"माहिष्मती": अवतरणों में अंतर
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'''माहिष्मति''' [[मध्य प्रदेश]] के [[खरगौन ज़िला|खरगौन ज़िले]] में स्थित धार्मिक नगर '[[महेश्वर (मध्य प्रदेश)|महेश्वर]]' का प्राचीन नाम। | |||
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[[चेदि]] | [[चेदि जनपद]] की राजधानी 'माहिष्मति'<ref>[[पाली]] 'माहिस्सती'</ref>, जो [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के तट पर स्थित थी, इसका अभिज्ञान [[इंदौर ज़िला|ज़िला इंदौर]], [[मध्य प्रदेश]] में स्थित '[[महेश्वर]]' नामक स्थान से किया गया है, जो पश्चिम रेलवे के [[अजमेर]]-[[खंडवा]] मार्ग पर बड़वाहा स्टेशन से 35 मील दूर है। [[महाभारत]] के समय यहाँ राजा नील का राज्य था, जिसे [[सहदेव]] ने युद्ध में परास्त किया था<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=742|url=}}</ref>- | ||
<blockquote>'ततो रत्नान्युपादाय पुरीं माहिष्मतीं ययौ। तत्र नीलेन राज्ञा स चक्रे युद्धं नरर्षभ:।'<ref>[[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 32,21</ref></blockquote> | |||
राजा नील महाभारत के युद्ध में [[कौरव|कौरवों]] की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। [[बौद्ध साहित्य]] में माहिष्मति को दक्षिण-अवंति जनपद का मुख्य नगर बताया गया है। बुद्ध काल में यह नगरी समृद्धिशाली थी तथा व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात थी। तत्पश्चात [[उज्जयिनी]] की प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ-साथ इस नगरी का गौरव कम होता गया। फिर भी [[गुप्त काल]] में 5वीं शती तक माहिष्मति का बराबर उल्लेंख मिलता है। [[कालिदास]] ने '[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]' में [[इंदुमती]] के [[स्वयंवर]] के प्रसंग में नर्मदा तट पर स्थित माहिष्मति का वर्णन किया है और यहाँ के राजा का नाम 'प्रतीप' बताया है- | |||
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इस उल्लेख में माहिष्मती नगरी के परकोटे के नीचे कांची या मेखला की भाति सुशोभित [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] का सुंदर वर्णन है। | |||
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माहिष्मति नरेश को [[कालिदास]] ने अनूपराज भी कहा है,<ref>रघुवंश 6,37</ref> जिससे ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में माहिष्मति का प्रदेश [[नर्मदा नदी]] के तट के निकट होने के कारण अनूप<ref>[[जल]] के निकट स्थित</ref> कहलाता था। पौराणिक कथाओं में माहिष्मति को [[हैहय वंश|हैहय वंशीय]] [[कार्तवीर्य अर्जुन]] अथवा सहस्त्रबाहु की राजधानी बताया गया है। किंवदंती है कि इसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था।<ref name="aa"/> | |||
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चीनी यात्री [[हुएन-सांग|युवानच्वांग]], 640 ई. के लगभग इस स्थान पर आया था। उसके लेख के अनुसार उस समय माहिष्मति में एक [[ब्राह्मण]] राजा राज्य करता था। [[अनुश्रुति]] है कि [[शंकराचार्य]] से शास्त्रार्थ करने वाले मंडन मिश्र तथा उनकी पत्नी भारती माहिष्मति के ही निवासी थे। कहा जाता है कि [[महेश्वर]] के निकट 'मंडलेश्वर' नामक बस्ती मंडन मिश्र के नाम पर ही विख्यात है। माहिष्मति में मंडन मिश्र के समय [[संस्कृत]] विद्या का अभूतपूर्व केंद्र था। | |||
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महेश्वर में [[इंदौर]] की महारानी [[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्याबाई]] ने नर्मदा के उत्तरी तट पर अनेक घाट बनवाए थे, जो आज भी वर्तमान हैं। यह धर्मप्राणरानी 1767 के पश्चात इंदौर छोड़कर प्राय: इसी पवित्र स्थल पर रहने लगी थीं। नर्मदा के तट पर अहिल्याबाई तथा [[होल्कर वंश]] के नरेशों की कई छतरियां बनी हैं। ये वास्तुकला की दृष्टि से प्राचीन [[हिन्दू]] मंदिरों के स्थापत्य की अनुकृति हैं। भूतपूर्व इंदौर रियासत की आद्य राजधानी यहीं थी। एक पौराणिक अनुश्रुति में कहा गया है कि माहिष्मति का बसाने वाला 'महिष्मानस' नामक [[चंद्रवंश|चंद्रवंशी]] नरेश था। सहस्त्रबाहु इन्हीं के वंश में हुआ था। महेश्वरी नामक नदी जो माहिष्मति अथवा महिष्मान के नाम पर प्रसिद्ध है, महेश्वर से कुछ ही दूर पर नर्मदा में मिलती है। [[हरिवंश पुराण]]<ref>हरिवंश पुराण 7,19</ref> की [[टीका]] में नीलकंठ ने माहिष्मति की स्थिति विंध्य और ऋक्ष पर्वतों के बीच में विंध्य के उत्तर में और ऋक्ष के दक्षिण में बताई है।<ref name="aa"/> | |||
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09:53, 31 अगस्त 2014 का अवतरण
माहिष्मति मध्य प्रदेश के खरगौन ज़िले में स्थित धार्मिक नगर 'महेश्वर' का प्राचीन नाम।
इतिहास
चेदि जनपद की राजधानी 'माहिष्मति'[1], जो नर्मदा के तट पर स्थित थी, इसका अभिज्ञान ज़िला इंदौर, मध्य प्रदेश में स्थित 'महेश्वर' नामक स्थान से किया गया है, जो पश्चिम रेलवे के अजमेर-खंडवा मार्ग पर बड़वाहा स्टेशन से 35 मील दूर है। महाभारत के समय यहाँ राजा नील का राज्य था, जिसे सहदेव ने युद्ध में परास्त किया था[2]-
'ततो रत्नान्युपादाय पुरीं माहिष्मतीं ययौ। तत्र नीलेन राज्ञा स चक्रे युद्धं नरर्षभ:।'[3]
राजा नील महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। बौद्ध साहित्य में माहिष्मति को दक्षिण-अवंति जनपद का मुख्य नगर बताया गया है। बुद्ध काल में यह नगरी समृद्धिशाली थी तथा व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात थी। तत्पश्चात उज्जयिनी की प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ-साथ इस नगरी का गौरव कम होता गया। फिर भी गुप्त काल में 5वीं शती तक माहिष्मति का बराबर उल्लेंख मिलता है। कालिदास ने 'रघुवंश' में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में नर्मदा तट पर स्थित माहिष्मति का वर्णन किया है और यहाँ के राजा का नाम 'प्रतीप' बताया है-
'अस्यांकलक्ष्मीभवदीर्घबाहो माहिष्मतीवप्रनितंबकांचीम् प्रासाद-जालैर्जलवेणि रम्यां रेवा यदि प्रेक्षितुमस्तिकाम:।'[4]
इस उल्लेख में माहिष्मती नगरी के परकोटे के नीचे कांची या मेखला की भाति सुशोभित नर्मदा का सुंदर वर्णन है।
कालिदास का उल्लेख
माहिष्मति नरेश को कालिदास ने अनूपराज भी कहा है,[5] जिससे ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में माहिष्मति का प्रदेश नर्मदा नदी के तट के निकट होने के कारण अनूप[6] कहलाता था। पौराणिक कथाओं में माहिष्मति को हैहय वंशीय कार्तवीर्य अर्जुन अथवा सहस्त्रबाहु की राजधानी बताया गया है। किंवदंती है कि इसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था।[2]
युवानच्वांग के अनुसार
चीनी यात्री युवानच्वांग, 640 ई. के लगभग इस स्थान पर आया था। उसके लेख के अनुसार उस समय माहिष्मति में एक ब्राह्मण राजा राज्य करता था। अनुश्रुति है कि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाले मंडन मिश्र तथा उनकी पत्नी भारती माहिष्मति के ही निवासी थे। कहा जाता है कि महेश्वर के निकट 'मंडलेश्वर' नामक बस्ती मंडन मिश्र के नाम पर ही विख्यात है। माहिष्मति में मंडन मिश्र के समय संस्कृत विद्या का अभूतपूर्व केंद्र था।
वास्तुकला
महेश्वर में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने नर्मदा के उत्तरी तट पर अनेक घाट बनवाए थे, जो आज भी वर्तमान हैं। यह धर्मप्राणरानी 1767 के पश्चात इंदौर छोड़कर प्राय: इसी पवित्र स्थल पर रहने लगी थीं। नर्मदा के तट पर अहिल्याबाई तथा होल्कर वंश के नरेशों की कई छतरियां बनी हैं। ये वास्तुकला की दृष्टि से प्राचीन हिन्दू मंदिरों के स्थापत्य की अनुकृति हैं। भूतपूर्व इंदौर रियासत की आद्य राजधानी यहीं थी। एक पौराणिक अनुश्रुति में कहा गया है कि माहिष्मति का बसाने वाला 'महिष्मानस' नामक चंद्रवंशी नरेश था। सहस्त्रबाहु इन्हीं के वंश में हुआ था। महेश्वरी नामक नदी जो माहिष्मति अथवा महिष्मान के नाम पर प्रसिद्ध है, महेश्वर से कुछ ही दूर पर नर्मदा में मिलती है। हरिवंश पुराण[7] की टीका में नीलकंठ ने माहिष्मति की स्थिति विंध्य और ऋक्ष पर्वतों के बीच में विंध्य के उत्तर में और ऋक्ष के दक्षिण में बताई है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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