"सोलंकी वंश": अवतरणों में अंतर
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[[गुजरात]] के '''सोलंकी वंश''' का संस्थापक [[मूलराज प्रथम]] था। उसने [[अन्हिलवाड़]] को अपनी राजधानी बनाया था। मूलराज ने 942 से 995 ई. तक शासन किया। 995 से 1008 ई. तक मूलराज का पुत्र चामुण्डाराय अन्हिलवाड़ का शासक रहा। उसके पुत्र दुर्लभराज ने 1008 से 1022 ई. तक शासन किया। दुर्लभराज का भतीजा भीम प्रथम अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। | |||
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गुजरात के शक्तिशाली शासकों में भीम प्रथम ने [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] नरेश कर्ण के साथ मिलकर धारा के [[परमार वंश|परमार वंशी]] [[भोज]] के विरुद्ध एक संघ तैयार किया, जिसने भोज को पराजित किया। [[जैन]] ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उसने कर्ण को भी पराजित किया था। [[महमूद ग़ज़नवी]] के [[सोमनाथ मंदिर]] ध्वस्त कर चले जाने के पश्चात् भी उसने मन्दिर का पुननिर्माण करवाया। उसके सामंत विमल ने [[माउंट आबू|आबू]] का [[दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू|दिलवाड़ा का प्रसिद्ध मंदिर]] बनवाया था। गुजरात के सभी सोलंकी वंशी शासक [[जैन धर्म]] के संरक्षक तथा पोषक थे। भीम प्रथम के शासन काल में लगभग 1025-26 में महमूद ग़ज़नवी ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण कर लूट-पाट की। भीम प्रथम के लड़के कर्ण ने 1064 से 1094 ई. तक शासन किया। अपने शासन काल में उसका नाडौल के [[चौहान वंश|चौहान]] एवं [[मालवा]] के परमारो से युद्ध हुआ था। | |||
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कर्ण के लड़के एवं उत्तराधिकारी जयसिंह ने सिद्धराज की उपाधि धारण कर किया। वह सोलंकी वंश का सर्वाधिक योग्य प्रतापी राजा था। उसके राज्य की सीमायें पश्चिम में कठियावाड़ तथा गुजरात, पूर्व में भिलसा (मध्य प्रदेश) और दक्षिण में बलि क्षेत्र एवं सांभर तक फैली थी। जयसिंह के राजदरबार में प्रसिद्ध आचार्य (जैन) हेमचन्द रहते थे। | कर्ण के लड़के एवं उत्तराधिकारी जयसिंह ने सिद्धराज की उपाधि धारण कर किया। वह सोलंकी वंश का सर्वाधिक योग्य प्रतापी राजा था। उसके राज्य की सीमायें पश्चिम में कठियावाड़ तथा गुजरात, पूर्व में [[भिलसा]] ([[मध्य प्रदेश]]) और दक्षिण में बलि क्षेत्र एवं सांभर तक फैली थी। जयसिंह के राजदरबार में प्रसिद्ध आचार्य (जैन) हेमचन्द रहते थे। | ||
====<u>कुमारपाल (1153 से 1172 ई.)</u>==== | ====<u>कुमारपाल (1153 से 1172 ई.)</u>==== | ||
*जयसिंह के पुत्र कुमार पाल ने मालवा नरेश बल्लार, चौहान शासक अर्णोराज एवं परमार शासक विक्रम सिंह को परास्त किया। | *जयसिंह के पुत्र कुमार पाल ने मालवा नरेश बल्लार, चौहान शासक अर्णोराज एवं परमार शासक विक्रम सिंह को परास्त किया। | ||
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*भीमदेव-द्वितीय के एक मंत्री लवण प्रसाद ने गुजरात 'बघेल वंश' की स्थापना की। | *भीमदेव-द्वितीय के एक मंत्री लवण प्रसाद ने गुजरात 'बघेल वंश' की स्थापना की। | ||
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गुजरात के सोलंकी वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था। उसने अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया था। मूलराज ने 942 से 995 ई. तक शासन किया। 995 से 1008 ई. तक मूलराज का पुत्र चामुण्डाराय अन्हिलवाड़ का शासक रहा। उसके पुत्र दुर्लभराज ने 1008 से 1022 ई. तक शासन किया। दुर्लभराज का भतीजा भीम प्रथम अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।
स्वर्णिम इतिहास
गुजरात के शक्तिशाली शासकों में भीम प्रथम ने कलचुरी नरेश कर्ण के साथ मिलकर धारा के परमार वंशी भोज के विरुद्ध एक संघ तैयार किया, जिसने भोज को पराजित किया। जैन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उसने कर्ण को भी पराजित किया था। महमूद ग़ज़नवी के सोमनाथ मंदिर ध्वस्त कर चले जाने के पश्चात् भी उसने मन्दिर का पुननिर्माण करवाया। उसके सामंत विमल ने आबू का दिलवाड़ा का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया था। गुजरात के सभी सोलंकी वंशी शासक जैन धर्म के संरक्षक तथा पोषक थे। भीम प्रथम के शासन काल में लगभग 1025-26 में महमूद ग़ज़नवी ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण कर लूट-पाट की। भीम प्रथम के लड़के कर्ण ने 1064 से 1094 ई. तक शासन किया। अपने शासन काल में उसका नाडौल के चौहान एवं मालवा के परमारो से युद्ध हुआ था।
जयसिंह (1094 से 1153 ई.)
कर्ण के लड़के एवं उत्तराधिकारी जयसिंह ने सिद्धराज की उपाधि धारण कर किया। वह सोलंकी वंश का सर्वाधिक योग्य प्रतापी राजा था। उसके राज्य की सीमायें पश्चिम में कठियावाड़ तथा गुजरात, पूर्व में भिलसा (मध्य प्रदेश) और दक्षिण में बलि क्षेत्र एवं सांभर तक फैली थी। जयसिंह के राजदरबार में प्रसिद्ध आचार्य (जैन) हेमचन्द रहते थे।
कुमारपाल (1153 से 1172 ई.)
- जयसिंह के पुत्र कुमार पाल ने मालवा नरेश बल्लार, चौहान शासक अर्णोराज एवं परमार शासक विक्रम सिंह को परास्त किया।
- अजय पाल के लड़के मूलराज द्वितीय ने 1178 ई. में आबू पर्वत की समीप कुतुबुद्दीन ऐबक ने परास्त कर दिया।
- भीमदेव-द्वितीय के एक मंत्री लवण प्रसाद ने गुजरात 'बघेल वंश' की स्थापना की।
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