"पानीपत युद्ध तृतीय": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (Adding category Category:मध्य काल (को हटा दिया गया हैं।)) |
No edit summary |
||
(8 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 21 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''पानीपत का तृतीय युद्ध | [[चित्र:The-Third-Battle-Of-Panipat.jpg|thumb|250px|पानीपत का तृतीय युद्ध]] | ||
'''पानीपत का तृतीय युद्ध''' [[14 जनवरी]], 1761 ई. को [[अफ़ग़ान]] आक्रमणकारी [[अहमदशाह अब्दाली]] और [[मुग़ल]] बादशाह [[शाहआलम द्वितीय]] के संरक्षक और सहायक [[मराठा|मराठों]] के बीच लड़ा गया था। इस लड़ाई में मराठा सेनापति [[सदाशिवराव भाऊ]] अफ़ग़ान सेनापति अब्दाली से लड़ाई के दाँव-पेचों में मात खा गया। पानीपत का तृतीय युद्ध मुख्यतः दो कारणों का परिणाम था - पहला, [[नादिरशाह]] की तरह अहमदशाह अब्दाली भी [[भारत]] को लूटना चाहता था, दूसरे, मराठे 'हिन्दूपद पादशाही' की भावना से ओत-प्रोत होकर [[दिल्ली]] को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। | |||
{{tocright}} | |||
==मल्हारराव की कायरता== | |||
[[14 जनवरी]], 1761 को इस युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व [[सदाशिवराव भाऊ]] ने किया, जबकि [[विश्वासराव]] नाममात्र का सेनापति था। यूरोपीय तकनीक पर आधारित मराठों की पैदल सेना एवं तोपखाने की टुकड़ी की कमान [[इब्राहिम ख़ाँ गार्दी]] के हाथों में थी। प्रारम्भिक सफलता के अतिरिक्त युद्ध का समस्त परिणाम मराठों के लिए भयानक रहा। [[मल्हारराव होल्कर]] युद्ध के बीच में ही भाग निकला और [[मराठा]] फ़ौज पूरी तरह से उखड़ गयी। विश्वासराव एवं सदाशिवराव भाऊ के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण मराठे सैनिक इस युद्ध में मारे गये। इस बारे में इतिहासकार 'जे.एन. सरकार' ने सच ही लिखा है कि - | |||
[[ | '[[महाराष्ट्र]] में सम्भवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिसने कोई न कोई सगा सम्बन्धी न खोया हो, तथा कुछ परिवारों का तो विनाश ही हो गया।' | ||
पानीपत की | पानीपत की लड़ाई में भाग लेने आए सदाशिवराम राजा भाऊ की सेना ने [[पानीपत]] से लगभग सात किलोमीटर दूर जाटल रोड पर बसे गांव भादौड़ में पड़ाव डाला था तथा राजा भाऊ ने शिव के चमत्कार से प्रभावित होकर [[प्रगटेश्वर महादेव| प्रगटेश्वर महादेव मंदिर]] की स्थापना की। | ||
{{seealso|प्रगटेश्वर महादेव}} | |||
पानीपत की | ==मराठा पराजय के कारण== | ||
पानीपत के इस युद्ध में मराठों की पराजय के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार थे- | |||
#[[अहमदशाह अब्दाली]] की सेना, सदाशिवराव भाऊ की सेना से अधिक थी। | |||
#उत्तर [[भारत]] की सभी [[मुसलमान]] शक्तियाँ अब्दाली के साथ थीं। | |||
#इस युद्ध के पूर्व में मराठों ने [[राजपूत]], [[जाट]] तथा [[सिक्ख|सिक्खों]] को हर प्रकार से लूटा तथा बरबाद किया था। इसीलिए इन लोगों ने मराठों का साथ नहीं दिया। | |||
#मराठा सरदारों के आपसी मतभेद भी काफ़ी हद तक बढ़ चुके थे। | |||
#मराठों के सैनिक शिविर में अकाल की स्थिति थी। सैनिकों के लिए पर्याप्त रसद का इंतजाम नहीं था। | |||
#सैनिक संगठन की दृष्टि से अब्दाली पूरी तरह से श्रेष्ठ संगठनकर्ता था। | |||
==इतिहासकारों के मत== | |||
पानीपत के तृतीय युद्ध के प्रभाव के बारे में जहाँ एक तरफ़ मराठा इतिहासकारों का मानना है कि, केवल 75,000 सैनिकों की हानि के अतिरिक्त मराठों ने कुछ भी नहीं खोया, वहीं दूसरी ओर 'जी.एस. सरदेसाई' का मानना है कि, ‘पानीपत का युद्ध मराठों की अभूतपूर्ण क्षति है।’ पानीपत के तृतीय युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी 'काशीराज पंडित' के शब्दों में- 'पानीपत का तृतीय युद्ध मराठों के लिए प्रलयकारी सिद्ध हुआ। | |||
==विश्लेषण== | |||
वस्तुतः पानीपत के इस युद्ध ने यह निर्णय नहीं दिया, कि [[भारत]] पर कौन राज्य करेगा, अपितु यह तय कर दिया, कि भारत पर कौन शासन नहीं करेगा। मराठों की पराजय के बाद ब्रिटिश सत्ता के उदय का रास्ता क़रीब-क़रीब साफ़ हो गया। अप्रत्यक्ष रूप से सिक्खों को भी मराठों की पराजय से फ़ायदा हुआ। इस युद्ध ने [[मुग़ल]] सम्राट को लगभग निर्जीव सा कर दिया, जैसा कि बाद के कुछ वर्ष सिद्ध करते हैं। पानीपत के युद्ध के सदमें को न सह पाने के कारण [[बालाजी बाजीराव]] की कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों के पराजय की सूचना बालाजी बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कूट सन्देश के रूप में पहुँचायी गयी थी, जिसमें कहा गया कि, 'दो माती विलीन हो गये, बाइस [[सोना|सोने]] की मुहरें लुप्त हो गईं और [[चांदी]] तथा [[ताँबा|तांबे]] की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती।' | |||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 31: | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
==संबंधित लेख== | |||
[[Category:मुग़ल साम्राज्य]][[Category:मराठा साम्राज्य]] | {{मराठा साम्राज्य}} | ||
{{मध्य काल}} | |||
[[Category:मुग़ल साम्राज्य]][[Category:मराठा साम्राज्य]][[Category:जाट-मराठा काल]] | |||
[[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:इतिहास कोश]] | ||
[[Category:मध्य काल]] | [[Category:मध्य काल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
11:39, 5 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी, 1761 ई. को अफ़ग़ान आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली और मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय के संरक्षक और सहायक मराठों के बीच लड़ा गया था। इस लड़ाई में मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ अफ़ग़ान सेनापति अब्दाली से लड़ाई के दाँव-पेचों में मात खा गया। पानीपत का तृतीय युद्ध मुख्यतः दो कारणों का परिणाम था - पहला, नादिरशाह की तरह अहमदशाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था, दूसरे, मराठे 'हिन्दूपद पादशाही' की भावना से ओत-प्रोत होकर दिल्ली को अपने अधिकार में लेना चाहते थे।
मल्हारराव की कायरता
14 जनवरी, 1761 को इस युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व सदाशिवराव भाऊ ने किया, जबकि विश्वासराव नाममात्र का सेनापति था। यूरोपीय तकनीक पर आधारित मराठों की पैदल सेना एवं तोपखाने की टुकड़ी की कमान इब्राहिम ख़ाँ गार्दी के हाथों में थी। प्रारम्भिक सफलता के अतिरिक्त युद्ध का समस्त परिणाम मराठों के लिए भयानक रहा। मल्हारराव होल्कर युद्ध के बीच में ही भाग निकला और मराठा फ़ौज पूरी तरह से उखड़ गयी। विश्वासराव एवं सदाशिवराव भाऊ के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण मराठे सैनिक इस युद्ध में मारे गये। इस बारे में इतिहासकार 'जे.एन. सरकार' ने सच ही लिखा है कि -
'महाराष्ट्र में सम्भवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिसने कोई न कोई सगा सम्बन्धी न खोया हो, तथा कुछ परिवारों का तो विनाश ही हो गया।'
पानीपत की लड़ाई में भाग लेने आए सदाशिवराम राजा भाऊ की सेना ने पानीपत से लगभग सात किलोमीटर दूर जाटल रोड पर बसे गांव भादौड़ में पड़ाव डाला था तथा राजा भाऊ ने शिव के चमत्कार से प्रभावित होकर प्रगटेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की। इन्हें भी देखें: प्रगटेश्वर महादेव
मराठा पराजय के कारण
पानीपत के इस युद्ध में मराठों की पराजय के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार थे-
- अहमदशाह अब्दाली की सेना, सदाशिवराव भाऊ की सेना से अधिक थी।
- उत्तर भारत की सभी मुसलमान शक्तियाँ अब्दाली के साथ थीं।
- इस युद्ध के पूर्व में मराठों ने राजपूत, जाट तथा सिक्खों को हर प्रकार से लूटा तथा बरबाद किया था। इसीलिए इन लोगों ने मराठों का साथ नहीं दिया।
- मराठा सरदारों के आपसी मतभेद भी काफ़ी हद तक बढ़ चुके थे।
- मराठों के सैनिक शिविर में अकाल की स्थिति थी। सैनिकों के लिए पर्याप्त रसद का इंतजाम नहीं था।
- सैनिक संगठन की दृष्टि से अब्दाली पूरी तरह से श्रेष्ठ संगठनकर्ता था।
इतिहासकारों के मत
पानीपत के तृतीय युद्ध के प्रभाव के बारे में जहाँ एक तरफ़ मराठा इतिहासकारों का मानना है कि, केवल 75,000 सैनिकों की हानि के अतिरिक्त मराठों ने कुछ भी नहीं खोया, वहीं दूसरी ओर 'जी.एस. सरदेसाई' का मानना है कि, ‘पानीपत का युद्ध मराठों की अभूतपूर्ण क्षति है।’ पानीपत के तृतीय युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी 'काशीराज पंडित' के शब्दों में- 'पानीपत का तृतीय युद्ध मराठों के लिए प्रलयकारी सिद्ध हुआ।
विश्लेषण
वस्तुतः पानीपत के इस युद्ध ने यह निर्णय नहीं दिया, कि भारत पर कौन राज्य करेगा, अपितु यह तय कर दिया, कि भारत पर कौन शासन नहीं करेगा। मराठों की पराजय के बाद ब्रिटिश सत्ता के उदय का रास्ता क़रीब-क़रीब साफ़ हो गया। अप्रत्यक्ष रूप से सिक्खों को भी मराठों की पराजय से फ़ायदा हुआ। इस युद्ध ने मुग़ल सम्राट को लगभग निर्जीव सा कर दिया, जैसा कि बाद के कुछ वर्ष सिद्ध करते हैं। पानीपत के युद्ध के सदमें को न सह पाने के कारण बालाजी बाजीराव की कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों के पराजय की सूचना बालाजी बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कूट सन्देश के रूप में पहुँचायी गयी थी, जिसमें कहा गया कि, 'दो माती विलीन हो गये, बाइस सोने की मुहरें लुप्त हो गईं और चांदी तथा तांबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती।'
|
|
|
|
|