"इन्द्र तृतीय": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
08:27, 21 मार्च 2011 का अवतरण
- कृष्ण द्वितीय के बाद उसका पौत्र इन्द्र तृतीय राष्ट्रकूट राज्य का स्वामी बना।
- यद्यपि उसने केवल चार साल (914-918) तक राज्य किया, पर थोड़े से ही समय में ही उसने अदभुत पराक्रम का परिचय दिया।
- उसने पाल वंश के देवपाल प्रथम को परास्त कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- इन्द्र तृतीय के समय में ही अल मसूदी अरब से भारत आया।
- उसने तत्कालीन राष्ट्रकूट शासकों को 'भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक' कहा।
- उसका मुख्य कार्य गुर्जर प्रतिहार तथा राजा महीपाल को परास्त किया था।
- कन्नौज के प्रतापी सम्राट मिहिरभोज की मृत्यु 890 ई. में हो चुकी थी, और उसके बाद निर्भयराज महेन्द्र (890-907) ने गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को बहुत कुछ सम्भाले रखा था। पर महेन्द्र के उत्तराधिकारी महीपाल के समय में कन्नौज की घटती कला प्रारम्भ हो गई थी। इसीलिए राष्ट्रकूट राजा कृष्ण ने भी उस पर अनेक आक्रमण किए थे।
- इन्द्र तृतीय ने तो कन्नौज की शक्ति को जड़ से ही हिला दिया। उसने एक बहुत बड़ी सेना लेकर उत्तरी भारत पर आक्रमण किया, और कन्नौज पर चढ़ाई कर इस प्राचीन नगरी का बुरी तरह से सत्यानाश किया।
- राजा महीपाल उसके सम्मुख असहाय था।
- इन्द्र ने प्रयाग तक उसका पीछा किया, और राष्ट्रकूट सेनाओं के घोड़ों ने गंगाजल द्वारा अपनी प्यास को शान्त किया।
|
|
|
|
|