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'''विश्नोई''' [[उत्तर भारत]] की एक जनजाति है। इस जाति के लोग [[राजस्थान]] में प्रमुखत: निवास करते हैं। ये लोग जात-पात में विश्वास नहीं रखते। अत: [[हिन्दू]] तथा [[मुसलमान]] दोनों ही इनको स्वीकार करते हैं। विश्नोई लोग [[नीला रंग|नीले रंग]] के कपड़े पहनना पसंद नहीं करते। विश्नोई स्त्रियाँ [[लाल रंग|लाल]] और [[काला रंग|काले]] ऊन के कपड़े पहनती हैं। जाम्भोजी की शिक्षाओं का विश्नोईयों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था। इसीलिए इस सम्प्रदाय के लोग न तो मांस खाते हैं और न ही शराब पीते हैं।
'''विश्नोई''' [[उत्तर भारत]] की एक जनजाति है। इस जाति के लोग [[राजस्थान]] में प्रमुखत: निवास करते हैं। ये लोग जात-पात में विश्वास नहीं रखते। अत: [[हिन्दू]] तथा [[मुसलमान]] दोनों ही इनको स्वीकार करते हैं। विश्नोई लोग [[नीला रंग|नीले रंग]] के कपड़े पहनना पसंद नहीं करते। विश्नोई स्त्रियाँ [[लाल रंग|लाल]] और [[काला रंग|काले]] ऊन के कपड़े पहनती हैं। जाम्भोजी की शिक्षाओं का विश्नोईयों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था। इसीलिए इस सम्प्रदाय के लोग न तो मांस खाते हैं और न ही शराब पीते हैं।
==वेशभूषा==
==वेशभूषा==
विश्नोई महिलाएँ लाल और काली ऊन के कपड़े पहनती हैं। वे सिर्फ लाख का चूड़ा ही पहनती हैं। वे न तो बदन गुदाती हैं न ही [[दाँत|दाँतों]] पर [[सोना]] चढ़ाती है। [[साधु]] कान तक आने वाली तीखी जाम्भोजी टोपी एवं चपटे मनकों की आबनूस की काली माला पहनते हैं। महन्त प्राय: धोती, कमीज और सिर पर भगवा साफा बाँधते हैं।
विश्नोई महिलाएँ लाल और काली ऊन के कपड़े पहनती हैं। वे सिर्फ लाख का चूड़ा ही पहनती हैं। वे न तो बदन गुदाती हैं न ही [[दाँत|दाँतों]] पर [[सोना]] चढ़ाती है। [[साधु]] कान तक आने वाली तीखी जाम्भोजी टोपी एवं चपटे मनकों की आबनूस की काली माला पहनते हैं। महन्त प्राय: धोती, कमीज और सिर पर भगवा साफ़ा बाँधते हैं।
==धार्मिक विश्वास==
==धार्मिक विश्वास==
विश्नोईयों में शव को गाड़ने की प्रथा प्रचलित थी। विश्नोई सम्प्रदाय मूर्ति पूजा में विश्वास महीं करता है। अत: जाम्भोजी के मंदिर और साथरियों में किसी प्रकार की मूर्ति नहीं होती है। कुछ स्थानों पर इस सम्प्रदाय के सदस्य जाम्भोजी की वस्तुओं की [[पूजा]] करते हैं। जैसे कि पीपसार में जाम्भोजी की खड़ाऊ जोड़ी, मुकाम में टोपी, पिछोवड़ों जांगलू में भिक्षा पात्र तथा चोला एवं लोहावट में पैर के निशानों की पूजा की जाती है। वहाँ प्रतिदिन हवन-भजन होता है और [[विष्णु]] की स्तुति एवं उपासना, संध्यादि कर्म तथा जम्भा जागरण भी सम्पन्न होता है।
विश्नोईयों में शव को गाड़ने की प्रथा प्रचलित थी। विश्नोई सम्प्रदाय मूर्ति पूजा में विश्वास महीं करता है। अत: जाम्भोजी के मंदिर और साथरियों में किसी प्रकार की मूर्ति नहीं होती है। कुछ स्थानों पर इस सम्प्रदाय के सदस्य जाम्भोजी की वस्तुओं की [[पूजा]] करते हैं। जैसे कि पीपसार में जाम्भोजी की खड़ाऊ जोड़ी, मुकाम में टोपी, पिछोवड़ों जांगलू में भिक्षा पात्र तथा चोला एवं लोहावट में पैर के निशानों की पूजा की जाती है। वहाँ प्रतिदिन हवन-भजन होता है और [[विष्णु]] की स्तुति एवं उपासना, संध्यादि कर्म तथा जम्भा जागरण भी सम्पन्न होता है।

12:16, 5 जुलाई 2017 का अवतरण

जोधपुर, राजस्थान में विश्नोई महिला

विश्नोई उत्तर भारत की एक जनजाति है। इस जाति के लोग राजस्थान में प्रमुखत: निवास करते हैं। ये लोग जात-पात में विश्वास नहीं रखते। अत: हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही इनको स्वीकार करते हैं। विश्नोई लोग नीले रंग के कपड़े पहनना पसंद नहीं करते। विश्नोई स्त्रियाँ लाल और काले ऊन के कपड़े पहनती हैं। जाम्भोजी की शिक्षाओं का विश्नोईयों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था। इसीलिए इस सम्प्रदाय के लोग न तो मांस खाते हैं और न ही शराब पीते हैं।

वेशभूषा

विश्नोई महिलाएँ लाल और काली ऊन के कपड़े पहनती हैं। वे सिर्फ लाख का चूड़ा ही पहनती हैं। वे न तो बदन गुदाती हैं न ही दाँतों पर सोना चढ़ाती है। साधु कान तक आने वाली तीखी जाम्भोजी टोपी एवं चपटे मनकों की आबनूस की काली माला पहनते हैं। महन्त प्राय: धोती, कमीज और सिर पर भगवा साफ़ा बाँधते हैं।

धार्मिक विश्वास

विश्नोईयों में शव को गाड़ने की प्रथा प्रचलित थी। विश्नोई सम्प्रदाय मूर्ति पूजा में विश्वास महीं करता है। अत: जाम्भोजी के मंदिर और साथरियों में किसी प्रकार की मूर्ति नहीं होती है। कुछ स्थानों पर इस सम्प्रदाय के सदस्य जाम्भोजी की वस्तुओं की पूजा करते हैं। जैसे कि पीपसार में जाम्भोजी की खड़ाऊ जोड़ी, मुकाम में टोपी, पिछोवड़ों जांगलू में भिक्षा पात्र तथा चोला एवं लोहावट में पैर के निशानों की पूजा की जाती है। वहाँ प्रतिदिन हवन-भजन होता है और विष्णु की स्तुति एवं उपासना, संध्यादि कर्म तथा जम्भा जागरण भी सम्पन्न होता है।

पूजा स्थान

एक विश्नोई स्त्री

राजस्थान में जोधपुर तथा बीकानेर में बड़ी संख्या में इस सम्प्रदाय के मंदिर और साथरियां बनी हुई हैं। मुकाम नामक स्थान पर इस सम्प्रदाय का मुख्य मंदिर बना हुआ है। यहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन की अमावस्या को एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं। इस सम्प्रदाय के अन्य तीर्थस्थानों में जांभोलाव, पीपासार, संभराथल, जांगलू, लोहावर, लालासार आदि तीर्थ विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। इनमें जांभोलाव विश्नोईयों का तीर्थराज तथा संभराथल मथुरा और द्वारिका के सदृश माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त रायसिंह नगर, पदमपुर, चक, पीलीबंगा, संगरिया, तन्दूरवाली, श्रीगंगानगर, रिडमलसर, लखासर, कोलायत (बीकानेर), लाम्बा, तिलवासणी, अलाय (नागौर) एवं पुष्कर आदि स्थानों पर भी इस सम्प्रदाय के छोटे -छोटे मंदिर बने हुए हैं।

जात-पात की समानता

इस सम्प्रदाय के लोग जात-पात में विश्वास नहीं रखते। अत: हिन्दू-मुसलमान दोनों ही जाति के लोग इनको स्वीकार करते हैं। जंभसार लक्ष्य से इस बात की पुष्टि होती है कि सभी जातियों के लोग इस सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। उदाहरणस्वरुप, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तेली, धोबी, खाती, नाई, डमरु, भाट, छीपा, मुसलमान, जाट एवं साईं आदि जाति के लोगों ने मंत्रित जल लेकर इस सम्प्रदाय में दीक्षा ग्रहण की।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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