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*इसमें सन्देह नहीं कि कृष्ण तृतीय एक महान विजेता था, और उसने एक बार फिर राष्ट्रकूट शक्ति को उत्कर्ष की चरम सीमा पर पहुँचा दिया था। | *इसमें सन्देह नहीं कि कृष्ण तृतीय एक महान विजेता था, और उसने एक बार फिर राष्ट्रकूट शक्ति को उत्कर्ष की चरम सीमा पर पहुँचा दिया था। | ||
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09:10, 14 अक्टूबर 2010 का अवतरण
- गोविन्द चतुर्थ के बाद 'अमोघवर्ष तृतीय' (936-940) राष्ट्रकूट राज्य का स्वामी बना। उसके शासन काल की कोई घटना उल्लेखनीय नहीं है।
- उसका उत्तराधिकारी कृष्ण तृतीय (940-968) बड़ा प्रतापी था। उसने एक बार फिर राष्ट्रकूटों के गौरव को स्थापित किया, और दक्षिण व उत्तर दोनों दिशाओं में अपनी शक्ति का विस्तार किया।
- उत्तरी भारत पर आक्रमण कर उसने गुर्जर प्रतिहारों से कालिन्जर और चित्रकूट जीत लिए। पर उसकी विजय यात्राओं का श्रेय प्रधानतया दक्षिणी भारत था।
- काञ्जी पर फिर उसने अपना आधिपत्य स्थापित कर तंजौर की विजय की।
- तंजौर की विजय को इतना महत्वपूर्ण माना गया, कि कृष्ण तृतीय ने 'तंजजयुकोण्ड' (तंजौर विजेता) का विरुद धारण किया।
- चोल, पांड्य और केरल की विजयों के कारण कन्याकुमारी तक उसका साम्राज्य विस्तृत हो गया, और सिंहल द्वीप (लंका) के राजा ने भी उसे प्रसन्न रखने का प्रयत्न किया।
- इसमें सन्देह नहीं कि कृष्ण तृतीय एक महान विजेता था, और उसने एक बार फिर राष्ट्रकूट शक्ति को उत्कर्ष की चरम सीमा पर पहुँचा दिया था।
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