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'''वैश्य''' का [[हिंदू|हिंदुओं]] की [[वर्ण व्यवस्था]] में तीसरा स्थान है। इस वर्ण के लोग मुख्यत: वाणिज्यिक व्यवसाय और [[कृषि]] करते थे। हिंदुओं की जाति व्यवस्था के अंतर्गत वैश्य वर्णाश्रम का तीसरा महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। इस वर्ग में मुख्य रूप से भारतीय समाज के किसान, पशुपालक, और व्यापारी समुदाय शामिल हैं। | |||
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[[सिन्धु घाटी की सभ्यता]] का निर्माण तथा प्रसार दूर-दूर के देशों तक वैश्यों ने किया या उनकी वजह से हुआ है। सिन्धु घाटी की सभ्यता में जो विशालकाय बन्दरगाह थे, वे उत्तरी अमरीका तथा दक्षिणी अमरीका, [[यूरोप]] के अलग-अलग भाग तथा [[एशिया]] ([[जम्बू द्वीप]]) आदि से जहाज़ द्वारा व्यापार तथा आगमन का केन्द्र थे।<ref>{{cite web |url= http://www.jaimaafalaudi.com/vaishy.htm|title= हम मेड़तवाल और हमारा वैश्य वंश|accessmonthday= 27 मार्च|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= जय माँ फलादी.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | |||
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12:44, 27 मार्च 2015 का अवतरण
वैश्य का हिंदुओं की वर्ण व्यवस्था में तीसरा स्थान है। इस वर्ण के लोग मुख्यत: वाणिज्यिक व्यवसाय और कृषि करते थे। हिंदुओं की जाति व्यवस्था के अंतर्गत वैश्य वर्णाश्रम का तीसरा महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। इस वर्ग में मुख्य रूप से भारतीय समाज के किसान, पशुपालक, और व्यापारी समुदाय शामिल हैं।
उत्पत्ति
'वैश्य' शब्द वैदिक 'विश्' से निकला है। अर्थ की दृष्टि से 'वैश्य' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका मूल अर्थ "बसना" होता है। मनु के 'मनुस्मृति' के अनुसार वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर यानि पेट से हुई है। ब्रह्मा जी से पैदा होने वाले ब्राह्मण कहलाए, विष्णु से पैदा होने वाले वैश्य, शंकर से पैदा होने वाले क्षत्रिय; इसलिये आज भी ब्राह्मण अपनी माता सरस्वती, वैश्य लक्ष्मी, क्षत्रिय माँ दुर्गे की पूजा करते है।
इतिहास
वैश्य वर्ण[1] का इतिहास जानने के पहले यह जानना होगा की वैश्य शब्द कहां से आया? वैश्य शब्द विश् से आया है। विश् का अर्थ है- 'प्रजा'। प्राचीन काल में प्रजा (समाज) को विश् नाम से पुकारा जाता था। इसके प्रधान संरक्षक को 'विशपति' (राजा) कहते थे, जो निर्वाचन से चुना जता था।
सिन्धु सभ्यता से सम्बन्ध
सिन्धु घाटी की सभ्यता का निर्माण तथा प्रसार दूर-दूर के देशों तक वैश्यों ने किया या उनकी वजह से हुआ है। सिन्धु घाटी की सभ्यता में जो विशालकाय बन्दरगाह थे, वे उत्तरी अमरीका तथा दक्षिणी अमरीका, यूरोप के अलग-अलग भाग तथा एशिया (जम्बू द्वीप) आदि से जहाज़ द्वारा व्यापार तथा आगमन का केन्द्र थे।[2]
व्यवसाय
वैदिक काल में प्रजा मात्र को विश् कहते थे। पर बाद में जब वर्ण व्यवस्था हुई, तब वाणिज्य व्यवसाय और गायों का पालन आदि करने वाले लोग वैश्य कहलाने लगे। इनका धर्म यजन, अध्ययन और पशुपालन तथा वृति कृषि और वाणिज्य था। आजकल अधिकांश वैश्य प्रायः वाणिज्य, व्यवसाय करके ही जीविका निर्वाह करते हैं। वैश्य समाज में व्यापार से रोज़गार के अवसर प्रदान करता है। सामाजिक कार्य में दान से समाज की आवश्यकता की पूर्ति करता है, जिससे उसे समाज में शुरू से ही विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
यह भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भट्टाचार्य, सच्चिदानंद भारतीय इतिहास कोश (हिंदी)। लखनऊ: उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, 442।
- ↑ 'वर्ण' शब्द का अर्थ है- "जिसको वरण किया जाए वो समुदाय।"
- ↑ हम मेड़तवाल और हमारा वैश्य वंश (हिन्दी) जय माँ फलादी.कॉम। अभिगमन तिथि: 27 मार्च, 2015।