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'''गिलजई''' एक [[अफ़ग़ान]] कबीले का नाम है, जिसने [[वर्ष]] 1840 ई. में [[अफ़ग़ानिस्तान]] पर चढ़ाई करने वाली ब्रिटिश सेना की दुर्बल स्थिति का लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=|url=127}}</ref>
'''गिलजई''' एक [[अफ़ग़ान]] कबीले का नाम है, जिसने [[वर्ष]] 1840 ई. में [[अफ़ग़ानिस्तान]] पर चढ़ाई करने वाली [[ब्रिटिश शासन|ब्रिटिश सेना]] की दुर्बल स्थिति का लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=|url=127}}</ref>


*गिलजाई लोगों ने जोरदार तरीके से विद्रोह किया, किंतु [[अंग्रेज़]] फ़ौज द्वारा इसे दबा दिया गया।
*गिलजई लोगों ने ज़ोरदार तरीक़े से विद्रोह किया, किंतु [[अंग्रेज़]] फ़ौज द्वारा इसे दबा दिया गया।
*वर्ष 1841 ई. में गिलजाई कबीले के लोगों ने फिर से विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया। इसके फलस्वरूप 1841-42 ई. में [[काबुल]] से [[जलालाबाद]] वापस आने वाली ब्रिटिश फ़ौज को बहुत हानि उठानी पड़ी।
*[[वर्ष]] 1841 ई. में गिलजई कबीले के लोगों ने फिर से विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया। इसके फलस्वरूप 1841-42 ई. में [[काबुल]] से [[जलालाबाद]] वापस आने वाली ब्रिटिश फ़ौज को बहुत हानि उठानी पड़ी।




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गिलजई एक अफ़ग़ान कबीले का नाम है, जिसने वर्ष 1840 ई. में अफ़ग़ानिस्तान पर चढ़ाई करने वाली ब्रिटिश सेना की दुर्बल स्थिति का लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया था।[1]

  • गिलजई लोगों ने ज़ोरदार तरीक़े से विद्रोह किया, किंतु अंग्रेज़ फ़ौज द्वारा इसे दबा दिया गया।
  • वर्ष 1841 ई. में गिलजई कबीले के लोगों ने फिर से विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया। इसके फलस्वरूप 1841-42 ई. में काबुल से जलालाबाद वापस आने वाली ब्रिटिश फ़ौज को बहुत हानि उठानी पड़ी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |लिंक:- [127]

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