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'''विचित्र''' 17वीं शताब्दी के, [[मुग़ल]] दरबार के चित्रकार थे। यह [[जहाँगीर]], [[शाहजहाँ]] और [[औरंगज़ेब]] के शासनकाल के दौरान सक्रिय रहे थे। विचित्र का पालन-पोषण दरबार में हुआ था। विचित्र की सबसे पुरानी ज्ञात कृति लगभग 1615 की है, जो विचित्र की शैली में पूर्ण परिपक्वता दिखाती है। विचित्र 1660 तक चित्रकारी करते रहे थे। 1616 में बने मुग़ल बादशाह जहाँगीर के एक चित्र में विचित्र ने स्वयं को भी शामिल किया था, जिसमें वह लगभग 30 वर्ष के थे और उन्होंने [[हिन्दू]] दरबारियों जैसे कपड़े पहने हुये थे।  
'''बिचित्र''' 17वीं शताब्दी के, [[मुग़ल]] दरबार के चित्रकार थे। यह [[जहाँगीर]], [[शाहजहाँ]] और [[औरंगज़ेब]] के शासनकाल के दौरान सक्रिय रहे थे। बिचित्र का पालन-पोषण दरबार में हुआ था। बिचित्र की सबसे पुरानी ज्ञात कृति लगभग 1615 की है, जो बिचित्र की शैली में पूर्ण परिपक्वता दिखाती है। बिचित्र 1660 तक चित्रकारी करते रहे थे। 1616 में बने मुग़ल बादशाह जहाँगीर के एक चित्र में बिचित्र ने स्वयं को भी शामिल किया था, जिसमें वह लगभग 30 वर्ष के थे और उन्होंने [[हिन्दू]] दरबारियों जैसे कपड़े पहने हुये थे।  


मुग़ल चित्रकारों में शायद विचित्र सबसे प्रखर दरबारी शैली वाले कलाकार थे। व्यक्तिचित्र और महत्त्वपूर्ण अवसरों की स्मृति के चित्र बनाने में विचित्र माहिर थे। विचित्र की कला तक़नीक दोषरहित थी तथा उसमें शाही शिष्टाचार का समावेश दिखाई देता था। उनकी पहले की कृतियों में कुछ कोमल और रूमानी गुण मौज़ूद हैं, लेकिन बाद की रचनाओं की स्पष्ट, सधी रेखाएँ और चमकीले रंग उन्हें मात्र तटस्थ पूर्णतावादी होने से सर्वथा बचाते रहे थे। यूरोपीय [[चित्रकला]] और अनुकृतियों में उनकी रूचि थी और उन्होंने इनकी ध्यानपूर्वक कुछ प्रतिकृतियाँ बनाकर अध्ययन भी किया था, जिसके कारण उन्हीं की तरह इन्होंने अपने कुछ चित्रों में छाया का प्रयोग किया और महान व्यक्तियों के आसपास यूरोपीय बाल-फरिश्ते मंडराते दिखाये थे। अन्य दरबारी चित्रकारों की तरह विचित्र भी भारतीय प्राकृतिक दृश्यों का उपयोग यूरोपीय दृष्टि से करते थे, संभवत: यूरोपीय कृतियों के प्रभाव में विचित्र के चित्र उनके अपने स्थान और काल के भव्य दर्पण हैं।
मुग़ल चित्रकारों में शायद बिचित्र सबसे प्रखर दरबारी शैली वाले कलाकार थे। व्यक्तिचित्र और महत्त्वपूर्ण अवसरों की स्मृति के चित्र बनाने में बिचित्र माहिर थे। बिचित्र की कला तक़नीक दोषरहित थी तथा उसमें शाही शिष्टाचार का समावेश दिखाई देता था। उनकी पहले की कृतियों में कुछ कोमल और रूमानी गुण मौज़ूद हैं, लेकिन बाद की रचनाओं की स्पष्ट, सधी रेखाएँ और चमकीले रंग उन्हें मात्र तटस्थ पूर्णतावादी होने से सर्वथा बचाते रहे थे। यूरोपीय [[चित्रकला]] और अनुकृतियों में उनकी रूचि थी और उन्होंने इनकी ध्यानपूर्वक कुछ प्रतिकृतियाँ बनाकर अध्ययन भी किया था, जिसके कारण उन्हीं की तरह इन्होंने अपने कुछ चित्रों में छाया का प्रयोग किया और महान व्यक्तियों के आसपास यूरोपीय बाल-फरिश्ते मंडराते दिखाये थे। अन्य दरबारी चित्रकारों की तरह बिचित्र भी भारतीय प्राकृतिक दृश्यों का उपयोग यूरोपीय दृष्टि से करते थे, संभवत: यूरोपीय कृतियों के प्रभाव में बिचित्र के चित्र उनके अपने स्थान और काल के भव्य दर्पण हैं।


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07:16, 3 दिसम्बर 2012 का अवतरण

बिचित्र 17वीं शताब्दी के, मुग़ल दरबार के चित्रकार थे। यह जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान सक्रिय रहे थे। बिचित्र का पालन-पोषण दरबार में हुआ था। बिचित्र की सबसे पुरानी ज्ञात कृति लगभग 1615 की है, जो बिचित्र की शैली में पूर्ण परिपक्वता दिखाती है। बिचित्र 1660 तक चित्रकारी करते रहे थे। 1616 में बने मुग़ल बादशाह जहाँगीर के एक चित्र में बिचित्र ने स्वयं को भी शामिल किया था, जिसमें वह लगभग 30 वर्ष के थे और उन्होंने हिन्दू दरबारियों जैसे कपड़े पहने हुये थे।

मुग़ल चित्रकारों में शायद बिचित्र सबसे प्रखर दरबारी शैली वाले कलाकार थे। व्यक्तिचित्र और महत्त्वपूर्ण अवसरों की स्मृति के चित्र बनाने में बिचित्र माहिर थे। बिचित्र की कला तक़नीक दोषरहित थी तथा उसमें शाही शिष्टाचार का समावेश दिखाई देता था। उनकी पहले की कृतियों में कुछ कोमल और रूमानी गुण मौज़ूद हैं, लेकिन बाद की रचनाओं की स्पष्ट, सधी रेखाएँ और चमकीले रंग उन्हें मात्र तटस्थ पूर्णतावादी होने से सर्वथा बचाते रहे थे। यूरोपीय चित्रकला और अनुकृतियों में उनकी रूचि थी और उन्होंने इनकी ध्यानपूर्वक कुछ प्रतिकृतियाँ बनाकर अध्ययन भी किया था, जिसके कारण उन्हीं की तरह इन्होंने अपने कुछ चित्रों में छाया का प्रयोग किया और महान व्यक्तियों के आसपास यूरोपीय बाल-फरिश्ते मंडराते दिखाये थे। अन्य दरबारी चित्रकारों की तरह बिचित्र भी भारतीय प्राकृतिक दृश्यों का उपयोग यूरोपीय दृष्टि से करते थे, संभवत: यूरोपीय कृतियों के प्रभाव में बिचित्र के चित्र उनके अपने स्थान और काल के भव्य दर्पण हैं।


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