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आज से लगभग 840 वर्ष पूर्व भाटी राजपूत [[रावल जैसल]] ने सन् 1156 में [[जैसलमेर]] की स्थापना की। जैसलमेर पूर्व में वल्ल मण्डल के नाम से जाना जाता था और इसकी राजधानी [[लोद्रवा]] थी तथा वहाँ पवार राजा राज्य करते थे। तब इस नगर का नाम [[भावनगर]] था। सदियों से अपनी परम्परा, कला और संस्कृति को संजोता आ रहा जैसलमेर आज देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बन गया है। हर वर्ष लाखों पर्यटक यहाँ की स्थापत्य शैली, पीले पत्थरों पर उकेरी गई बारीक शिल्प तथा हस्तशिल्प कला को देखने आते हैं। [[चित्र:Jaisalmer-Fort-2.jpg|thumb|250px|जैसलमेर का क़िला<br />Jaisalmer Fort]]
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जैसलमेर का इतिहास अत्यंत प्राचीन रहा है। यह शहर प्राचीन [[सिन्धु घाटी सभ्यता]] का क्षेत्र रहा है। वर्तमान जैसलमेर ज़िले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था।<ref>{{cite web |url=http://www.yatrasalah.com/PhotoGallary.aspx?gallery=55 |title=जैसलमेर |accessmonthday=18 जून |accessyear=2010 |authorlink= |format= |publisher=यात्रा सलाह |language=[[हिन्दी]] }}</ref> ऐसा माना जाता हैं कि [[महाभारत]] युद्ध के पश्चात कालान्तर में यादवों का [[मथुरा]] से काफ़ी संख्या में बहिर्गमन हुआ। जैसलमेर के भूतपूर्व शासकों के पूर्वज जो अपने को भगवान [[कृष्ण]] के वंशज मानते हैं, संभवता छठी शताब्दी में जैसलमेर के भूभाग पर आ बसे थे। ज़िले में यादवों के वंशज भाटी राजपूतों की प्रथम राजधानी [[तनोट]], दूसरी [[लौद्रवा]] तथा तीसरी जैसलमेर में रही।
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|चित्र का नाम=जैसलमेर का क़िला
|विवरण=जैसलमेर शहर, पश्चिमी राजस्थान राज्य, पश्चिमोत्तर [[भारत]] में स्थित है। जैसलमेर पीले भूरे पत्थरों से निर्मित भवनों के लिए विख्यात है।
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'''[[जैसलमेर]]''' की स्थापना लगभग 840 वर्ष पूर्व भाटी राजपूत [[रावल जैसल]] ने सन् 1156 में की। जैसलमेर पूर्व में वल्ल मण्डल के नाम से जाना जाता था और इसकी राजधानी [[लौद्रवा जैसलमेर|लौद्रवा]] थी तथा वहाँ पवार राजा राज्य करते थे। तब इस नगर का नाम [[भावनगर]] था। सदियों से अपनी परम्परा, कला और संस्कृति को संजोता आ रहा जैसलमेर आज देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बन गया है। हर वर्ष लाखों पर्यटक यहाँ की स्थापत्य शैली, पीले पत्थरों पर उकेरी गई बारीक शिल्प तथा हस्तशिल्प कला को देखने आते हैं। जैसलमेर का इतिहास अत्यंत प्राचीन रहा है। यह शहर प्राचीन [[सिन्धु घाटी सभ्यता]] का क्षेत्र रहा है। वर्तमान जैसलमेर ज़िले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था।<ref>{{cite web |url=http://www.yatrasalah.com/PhotoGallary.aspx?gallery=55 |title=जैसलमेर |accessmonthday=18 जून |accessyear=2010 |authorlink= |format= |publisher=यात्रा सलाह |language=[[हिन्दी]] }}</ref> ऐसा माना जाता हैं कि [[महाभारत]] युद्ध के पश्चात् कालान्तर में यादवों का [[मथुरा]] से काफ़ी संख्या में बहिर्गमन हुआ। जैसलमेर के भूतपूर्व शासकों के पूर्वज जो अपने को भगवान [[कृष्ण]] के वंशज मानते हैं, संभवता छठी शताब्दी में जैसलमेर के भूभाग पर आ बसे थे। ज़िले में यादवों के वंशज भाटी राजपूतों की प्रथम राजधानी [[तनोट]], दूसरी [[लौद्रवा]] तथा तीसरी जैसलमेर में रही।
====पौराणिक इतिहास====
====पौराणिक इतिहास====
[[वाल्मीकि]] द्वारा रचित [[रामायण]] के [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धा कांड]] में पश्चिम दिशा के जनपदों के वर्णन में मरुस्थली नामक जनपद की चर्चा की गई है। डॉ ए.बी. लाल के अनुसार यह वही मरु भूमि है। [[महाभारत]] के [[आश्वमेधिक पर्व महाभारत|अश्वमेघिक पर्व]] में वर्णन है कि [[हस्तिनापुर]] से जब भगवान श्रीकृष्ण [[द्वारका]] जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में बालू, धूल व काँटों वाला मरुस्थल (मरुभूमि) का रेगिस्तान पड़ा था। इस भू-भाग को महाभारत के [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] में सिंधु-सौवीर कहकर सम्बोधित किया गया है। [[पाण्डु]] पुत्र [[नकुल]] ने अपने पश्चिम दिग्विजय में मरुभूमि, सरस्वती की घाटी, सिंध आदि प्रांत को विजित कर लिया था यह महाभारत के [[सभा पर्व महाभारत|सभा पर्व]] के अध्याय 32 में वर्णित है। मरुभूमि आधुनिक माखाड़ का ही विस्तृत क्षेत्र है।
[[वाल्मीकि]] द्वारा रचित [[रामायण]] के [[किष्किन्धा काण्ड वा. रा.|किष्किन्धा कांड]] में पश्चिम दिशा के जनपदों के वर्णन में मरुस्थली नामक जनपद की चर्चा की गई है। डॉ. ए. बी. लाल के अनुसार यह वही मरु भूमि है। [[महाभारत]] के [[आश्वमेधिक पर्व महाभारत|अश्वमेघिक पर्व]] में वर्णन है कि [[हस्तिनापुर]] से जब भगवान [[श्रीकृष्ण]] [[द्वारका]] जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में [[बालू]], धूल व काँटों वाला मरुस्थल (मरुभूमि) का रेगिस्तान पड़ा था। इस भू-भाग को महाभारत के [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]] में सिंधु-सौवीर कहकर सम्बोधित किया गया है। [[पाण्डु]] पुत्र [[नकुल]] ने अपने पश्चिम दिग्विजय में मरुभूमि, सरस्वती की घाटी, सिंध आदि प्रांत को विजित कर लिया था। यह महाभारत के [[सभा पर्व महाभारत|सभा पर्व]] के अध्याय 32 में वर्णित है। मरुभूमि आधुनिक माखाड़ का ही विस्तृत क्षेत्र है।
 
[[चित्र:Bada-Bagh-Jaisalmer.jpg|thumb|250px|left|[[बड़ाबाग़ जैसलमेर|बड़ाबाग]], जैसलमेर]]
====प्रागैतिहासिक काल====
====प्रागैतिहासिक काल====
इस प्रदेश में उपलब्ध वेलोजोइक, मेसोजोइक, एवं सोनाजाइक कालीन अवशेष भू-वैज्ञानिक दृष्टि से इस प्रदेश की प्रागैतिहासिक कालीन स्थिति को प्रमाणित करते हैं। प्राचीन काल में इस संपूर्ण क्षेत्र को ज्यूटालिक चट्टानों के अवशेष यहाँ समुद्र होने का प्रमाण देते हैं। यहाँ से विस्तृत मात्रा में जीवश्यों की होने वाली प्राप्ति में भी यहाँ समुद्र होने का प्रमाण मिलता है। यहाँ मानव ने रहना तब से प्रारंभ किया था, जब यह प्रदेश सागरीय जल से मुक्त हो गया। जैसलमेर क्षेत्र की मुख्य भूमि में अभी तक कोई [[उत्खनन]] कार्य नहीं हुआ है, परंतु इसके पश्चिम में [[मोहनजोदाड़ो]] व [[हड़प्पा]], उत्तर-पूर्व में [[कालीबंगा]] व पूर्वी क्षेत्र में [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] के उत्खनन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस क्षेत्र में आदि मानव का अस्तित्व अवश्य रहा होगा।
इस प्रदेश में उपलब्ध वेलोजोइक, मेसोजोइक, एवं सोनाजाइक कालीन [[अवशेष]] भू-वैज्ञानिक दृष्टि से इस प्रदेश की प्रागैतिहासिक कालीन स्थिति को प्रमाणित करते हैं। प्राचीन काल में इस संपूर्ण क्षेत्र को ज्यूटालिक चट्टानों के अवशेष यहाँ [[समुद्र]] होने का प्रमाण देते हैं। यहाँ से विस्तृत मात्रा में जीवाश्मों की होने वाली प्राप्ति में भी यहाँ समुद्र होने का प्रमाण मिलता है। यहाँ मानव ने रहना तब से प्रारंभ किया था, जब यह प्रदेश सागरीय जल से मुक्त हो गया। जैसलमेर क्षेत्र की मुख्य भूमि में अभी तक कोई [[उत्खनन]] कार्य नहीं हुआ है, परंतु इसके पश्चिम में [[मोहनजोदाड़ो]] व [[हड़प्पा]], उत्तर-पूर्व में [[कालीबंगा]] व पूर्वी क्षेत्र में [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] के उत्खनन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस क्षेत्र में आदि मानव का अस्तित्व अवश्य रहा होगा।<br />
[[चित्र:Jaisalmer-Fort-3.jpg|thumb|250px|left||जैसलमेर का क़िला<br />Jaisalmer Fort]]
ऐतिहासिक काल के प्रांरभ में पौराणिक काल की सीमा से निकल कर इस क्षेत्र को 'माडमड़ प्रदेश' के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश के लिए 'माड़' शब्द का प्रयोग हमें पुन: [[गुर्जर प्रतिहार वंश|प्रतिहार]] शासक कक्कुट के घटियाला [[अभिलेख]] से प्राप्त होता है। इसमें इसे त्रवणी तथा वल्ल के साथ प्रयोग किया गया है "येन प्राप्ता महख्याति स्रवर्ण्यो वल्ल माड़ ये"। वल्ल तथा माड़ को इस लेख में [[समास]] के रूप में प्रयोग किए जाने से तात्पर्य निकलता है कि वल्ल तथा माड़ समीपवर्ती राज्य रहे होंगे। उस समय भारत का समीपवर्ती राज्य माड़ प्रदेश था, इसका उल्लेख "अलविलाजूरी" के विवरण से प्राप्त है, जिसमें इस प्रदेश को अरब राज्य की सीमा पर स्थित होना बताया गया है। <br />
 
अल-विला जूरी ने उल्लेख किया है कि जुनैद ने अपने अधिकारियों को माड़मड़ मंडल, बरुस, दानत्र तथा अन्य स्थानों पर भेजा था एवं जुर्ज पर विजय प्राप्त की थी। यहाँ पर माड़मड़ का प्रयोग मरु प्रदेश माड़ व मंड मंडल ([[मारवाड़]]) के लिए किया गया है। ये दोनों प्रदेश एक दूसरे के सीमांत प्रदेश हैं। जैसलमेर क्षेत्र का कुछ भाग त्रिवेणी क्षेत्र का हिस्सा भी रहा है जिसका उल्लेख प्रतिहार बाऊक के जोधपुर अभिलेख से प्राप्त होता है। प्रतिहारों के चरमोत्कर्ष काल (700-900 ई.) में यह सारा प्रदेश जिसमें माड़ ही था, उनके सम्राज्य का अंग था। प्रतिहारों की शक्ति जब कालातंर में क्षीण हो गई तथा इस क्षेत्र में विभिन्न [[क्षत्रिय]] व स्थानीय जातियाँ जिनमें भूटा-लंगा, पुंवार, मोहिल आदि प्रमुख थे, इन जातियों ने छोटे-छोटे क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमा लिया।<ref name="gov">{{cite web |url=http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/rj016.htm |title=जैसलमेर राज्य : एक संक्षिप्त परिचय |accessmonthday=[[28  अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
ऐतिहासिक काल के प्रांरभ में पौराणिक काल की सीमा से निकल कर इस क्षेत्र को माडमड़ प्रदेश के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश के लिए माड़ शब्द का प्रयोग हमें पुन: [[गुर्जर प्रतिहार वंश|प्रतिहार]] शासक कक्कुट के घटियाला अभिलेख से प्राप्त होता है। इसमें इसे त्रवणी तथा वल्ल के साथ प्रयोग किया गया है "येन प्राप्ता महख्याति स्रवर्ण्यो वल्ल माड़ ये"। वल्ल तथा माड़ को इस लेख में समास के रूप में प्रयोग किए जाने से तात्पर्य निकलता है कि वल्ल तथा माड़ समीपवर्ती राज्य रहे होंगे। उस समय भारत का समीपवर्ती राज्य माड़ प्रदेश था, इसका उल्लेख "अलविलाजूरी" के विवरण से प्राप्त है, जिसमें इस प्रदेश को अरब राज्य की सीमा पर स्थित होना बताया गया है।
अल-विला जूरी ने उल्लेख किया है कि जुनैद ने अपने अधिकारियों को माड़मड़ मंडल, बरुस, दानत्र तथा अन्य स्थानों पर भेजा था जुर्ज पर विजय प्राप्त की थी। यहाँ पर माड़माउड का प्रयोग मरु प्रदेश माड़ व मंड मंडल (मारवाड़) के लिए किया गया है ये दोनों प्रदेश एक दूसरे के सीमांत प्रदेश हैं। जैसलमेर क्षेत्र का कुछ भाग त्रवेणी क्षेत्र का हिस्सा भी रहा है जिसका उल्लेख प्रतिहार बाऊक के जोधपुर अभिलेख से प्राप्त होता है। प्रतिहारों के चरमोत्कर्ष काल (700-900 ई.) में यह सारा प्रदेश जिसमें माड़ ही था, उनके सम्राज्य का अंग था। प्रतिहारों की शक्ति जब कालातंर में क्षीण हो ही गई तथा इस क्षेत्र में विभिन्न क्षत्रिय व स्थानीय जातियों जिनमें भूटा-लंगा, पुंवार, मोहिल आदि प्रमुख थे ने छोटे-छोटे क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमा लिया।<ref name="gov">{{cite web |url=http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/rj016.htm |title=जैसलमेर राज्य : एक संक्षिप्त परिचय |accessmonthday=[[28  अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=[[हिन्दी]] }}</ref>




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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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[[Category:जैसलमेर]]
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07:45, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

जैसलमेर विषय सूची
जैसलमेर का इतिहास
जैसलमेर का क़िला
जैसलमेर का क़िला
विवरण जैसलमेर शहर, पश्चिमी राजस्थान राज्य, पश्चिमोत्तर भारत में स्थित है। जैसलमेर पीले भूरे पत्थरों से निर्मित भवनों के लिए विख्यात है।
राज्य राजस्थान
ज़िला जैसलमेर ज़िला
निर्माण काल 1156 ई.
स्थापना राजपूतों के सरदार रावल जैसल द्वारा स्थापित
प्रसिद्धि जैसलमेर नक़्क़ाशीदार हवेलियाँ, रेगिस्तानी टीले, प्राचीन जैन मंदिरों, मेलों और उत्सवों के लिये प्रसिद्ध हैं।
क्या देखें जैसलमेर का क़िला, मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान, कलात्मक हवेलियाँ, सोनार क़िला, गडसीसर जलाशय एवं टीला की पोल, बादल विलास, अमरसागर आदि
अन्य जानकारी जैसलमेर के प्रमुख ऐतिहासिक स्मारकों में सर्वप्रमुख यहाँ का क़िला है। यह 1155 ई. में निर्मित हुआ था। यह स्थापत्य का सुंदर नमूना है। इसमें बारह सौ घर भी हैं।

जैसलमेर की स्थापना लगभग 840 वर्ष पूर्व भाटी राजपूत रावल जैसल ने सन् 1156 में की। जैसलमेर पूर्व में वल्ल मण्डल के नाम से जाना जाता था और इसकी राजधानी लौद्रवा थी तथा वहाँ पवार राजा राज्य करते थे। तब इस नगर का नाम भावनगर था। सदियों से अपनी परम्परा, कला और संस्कृति को संजोता आ रहा जैसलमेर आज देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बन गया है। हर वर्ष लाखों पर्यटक यहाँ की स्थापत्य शैली, पीले पत्थरों पर उकेरी गई बारीक शिल्प तथा हस्तशिल्प कला को देखने आते हैं। जैसलमेर का इतिहास अत्यंत प्राचीन रहा है। यह शहर प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र रहा है। वर्तमान जैसलमेर ज़िले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था।[1] ऐसा माना जाता हैं कि महाभारत युद्ध के पश्चात् कालान्तर में यादवों का मथुरा से काफ़ी संख्या में बहिर्गमन हुआ। जैसलमेर के भूतपूर्व शासकों के पूर्वज जो अपने को भगवान कृष्ण के वंशज मानते हैं, संभवता छठी शताब्दी में जैसलमेर के भूभाग पर आ बसे थे। ज़िले में यादवों के वंशज भाटी राजपूतों की प्रथम राजधानी तनोट, दूसरी लौद्रवा तथा तीसरी जैसलमेर में रही।

पौराणिक इतिहास

वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के किष्किन्धा कांड में पश्चिम दिशा के जनपदों के वर्णन में मरुस्थली नामक जनपद की चर्चा की गई है। डॉ. ए. बी. लाल के अनुसार यह वही मरु भूमि है। महाभारत के अश्वमेघिक पर्व में वर्णन है कि हस्तिनापुर से जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारका जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में बालू, धूल व काँटों वाला मरुस्थल (मरुभूमि) का रेगिस्तान पड़ा था। इस भू-भाग को महाभारत के वन पर्व में सिंधु-सौवीर कहकर सम्बोधित किया गया है। पाण्डु पुत्र नकुल ने अपने पश्चिम दिग्विजय में मरुभूमि, सरस्वती की घाटी, सिंध आदि प्रांत को विजित कर लिया था। यह महाभारत के सभा पर्व के अध्याय 32 में वर्णित है। मरुभूमि आधुनिक माखाड़ का ही विस्तृत क्षेत्र है।

बड़ाबाग, जैसलमेर

प्रागैतिहासिक काल

इस प्रदेश में उपलब्ध वेलोजोइक, मेसोजोइक, एवं सोनाजाइक कालीन अवशेष भू-वैज्ञानिक दृष्टि से इस प्रदेश की प्रागैतिहासिक कालीन स्थिति को प्रमाणित करते हैं। प्राचीन काल में इस संपूर्ण क्षेत्र को ज्यूटालिक चट्टानों के अवशेष यहाँ समुद्र होने का प्रमाण देते हैं। यहाँ से विस्तृत मात्रा में जीवाश्मों की होने वाली प्राप्ति में भी यहाँ समुद्र होने का प्रमाण मिलता है। यहाँ मानव ने रहना तब से प्रारंभ किया था, जब यह प्रदेश सागरीय जल से मुक्त हो गया। जैसलमेर क्षेत्र की मुख्य भूमि में अभी तक कोई उत्खनन कार्य नहीं हुआ है, परंतु इसके पश्चिम में मोहनजोदाड़ोहड़प्पा, उत्तर-पूर्व में कालीबंगा व पूर्वी क्षेत्र में सरस्वती के उत्खनन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस क्षेत्र में आदि मानव का अस्तित्व अवश्य रहा होगा।
ऐतिहासिक काल के प्रांरभ में पौराणिक काल की सीमा से निकल कर इस क्षेत्र को 'माडमड़ प्रदेश' के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश के लिए 'माड़' शब्द का प्रयोग हमें पुन: प्रतिहार शासक कक्कुट के घटियाला अभिलेख से प्राप्त होता है। इसमें इसे त्रवणी तथा वल्ल के साथ प्रयोग किया गया है "येन प्राप्ता महख्याति स्रवर्ण्यो वल्ल माड़ ये"। वल्ल तथा माड़ को इस लेख में समास के रूप में प्रयोग किए जाने से तात्पर्य निकलता है कि वल्ल तथा माड़ समीपवर्ती राज्य रहे होंगे। उस समय भारत का समीपवर्ती राज्य माड़ प्रदेश था, इसका उल्लेख "अलविलाजूरी" के विवरण से प्राप्त है, जिसमें इस प्रदेश को अरब राज्य की सीमा पर स्थित होना बताया गया है।
अल-विला जूरी ने उल्लेख किया है कि जुनैद ने अपने अधिकारियों को माड़मड़ मंडल, बरुस, दानत्र तथा अन्य स्थानों पर भेजा था एवं जुर्ज पर विजय प्राप्त की थी। यहाँ पर माड़मड़ का प्रयोग मरु प्रदेश माड़ व मंड मंडल (मारवाड़) के लिए किया गया है। ये दोनों प्रदेश एक दूसरे के सीमांत प्रदेश हैं। जैसलमेर क्षेत्र का कुछ भाग त्रिवेणी क्षेत्र का हिस्सा भी रहा है जिसका उल्लेख प्रतिहार बाऊक के जोधपुर अभिलेख से प्राप्त होता है। प्रतिहारों के चरमोत्कर्ष काल (700-900 ई.) में यह सारा प्रदेश जिसमें माड़ ही था, उनके सम्राज्य का अंग था। प्रतिहारों की शक्ति जब कालातंर में क्षीण हो गई तथा इस क्षेत्र में विभिन्न क्षत्रिय व स्थानीय जातियाँ जिनमें भूटा-लंगा, पुंवार, मोहिल आदि प्रमुख थे, इन जातियों ने छोटे-छोटे क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमा लिया।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैसलमेर (हिन्दी) यात्रा सलाह। अभिगमन तिथि: 18 जून, 2010।
  2. जैसलमेर राज्य : एक संक्षिप्त परिचय (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 28 अक्टूबर, 2010

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