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'''कायस्थ''' की गणना उच्च जाति के [[हिन्दू|हिन्दुओं]] में होती है। [[बंगाल]] में वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत उनका स्थान [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के बाद माना जाता है। बहुत से विद्वानों का मत है कि, बंगाल के कायस्थ मुख्य रूप से [[क्षत्रिय]] थे और उन्होंने तलवार के स्थान पर कलम ग्रहण कर ली तथा लिपिक बन गये। जैसोर का राजा प्रतापदित्य, चन्द्रदीप का राजा कन्दर्पनारायण तथा विक्रमपुर ([[ढाका]]) का केदार राम, जिसने [[अकबर]] का प्रबल विरोध किया था, अनेक वर्षों तक [[मुग़ल|मुग़लों]] को बंगाल पर अधिकार करने नहीं दिया, सभी कायस्थ थे।
'''कायस्थ''' की गणना उच्च जाति के [[हिन्दू|हिन्दुओं]] में होती है। [[बंगाल]] में वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत उनका स्थान [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के बाद माना जाता है। बहुत से विद्वानों का मत है कि, बंगाल के कायस्थ मुख्य रूप से [[क्षत्रिय]] थे और उन्होंने तलवार के स्थान पर कलम ग्रहण कर ली तथा लिपिक बन गये। [[जैसोर]] का राजा प्रतापदित्य, चन्द्रदीप का राजा कन्दर्पनारायण तथा [[विक्रमपुर]] ([[ढाका]]) का केदार राम, जिसने [[अकबर]] का प्रबल विरोध किया था, अनेक वर्षों तक [[मुग़ल|मुग़लों]] को बंगाल पर अधिकार करने नहीं दिया, सभी कायस्थ थे।
==प्रकार==
==प्रकार==
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12:25, 31 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

कायस्थ की गणना उच्च जाति के हिन्दुओं में होती है। बंगाल में वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत उनका स्थान ब्राह्मणों के बाद माना जाता है। बहुत से विद्वानों का मत है कि, बंगाल के कायस्थ मुख्य रूप से क्षत्रिय थे और उन्होंने तलवार के स्थान पर कलम ग्रहण कर ली तथा लिपिक बन गये। जैसोर का राजा प्रतापदित्य, चन्द्रदीप का राजा कन्दर्पनारायण तथा विक्रमपुर (ढाका) का केदार राम, जिसने अकबर का प्रबल विरोध किया था, अनेक वर्षों तक मुग़लों को बंगाल पर अधिकार करने नहीं दिया, सभी कायस्थ थे।

प्रकार

कायस्थों को वेदों और पुराणों के अनुसार एक दोहरी जाति का दर्जा दिया गया है। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में फैले हुए हैं, और ऊपरी गंगा क्षेत्र में ब्राह्मण और बाकी में क्षत्रिय माने जाते हैं।[1] कायस्थ को निम्न भागों में बांटा गया है-

  1. चित्रगुप्त कायस्थ - 'चित्रंशी' या 'ब्रह्म कायस्थ' या 'कायस्थ ब्राह्मण'
  2. चन्द्रसेनीय कायस्थ प्रभु - 'राजन्य क्षत्रिय कायस्थ'
  3. मिश्रित रक्त के कायस्थ - वे क्षत्रिय हैं, अदालत के अनुसार{संदर्भ ?}

इनके अतिरिक्त चतुर्थ प्रकार, उन गणों का है, जो रक्त से नहीं, किंतु नाम या कार्य से कायस्थ कहे जाते हैं।[2]

कायस्थ ब्राह्मण

उपर्युक्त वर्गों में पहला वर्ग ही 'कायस्थ ब्राह्मण' कहलाता है। यही वह ऐतिहासिक वर्ग है, जो चित्रगुप्त का वंशज है। इसी वर्ग कि चर्चा सबसे पुराने पुराण और वेद करते हैं। यह वर्ग 12 उपवर्गो में विभजित किया गया है। यह 12 वर्ग चित्रगुप्त की पत्नियों देवी, शोभावति और देवी नन्दिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर है। कायस्थों के इस वर्ग की उपस्थिती वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है। प्रायः कायस्थ शब्द का प्रयोग अन्य कायस्थ वर्गों के लिये होने के कारण भ्रम की स्थिति हो जाती है, ऐसे समय इस बात का ज्ञान कर लेना चाहिये कि, क्या बात 'चित्रंशी' या 'चित्रगुप्तवंशी' कायस्थ की हो रही है या अन्य किसी वर्ग की।[1]

पौराणिक उत्पत्त्ति

कायस्थों का जन्मदाता भगवान 'चित्रगुप्त' महाराज को माना जाता है। माना जाता है कि, ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। तब यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने के लिए सहायता मांगी। तब ब्रह्मा 11000 वर्षों के लिये ध्यान-साधना मे लीन हो गये और जब उन्होंने आँखे खोलीं, तो एक पुरुष को अपने सामने स्याही-दवात तथा कमर मे तलवार बाँधे पाया। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि, 'हे पुरुष! क्योकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिये तुम्हारी संतानो को कायस्थ कहा जाएगा, और जैसा कि तुम मेरे चित्र[3] मे गुप्त[4] थे, इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त कहा जाएगा।'

शाखाएँ

कायस्थ ब्राह्मणों की 12 शाखाएँ बताई गयी हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  1. माथुर
  2. गौड़
  3. भटनागर
  4. सक्सेना
  5. अम्बष्ठ
  6. निगम
  7. कर्ण
  8. कुलश्रेष्ठ
  9. श्रीवास्तव
  10. सुरध्वजा
  11. वाल्मीक
  12. अस्थाना


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कायस्थ ब्राह्मण (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 जनवरी, 2012।
  2. (वैदिक संस्कृत में केवल कायस्थ शब्द मुख्यतः 'चित्रगुप्त कायस्थ' के लिये प्रयोग किया जाता है)
  3. शरीर
  4. विलीन

संबंधित लेख