"नूरजहाँ (गायिका)": अवतरणों में अंतर
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'''नूरजहाँ''' (जन्म- [[21 सितम्बर]], [[1926]], [[पंजाब]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[23 दिसम्बर]], [[2000]], [[कराची]], [[पाकिस्तान]]) '[[भारतीय सिनेमा]]' की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री और पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। उनका वास्तविक नाम 'अल्ला वसई' था। दक्षिण एशिया की महानतम गायिकाओं में शुमार की जाने वाली 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ को लोकप्रिय [[संगीत]] में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है। उनकी गायकी में वह जादू था कि हर उदयमान गायक की प्रेरणा स्रोत स्वर साम्राज्ञी [[लता मंगेशकर]] ने भी जब अपने करियर का आगाज किया तो उन पर नूरजहाँ की गायकी का प्रभाव था। नूरजहाँ अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। अपनी इन खूबियों की वजह से ही वे '''ठुमरी गायिकी की महारानी''' कहलाने लगी थीं। नूरजहाँ के गाये हुए गीत- 'तितली उड़ी', 'दुनिया की सैर कर लो', 'चले जाना जरा ठहरो' और 'वो परी कहाँ से लाऊँ' आदि आज भी मन को आनन्दित करते हैं। | '''नूरजहाँ''' (जन्म- [[21 सितम्बर]], [[1926]], [[पंजाब]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[23 दिसम्बर]], [[2000]], [[कराची]], [[पाकिस्तान]]) '[[भारतीय सिनेमा]]' की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री और पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। उनका वास्तविक नाम 'अल्ला वसई' था। दक्षिण एशिया की महानतम गायिकाओं में शुमार की जाने वाली 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ को लोकप्रिय [[संगीत]] में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है। उनकी गायकी में वह जादू था कि हर उदयमान गायक की प्रेरणा स्रोत स्वर साम्राज्ञी [[लता मंगेशकर]] ने भी जब अपने करियर का आगाज किया तो उन पर नूरजहाँ की गायकी का प्रभाव था। नूरजहाँ अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। अपनी इन खूबियों की वजह से ही वे '''ठुमरी गायिकी की महारानी''' कहलाने लगी थीं। नूरजहाँ के गाये हुए गीत- 'तितली उड़ी', 'दुनिया की सैर कर लो', 'चले जाना जरा ठहरो' और 'वो परी कहाँ से लाऊँ' आदि आज भी मन को आनन्दित करते हैं। | ||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
नूरजहाँ का जन्म 21 सितम्बर, 1926 ई. को ब्रिटिश भारत में [[पंजाब]] के 'कसूर' नामक स्थान पर एक [[मुस्लिम]] परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम मदद अली था और माता फ़तेह बीबी थीं। नूरजहाँ के पिता पेशेवर संगीतकार थे। माता-पिता की ग्यारह संतानों में नूरजहाँ एक थीं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%8F-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE-1091223055_1.htm|title=नूरजहाँ, मल्लिका ए तरन्नुम|accessmonthday=16 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> संगीतकारों के परिवार में जन्मी नूरजहाँ को बचपन से ही [[संगीत]] के प्रति गहरा लगाव था। नूरजहाँ ने पाँच-छह साल की उम्र से ही गायन शुरू कर दिया था। वे किसी भी लोकगीत को सुनने के बाद उसे अच्छी तरह याद कर लिया करती थीं। इसको देखते हुए उनकी माँ ने उन्हें संगीत का प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम किया। उस दौरान उनकी बहन आइदान पहले से ही [[नृत्य]] और गायन का प्रशिक्षण ले रही थीं। | नूरजहाँ का जन्म 21 सितम्बर, 1926 ई. को ब्रिटिश भारत में [[पंजाब]] के 'कसूर' नामक स्थान पर एक [[मुस्लिम]] परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम मदद अली था और माता फ़तेह बीबी थीं। नूरजहाँ के पिता पेशेवर संगीतकार थे। माता-पिता की ग्यारह संतानों में नूरजहाँ एक थीं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE/%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%8F-%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AE-1091223055_1.htm|title=नूरजहाँ, मल्लिका ए तरन्नुम|accessmonthday=16 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> संगीतकारों के परिवार में जन्मी नूरजहाँ को बचपन से ही [[संगीत]] के प्रति गहरा लगाव था। नूरजहाँ ने पाँच-छह साल की उम्र से ही गायन शुरू कर दिया था। वे किसी भी लोकगीत को सुनने के बाद उसे अच्छी तरह याद कर लिया करती थीं। इसको देखते हुए उनकी माँ ने उन्हें संगीत का प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम किया। उस दौरान उनकी बहन आइदान पहले से ही [[नृत्य]] और गायन का प्रशिक्षण ले रही थीं। | ||
==फ़िल्मों में आगमन== | |||
तत्कालीन समय में कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) थिएटर का गढ़ हुआ करता था। वहाँ अभिनय करने वाले कलाकारों, पटकथा लेखकों आदि की काफ़ी माँग थी। इसी को ध्यान में रखकर नूरजहाँ का परिवार [[1930]] के दशक के मध्य में कलकत्ता चला आया। जल्द ही नूरजहाँ और उनकी बहन को वहाँ नृत्य और गायन का अवसर मिल गया। नूरजहाँ की गायकी से प्रभावित होकर संगीतकार गुलाम हैदर ने उन्हें के. डी. मेहरा की पहली पंजाबी फिल्म 'शीला' उर्फ 'पिंड दी कुड़ी' में उन्हें बाल कलाकार की संक्षिप्त भूमिका दिलाई। वर्ष [[1935]] में रिलीज हुई यह फिल्म पूरे [[पंजाब]] में हिट रही। इसने पंजाबी फिल्म उद्योग की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया। फिल्म के गीत बहुत हिट रहे। | |||
====लाहौर प्रस्थान व विवाह==== | |||
1930 के दशक के उत्तरार्ध तक [[लाहौर]] में कई स्टूडियो अस्तित्व में आ गए थे। गायकों की बढ़ती माँग को देखते हुए नूरजहाँ का परिवार [[1937]] में लाहौर आ गया। डलसुख एल पंचोली ने बेबी नूरजहाँ को सुना और 'गुल-ए-बकवाली' फिल्म में उन्हें भूमिका दी। यह फिल्म भी काफ़ी हिट रही और गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उनकी 'यमला जट' ([[1940]]), 'चौधरी' फिल्म प्रदर्शित हुई। इनके गाने 'कचियाँ वे कलियाँ ना तोड़' और 'बस बस वे ढोलना की तेरे नाल बोलना' बहुत लोकप्रिय हुए। वर्ष [[1942]] में नूरजहाँ ने अपने नाम से 'बेबी' शब्द हटा दिया। इसी साल उनकी फिल्म 'खानदान' आई, जिसमें पहली बार उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इसी फिल्म के निर्देशक शौकत हुसैन रिजवी के साथ उन्होंने विवाह कर लिया।<ref name="aa"/> | |||
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13:01, 16 जुलाई 2013 का अवतरण
नूरजहाँ | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- नूरजहाँ (बहुविकल्पी) |
नूरजहाँ (जन्म- 21 सितम्बर, 1926, पंजाब, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 23 दिसम्बर, 2000, कराची, पाकिस्तान) 'भारतीय सिनेमा' की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री और पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। उनका वास्तविक नाम 'अल्ला वसई' था। दक्षिण एशिया की महानतम गायिकाओं में शुमार की जाने वाली 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहाँ को लोकप्रिय संगीत में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है। उनकी गायकी में वह जादू था कि हर उदयमान गायक की प्रेरणा स्रोत स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने भी जब अपने करियर का आगाज किया तो उन पर नूरजहाँ की गायकी का प्रभाव था। नूरजहाँ अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। अपनी इन खूबियों की वजह से ही वे ठुमरी गायिकी की महारानी कहलाने लगी थीं। नूरजहाँ के गाये हुए गीत- 'तितली उड़ी', 'दुनिया की सैर कर लो', 'चले जाना जरा ठहरो' और 'वो परी कहाँ से लाऊँ' आदि आज भी मन को आनन्दित करते हैं।
जन्म तथा शिक्षा
नूरजहाँ का जन्म 21 सितम्बर, 1926 ई. को ब्रिटिश भारत में पंजाब के 'कसूर' नामक स्थान पर एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम मदद अली था और माता फ़तेह बीबी थीं। नूरजहाँ के पिता पेशेवर संगीतकार थे। माता-पिता की ग्यारह संतानों में नूरजहाँ एक थीं।[1] संगीतकारों के परिवार में जन्मी नूरजहाँ को बचपन से ही संगीत के प्रति गहरा लगाव था। नूरजहाँ ने पाँच-छह साल की उम्र से ही गायन शुरू कर दिया था। वे किसी भी लोकगीत को सुनने के बाद उसे अच्छी तरह याद कर लिया करती थीं। इसको देखते हुए उनकी माँ ने उन्हें संगीत का प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम किया। उस दौरान उनकी बहन आइदान पहले से ही नृत्य और गायन का प्रशिक्षण ले रही थीं।
फ़िल्मों में आगमन
तत्कालीन समय में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) थिएटर का गढ़ हुआ करता था। वहाँ अभिनय करने वाले कलाकारों, पटकथा लेखकों आदि की काफ़ी माँग थी। इसी को ध्यान में रखकर नूरजहाँ का परिवार 1930 के दशक के मध्य में कलकत्ता चला आया। जल्द ही नूरजहाँ और उनकी बहन को वहाँ नृत्य और गायन का अवसर मिल गया। नूरजहाँ की गायकी से प्रभावित होकर संगीतकार गुलाम हैदर ने उन्हें के. डी. मेहरा की पहली पंजाबी फिल्म 'शीला' उर्फ 'पिंड दी कुड़ी' में उन्हें बाल कलाकार की संक्षिप्त भूमिका दिलाई। वर्ष 1935 में रिलीज हुई यह फिल्म पूरे पंजाब में हिट रही। इसने पंजाबी फिल्म उद्योग की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया। फिल्म के गीत बहुत हिट रहे।
लाहौर प्रस्थान व विवाह
1930 के दशक के उत्तरार्ध तक लाहौर में कई स्टूडियो अस्तित्व में आ गए थे। गायकों की बढ़ती माँग को देखते हुए नूरजहाँ का परिवार 1937 में लाहौर आ गया। डलसुख एल पंचोली ने बेबी नूरजहाँ को सुना और 'गुल-ए-बकवाली' फिल्म में उन्हें भूमिका दी। यह फिल्म भी काफ़ी हिट रही और गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उनकी 'यमला जट' (1940), 'चौधरी' फिल्म प्रदर्शित हुई। इनके गाने 'कचियाँ वे कलियाँ ना तोड़' और 'बस बस वे ढोलना की तेरे नाल बोलना' बहुत लोकप्रिय हुए। वर्ष 1942 में नूरजहाँ ने अपने नाम से 'बेबी' शब्द हटा दिया। इसी साल उनकी फिल्म 'खानदान' आई, जिसमें पहली बार उन्होंने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इसी फिल्म के निर्देशक शौकत हुसैन रिजवी के साथ उन्होंने विवाह कर लिया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 नूरजहाँ, मल्लिका ए तरन्नुम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 जुलाई, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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