"नैनीताल": अवतरणों में अंतर
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नैनीताल शहर उत्तर-मध्य [[भारत]] के उत्तरी उत्तराखंड राज्य में [[शिवालिक पर्वतश्रेणी]] में स्थित है। 1841 में स्थापित यह नगर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो समुद्र तल से 1,934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर एक सुंदर झील के आस-पास बसा हुआ है और इसके चारों ओर वनाच्छादित पहाड़ हैं। नैनीताल के उत्तर में [[अल्मोड़ा]], पूर्व में [[चम्पावत]], दक्षिण में [[ऊधमसिंह नगर]] और पश्चिम में [[पौड़ी गढ़वाल|पौड़ी]] एवं [[उत्तर प्रदेश]] की सीमाएँ मिलती हैं। जनपद के उत्तरी भाग में [[हिमालय]] क्षेत्र तथा दक्षिण में मैदानी भाग हैं जहाँ सालों भर आनंददायक मौसम रहता है। | नैनीताल शहर उत्तर-मध्य [[भारत]] के उत्तरी उत्तराखंड राज्य में [[शिवालिक पर्वतश्रेणी]] में स्थित है। 1841 में स्थापित यह नगर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो समुद्र तल से 1,934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर एक सुंदर झील के आस-पास बसा हुआ है और इसके चारों ओर वनाच्छादित पहाड़ हैं। नैनीताल के उत्तर में [[अल्मोड़ा]], पूर्व में [[चम्पावत]], दक्षिण में [[ऊधमसिंह नगर]] और पश्चिम में [[पौड़ी गढ़वाल|पौड़ी]] एवं [[उत्तर प्रदेश]] की सीमाएँ मिलती हैं। जनपद के उत्तरी भाग में [[हिमालय]] क्षेत्र तथा दक्षिण में मैदानी भाग हैं जहाँ सालों भर आनंददायक मौसम रहता है। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
नैनीताल को पी. बेरून नामक व्यक्ति द्वारा वर्ष 1841 में स्थापित किया गया था। पी. बेरून पहला यूरोपियन था। नैनीताल [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय था। 1847 में नैनीताल मशहूर हिल स्टेशन बना, [[अंग्रेज़]] इसे 'समर कैपिटल' भी कहते थे। तब से लेकर आज तक यह अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है। [[औपनिवेशिक काल]] में नैनीताल शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा। अपने बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ाने के लिए अंग्रेज़ों को यह जगह काफ़ी पसंद आई थी। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए भी व्यापक इंतज़ाम किए थे। पहाड़ियों से घिरी [[नैनी झील]] और इसके आस-पास की तमाम झीलें आकर्षण का केन्द्र बन गयी थीं और प्रत्येक यूरोपियन नागरिक यहाँ बसने की लालसा लेकर आने लगे। बाद में ब्रिटिश-भारतीय सरकार ने नैनीताल को यूनाइटेड प्रोविन्सेज की गर्मियों की राजधानी घोषित कर दिया और इसी दौरान यहाँ तमाम यूरोपीय शैली की इमारतों का निर्माण हुआ, गवर्नर हाऊस और सेन्ट जॉन चर्च इस निर्माण [[कला]] के अद्भुत उदाहरण है। | नैनीताल को पी. बेरून नामक व्यक्ति द्वारा वर्ष 1841 में स्थापित किया गया था। पी. बेरून पहला यूरोपियन था। नैनीताल [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय था। 1847 में नैनीताल मशहूर हिल स्टेशन बना, [[अंग्रेज़]] इसे 'समर कैपिटल' भी कहते थे। तब से लेकर आज तक यह अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है। [[औपनिवेशिक काल]] में नैनीताल शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा। अपने बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ाने के लिए अंग्रेज़ों को यह जगह काफ़ी पसंद आई थी। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए भी व्यापक इंतज़ाम किए थे। पहाड़ियों से घिरी [[नैनी झील]] और इसके आस-पास की तमाम झीलें आकर्षण का केन्द्र बन गयी थीं और प्रत्येक यूरोपियन नागरिक यहाँ बसने की लालसा लेकर आने लगे। बाद में ब्रिटिश-भारतीय सरकार ने नैनीताल को यूनाइटेड प्रोविन्सेज की गर्मियों की राजधानी घोषित कर दिया और इसी दौरान यहाँ तमाम यूरोपीय शैली की इमारतों का निर्माण हुआ, गवर्नर हाऊस और सेन्ट जॉन चर्च इस निर्माण [[कला]] के अद्भुत उदाहरण है।[[चित्र:Nani-Lake-Nanital-1.jpg|thumb|250px|left|[[नैनी झील]], नैनीताल]] | ||
====नामकरण==== | ====नामकरण==== | ||
देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल ज़िले में सबसे अधिक ताल हैं। यहाँ पर 'नैनीताल' जो नैनीताल जिले के अन्दर आता है। यहाँ का यह मुख्य आकर्षण केन्द्र है। तीनों ओर से घने-घने वृक्षों की छाया में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में नैनीताल समुद्रतल से 1938 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस ताल की लम्बाई 1,358 मीटर, चौड़ाई 458 मीटर और गहराई 15 से 156 मीटर तक आंकी गयी है। नैनीताल के जल की विशेषता यह है कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट दिखाई देती है। आकाश मण्डल पर छाये हुए बादलों का प्रतिविम्भ इस तालाब में इतना सुन्दर दिखाई देता है कि इस प्रकार के प्रतिबिम्ब को देखने के लिए सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रकृति प्रेमी नैनीताल आते - जाते हैं। जल में विहार करते हुए बत्तखों का झुण्ड, थिरकती हुई तालों पर इठलाती हुई नौकाओं तथा रंगीन बोटों का दृश्य और चाँद-तारों से भरी रात का सौन्दर्य नैनीताल के ताल की शोभा बढ़ाने में चार-चाँद लगा देता है। इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है। [[गर्मी|गर्मियों]] में इसका पानी [[हरा रंग|हरा]], [[वर्षा ऋतु|बरसात]] में मटमैला और [[सर्दी|सर्दियों]] में हल्का [[नीला रंग|नीला]] हो जाता है।<ref name="ignca">{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/utrn0048.htm |title= नैनीताल|accessmonthday=17 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.ignca.nic.in |language=हिन्दी }}</ref> | देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल ज़िले में सबसे अधिक ताल हैं। यहाँ पर 'नैनीताल' जो नैनीताल जिले के अन्दर आता है। यहाँ का यह मुख्य आकर्षण केन्द्र है। तीनों ओर से घने-घने वृक्षों की छाया में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में नैनीताल समुद्रतल से 1938 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस ताल की लम्बाई 1,358 मीटर, चौड़ाई 458 मीटर और गहराई 15 से 156 मीटर तक आंकी गयी है। नैनीताल के जल की विशेषता यह है कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट दिखाई देती है। आकाश मण्डल पर छाये हुए बादलों का प्रतिविम्भ इस तालाब में इतना सुन्दर दिखाई देता है कि इस प्रकार के प्रतिबिम्ब को देखने के लिए सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रकृति प्रेमी नैनीताल आते - जाते हैं। जल में विहार करते हुए बत्तखों का झुण्ड, थिरकती हुई तालों पर इठलाती हुई नौकाओं तथा रंगीन बोटों का दृश्य और चाँद-तारों से भरी रात का सौन्दर्य नैनीताल के ताल की शोभा बढ़ाने में चार-चाँद लगा देता है। इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है। [[गर्मी|गर्मियों]] में इसका पानी [[हरा रंग|हरा]], [[वर्षा ऋतु|बरसात]] में मटमैला और [[सर्दी|सर्दियों]] में हल्का [[नीला रंग|नीला]] हो जाता है।<ref name="ignca">{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/utrn0048.htm |title= नैनीताल|accessmonthday=17 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.ignca.nic.in |language=हिन्दी }}</ref> | ||
====नैनीदेवी का नैनीताल==== | |||
पौराणिक कथा के अनिसार [[दक्ष]] प्रजापति की पुत्री [[उमा]] का [[विवाह]] [[शिव]] से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु यह [[देवता|देवताओं]] के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने [[हरिद्वार]] स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपनी निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्यवं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा [[सती]] हो गयी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र-रुप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु, सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर [[आकाश]] भ्रमण करना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ पर [[शक्तिपीठ]] हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे; वहीं पर नैनादेवी के रुप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अप्पुधार ने यहाँ पर ताल का रुप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। नैनीताल के ताल की बनावट भी देखें तो वह [[आँख]] की आकृति का 'ताल' है। इसके पौराणिक महत्व के कारण ही इस ताल की श्रेष्ठता बहुत आँकी जाती है। नैनी (नंदा) देवी की पूजा यहाँ पर पुराण युग से होती रही है।<br /> | |||
[[कुमाऊँ]] के चन्द राजाओं की इष्ट देवी भी नन्दा ही थी, जिनकी वे निरन्तर यहाँ आकर पूजा करते रहते थे। एक [[जनश्रुति]] ऐसी भी कही जाती है कि चंदवंशीय राजकुमारी नन्दा थी जिसको एक देवी के रूप में पूजा जाता था। परन्तु इस कथा में कोई दम नहीं है, क्योंकि समस्त पर्वतीय अंचल में नन्दा को ही इष्ट देवी के रुप में स्वीकारा गया है। गढ़वाल और कुमाऊँ के राजाओं की भी नन्दा देवी इष्ट रही है। [[गढ़वाल]] और कुमाऊँ की जनता के द्वारा प्रतिवर्ष नन्दा अष्टमी के दिन नंदापार्वती की विशेष पूजा होती है। नन्दा के मायके से ससुराल भेजने के लिए भी 'नन्दा जात' का आयोजन गढ़वाल-कुमाऊँ की जनता निरन्तर करती रही है। अतः नन्दापार्वती की पूजा - अर्चना के रुप में इस स्थान का महत्व युग-युगों से आंका गया है। यहाँ के लोग इसी रुप में नन्दा के 'नैनीताल' की परिक्रमा करते आ रहे हैं।<ref name="ignca"/> | |||
==कृषि और खनिज== | ==कृषि और खनिज== | ||
नैनीताल में 52,000 हैक्टेयर भूमि [[कृषि]] के लिए प्रयोग की जाती है जिसमें से 45,000 हैक्टेयर भूमि सिंचाई के लिए प्रयोग की जाती है। सिंचाई के मुख्य श्रोत नहर तथा नलकूप हैं। 24,203 हैक्टेयर भूमि नहरों द्वारा और 3366 हैक्टेयर भूमि नलकूपों द्वारा सिंचित हो्ती है। नैनीताल की मुख्य फ़सलें: [[गेहूँ]], मंडुआ, [[मक्का]], [[जौ]], झंगोरा, कौणी, भट्ट, तोर, धान, [[गन्ना]], [[मटर]], [[सोयाबीन]] हैं। [[भारत के फल|फलों]] में [[सेब]], [[नाशपाती]], आडू, खुमानी आदि भी उगाए जाते हैं। | नैनीताल में 52,000 हैक्टेयर भूमि [[कृषि]] के लिए प्रयोग की जाती है जिसमें से 45,000 हैक्टेयर भूमि सिंचाई के लिए प्रयोग की जाती है। सिंचाई के मुख्य श्रोत नहर तथा नलकूप हैं। 24,203 हैक्टेयर भूमि नहरों द्वारा और 3366 हैक्टेयर भूमि नलकूपों द्वारा सिंचित हो्ती है। नैनीताल की मुख्य फ़सलें: [[गेहूँ]], मंडुआ, [[मक्का]], [[जौ]], झंगोरा, कौणी, भट्ट, तोर, धान, [[गन्ना]], [[मटर]], [[सोयाबीन]] हैं। [[भारत के फल|फलों]] में [[सेब]], [[नाशपाती]], आडू, खुमानी आदि भी उगाए जाते हैं। | ||
==शिक्षण संस्थान== | ==शिक्षण संस्थान== | ||
नैनीताल में सेंट जोसेफ़ कॉलेज, | नैनीताल में बहुत अच्छे स्कूल एवं कॉलेज हैं। योरोपियन मिशनरियों के यहाँ कई स्कूल खुले हैं जिनमें से सेंट जोसेफ़ कॉलेज, शेरवुड कॉलेज, सेन्टमेरी कॉन्वेंट स्कूल और आल सेन्ट स्कूल प्रसिद्ध है। बिरला का बालिका विद्यालय और बिरला पब्लिक स्कूल भी प्रसिद्ध है। नैनीताल में पॉलिटेकनिक है। नैनीताल में कुमाऊँ विश्वविद्यालय भी स्थापित है, जहाँ पर हर प्रकार की शिक्षा दी जाती है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय में नये-नये विषय पढ़ाये जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए देख के कोने-कोने से विद्यार्थी यहाँ आते हैं।<ref name="ignca"/> | ||
==यातायात और परिवहन== | ==यातायात और परिवहन== | ||
नैनीताल सड़क मार्ग द्वारा दक्षिण में स्थित [[काठगोदाम]] के रेलवे टर्मिनल से जुड़ा हुआ है। पंतनगर नैनीताल का निकटतम हवाई अड्डा है। नैनीताल हवाई अड्डे से 71 किमी दूर है। पंतनगर से भी नैनीताल के लिए बसें उपलब्ध है। रेलवे स्टेशन काठगोदाम के निकट है। [[बरेली]], [[लखनऊ]], [[दिल्ली]] और [[आगरा]] नैनीताल से रेलमार्ग द्वारा जुड़े हुए है। बस और टैक्सियाँ काठगोदाम से नैनीताल के लिए उपलब्ध हैं। नैनीताल और [[देहरादून]], [[अल्मोड़ा]], [[रानीखेत]], [[बरेली]], [[हरिद्वार]], रामनगर, [[दिल्ली]], [[लखनऊ]] और अन्य राज्यों में महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच निजी और सार्वजनिक बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। | नैनीताल सड़क मार्ग द्वारा दक्षिण में स्थित [[काठगोदाम]] के रेलवे टर्मिनल से जुड़ा हुआ है। पंतनगर नैनीताल का निकटतम हवाई अड्डा है। नैनीताल हवाई अड्डे से 71 किमी दूर है। पंतनगर से भी नैनीताल के लिए बसें उपलब्ध है। रेलवे स्टेशन काठगोदाम के निकट है। [[बरेली]], [[लखनऊ]], [[दिल्ली]] और [[आगरा]] नैनीताल से रेलमार्ग द्वारा जुड़े हुए है। बस और टैक्सियाँ काठगोदाम से नैनीताल के लिए उपलब्ध हैं। नैनीताल और [[देहरादून]], [[अल्मोड़ा]], [[रानीखेत]], [[बरेली]], [[हरिद्वार]], रामनगर, [[दिल्ली]], [[लखनऊ]] और अन्य राज्यों में महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच निजी और सार्वजनिक बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। | ||
==पर्यटन== | ==पर्यटन== | ||
[[चित्र: | [[चित्र:Nainital-Boat-House-Club.jpg|thumb|250px|left|नैनीताल बोट हाउस क्लब]] | ||
नैनीताल अपने तालों के लिए प्रसिद्ध है। प्रमुख स्थलों में [[नैनी झील]], तल्ली एवं मल्ली ताल और मॉल रोड शामिल हैं। नैनीताल के पर्यटन स्थलों में स्नो व्यू पॉइंट, जहाँ 'रोप वे' से पहुँचा जा सकता है। झील के किनारे स्थित सबसे ऊँची नैनी चोटी, लैंड्स एंड, हनुमान गढ़ी, स्टेट ऑबज़रवेटरी और नैनीताल के लोकप्रिय विहार स्थल शामिल हैं। आस-पास के दर्शनीय स्थलों में [[सात ताल झील|सातताल]], [[भीमताल झील|भीमताल]] और नौ किनारों वाला नौकुचिया ताल, संरक्षित वन किलबरी, खुरपा ताल, लोकप्रिय आरामगाह भोवाली, ढिकाला स्थित जिम कॉर्बेट संग्रहालय और [[मुक्तेश्वर]], जो [[हिमालय]] का मनमोहक दृश्य पेश करता है। यहाँ झील के आस-पास बने शानदार बंगलों और होटलों में रुकने का अपना ही आनन्द है। गर्मियों में यहाँ बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। यहाँ की झील, मंदिर, बाज़ार पर्यटकों को लुभाते हैं। | नैनीताल अपने तालों के लिए प्रसिद्ध है। प्रमुख स्थलों में [[नैनी झील]], तल्ली एवं मल्ली ताल और मॉल रोड शामिल हैं। नैनीताल के पर्यटन स्थलों में स्नो व्यू पॉइंट, जहाँ 'रोप वे' से पहुँचा जा सकता है। झील के किनारे स्थित सबसे ऊँची नैनी चोटी, लैंड्स एंड, हनुमान गढ़ी, स्टेट ऑबज़रवेटरी और नैनीताल के लोकप्रिय विहार स्थल शामिल हैं। आस-पास के दर्शनीय स्थलों में [[सात ताल झील|सातताल]], [[भीमताल झील|भीमताल]] और नौ किनारों वाला नौकुचिया ताल, संरक्षित वन किलबरी, खुरपा ताल, लोकप्रिय आरामगाह भोवाली, ढिकाला स्थित जिम कॉर्बेट संग्रहालय और [[मुक्तेश्वर]], जो [[हिमालय]] का मनमोहक दृश्य पेश करता है। यहाँ झील के आस-पास बने शानदार बंगलों और होटलों में रुकने का अपना ही आनन्द है। गर्मियों में यहाँ बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। यहाँ की झील, मंदिर, बाज़ार पर्यटकों को लुभाते हैं। | ||
====कब जाएँ==== | |||
नैनीताल में अनेक ऐसे स्थान हैं जहाँ जाकर सैलानी अपने - आपको भूल जाते हैं। यहाँ अब लोग [[ग्रीष्म ऋतु|ग्रीष्म काल]] में नहीं आते, बल्कि वर्ष भर आते रहते हैं। [[सर्दी|सर्दियों]] में बर्फ के गिरने के दृश्य को देखने हजारों पर्यटक यहाँ पहुँचते रहते हैं। रहने के लिए नैनीताल में किसी भी प्रकार की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक होटल हैं। आधुनिक सुविधाओं की नैनीताल में आज कोई कमी नहीं है। इसलिए सैलानी और पर्यटक यहाँ आना अधिक उपयुक्त समझते हैं। नैनीताल में [[अप्रैल]] से [[जून]] और [[सितम्बर]] से [[दिसम्बर]] तक दो सीजन होते हैं। सम्पूर्ण देश के पूँजीपति, व्यापारी, उद्योगपति, राजा-महाराजा और सैलानी यहाँ आते हैं। इस मौसम में [[टेनिस]], पोलो, [[हॉकी]], [[फुटबाल]], गॉल्फ, मछली मारने और नौका दौड़ाने के खेलों की प्रतियोगिता होती है। इन खेलों के शौकीन देश के विभिन्न नगरों से यहाँ आते हैं। पिकनिक के लिए भी लोगों का ताँता नगा रहता है। इसी मौसम में नाना प्राकर के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। [[सितम्बर]] से [[दिसम्बर]] का मौसम भी बहुत सुन्दर रहता है। ऐसे समय में आकाश साफ रहता है। प्रायः इस मोसम में होटलों का किराया भी कम हो जाता है। बहुत से प्रकृति प्रेमी इसी मौसम में नैनीताल आते हैं। [[जनवरी]] और [[फरवरी]] के दो ऐसे महीने होते हैं जब नैनीताल में बर्फ गिरती है। बहुत से नवविवाहित दम्पतियाँ अपनी 'मधु यामिनी' हेतु नैनीताल आते हैं। तात्पर्य यह है कि यह सुखद और शान्ति का जीवन बिताने का मौसम है। नैनीताल में घूमने के बाद सैलानी पीक देखना भी नहीं भूलते। आजकल नैनीताल के आकर्षण में रज्जुमार्ग (रोप वे) की सवारी भी विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गयी है। सुबह, शाम और दिन में सैलानी नैनीताल के ताल में जहां बोट की सवारी करते हैं, वहाँ घोड़ों पर चढ़कर घुड़सवारी का भी आनन्द लेते हैं। शरदकाल में और ग्रीष्मकाल में यहाँ बड़ी रौनक रहती है। शरदोत्सव के समय पर नौकाचालन, तैराकी, घोड़ो का सवारी और पर्वतारोहम जैसे मनोरंजन और चुनौती भरे सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।<ref name="ignca"/> | |||
====नैनीताल के ताल==== | ====नैनीताल के ताल==== | ||
जनपद के पहाड़ी भागों में कई छोटी-बड़ी झीलें स्थित हैं- जिनमें नैनीताल, [[भीमताल झील|भीमताल]], [[नौकुचिया ताल]], गरुड़ताल, रामताल, [[सात ताल झील|सातताल]], लक्ष्मणताल, नलदमयंतीताल, सूखाताल, मलवाताल, खुरपाताल, सड़ियाताल आदि हैं। नैनीताल के ताल के दोनों ओर सड़के हैं। ताल का मल्ला भाग मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है। मल्लीताल में फ्लैट का खुला मैदान है। मल्लीताल के फ्लैट पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं। यहाँ नित नये खेल-तमाशे होते रहते हैं। संध्या के समय जब सारी नैनीताल नगरी बिजली के प्रकाश में जगमगाने लगती है तो नैनीताल के ताल के देखने में ऐसा लगता है कि मानो सारी नगरी इसी ताल में डूब सी गयी है। संध्या समय तल्लीताल से मल्लीताल को आने वाले सैलानियों का तांता सा लग जाता है। इसी तरह मल्लीताल से तल्लीताल (माल रोड) जाने वाले प्रकृति प्रेमियों का काफिला देखने योग्य होता है। नैनीताल, पर्यटकों, सैलानियों पदारोहियों और पर्वतारोहियों का चहेता नगर है जिसे देखने प्रतिवर्ष हज़ारों लोग यहाँ आते हैं। कुछ ऐसे भी यात्री होते हैं जो केवल नैनीताल का "[[नैना देवी मन्दिर|नैनी देवी]]" के दर्शन करने और उस देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने की अभिलाषा से आते हैं। यह देवी कोई और न होकर स्वयं 'शिव पत्नी' नंदा ([[पार्वती]]) हैं। यह तालाब उन्हीं की स्मृति का द्योतक है। इस सम्बन्ध में पौराणिक कथा कही जाती है।<ref name="ignca"/> | जनपद के पहाड़ी भागों में कई छोटी-बड़ी झीलें स्थित हैं- जिनमें नैनीताल, [[भीमताल झील|भीमताल]], [[नौकुचिया ताल]], गरुड़ताल, रामताल, [[सात ताल झील|सातताल]], लक्ष्मणताल, नलदमयंतीताल, सूखाताल, मलवाताल, खुरपाताल, सड़ियाताल आदि हैं। नैनीताल के ताल के दोनों ओर सड़के हैं। ताल का मल्ला भाग मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है। मल्लीताल में फ्लैट का खुला मैदान है। मल्लीताल के फ्लैट पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं। यहाँ नित नये खेल-तमाशे होते रहते हैं। संध्या के समय जब सारी नैनीताल नगरी बिजली के प्रकाश में जगमगाने लगती है तो नैनीताल के ताल के देखने में ऐसा लगता है कि मानो सारी नगरी इसी ताल में डूब सी गयी है। संध्या समय तल्लीताल से मल्लीताल को आने वाले सैलानियों का तांता सा लग जाता है। इसी तरह मल्लीताल से तल्लीताल (माल रोड) जाने वाले प्रकृति प्रेमियों का काफिला देखने योग्य होता है। नैनीताल, पर्यटकों, सैलानियों पदारोहियों और पर्वतारोहियों का चहेता नगर है जिसे देखने प्रतिवर्ष हज़ारों लोग यहाँ आते हैं। कुछ ऐसे भी यात्री होते हैं जो केवल नैनीताल का "[[नैना देवी मन्दिर|नैनी देवी]]" के दर्शन करने और उस देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने की अभिलाषा से आते हैं। यह देवी कोई और न होकर स्वयं 'शिव पत्नी' नंदा ([[पार्वती]]) हैं। यह तालाब उन्हीं की स्मृति का द्योतक है। इस सम्बन्ध में पौराणिक कथा कही जाती है।<ref name="ignca"/> | ||
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{{main|नैनी झील}} | {{main|नैनी झील}} | ||
नैनी झील का नाम देवी नैनी के नाम पर पड़ा है। पर्यटकों के लिए यह सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत जगह है। ख़ासतौर से तब जब [[सूर्य|सूरज]] की किरणें पूरी झील को अपनी आग़ोश में ले लेती हैं। यह चारों तरफ से सात पहाड़ियों से घिरी हुई है। नैनीताल में नौंकायें और पैडलिंग का भी आनंद उठाया जा सकता है। मुख्य शहर से तक़रीबन ढाई किलोमीटर दूर बनी नैनी झील तक पहुँचने के लिए केबल कार का इस्तेमाल करना पड़ता है। यह सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। | नैनी झील का नाम देवी नैनी के नाम पर पड़ा है। पर्यटकों के लिए यह सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत जगह है। ख़ासतौर से तब जब [[सूर्य|सूरज]] की किरणें पूरी झील को अपनी आग़ोश में ले लेती हैं। यह चारों तरफ से सात पहाड़ियों से घिरी हुई है। नैनीताल में नौंकायें और पैडलिंग का भी आनंद उठाया जा सकता है। मुख्य शहर से तक़रीबन ढाई किलोमीटर दूर बनी नैनी झील तक पहुँचने के लिए केबल कार का इस्तेमाल करना पड़ता है। यह सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। | ||
====गर्नी हाउस==== | ====गर्नी हाउस==== | ||
गर्नी हाउस अंग्रेज़ शासक जिम कॉर्बेट का पूर्व निवास स्थल है। नैनीताल चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, ठीक उसी तरह गर्नी हाउस भी अयारपट्टा पहाड़ियों से घिरा है। गर्नी हाउस अब एक संग्रहालय बन चुका है और जिम कॉर्बेट की कई यादगार वस्तुएँ यहाँ मौजूद हैं। | गर्नी हाउस अंग्रेज़ शासक जिम कॉर्बेट का पूर्व निवास स्थल है। नैनीताल चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, ठीक उसी तरह गर्नी हाउस भी अयारपट्टा पहाड़ियों से घिरा है। गर्नी हाउस अब एक संग्रहालय बन चुका है और जिम कॉर्बेट की कई यादगार वस्तुएँ यहाँ मौजूद हैं। | ||
==जनसंख्या== | ==जनसंख्या== | ||
नैनीताल की कुल जनसंख्या ([[2001]] की गणना के अनुसार) 38,559 है। नैनीताल के कुल ज़िले की जनसंख्या 7,62,912 है, जिसमें पुरुष की संख्या 400336 तथा महिलाओं की संख्या 362576 है। | नैनीताल की कुल जनसंख्या ([[2001]] की गणना के अनुसार) 38,559 है। नैनीताल के कुल ज़िले की जनसंख्या 7,62,912 है, जिसमें पुरुष की संख्या 400336 तथा महिलाओं की संख्या 362576 है। | ||
==नए नैनीताल की खोज== | |||
सन् 1839 ई. में एक अंग्रेज़ व्यापारी पी. बैरन था। वह रोजा, जिला शाहजहाँपुर में चीनी का व्यापार करता था। इसी पी. बैरन नाम के अंग्रेज़ को पर्वतीय अंचल में घूमने का अत्यन्त शौक था। [[केदारनाथ]] और [[बद्रीनाथ]] की यात्रा करने के बाद यह उत्साही युवक अंग्रेज़ कुमाऊँ की मखमली धरती की ओर बढ़ता चला गया। एक बार खैरना नाम के स्थान पर यह अंग्रेज़ युवक अपने मित्र कैप्टन ठेलर के साथ ठहरा हुआ था। प्राकृतिक दृश्यों को देखने का इन्हें बहुत शौक था। उन्होंने एक स्थानीय व्यक्ति से जब 'शेर का डाण्डा' इलाके की जानकारी प्राप्त की तो उन्हें बताया गया कि सामने जो पर्वत हे, उसको ही 'शेर का डाण्डा' कहते हैं और वहीं पर्वत के पीछे एक सुन्दर ताल भी है। बैरन ने उस व्यक्ति से ताल तक पहुँचने का रास्ता पूछा, परन्तु घनघोर जंगल होने के कारण और जंगली पशुओं के डर से वह व्यक्ति तैयार न हुआ। परन्तु, विकट पर्वतारोही बैरन पीछे हटने वाले व्यक्ति नहीं थे। गाँव के कुछ लोगों की सहायता से पी. बैरन ने 'शेर का डाण्डा' (2360 मीटर) को पार कर नैनीताल की झील तक पहुँचने का सफल प्रयास किया। इस क्षेत्र में पहुँचकर और यहाँ की सुन्दरता देखकर पी. बैरन मन्त्रुमुग्ध हो गये। उन्होंने उसी दिन तय कर ड़ाला कि वे अब रोजा, [[शाहजहाँपुर]] की गर्मी को छोड़कर नैनीताल की इन आबादियों को ही आबाद करेंगे।<br /> | |||
पी. बैरन 'पिलग्रिम' के नाम से अपने यात्रा-विवरण अनेक अखबारों को भेजते रहते थे। बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा का वर्णन भी उन्होंने बहुत सुन्दर शब्दों में लिखा था। सन् 1841 की [[24 नवम्बर]] को, [[कलकत्ता]] के 'इंगलिश मैन' नामक अखबार में पहले-पहले नैनीताल के ताल की खोज खबर छपी थी। बाद में आगरा अखबार में भी इस बारे में पूरी जानकारी दी गयी थी। सन् 1844 में किताब के रुप में इस स्थान का विवरण पहली बार प्रकाश में आया था। बैरन साहब नैनीताल के इस अंचल के सौन्दर्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सारे इलाके को खरीदन का निश्चय कर लिया। पी. बैरन ने उस लाके के थोकदार से स्वयं बातचीत की कि वे इस सारे इलाके को उन्हें बेच दें।<br /> | |||
पहले तो थोकदार नूर सिंह तैयार हो गये थे, परन्तु बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया। बैरन इस अंचल से इतने प्रभावित थे कि वह हर कीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाके को अपने कब्जे में कर, एक सुन्दर नगर बसाने की योजना बना चुके थे। जब थोकदार नूरसिंह इस इलाके को बेचने से मना करने लगे तो एक दिन बैरन साहब अपनी किश्ती में बिठाकर नूरसिंह को नैनीताल के ताल में घुमाने के लिए ले गये। और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नूरसिंह से कहा कि तुम इस सारे क्षेत्र को बेचने के लिए जितना रुपया चाहो, ले लो, परन्तु यदि तुमने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया तो मैं तुमको इसी ताल में डूबो दूँगा। बैरन साहब खुद अपने विवरण में लिखते हैं कि डूबने के भय से नूरसींह ने स्टाम्प पेपर पर दस्तखत कर दिये और बाद में बैरन की कल्पना का नगर नैनीताल बस गया। सन् 1842 ई. में सबसे पहले मजिस्ट्रेट बेटल से बैरन ने आग्रह किया था कि उन्हें किसी ठेकेदार से परिचय करा दें ताकि वे इसी वर्ष 12 बंगले नैनीताल में बनवा सकें। सन् 1842 में बैरन ने सबसे पहले पिरग्रिम नाम के कॉटेज को बनवाया था। बाद में [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने इस सारे क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1842 ई. के बाद से ही नैनीताल एक ऐसा नगर बना कि सम्पूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी सुन्दरता की धाक जम गयी। [[उत्तर प्रदेश के राज्यपाल]] का ग्रीष्मकालीन निवास नैनीताल मेंं ही हुआ करता था। छः मास के लिए [[उत्तर प्रदेश]] के सभी सचिवालय नैनीताल जाते थे।<ref name="ignca"/> | |||
11:16, 17 नवम्बर 2014 का अवतरण
नैनीताल | नैनीताल पर्यटन | नैनीताल ज़िला |
नैनीताल
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विवरण | नैनीताल, उत्तरी उत्तराखंड राज्य के उत्तर मध्य भारत में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित है। 1841 में स्थापित यह नगर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो समुद्र तल से 1,934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। |
राज्य | उत्तराखंड |
ज़िला | नैनीताल |
निर्माता | पी. बेरून |
स्थापना | 1841 |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 29.38°, पूर्व- 79.45° |
मार्ग स्थिति | पंत नगर हवाई अड्डे से लगभग 63 किमी दूर है। |
प्रसिद्धि | झीलों के लिए |
कब जाएँ | अप्रैल-जून, सितंबर-अक्टूबर |
पंत नगर हवाई अड्डा | |
काठगोदाम रेलवे स्टेशन | |
नैनीताल बस अड्डा | |
क्या देखें | नैनीताल पर्यटन |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथिग्रह, रिजॉर्ट |
क्या ख़रीदें | गर्म ऊनी वस्त्र, हस्तशिल्प वस्तुएँ और मोमबत्तियाँ |
एस.टी.डी. कोड | 05942 |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | नैनी झील, सात ताल झील, भीमताल झील, नौकुचिया ताल, त्रिऋषि सरोवर, मुक्तेश्वर
|
अन्य जानकारी | पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है। |
अद्यतन | 20:12, 18 नवम्बर 2014 (IST)
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नैनीताल (अंग्रेज़ी: Nainital) भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। नैनीताल, उत्तराखंड के उत्तर मध्य भारत में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित एक नगर है। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। बर्फ़ से ढके पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। इसलिए इसे 'झीलों का शहर' भी कहा जाता है। नैनीताल को चाहे जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है। इसे भारत का 'लेक डिस्ट्रिक्ट' कहा जाता है, क्योंकि इसकी पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। इसकी भौगोलिक विशेषता निराली है। नैनीताल का सबसे कम तापमान 27.06°C से 8.06°C के बीच रहता है। नैनीताल का दृश्य नैनों को सुख देता है।
भौगोलिक स्थिति
नैनीताल शहर उत्तर-मध्य भारत के उत्तरी उत्तराखंड राज्य में शिवालिक पर्वतश्रेणी में स्थित है। 1841 में स्थापित यह नगर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो समुद्र तल से 1,934 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर एक सुंदर झील के आस-पास बसा हुआ है और इसके चारों ओर वनाच्छादित पहाड़ हैं। नैनीताल के उत्तर में अल्मोड़ा, पूर्व में चम्पावत, दक्षिण में ऊधमसिंह नगर और पश्चिम में पौड़ी एवं उत्तर प्रदेश की सीमाएँ मिलती हैं। जनपद के उत्तरी भाग में हिमालय क्षेत्र तथा दक्षिण में मैदानी भाग हैं जहाँ सालों भर आनंददायक मौसम रहता है।
इतिहास
नैनीताल को पी. बेरून नामक व्यक्ति द्वारा वर्ष 1841 में स्थापित किया गया था। पी. बेरून पहला यूरोपियन था। नैनीताल अंग्रेज़ों का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय था। 1847 में नैनीताल मशहूर हिल स्टेशन बना, अंग्रेज़ इसे 'समर कैपिटल' भी कहते थे। तब से लेकर आज तक यह अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है। औपनिवेशिक काल में नैनीताल शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बनकर उभरा। अपने बच्चों को बेहतर माहौल में पढ़ाने के लिए अंग्रेज़ों को यह जगह काफ़ी पसंद आई थी। उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए भी व्यापक इंतज़ाम किए थे। पहाड़ियों से घिरी नैनी झील और इसके आस-पास की तमाम झीलें आकर्षण का केन्द्र बन गयी थीं और प्रत्येक यूरोपियन नागरिक यहाँ बसने की लालसा लेकर आने लगे। बाद में ब्रिटिश-भारतीय सरकार ने नैनीताल को यूनाइटेड प्रोविन्सेज की गर्मियों की राजधानी घोषित कर दिया और इसी दौरान यहाँ तमाम यूरोपीय शैली की इमारतों का निर्माण हुआ, गवर्नर हाऊस और सेन्ट जॉन चर्च इस निर्माण कला के अद्भुत उदाहरण है।
नामकरण
देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल ज़िले में सबसे अधिक ताल हैं। यहाँ पर 'नैनीताल' जो नैनीताल जिले के अन्दर आता है। यहाँ का यह मुख्य आकर्षण केन्द्र है। तीनों ओर से घने-घने वृक्षों की छाया में ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की तलहटी में नैनीताल समुद्रतल से 1938 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस ताल की लम्बाई 1,358 मीटर, चौड़ाई 458 मीटर और गहराई 15 से 156 मीटर तक आंकी गयी है। नैनीताल के जल की विशेषता यह है कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट दिखाई देती है। आकाश मण्डल पर छाये हुए बादलों का प्रतिविम्भ इस तालाब में इतना सुन्दर दिखाई देता है कि इस प्रकार के प्रतिबिम्ब को देखने के लिए सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रकृति प्रेमी नैनीताल आते - जाते हैं। जल में विहार करते हुए बत्तखों का झुण्ड, थिरकती हुई तालों पर इठलाती हुई नौकाओं तथा रंगीन बोटों का दृश्य और चाँद-तारों से भरी रात का सौन्दर्य नैनीताल के ताल की शोभा बढ़ाने में चार-चाँद लगा देता है। इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है। गर्मियों में इसका पानी हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है।[1]
नैनीदेवी का नैनीताल
पौराणिक कथा के अनिसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु यह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपनी निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्यवं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र-रुप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु, सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे; वहीं पर नैनादेवी के रुप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अप्पुधार ने यहाँ पर ताल का रुप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। नैनीताल के ताल की बनावट भी देखें तो वह आँख की आकृति का 'ताल' है। इसके पौराणिक महत्व के कारण ही इस ताल की श्रेष्ठता बहुत आँकी जाती है। नैनी (नंदा) देवी की पूजा यहाँ पर पुराण युग से होती रही है।
कुमाऊँ के चन्द राजाओं की इष्ट देवी भी नन्दा ही थी, जिनकी वे निरन्तर यहाँ आकर पूजा करते रहते थे। एक जनश्रुति ऐसी भी कही जाती है कि चंदवंशीय राजकुमारी नन्दा थी जिसको एक देवी के रूप में पूजा जाता था। परन्तु इस कथा में कोई दम नहीं है, क्योंकि समस्त पर्वतीय अंचल में नन्दा को ही इष्ट देवी के रुप में स्वीकारा गया है। गढ़वाल और कुमाऊँ के राजाओं की भी नन्दा देवी इष्ट रही है। गढ़वाल और कुमाऊँ की जनता के द्वारा प्रतिवर्ष नन्दा अष्टमी के दिन नंदापार्वती की विशेष पूजा होती है। नन्दा के मायके से ससुराल भेजने के लिए भी 'नन्दा जात' का आयोजन गढ़वाल-कुमाऊँ की जनता निरन्तर करती रही है। अतः नन्दापार्वती की पूजा - अर्चना के रुप में इस स्थान का महत्व युग-युगों से आंका गया है। यहाँ के लोग इसी रुप में नन्दा के 'नैनीताल' की परिक्रमा करते आ रहे हैं।[1]
कृषि और खनिज
नैनीताल में 52,000 हैक्टेयर भूमि कृषि के लिए प्रयोग की जाती है जिसमें से 45,000 हैक्टेयर भूमि सिंचाई के लिए प्रयोग की जाती है। सिंचाई के मुख्य श्रोत नहर तथा नलकूप हैं। 24,203 हैक्टेयर भूमि नहरों द्वारा और 3366 हैक्टेयर भूमि नलकूपों द्वारा सिंचित हो्ती है। नैनीताल की मुख्य फ़सलें: गेहूँ, मंडुआ, मक्का, जौ, झंगोरा, कौणी, भट्ट, तोर, धान, गन्ना, मटर, सोयाबीन हैं। फलों में सेब, नाशपाती, आडू, खुमानी आदि भी उगाए जाते हैं।
शिक्षण संस्थान
नैनीताल में बहुत अच्छे स्कूल एवं कॉलेज हैं। योरोपियन मिशनरियों के यहाँ कई स्कूल खुले हैं जिनमें से सेंट जोसेफ़ कॉलेज, शेरवुड कॉलेज, सेन्टमेरी कॉन्वेंट स्कूल और आल सेन्ट स्कूल प्रसिद्ध है। बिरला का बालिका विद्यालय और बिरला पब्लिक स्कूल भी प्रसिद्ध है। नैनीताल में पॉलिटेकनिक है। नैनीताल में कुमाऊँ विश्वविद्यालय भी स्थापित है, जहाँ पर हर प्रकार की शिक्षा दी जाती है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय में नये-नये विषय पढ़ाये जाते हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए देख के कोने-कोने से विद्यार्थी यहाँ आते हैं।[1]
यातायात और परिवहन
नैनीताल सड़क मार्ग द्वारा दक्षिण में स्थित काठगोदाम के रेलवे टर्मिनल से जुड़ा हुआ है। पंतनगर नैनीताल का निकटतम हवाई अड्डा है। नैनीताल हवाई अड्डे से 71 किमी दूर है। पंतनगर से भी नैनीताल के लिए बसें उपलब्ध है। रेलवे स्टेशन काठगोदाम के निकट है। बरेली, लखनऊ, दिल्ली और आगरा नैनीताल से रेलमार्ग द्वारा जुड़े हुए है। बस और टैक्सियाँ काठगोदाम से नैनीताल के लिए उपलब्ध हैं। नैनीताल और देहरादून, अल्मोड़ा, रानीखेत, बरेली, हरिद्वार, रामनगर, दिल्ली, लखनऊ और अन्य राज्यों में महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच निजी और सार्वजनिक बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।
पर्यटन
नैनीताल अपने तालों के लिए प्रसिद्ध है। प्रमुख स्थलों में नैनी झील, तल्ली एवं मल्ली ताल और मॉल रोड शामिल हैं। नैनीताल के पर्यटन स्थलों में स्नो व्यू पॉइंट, जहाँ 'रोप वे' से पहुँचा जा सकता है। झील के किनारे स्थित सबसे ऊँची नैनी चोटी, लैंड्स एंड, हनुमान गढ़ी, स्टेट ऑबज़रवेटरी और नैनीताल के लोकप्रिय विहार स्थल शामिल हैं। आस-पास के दर्शनीय स्थलों में सातताल, भीमताल और नौ किनारों वाला नौकुचिया ताल, संरक्षित वन किलबरी, खुरपा ताल, लोकप्रिय आरामगाह भोवाली, ढिकाला स्थित जिम कॉर्बेट संग्रहालय और मुक्तेश्वर, जो हिमालय का मनमोहक दृश्य पेश करता है। यहाँ झील के आस-पास बने शानदार बंगलों और होटलों में रुकने का अपना ही आनन्द है। गर्मियों में यहाँ बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। यहाँ की झील, मंदिर, बाज़ार पर्यटकों को लुभाते हैं।
कब जाएँ
नैनीताल में अनेक ऐसे स्थान हैं जहाँ जाकर सैलानी अपने - आपको भूल जाते हैं। यहाँ अब लोग ग्रीष्म काल में नहीं आते, बल्कि वर्ष भर आते रहते हैं। सर्दियों में बर्फ के गिरने के दृश्य को देखने हजारों पर्यटक यहाँ पहुँचते रहते हैं। रहने के लिए नैनीताल में किसी भी प्रकार की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक होटल हैं। आधुनिक सुविधाओं की नैनीताल में आज कोई कमी नहीं है। इसलिए सैलानी और पर्यटक यहाँ आना अधिक उपयुक्त समझते हैं। नैनीताल में अप्रैल से जून और सितम्बर से दिसम्बर तक दो सीजन होते हैं। सम्पूर्ण देश के पूँजीपति, व्यापारी, उद्योगपति, राजा-महाराजा और सैलानी यहाँ आते हैं। इस मौसम में टेनिस, पोलो, हॉकी, फुटबाल, गॉल्फ, मछली मारने और नौका दौड़ाने के खेलों की प्रतियोगिता होती है। इन खेलों के शौकीन देश के विभिन्न नगरों से यहाँ आते हैं। पिकनिक के लिए भी लोगों का ताँता नगा रहता है। इसी मौसम में नाना प्राकर के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। सितम्बर से दिसम्बर का मौसम भी बहुत सुन्दर रहता है। ऐसे समय में आकाश साफ रहता है। प्रायः इस मोसम में होटलों का किराया भी कम हो जाता है। बहुत से प्रकृति प्रेमी इसी मौसम में नैनीताल आते हैं। जनवरी और फरवरी के दो ऐसे महीने होते हैं जब नैनीताल में बर्फ गिरती है। बहुत से नवविवाहित दम्पतियाँ अपनी 'मधु यामिनी' हेतु नैनीताल आते हैं। तात्पर्य यह है कि यह सुखद और शान्ति का जीवन बिताने का मौसम है। नैनीताल में घूमने के बाद सैलानी पीक देखना भी नहीं भूलते। आजकल नैनीताल के आकर्षण में रज्जुमार्ग (रोप वे) की सवारी भी विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गयी है। सुबह, शाम और दिन में सैलानी नैनीताल के ताल में जहां बोट की सवारी करते हैं, वहाँ घोड़ों पर चढ़कर घुड़सवारी का भी आनन्द लेते हैं। शरदकाल में और ग्रीष्मकाल में यहाँ बड़ी रौनक रहती है। शरदोत्सव के समय पर नौकाचालन, तैराकी, घोड़ो का सवारी और पर्वतारोहम जैसे मनोरंजन और चुनौती भरे सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।[1]
नैनीताल के ताल
जनपद के पहाड़ी भागों में कई छोटी-बड़ी झीलें स्थित हैं- जिनमें नैनीताल, भीमताल, नौकुचिया ताल, गरुड़ताल, रामताल, सातताल, लक्ष्मणताल, नलदमयंतीताल, सूखाताल, मलवाताल, खुरपाताल, सड़ियाताल आदि हैं। नैनीताल के ताल के दोनों ओर सड़के हैं। ताल का मल्ला भाग मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है। मल्लीताल में फ्लैट का खुला मैदान है। मल्लीताल के फ्लैट पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से आए हुए सैलानी एकत्र हो जाते हैं। यहाँ नित नये खेल-तमाशे होते रहते हैं। संध्या के समय जब सारी नैनीताल नगरी बिजली के प्रकाश में जगमगाने लगती है तो नैनीताल के ताल के देखने में ऐसा लगता है कि मानो सारी नगरी इसी ताल में डूब सी गयी है। संध्या समय तल्लीताल से मल्लीताल को आने वाले सैलानियों का तांता सा लग जाता है। इसी तरह मल्लीताल से तल्लीताल (माल रोड) जाने वाले प्रकृति प्रेमियों का काफिला देखने योग्य होता है। नैनीताल, पर्यटकों, सैलानियों पदारोहियों और पर्वतारोहियों का चहेता नगर है जिसे देखने प्रतिवर्ष हज़ारों लोग यहाँ आते हैं। कुछ ऐसे भी यात्री होते हैं जो केवल नैनीताल का "नैनी देवी" के दर्शन करने और उस देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने की अभिलाषा से आते हैं। यह देवी कोई और न होकर स्वयं 'शिव पत्नी' नंदा (पार्वती) हैं। यह तालाब उन्हीं की स्मृति का द्योतक है। इस सम्बन्ध में पौराणिक कथा कही जाती है।[1]
नैनी झील
नैनी झील का नाम देवी नैनी के नाम पर पड़ा है। पर्यटकों के लिए यह सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत जगह है। ख़ासतौर से तब जब सूरज की किरणें पूरी झील को अपनी आग़ोश में ले लेती हैं। यह चारों तरफ से सात पहाड़ियों से घिरी हुई है। नैनीताल में नौंकायें और पैडलिंग का भी आनंद उठाया जा सकता है। मुख्य शहर से तक़रीबन ढाई किलोमीटर दूर बनी नैनी झील तक पहुँचने के लिए केबल कार का इस्तेमाल करना पड़ता है। यह सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है।
गर्नी हाउस
गर्नी हाउस अंग्रेज़ शासक जिम कॉर्बेट का पूर्व निवास स्थल है। नैनीताल चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, ठीक उसी तरह गर्नी हाउस भी अयारपट्टा पहाड़ियों से घिरा है। गर्नी हाउस अब एक संग्रहालय बन चुका है और जिम कॉर्बेट की कई यादगार वस्तुएँ यहाँ मौजूद हैं।
जनसंख्या
नैनीताल की कुल जनसंख्या (2001 की गणना के अनुसार) 38,559 है। नैनीताल के कुल ज़िले की जनसंख्या 7,62,912 है, जिसमें पुरुष की संख्या 400336 तथा महिलाओं की संख्या 362576 है।
नए नैनीताल की खोज
सन् 1839 ई. में एक अंग्रेज़ व्यापारी पी. बैरन था। वह रोजा, जिला शाहजहाँपुर में चीनी का व्यापार करता था। इसी पी. बैरन नाम के अंग्रेज़ को पर्वतीय अंचल में घूमने का अत्यन्त शौक था। केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा करने के बाद यह उत्साही युवक अंग्रेज़ कुमाऊँ की मखमली धरती की ओर बढ़ता चला गया। एक बार खैरना नाम के स्थान पर यह अंग्रेज़ युवक अपने मित्र कैप्टन ठेलर के साथ ठहरा हुआ था। प्राकृतिक दृश्यों को देखने का इन्हें बहुत शौक था। उन्होंने एक स्थानीय व्यक्ति से जब 'शेर का डाण्डा' इलाके की जानकारी प्राप्त की तो उन्हें बताया गया कि सामने जो पर्वत हे, उसको ही 'शेर का डाण्डा' कहते हैं और वहीं पर्वत के पीछे एक सुन्दर ताल भी है। बैरन ने उस व्यक्ति से ताल तक पहुँचने का रास्ता पूछा, परन्तु घनघोर जंगल होने के कारण और जंगली पशुओं के डर से वह व्यक्ति तैयार न हुआ। परन्तु, विकट पर्वतारोही बैरन पीछे हटने वाले व्यक्ति नहीं थे। गाँव के कुछ लोगों की सहायता से पी. बैरन ने 'शेर का डाण्डा' (2360 मीटर) को पार कर नैनीताल की झील तक पहुँचने का सफल प्रयास किया। इस क्षेत्र में पहुँचकर और यहाँ की सुन्दरता देखकर पी. बैरन मन्त्रुमुग्ध हो गये। उन्होंने उसी दिन तय कर ड़ाला कि वे अब रोजा, शाहजहाँपुर की गर्मी को छोड़कर नैनीताल की इन आबादियों को ही आबाद करेंगे।
पी. बैरन 'पिलग्रिम' के नाम से अपने यात्रा-विवरण अनेक अखबारों को भेजते रहते थे। बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा का वर्णन भी उन्होंने बहुत सुन्दर शब्दों में लिखा था। सन् 1841 की 24 नवम्बर को, कलकत्ता के 'इंगलिश मैन' नामक अखबार में पहले-पहले नैनीताल के ताल की खोज खबर छपी थी। बाद में आगरा अखबार में भी इस बारे में पूरी जानकारी दी गयी थी। सन् 1844 में किताब के रुप में इस स्थान का विवरण पहली बार प्रकाश में आया था। बैरन साहब नैनीताल के इस अंचल के सौन्दर्य से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सारे इलाके को खरीदन का निश्चय कर लिया। पी. बैरन ने उस लाके के थोकदार से स्वयं बातचीत की कि वे इस सारे इलाके को उन्हें बेच दें।
पहले तो थोकदार नूर सिंह तैयार हो गये थे, परन्तु बाद में उन्होंने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया। बैरन इस अंचल से इतने प्रभावित थे कि वह हर कीमत पर नैनीताल के इस सारे इलाके को अपने कब्जे में कर, एक सुन्दर नगर बसाने की योजना बना चुके थे। जब थोकदार नूरसिंह इस इलाके को बेचने से मना करने लगे तो एक दिन बैरन साहब अपनी किश्ती में बिठाकर नूरसिंह को नैनीताल के ताल में घुमाने के लिए ले गये। और बीच ताल में ले जाकर उन्होंने नूरसिंह से कहा कि तुम इस सारे क्षेत्र को बेचने के लिए जितना रुपया चाहो, ले लो, परन्तु यदि तुमने इस क्षेत्र को बेचने से मना कर दिया तो मैं तुमको इसी ताल में डूबो दूँगा। बैरन साहब खुद अपने विवरण में लिखते हैं कि डूबने के भय से नूरसींह ने स्टाम्प पेपर पर दस्तखत कर दिये और बाद में बैरन की कल्पना का नगर नैनीताल बस गया। सन् 1842 ई. में सबसे पहले मजिस्ट्रेट बेटल से बैरन ने आग्रह किया था कि उन्हें किसी ठेकेदार से परिचय करा दें ताकि वे इसी वर्ष 12 बंगले नैनीताल में बनवा सकें। सन् 1842 में बैरन ने सबसे पहले पिरग्रिम नाम के कॉटेज को बनवाया था। बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस सारे क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1842 ई. के बाद से ही नैनीताल एक ऐसा नगर बना कि सम्पूर्ण देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसकी सुन्दरता की धाक जम गयी। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन निवास नैनीताल मेंं ही हुआ करता था। छः मास के लिए उत्तर प्रदेश के सभी सचिवालय नैनीताल जाते थे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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