"जगजीत सिंह अरोड़ा": अवतरणों में अंतर
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'''जगजीत सिंह अरोड़ा''' (जन्म- [[13 फ़रवरी]], [[1916]], मृत्यु- [[3 मई]], [[2005]]) भारतीय सेना के कमांडर थे। उनका जन्म झेलम में हुआ था जो वर्तमान में [[पाकिस्तान]] में स्थित है। | |||
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[[1938]] ई. में उन्हें सेना में कमीशन मिला और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय वे पूर्वी मोर्चे पर थे। डिफेंस कॉलेज के प्रशिक्षण के बाद वे मेजर जनरल के रूप में तोपखाना डिवीजन के कमाण्डर बने। [[1964]] में जनरल ऑफ़ीसर कमांडिंग के रूप में उनको पूर्वी कमान की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई। उस समय के पूर्वी पाकिस्तान में वहाँ की सेना के अत्याचारों से त्रसित लगभग एक करोड़ [[बंगाल]] निवासियों को [[भारत]] में शरण लेने के लिए बाध्य होना पड़ा, तो | [[1938]] ई. में उन्हें सेना में कमीशन मिला और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय वे पूर्वी मोर्चे पर थे। डिफेंस कॉलेज के प्रशिक्षण के बाद वे मेजर जनरल के रूप में तोपखाना डिवीजन के कमाण्डर बने। [[1964]] में जनरल ऑफ़ीसर कमांडिंग के रूप में उनको पूर्वी कमान की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई। उस समय के पूर्वी पाकिस्तान में वहाँ की सेना के अत्याचारों से त्रसित लगभग एक करोड़ [[बंगाल]] निवासियों को [[भारत]] में शरण लेने के लिए बाध्य होना पड़ा, तो भारत वहाँ की 'मुक्ति सेना' की सहायता के लिए आगे बढ़ा। इस पर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह का साहस और रण कौशल सामने आया। पाकिस्तान की लगभग एक लाख सेना को चारों ओर से घेरकर और उस पर सैनिक और मनोवैज्ञानिक दबाव डालकर उन्होंने उसे आत्मसमर्पण के लिए बाध्य कर दिया। पाकिस्तान के सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी को समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करके जगजीत सिंह के सामने झुकना पड़ा और नया देश '[[बांग्लादेश]]' अस्तित्त्व में आया। जगजीत अरोड़ा के सेना नायकत्त्व में यह भारत की एक बड़ी सफलता थी। 80 हज़ार से अधिक पाकिस्तानी सैनिक बन्दी बनाकर भारत लाए गए थे।<ref>{{cite book | last =लीलाधर | first =शर्मा | title =भारतीय चरित कोश | edition = | publisher =शिक्षा भारती | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =[[हिन्दी]] | pages =290| chapter = }}</ref> | ||
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05:25, 13 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
जगजीत सिंह अरोड़ा
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पूरा नाम | लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा |
जन्म | 13 फ़रवरी, 1916 |
जन्म भूमि | पंजाब, पाकिस्तान |
मृत्यु | 3 मई, 2005 |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
नागरिकता | भारतीय |
कार्य काल | 1939-1973 |
पुरस्कार-उपाधि | सन 1972 में पद्म भूषण, परम विशिष्ट सेवा पदक |
विशेष योगदान | पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में पूर्वी मोर्चे पर करारी मात देकर 'बांग्लादेश' नाम के नये देश के रूप में स्थापित करने में योगदान किया। |
सेवा | भारतीय सेना |
यूनिट | द्वितीय पंजाब रेजिमेंट (1947 तक), पंजाब रेजिमेंट (1947 के बाद) |
अन्य जानकारी | जगजीत सिंह अरोड़ा ने म्यांमार अभियान, द्वितीय विश्व युद्ध, 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, भारत-चीन युद्ध में भी सहयोग दिया। |
जगजीत सिंह अरोड़ा (अंग्रेज़ी: Jagjit Singh Aurora, जन्म- 13 फ़रवरी, 1916, मृत्यु- 3 मई, 2005) भारतीय सेना के कमांडर थे। उनका जन्म झेलम में हुआ था जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है। पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में उसे पूर्वी मोर्चे पर करारी मात देकर 'बांग्लादेश' नाम के नये देश को विश्व के मानचित्र में स्थापित करने वाले हीरो लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा का जन्म 1916 ई. में हुआ था।
सेना नायकत्त्व
1938 ई. में उन्हें सेना में कमीशन मिला और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय वे पूर्वी मोर्चे पर थे। डिफेंस कॉलेज के प्रशिक्षण के बाद वे मेजर जनरल के रूप में तोपखाना डिवीजन के कमाण्डर बने। 1964 में जनरल ऑफ़ीसर कमांडिंग के रूप में उनको पूर्वी कमान की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई। उस समय के पूर्वी पाकिस्तान में वहाँ की सेना के अत्याचारों से त्रसित लगभग एक करोड़ बंगाल निवासियों को भारत में शरण लेने के लिए बाध्य होना पड़ा, तो भारत वहाँ की 'मुक्ति सेना' की सहायता के लिए आगे बढ़ा। इस पर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह का साहस और रण कौशल सामने आया। पाकिस्तान की लगभग एक लाख सेना को चारों ओर से घेरकर और उस पर सैनिक और मनोवैज्ञानिक दबाव डालकर उन्होंने उसे आत्मसमर्पण के लिए बाध्य कर दिया। पाकिस्तान के सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी को समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करके जगजीत सिंह के सामने झुकना पड़ा और नया देश 'बांग्लादेश' अस्तित्त्व में आया। जगजीत अरोड़ा के सेना नायकत्त्व में यह भारत की एक बड़ी सफलता थी। 80 हज़ार से अधिक पाकिस्तानी सैनिक बन्दी बनाकर भारत लाए गए थे।[1]
मृत्यु
जगजीत सिंह अरोड़ा की मृत्यु 3 मई, 2005 को नई दिल्ली में हुई थी।
पुरस्कार
जगजीत सिंह अरोड़ा को प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् 1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
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