]; बलिदान- [[3 नवम्बर]], [[1947]]) [[भारत]] के वीर सैनिक थे। वह [[4 मार्च]], [[1943]] को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। सन [[1947]] को देश की आजादी के बाद [[पाकिस्तान]] के साथ [[कश्मीर]] में लड़ाई छिड़ गई। [[3 नवंबर]], 1947 को बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए कबालियों ने दीवान सिंह दानू की प्लाटून पर हमला कर दिया। डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान सिंह दानू ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया। इस हमले वह वीरगति को प्राप्त हुए। तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] ने उन्हें मरणोपरांत '[[महावीर चक्र]]' प्रदान किया।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.jagran.com/uttarakhand/nainital-dewan-singh-danu-of-uttarakhand-is-the-first-mahavir-chakra-winner-of-the-country-23106675.html|title=उत्तराखंड के दीवान सिंह दानू हैं देश के पहले महावीर चक्र विजेता|accessmonthday=20 अक्टूबर|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= jagran.com|language=हिंदी}}</ref>


*दीवान सिंह दानू [[उत्तराखंड]] के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के पुरदम निवासी थे।
*दीवान सिंह दानू [[उत्तराखंड]] के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के पुरदम निवासी थे।
पंक्ति 18: पंक्ति 60:
*[https://umjb.in/gyankosh/diwan-singh-dahu-mahavir-chakra दीवान सिंह दानू]
*[https://umjb.in/gyankosh/diwan-singh-dahu-mahavir-chakra दीवान सिंह दानू]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारतीय सेना}}
{{महावीर चक्र}}{{भारतीय सेना}}
[[Category:भारतीय सैनिक]][[Category:महावीर चक्र सम्मान]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:युद्धकालीन वीरगति]][[Category:थल सेना]][[Category:भारतीय सेना]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:भारतीय सैनिक]][[Category:महावीर चक्र सम्मान]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:युद्धकालीन वीरगति]][[Category:थल सेना]][[Category:भारतीय सेना]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

09:57, 6 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

दीवान सिंह दानू
दीवान सिंह दानू
दीवान सिंह दानू
पूरा नाम दीवान सिंह दानू
जन्म 4 मार्च, 1923
जन्म भूमि पुरदम, पिथौरागढ़
मृत्यु जम्मू और कश्मीर
अभिभावक माता- रमुली देवी

पिता- उदय सिंह

सेना भारतीय सेना
बटालियन 4 कुमाऊँ
युद्ध भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947)
प्रसिद्धि महावीर चक्र सम्मानित भारतीय सैनिक।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दीवान सिंह दानू के सौर्य के किस्से 'कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास' नामक पुस्तक में भी है। उनकी जब आखिरी सांस उखड़ी, तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी।
अद्यतन‎

दीवान सिंह दानू (अंग्रेज़ी: Diwan Singh Danu, जन्म- 4 मार्च, 1923; बलिदान- 3 नवम्बर, 1947) भारत के वीर सैनिक थे। वह 4 मार्च, 1943 को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। सन 1947 को देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ कश्मीर में लड़ाई छिड़ गई। 3 नवंबर, 1947 को बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए कबालियों ने दीवान सिंह दानू की प्लाटून पर हमला कर दिया। डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान सिंह दानू ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया। इस हमले वह वीरगति को प्राप्त हुए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' प्रदान किया।[1]

  • दीवान सिंह दानू उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के पुरदम निवासी थे।
  • वह 4 मार्च, 1943 को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। वह सेना में सिपाही थे।
  • 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी के बाद पाकिस्तान के साथ कश्मीर में लड़ाई छिड़ गई।
  • डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान सिंह दानू ने 15 कबालियों को मौट के घाट उतार दिया।
  • कबाइलियों से युद्ध में दीवान सिंह दानू ने अदम्य साहस का परिचय दिया हालांकि इस युद्ध में वह शहीद हो गए।
  • जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' प्रदान किया।
  • दीवान सिंह दानू के बलिदान का सम्मान करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनके पिता उदय सिंह को पत्र भी लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था- "हिंद की जनता की ओर से और अपनी तरफ से दु:ख और रंज में यह संदेश भेज रहा हूं। हमारी दिली हमदर्दी आपके साथ है। देश की सेवा में यह जो बलिदान हुआ है, इसके लिए देश कृतज्ञ है और हमारी यह प्रार्थना है कि इससे आपको कुछ धीरज और शांति मिले।"
  • दानू के सौर्य के किस्से 'कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास' नामक पुस्तक में भी है। जिसमें लिखा है, दानू ने कबाइलियों से मोर्चे के दौरान अदम्य साहस का परिचय दिया। वह अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे। उनकी जब आखिरी सांस उखड़ी, तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी।
  • मुनस्यारी का राजकीय हाईस्कूल बिर्थी दीवान सिंह दानू के नाम से स्थापित है।
  • कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर रानीखेत में उनके नाम पर दीवान हाल भी है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख