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==परिचय==
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==कॅरियर]]
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==दीवान रंजीत राय का नेतृत्व==
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लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रणजीत राय (अंग्रेज़ी: Lieutenant Colonel Dewan Ranjit Rai, जन्म- 6 फ़रवरी, 1913; मृत्यु- 27 अक्टूबर, 1947) भारतीय सैन्य अधिकारी थे, जिन्होंने सन 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया था।

परिचय

दीवान रंजीत राय का जन्म 6 फ़रवरी, 1913 को एक पंजाबी जाट परिवार में गुर्जरवाला में हुआ था। उन्होंने बिशप कॉटन स्कूल, शिमला में अध्ययन किया। उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में भाग लिया।

कॅरियर

1 फ़रवरी, 1935 को दीवान रंजीत राय को नियुक्त किया गया। उन्हें भारत में ब्रिटिश सेन्य रेजिमेन्ट में एक वर्ष के लिये शामिल किया गया। उन्हें 11वें सिक्ख रेजिमेन्ट में 24 फ़रवरी 1936 में नियुक्त किया गया। 4 मई, 1936 को दीवान रंजीत राय को पदोन्नति दी गई। इसके बाद 4 फ़रवरी, 1942 को उन्हें कैप्टन बनाया गया। अप्रैल 1944 तक दीवान रंजीत राय अस्थायी भर्ती स्टाफ प्रमुख थे।

दीवान रंजीत राय का नेतृत्व

27 अक्टूबर 1947 का दिन सैन्य इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। इसी दिन कश्मीर में पहली बार उतरी थल सेना की प्रथम सिक्ख इन्फेंट्री (पैदल सेना) ने पाकिस्तान से आए घुसपैठियों को मार भगाया था। आजादी के बाद देश की सेना का यह पहला हमला था, जिसमें सिक्ख यूनिट ने कम संसाधनों के बावजूद उच्च किस्म के सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया। युद्ध के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रथम सिक्ख यूनिट को 'कश्मीर के मसीहा' का दर्जा दिया था| तभी से थल सेना इस जीत को 27 अक्टूबर के दिन 'इन्फेंट्री दिवस' के तौर पर मनाती है। लड़ाई में मारे गए शहीदों को विजय स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

अगस्त 1947 में मिली स्वतंत्रता के बाद देश का बंटवारा हुआ था। कश्मीर पर विवाद था। कश्मीर को कब्जाने के लिए पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर को हमला बोल दिया था। कश्मीर में कई घुसपैठिए दाखिल हो गए थे जो हथियारों से लैस थे। यह छापामार सैनिक थे। 26 अक्टूबर को महाराजा कश्मीर ने इस विवादित हिस्से को भारत के पक्ष में सौंप दिया। तत्काल दुश्मनों से सामना करने के लिए थल सेना की प्रथम सिक्ख यूनिट को विमान से श्रीनगर रवाना किया गया।

स्वतंत्र भारत की यह पहली फौजी टुकड़ी थी, जिसे युद्ध के मैदान में भेजा गया था। यूनिट अपने कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय के नेतृत्व में श्रीनगर से आगे बारामूला व पत्तन युद्ध करते हुए पहुंची। घुसपैठियों को शीलातांग की लड़ाई के बाद बाहर खदेड़ दिया गया। उस समय कम संसाधनों के बावजूद यूनिट ने दुश्मनों के बड़े हमले को निष्क्रिय कर दिया था। यूनिट के सीओ ले. कर्नल रंजीत राय इसी युद्ध में शहीद हो गए थे। मरणोपरांत उन्हें स्वतंत्र भारत के पहले महावीर चक्र से अलंकृत किया गया।

पुरस्कार

लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय को 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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