"शिशुपालगढ़": अवतरणों में अंतर
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शिशुपालगढ़ का प्रथम काल 300-200 ई. पू. माना गया है। द्वितीय तथा तृतीय काल क्रमशः 200 ई. पू. से 200 ई. तथा 200 ई. से 350 ई. तक माना गया है। | शिशुपालगढ़ का प्रथम काल 300-200 ई. पू. माना गया है। द्वितीय तथा तृतीय काल क्रमशः 200 ई. पू. से 200 ई. तथा 200 ई. से 350 ई. तक माना गया है। | ||
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शिशुपालगढ़ से दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए हैं। शिशुपालगढ़ का दुर्ग पौन मील वर्गाकार है। उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में हाथीदाँत का एक विशाल मनका उल्लेखनीय है, जिस पर एक ओर दो हंस बने हैं, और दूसरी ओर [[कमल|कमल पुष्प]]। कर्णाभरण काफ़ी संख्या में मिले हैं। शिशुपालगढ़ की खुदाई से कुल मिलाकर 31 | शिशुपालगढ़ से दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए हैं। शिशुपालगढ़ का दुर्ग पौन मील वर्गाकार है। उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में हाथीदाँत का एक विशाल मनका उल्लेखनीय है, जिस पर एक ओर दो हंस बने हैं, और दूसरी ओर [[कमल|कमल पुष्प]]। कर्णाभरण काफ़ी संख्या में मिले हैं। शिशुपालगढ़ की खुदाई से कुल मिलाकर 31 सिक्के प्राप्त हुए हैं। यहाँ से उपलब्ध सामग्री का सबसे बड़ा भाग मृद्भाण्ड हैं। इन मृद्भाण्डों में उत्तरीय कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड, कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड तथा रूलेटेड मृद्भाण्ड उल्लेखनीय हैं। | ||
शिशुपालगढ़ से तीन मील दूर [[धौली]] नामक स्थान है जो [[अशोक]] के शिलालेख के कारण प्रख्यात है। इस अभिलेख में इस स्थान को [[तोसलि]] से अभिहित किया गया है। सम्भवतः उस समय इस स्थल के आस-पास एक जीवंत नगर रहा होगा, जैसा कि खण्डहरों तथा निकटस्थ ऐतिहासिक स्थलों से सिद्ध होता है। शिशुपालगढ़ से छः मील दूरी पर ही [[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख|हाथीगुम्फा]] से [[खारवेल|राजा खारवेल]] का लेख प्राप्त हुआ है। | शिशुपालगढ़ से तीन मील दूर [[धौली]] नामक स्थान है जो [[अशोक]] के शिलालेख के कारण प्रख्यात है। इस अभिलेख में इस स्थान को [[तोसलि]] से अभिहित किया गया है। सम्भवतः उस समय इस स्थल के आस-पास एक जीवंत नगर रहा होगा, जैसा कि खण्डहरों तथा निकटस्थ ऐतिहासिक स्थलों से सिद्ध होता है। शिशुपालगढ़ से छः मील दूरी पर ही [[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख|हाथीगुम्फा]] से [[खारवेल|राजा खारवेल]] का लेख प्राप्त हुआ है। |
11:04, 3 मार्च 2013 का अवतरण
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शिशुपालगढ़ ऐतिहासिक स्थान जो उड़ीसा में भुवनेश्वर नगर से लगभग डेढ़ मील दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
इतिहास
शिशुपालगढ़ का प्रथम काल 300-200 ई. पू. माना गया है। द्वितीय तथा तृतीय काल क्रमशः 200 ई. पू. से 200 ई. तथा 200 ई. से 350 ई. तक माना गया है।
उत्खनन
शिशुपालगढ़ से दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए हैं। शिशुपालगढ़ का दुर्ग पौन मील वर्गाकार है। उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में हाथीदाँत का एक विशाल मनका उल्लेखनीय है, जिस पर एक ओर दो हंस बने हैं, और दूसरी ओर कमल पुष्प। कर्णाभरण काफ़ी संख्या में मिले हैं। शिशुपालगढ़ की खुदाई से कुल मिलाकर 31 सिक्के प्राप्त हुए हैं। यहाँ से उपलब्ध सामग्री का सबसे बड़ा भाग मृद्भाण्ड हैं। इन मृद्भाण्डों में उत्तरीय कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड, कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड तथा रूलेटेड मृद्भाण्ड उल्लेखनीय हैं।
शिशुपालगढ़ से तीन मील दूर धौली नामक स्थान है जो अशोक के शिलालेख के कारण प्रख्यात है। इस अभिलेख में इस स्थान को तोसलि से अभिहित किया गया है। सम्भवतः उस समय इस स्थल के आस-पास एक जीवंत नगर रहा होगा, जैसा कि खण्डहरों तथा निकटस्थ ऐतिहासिक स्थलों से सिद्ध होता है। शिशुपालगढ़ से छः मील दूरी पर ही हाथीगुम्फा से राजा खारवेल का लेख प्राप्त हुआ है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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