"सुसीम": अवतरणों में अंतर
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*[[लंका]] की परम्परा में | '''सुसीम''' अथवा 'सुशीम' [[मौर्य]] शासक [[बिन्दुसार]] का ज्येष्ठ पुत्र तथा [[अशोक]] का सौतेला भाई था। वह सम्राट बिन्दुसार के उत्तराधिकारियों में से एक था। उत्तराधिकार के युद्ध में 274-270 ईसा पूर्व के आसपास सुसीम का वध अशोक द्वारा हुआ। | ||
* | *[[लंका]] की परम्परा में, जिसका आख्यान '[[दीपवंश]]' और '[[महावंश]]' में हुआ है, [[बिंदुसार]] की सोलह पटरानियों और 101 [[पुत्र|पुत्रों]] का उल्लेख है। पुत्रों में केवल तीन के नामोल्लेख हैं, वे हैं- | ||
*सिंहासन को लेकर सुसीम से अशोक का युद्ध हुआ, जिसमें सुसीम मारा गया।<ref> [[दिव्यावदान]] के अनुसार उत्तराधिकार की लड़ाई दो भाइयों के बीच ही हुई थी, जबकि 'महाबोधिवंश' में इस युद्ध में एक ओर [[अशोक]] था और दूसरी ओर 98 भाई थे, जिन्होंने अपने सबसे बड़े भाई सुसीम का साथ दिया था, जो उस समय 'युवराज' और दरअसल सिंहासन का वास्तविक अधिकारी था। दिव्यावदान अशोक के दावे के समर्थन में कहता है कि जब [[बिंदुसार]] जीवित था तो उसने एक बार [[आजीविक]] साधु 'पिंगलवत्स' को बुलाया था। पिंगलवत्स ने फैसला किया था कि सभी राजकुमारों में अशोक सिंहासन के सबसे उपयुक्त है। इस ग्रंथ के अनुसार अशोक के समर्थन में बिंदुसार के सभी मंत्री खल्लाटक (प्रधानमंत्री) और 500 अन्य मंत्री थे। ध्यान देने की बात यह भी है कि चीनी यात्री | #'सुमन'<ref>उत्तरी परम्पराओं का सुसीम, जो सबसे बड़ा था।</ref> | ||
*[[दिव्यावदान]]<ref> [[दिव्यावदान]], 26, पृ. 368 में भी [[अशोक]] के बारे में [[बुद्ध]] की एक भविष्यवाणी का उल्लेख है जिसमें भगवान ने कहा था कि यह धर्मात्मा राजा उनकी धातुओं पर 84000 | #[[अशोक]] | ||
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*तिष्य, अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। [[मौर्य काल]] की परिपाटी के अनुसार साम्राज्य के एक दूर के प्रांत में [[अशोक]] को वाइसराय के रूप में नियुक्त किया गया था। यह प्रांत [[पश्चिमी भारत]] में था, जिसका नाम 'अवंतिरट्टम्'<ref>अर्थात अवंति राष्ट्र या [[अवंति]] का प्रांत। महाबोधिवंश, पृ. 98</ref> था। लंका की परम्परा के अनुसार इसकी राजधानी '[[उज्जैन]]' थी, पर भारतीय परम्परा के अनुसार वह [[उत्तरापथ]]<ref>[[दिव्यावदान]]</ref>में 'स्वशों'<ref> सम्भवत: मनु, 10, 22 और एपि. इंडिया i, 132 में उल्लिखित खसों से तात्पर्य है</ref> के राज्य में वाइसराय था, जिसकी राजधानी [[तक्षशिला]] थी। | |||
*अशोक को अस्थायी रूप में वहाँ तब भेजा गया था, जब सुसीम तक्षशिला में विद्रोह का दमन न कर पाया। यह विद्रोह सुसीम के कुप्रबंध के कारण हुआ था। तक्षशिला में सुसीम के समय में ही एक दूसरा विद्रोह उस समय हुआ, जब [[पाटलिपुत्र]] का सिंहासन रिक्त हुआ। सुसीम इस विद्रोह को भी शांत ना कर सका। तब अशोक ने अवसर का लाभ उठा कर मंत्री [[राधागुप्त]] की सहायता से सिंहासन पर अधिकार कर लिया। *सिंहासन को लेकर सुसीम से अशोक का युद्ध हुआ, जिसमें सुसीम मारा गया।<ref>[[दिव्यावदान]] के अनुसार उत्तराधिकार की लड़ाई दो भाइयों के बीच ही हुई थी, जबकि 'महाबोधिवंश' में इस युद्ध में एक ओर [[अशोक]] था और दूसरी ओर 98 भाई थे, जिन्होंने अपने सबसे बड़े भाई सुसीम का साथ दिया था, जो उस समय 'युवराज' और दरअसल सिंहासन का वास्तविक अधिकारी था। 'दिव्यावदान' अशोक के दावे के समर्थन में कहता है कि- "जब [[बिंदुसार]] जीवित था तो उसने एक बार [[आजीविक]] साधु 'पिंगलवत्स' को बुलाया था। पिंगलवत्स ने फैसला किया था कि सभी राजकुमारों में अशोक सिंहासन के सबसे उपयुक्त है। इस ग्रंथ के अनुसार अशोक के समर्थन में बिंदुसार के सभी मंत्री खल्लाटक (प्रधानमंत्री) और 500 अन्य मंत्री थे। ध्यान देने की बात यह भी है कि चीनी यात्री [[इत्सिंग]] ने एक जनश्रुति का उल्लेख किया है, जिसमें स्वयं [[बुद्ध]] ने अशोक के 'चक्रवर्त्तित्व' की भविष्यवाणी की थी। जनश्रुति है कि कपड़े का एक टुकड़ा और सोने की छड़ी दोनों अट्ठारह भागों में विभक्त हो गये थे। इसका भाष्य करते हुए भगवान बुद्ध कह रहे हैं कि "उनके निर्वाण के सौ से अधिक साल बीतने पर उनके उपदेश 18 भागों में विभक्त हो जाएँगे। जब [[अशोक]] नाम का एक राजा पैदा होगा जो सकल [[जंबूद्वीप]] पर शासन करेगा।" तक्कुस का इ-त्सिंग, पृ. 14</ref> | |||
*[[दिव्यावदान]]<ref> [[दिव्यावदान]], 26, पृ. 368 में भी [[अशोक]] के बारे में [[बुद्ध]] की एक भविष्यवाणी का उल्लेख है, जिसमें भगवान ने कहा था कि- "यह धर्मात्मा राजा उनकी धातुओं पर 84000 'धर्म्राजिक' बनवायेगा। दिव्यावदान, अध्याय, 26</ref> पर सिंहल की कथाओं में उत्तराधिकार की घटना एक दूसरे ही रूप में वर्णित है। इसमें [[अशोक]] ने [[उज्जैन]] से सिंहासन प्राप्त किया। उसकी नियुक्ति वहीं थी। काफ़ी समय से वह उज्जैन में ही वाइसराय था। अशोक ने उत्तराधिकार के इस युद्ध में [[तिष्य]] को छोड़कर सभी भाइयों का वध कर दिया। | |||
*श्रीलंकाई स्रोतों के अनुसार उत्तराधिकार की लड़ाई में सिर्फ़ अशोक का छोटा भाई [[तिष्य (अशोक का भाई)|तिष्य]] बचा था। लेकिन [[तारानाथ]] के अनुसार अशोक ने सिर्फ़ छ: भाइयों की हत्या की थी। स्पष्टत: 98 की अपेक्षा छ: अधिक सत्य प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त वृहत शिलालेख पाँच में अशोक उन अधिकारियों का उल्लेख करता है, जिन्हें अध्यक्षता के कार्यों के अतिरिक्त उसके भाइयों, बहनों तथा अन्य सम्बंधियों के परिवारों के कल्याण का कार्य देखना था। | |||
*उत्तराधिकार की यह लड़ाई चार वर्षों तक चली तथा अपनी स्थिति मजबूत करके ही [[अशोक]] ने 286 ई.पू. में अपना राज्याभिषेक करवाया। | |||
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14:12, 28 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण
सुसीम अथवा 'सुशीम' मौर्य शासक बिन्दुसार का ज्येष्ठ पुत्र तथा अशोक का सौतेला भाई था। वह सम्राट बिन्दुसार के उत्तराधिकारियों में से एक था। उत्तराधिकार के युद्ध में 274-270 ईसा पूर्व के आसपास सुसीम का वध अशोक द्वारा हुआ।
- लंका की परम्परा में, जिसका आख्यान 'दीपवंश' और 'महावंश' में हुआ है, बिंदुसार की सोलह पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। पुत्रों में केवल तीन के नामोल्लेख हैं, वे हैं-
- तिष्य, अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। मौर्य काल की परिपाटी के अनुसार साम्राज्य के एक दूर के प्रांत में अशोक को वाइसराय के रूप में नियुक्त किया गया था। यह प्रांत पश्चिमी भारत में था, जिसका नाम 'अवंतिरट्टम्'[2] था। लंका की परम्परा के अनुसार इसकी राजधानी 'उज्जैन' थी, पर भारतीय परम्परा के अनुसार वह उत्तरापथ[3]में 'स्वशों'[4] के राज्य में वाइसराय था, जिसकी राजधानी तक्षशिला थी।
- अशोक को अस्थायी रूप में वहाँ तब भेजा गया था, जब सुसीम तक्षशिला में विद्रोह का दमन न कर पाया। यह विद्रोह सुसीम के कुप्रबंध के कारण हुआ था। तक्षशिला में सुसीम के समय में ही एक दूसरा विद्रोह उस समय हुआ, जब पाटलिपुत्र का सिंहासन रिक्त हुआ। सुसीम इस विद्रोह को भी शांत ना कर सका। तब अशोक ने अवसर का लाभ उठा कर मंत्री राधागुप्त की सहायता से सिंहासन पर अधिकार कर लिया। *सिंहासन को लेकर सुसीम से अशोक का युद्ध हुआ, जिसमें सुसीम मारा गया।[5]
- दिव्यावदान[6] पर सिंहल की कथाओं में उत्तराधिकार की घटना एक दूसरे ही रूप में वर्णित है। इसमें अशोक ने उज्जैन से सिंहासन प्राप्त किया। उसकी नियुक्ति वहीं थी। काफ़ी समय से वह उज्जैन में ही वाइसराय था। अशोक ने उत्तराधिकार के इस युद्ध में तिष्य को छोड़कर सभी भाइयों का वध कर दिया।
- श्रीलंकाई स्रोतों के अनुसार उत्तराधिकार की लड़ाई में सिर्फ़ अशोक का छोटा भाई तिष्य बचा था। लेकिन तारानाथ के अनुसार अशोक ने सिर्फ़ छ: भाइयों की हत्या की थी। स्पष्टत: 98 की अपेक्षा छ: अधिक सत्य प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त वृहत शिलालेख पाँच में अशोक उन अधिकारियों का उल्लेख करता है, जिन्हें अध्यक्षता के कार्यों के अतिरिक्त उसके भाइयों, बहनों तथा अन्य सम्बंधियों के परिवारों के कल्याण का कार्य देखना था।
- उत्तराधिकार की यह लड़ाई चार वर्षों तक चली तथा अपनी स्थिति मजबूत करके ही अशोक ने 286 ई.पू. में अपना राज्याभिषेक करवाया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उत्तरी परम्पराओं का सुसीम, जो सबसे बड़ा था।
- ↑ अर्थात अवंति राष्ट्र या अवंति का प्रांत। महाबोधिवंश, पृ. 98
- ↑ दिव्यावदान
- ↑ सम्भवत: मनु, 10, 22 और एपि. इंडिया i, 132 में उल्लिखित खसों से तात्पर्य है
- ↑ दिव्यावदान के अनुसार उत्तराधिकार की लड़ाई दो भाइयों के बीच ही हुई थी, जबकि 'महाबोधिवंश' में इस युद्ध में एक ओर अशोक था और दूसरी ओर 98 भाई थे, जिन्होंने अपने सबसे बड़े भाई सुसीम का साथ दिया था, जो उस समय 'युवराज' और दरअसल सिंहासन का वास्तविक अधिकारी था। 'दिव्यावदान' अशोक के दावे के समर्थन में कहता है कि- "जब बिंदुसार जीवित था तो उसने एक बार आजीविक साधु 'पिंगलवत्स' को बुलाया था। पिंगलवत्स ने फैसला किया था कि सभी राजकुमारों में अशोक सिंहासन के सबसे उपयुक्त है। इस ग्रंथ के अनुसार अशोक के समर्थन में बिंदुसार के सभी मंत्री खल्लाटक (प्रधानमंत्री) और 500 अन्य मंत्री थे। ध्यान देने की बात यह भी है कि चीनी यात्री इत्सिंग ने एक जनश्रुति का उल्लेख किया है, जिसमें स्वयं बुद्ध ने अशोक के 'चक्रवर्त्तित्व' की भविष्यवाणी की थी। जनश्रुति है कि कपड़े का एक टुकड़ा और सोने की छड़ी दोनों अट्ठारह भागों में विभक्त हो गये थे। इसका भाष्य करते हुए भगवान बुद्ध कह रहे हैं कि "उनके निर्वाण के सौ से अधिक साल बीतने पर उनके उपदेश 18 भागों में विभक्त हो जाएँगे। जब अशोक नाम का एक राजा पैदा होगा जो सकल जंबूद्वीप पर शासन करेगा।" तक्कुस का इ-त्सिंग, पृ. 14
- ↑ दिव्यावदान, 26, पृ. 368 में भी अशोक के बारे में बुद्ध की एक भविष्यवाणी का उल्लेख है, जिसमें भगवान ने कहा था कि- "यह धर्मात्मा राजा उनकी धातुओं पर 84000 'धर्म्राजिक' बनवायेगा। दिव्यावदान, अध्याय, 26
मुखर्जी, राधाकुमुद अशोक (हिंदी)। नई दिल्ली: मोतीलाल बनारसीदास, 3-4।