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| *समन्तभद्र की 'आप्त-मीमांसा', जिसे 'स्याद्वाद-मीमांसा' कहा जा सकता है, ऐसी कृति है, जिसमें एक साथ स्याद्वाद, अनेकान्त और सप्तभंगी तीनों का विशद और विस्तृत विवेचन किया गया है। [[अकलंकदेव]] ने उस पर 'अष्टशती' (आप्त मीमांसा- विवृति) और [[विद्यानन्द]] ने उसी पर 'अष्टसहस्त्री' (आप्तमीमांसालंकृति) व्याख्या लिखकर जहाँ आप्तमीमांसा की कारिकाओं एवं उनके पद-वाक्यादिकों का विशद व्याख्यान किया है वहाँ इन तीनों का भी अद्वितीय विवेचन किया है।
| | [[जैन दर्शन और उसका उद्देश्य|जैन दर्शन]] में समन्तभद्र की 'आप्त-मीमांसा', जिसे 'स्याद्वाद-मीमांसा' कहा जा सकता है, ऐसी कृति है, जिसमें एक साथ स्याद्वाद, अनेकान्त और सप्तभंगी तीनों का विशद और विस्तृत विवेचन किया गया है। [[अकलंकदेव]] ने उस पर 'अष्टशती' (आप्त मीमांसा- विवृति) और [[विद्यानन्द]] ने उसी पर 'अष्टसहस्त्री' (आप्तमीमांसालंकृति) व्याख्या लिखकर जहाँ आप्तमीमांसा की कारिकाओं एवं उनके पद-वाक्यादिकों का विशद व्याख्यान किया है वहाँ इन तीनों का भी अद्वितीय विवेचन किया है। |
| {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[स्याद्वाद विमर्श -जैन दर्शन|स्याद्वाद विमर्श]] | | {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[स्याद्वाद विमर्श -जैन दर्शन|स्याद्वाद विमर्श]] |
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