"पुक्कुस": अवतरणों में अंतर
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*[[बुद्ध]] अपने भिक्षुओं को निर्देश देते हैं कि, वे भिक्षुओं की पूर्व जाति, सिप्प, कम्म आदि का हवाला देकर उन्हें अपमानित न करें और इस प्रकार संघ में भेदभाव उत्पन्न न करें। | *[[बुद्ध]] अपने भिक्षुओं को निर्देश देते हैं कि, वे भिक्षुओं की पूर्व जाति, सिप्प, कम्म आदि का हवाला देकर उन्हें अपमानित न करें और इस प्रकार संघ में भेदभाव उत्पन्न न करें। | ||
*'पुल्कस' और 'पुक्कुस' ऐसी आदिम जाति के ज्ञात होते हैं, जो शिकार करके या [[बांस]] की वस्तुएँ बनाकर जीवन-यापन करते थे। | *'पुल्कस' और 'पुक्कुस' ऐसी आदिम जाति के ज्ञात होते हैं, जो शिकार करके या [[बांस]] की वस्तुएँ बनाकर जीवन-यापन करते थे। | ||
*धीरे-धीरे इस जाति को [[ब्राह्मण]] कालीन समाज में | *धीरे-धीरे इस जाति को [[ब्राह्मण]] कालीन समाज में ख़ास-खास ढंग के कार्यों के लिए रखा लिया गया, यथा मन्दिर और राजमहल से [[फूल|फूलों]] को हटाना। | ||
*फुल हटाने के लिए वे मन्दिर के प्रसंग में प्रवेश कर सकते थे, जिससे पता चलता है कि, वे चंडाल जैसे अधम नहीं माने जाते थे।<ref>शर्मा, रामशरण, शूद्रों का प्राचीन इतिहास।</ref> | *फुल हटाने के लिए वे मन्दिर के प्रसंग में प्रवेश कर सकते थे, जिससे पता चलता है कि, वे चंडाल जैसे अधम नहीं माने जाते थे।<ref>शर्मा, रामशरण, शूद्रों का प्राचीन इतिहास।</ref> | ||
13:23, 1 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
पुक्कुस एक प्राचीन जाति का नाम है, जिसकी धर्मशास्त्रों में चर्चा बार-बार हुई है। इस जाति के लोगों को निम्न कुल और हीन जाति का बताया गया है। इस जाति के लोग निचले स्तर के कार्य किया करते थे। जनता का मनोरंजन आदि करना भी इनका एक पेशा था।
- हीन व्यवसायों, कार्यों और जातियों की गणना मूलत: मौर्यपूर्व काल की मानी जाती है।
- बुद्ध अपने भिक्षुओं को निर्देश देते हैं कि, वे भिक्षुओं की पूर्व जाति, सिप्प, कम्म आदि का हवाला देकर उन्हें अपमानित न करें और इस प्रकार संघ में भेदभाव उत्पन्न न करें।
- 'पुल्कस' और 'पुक्कुस' ऐसी आदिम जाति के ज्ञात होते हैं, जो शिकार करके या बांस की वस्तुएँ बनाकर जीवन-यापन करते थे।
- धीरे-धीरे इस जाति को ब्राह्मण कालीन समाज में ख़ास-खास ढंग के कार्यों के लिए रखा लिया गया, यथा मन्दिर और राजमहल से फूलों को हटाना।
- फुल हटाने के लिए वे मन्दिर के प्रसंग में प्रवेश कर सकते थे, जिससे पता चलता है कि, वे चंडाल जैसे अधम नहीं माने जाते थे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 495 |
- ↑ शर्मा, रामशरण, शूद्रों का प्राचीन इतिहास।