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'''चितपावन''' [[पश्चिम भारत]] के [[महाराष्ट्र|महाराष्ट्र राज्य]] और [[कोंकण]] ([[गोवा]] का क्षेत्र) की एक [[ब्राह्मण]] | '''चितपावन''' [[पश्चिम भारत]] के [[महाराष्ट्र|महाराष्ट्र राज्य]] और [[कोंकण]] ([[गोवा]] का क्षेत्र) की एक [[ब्राह्मण]] जाति है। यह '''कोंकणस्थ''' भी कहलाती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=164|url=}}</ref> | ||
*चितपावन ब्राह्मणों ने [[पूना]] के [[पेशवा]] के शासन काल (1713-1818 ई.) में प्रशासक के रूप में [[महाराष्ट्र]] में उल्लेखनीय प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। | *चितपावन ब्राह्मणों ने [[पूना]] के [[पेशवा]] के शासन काल (1713-1818 ई.) में प्रशासक के रूप में [[महाराष्ट्र]] में उल्लेखनीय प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। | ||
*[[महाराष्ट्र का इतिहास|महाराष्ट्र के इतिहास]] में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पेशवा भी इसी जाति के थे। | *[[महाराष्ट्र का इतिहास|महाराष्ट्र के इतिहास]] में प्रमुख भूमिका निभाने वाले [[पेशवा]] भी इसी जाति के थे। | ||
*चितपावन ब्राह्मणों के गोरे रंग और हल्की सुर्ख [[आंख|आंखों]] ने इस अनुमान को जन्म दिया कि ये तूफ़ान में नष्ट हुए जहाजों के यूरोपीय मल्लाहों के वंशज हैं। | *चितपावन ब्राह्मणों के गोरे रंग और हल्की सुर्ख [[आंख|आंखों]] ने इस अनुमान को जन्म दिया कि ये तूफ़ान में नष्ट हुए जहाजों के यूरोपीय मल्लाहों के वंशज हैं। | ||
*यद्यपि अनेक चितपावन ब्राह्मणों ने प्रशासनिक क्षेत्र में जाने की परंपरा जारी रखी है, किंतु अन्य दूसरे पेशों व पुरोहिताई में भी ये सक्रिय हैं। | *यद्यपि अनेक चितपावन ब्राह्मणों ने प्रशासनिक क्षेत्र में जाने की परंपरा जारी रखी है, किंतु अन्य दूसरे पेशों व पुरोहिताई में भी ये सक्रिय हैं। |
11:23, 22 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
चितपावन पश्चिम भारत के महाराष्ट्र राज्य और कोंकण (गोवा का क्षेत्र) की एक ब्राह्मण जाति है। यह कोंकणस्थ भी कहलाती है।[1]
- चितपावन ब्राह्मणों ने पूना के पेशवा के शासन काल (1713-1818 ई.) में प्रशासक के रूप में महाराष्ट्र में उल्लेखनीय प्रतिष्ठा प्राप्त की थी।
- महाराष्ट्र के इतिहास में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पेशवा भी इसी जाति के थे।
- चितपावन ब्राह्मणों के गोरे रंग और हल्की सुर्ख आंखों ने इस अनुमान को जन्म दिया कि ये तूफ़ान में नष्ट हुए जहाजों के यूरोपीय मल्लाहों के वंशज हैं।
- यद्यपि अनेक चितपावन ब्राह्मणों ने प्रशासनिक क्षेत्र में जाने की परंपरा जारी रखी है, किंतु अन्य दूसरे पेशों व पुरोहिताई में भी ये सक्रिय हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 164 |