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*उसके विषय में कहा जाता है कि उसने [[उज्जयिनी]] में हरिण्यगर्भ (महादान) यज्ञ किया था। | *उसके विषय में कहा जाता है कि उसने [[उज्जयिनी]] में हरिण्यगर्भ ([[महादान]]) यज्ञ किया था। | ||
*उसने चालुक्य नरेश कीर्तिवर्मन द्वितीय को एक युद्ध में पराजित किया था। | *उसने चालुक्य नरेश कीर्तिवर्मन द्वितीय को एक युद्ध में पराजित किया था। | ||
*उसने महाराजधिराज परमेश्वर, परमभट्टारक आदि उपाधियां धारण की थी। | *उसने महाराजधिराज परमेश्वर, परमभट्टारक आदि उपाधियां धारण की थी। |
11:03, 15 मार्च 2011 का अवतरण
- राष्ट्रकूट वंश की स्थापना 736 ई. में दंतिदुर्ग ने की थी। राष्ट्रकूट वंश के उत्कर्ष का प्रारम्भ दन्तिदुर्ग द्वारा हुआ।
- किंतु उससे पहले भी इस वंश के राज्य की सत्ता थी, यद्यपि उस समय इसका राज्य स्वतंत्र नहीं था।
- सम्भवतः वह चालुक्य साम्राज्य के अंतर्गत था।
- उसने माल्यखेत या मालखंड को अपनी राजधानी बनाया। उसने कांची, कलिंग, कोशल, श्रीशैल, मालवा, लाट एवं टंक पर विजय प्राप्त कर राष्ट्रकूट साम्राज्य को विस्तृत बनाया।
- उसके विषय में कहा जाता है कि उसने उज्जयिनी में हरिण्यगर्भ (महादान) यज्ञ किया था।
- उसने चालुक्य नरेश कीर्तिवर्मन द्वितीय को एक युद्ध में पराजित किया था।
- उसने महाराजधिराज परमेश्वर, परमभट्टारक आदि उपाधियां धारण की थी।
- चालुक्य शासक विक्रमादित्य ने उसे पृथ्वी वल्लभ या खड़वालोक की उपाधि दी थी।
- दन्तिदुर्ग ने न केवल अपने राज्य को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त ही किया, अपितु अपनी राजधानी मान्यखेट (मानखेट) से अन्यत्र जाकर दूर-दूर तक के प्रदेशों की विजय भी की।
- उत्कीर्ण लेखों में दन्तिदुर्ग द्वारा विजित प्रदेशों में काञ्जी, मालवा और लाट को अंतर्गत किया गया है।
- कोशल का अभिप्राय सम्भवतः 'महाकोशल' है। महाकोशल, मालवा और लाट (गुजरात) को जीतकर वह निःसन्देह दक्षिणापथपति बन गया था, क्योंकि महाराष्ट्र में तो उसका शासन था ही।
- काञ्जी की विजय के कारण दक्षिणी भारत का पल्लव राज्य भी उसकी अधीनता में आ गया था। जो प्रदेश वातापी चालुक्यों सम्राटों की अधीनता में थे, प्रायः वे सब अब दन्तिदुर्ग के आधिपत्य में आ गए थे।
- दक्षिणापथ के क्षेत्र में राष्ट्रकूट वंश चालुक्यों का उत्तराधिकारी बन गया था।
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