"बेन इज़राइल": अवतरणों में अंतर
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उनका पहला आराधना गृह 1797 में ब्रिटिश भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त अधिकारी सैमुएल इज़ेकिल (सामाजी हासाजी) दिवेकर द्वारा बंबई में बनवाया गया था। जोज़ेक इज़ेकिल राजपुरकर ने यहूदियों की पवित्र पुस्तकों का मराठी में अनुवाद प्रकाशित किया। राजपुरकर अन्य बेन इज़राइलियों की तरह 'बंबई विश्वविद्यालय' में हिब्रू पढ़ाने थे। बेंजामिन सैम्सन अस्तामकर [[मराठी भाषा]] के कीर्तनों के लोकप्रिय संगीतकार और गायक थे। हईम एस, केहिमकर ने [[1897]] में बेन इज़राइल का इतिहास लिखा था।<ref name="aa"/> | उनका पहला आराधना गृह 1797 में ब्रिटिश भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त अधिकारी सैमुएल इज़ेकिल (सामाजी हासाजी) दिवेकर द्वारा बंबई में बनवाया गया था। जोज़ेक इज़ेकिल राजपुरकर ने यहूदियों की पवित्र पुस्तकों का मराठी में अनुवाद प्रकाशित किया। राजपुरकर अन्य बेन इज़राइलियों की तरह 'बंबई विश्वविद्यालय' में हिब्रू पढ़ाने थे। बेंजामिन सैम्सन अस्तामकर [[मराठी भाषा]] के कीर्तनों के लोकप्रिय संगीतकार और गायक थे। हईम एस, केहिमकर ने [[1897]] में बेन इज़राइल का इतिहास लिखा था।<ref name="aa"/> | ||
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20वीं शताब्दी के | 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इज़राइल में बेन इज़राइलियों की संख्या अनुमानत: 30,000 से 40,000 के बीच और [[भारत]] में 5,000 से 6,000 के बीच थी। | ||
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11:14, 1 जून 2017 के समय का अवतरण
बेन इज़राइल भारत का सबसे बड़ा यहूदी समूह है। यद्यपि प्रारंभिक 17वीं शताब्दी में यहूदियों के लिखित इतिहास में मराठी भाषी समुदाय का ज़िक्र है, लेकिन सबसे पहले दृष्टिगोचर होने वाले प्रामाणिक स्मारक 18वीं शताब्दी के हैं। 18वीं शताब्दी के अंत तक कोंकण क्षेत्र के ग्रामों में बेन इज़राइल समुदाय के लोग तेल निकालने और खेतीबाड़ी का काम करते थे।
इतिहास
बेन इज़राइल परंपरा के अनुसार, सैकडों वर्ष पहले उनके पूर्वजों का जहाज़ मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के दक्षिण में कोंकण मैदान के नवगांव में ध्वस्त हो गया था। इस दुर्घटना में मरे हुए लोगों को दफ़ना दिया गया, वहाँ पिछले कुछ वर्षों के दौरान ही स्मारक बनाया गया है और बचे हुए लोग इस समुदाय के पुरखे रहे। यह समुदाय वर्तमान मुंबई के पास कोंकण के तटीय मैदानों में स्थित गांवों में रहता था।[1]
व्यवसाय
18वीं शताब्दी के अंत तक कोंकण क्षेत्र के गांवों में बेन इज़राइल समुदाय के लोग तेल निकालने और खेतीबाड़ी का काम करते थे और उन्हें "शनिवार तेली" कहा जाता था, जो उनके तेल निकालने के पेशे और शनिवारी सैबथ को धार्मिक विश्राम दिवस मनाने का सूचक था। कहा जाता है कि वे 'शेमा प्रार्थना' जानते थे। अपने लड़कों का ख़तना करवाते थे और विभिन्न यहूदी छुट्टियों का पालन करते थे। उन्हें 'हिब्रू भाषा' का प्रारंभिक और यहूदी परंपरा का थोड़ा ज्ञान था। बेन इज़ाराइल भारतीय तथा ब्रिटिश शासकों के लिए प्रमुख सैनिक भी रहे थे।
18वीं तथा 19वीं शताब्दी में कई बेन इज़राइली लोग विकसित होते मुंबई शहर में आ गए, जहां वे बढ़ई के रूप में जाने गए। समय के साथ ही बेन इज़राइलियों के शैक्षिक स्तर और अंग्रेज़ी ज्ञान में वृद्धि हुई और वे लिपिकीय तथा व्यावसायिक कार्यों में आने लगे। उनमें से कई लोग बग़दादी यहूदी ससूनों की कपड़ा मिलों में काम करने लगे।
आराधना गृह
उनका पहला आराधना गृह 1797 में ब्रिटिश भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त अधिकारी सैमुएल इज़ेकिल (सामाजी हासाजी) दिवेकर द्वारा बंबई में बनवाया गया था। जोज़ेक इज़ेकिल राजपुरकर ने यहूदियों की पवित्र पुस्तकों का मराठी में अनुवाद प्रकाशित किया। राजपुरकर अन्य बेन इज़राइलियों की तरह 'बंबई विश्वविद्यालय' में हिब्रू पढ़ाने थे। बेंजामिन सैम्सन अस्तामकर मराठी भाषा के कीर्तनों के लोकप्रिय संगीतकार और गायक थे। हईम एस, केहिमकर ने 1897 में बेन इज़राइल का इतिहास लिखा था।[1]
संख्या
20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इज़राइल में बेन इज़राइलियों की संख्या अनुमानत: 30,000 से 40,000 के बीच और भारत में 5,000 से 6,000 के बीच थी।
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