"वैश्य": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
{{जातियाँ और जन जातियाँ}}
{{जातियाँ और जन जातियाँ}}
[[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]]
[[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]]
[[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:त्वरित निवारण]]
__INDEX__
__INDEX__

06:48, 8 दिसम्बर 2011 का अवतरण

हिंदुओं की वर्ण व्यवस्था में वैश्य का तीसरा स्थान है। वैश्य वर्ण के लोग मुख्यतया वाणिज्य व्यवसाय और कृषि करते थे। हिंदुओं की जाति व्यवस्था के अंतर्गत वैश्य वर्णाश्रम का तीसरा महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। इस वर्ग में मुख्य रूप से भारतीय समाज के किसान, पशुपालक, और व्यापारी समुदाय शामिल है। अर्थ की दृष्टि से इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है जिसका मूल अर्थ "बसना" होता है। मनु के मनुस्मृति के अनुसार वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर यानि पेट से हुई है। ब्रह्मा जी से पैदा होने वाले ब्राह्मण कहलाए, विष्णु से पैदा होने वाले वैश्य, शंकर जी से पैदा होने वाले क्षत्रिय, इसलिये आज भी ब्राह्मण अपनी माता सरस्वती, वैश्य लक्ष्मी, क्षत्रिय माँ दुर्गे की पूजा करते है।

यह भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


भट्टाचार्य, सच्चिदानंद भारतीय इतिहास कोश (हिंदी)। लखनऊ: उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, 442।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख