"तुम्हारे शहर से जाने का मन है -दिनेश रघुवंशी": अवतरणों में अंतर
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मिलेंगे अब कहाँ अपने, जगेंगे क्या नए सपने | मिलेंगे अब कहाँ अपने, जगेंगे क्या नए सपने | ||
बुझेगी अब कहाँ पर तिश्नगी ये किसलिए सोचें | बुझेगी अब कहाँ पर तिश्नगी ये किसलिए सोचें | ||
चलो खुद सौंप आएँ | चलो खुद सौंप आएँ ज़िन्दगी के हाथ में खुद को | ||
कहाँ ले जाएगी फिर जिंदगी ये किसलिए सोचें | कहाँ ले जाएगी फिर जिंदगी ये किसलिए सोचें | ||
नये रस्ते, नये हमदम, नई मंजिल, नई दुनिया | नये रस्ते, नये हमदम, नई मंजिल, नई दुनिया | ||
भले हो इम्तिहां कितने, कोई अब गम नहीं होंगे | भले हो इम्तिहां कितने, कोई अब गम नहीं होंगे | ||
सफ़र यूँ | सफ़र यूँ ज़िन्दगी का रोज कम होता रहे तो भी | ||
सफ़र जिन्दादिली का उम्रभर अब कम नहीं होगा | सफ़र जिन्दादिली का उम्रभर अब कम नहीं होगा | ||
10:53, 3 जून 2012 का अवतरण
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तुम्हारे शहर से जाने का मन है |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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