"अर्जन सिंह": अवतरणों में अंतर
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'''अर्जन सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Arjan Singh'', जन्म- [[16 अप्रॅल]], [[1919]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[16 सितम्बर]], [[2017]], [[दिल्ली]]) [[भारतीय | {{सूचना बक्सा सैनिक | ||
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'''अर्जन सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Arjan Singh'', जन्म- [[16 अप्रॅल]], [[1919]], [[पंजाब]]; मृत्यु- [[16 सितम्बर]], [[2017]], [[दिल्ली]]) [[भारतीय वायु सेना]] के सबसे वरिष्ठ और पांच सितारा वाले रैंक तक पहुँचने वाले एकमात्र मार्शल थे। उन्हें [[2002]] में [[गणतंत्र दिवस]] के अवसर पर मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया था। अर्जन सिंह को [[1965]] में [[भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965)|भारत-पाकिस्तान युद्ध]] में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। उन्हें 44 साल की उम्र में ही भारतीय वायु सेना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे उन्होंने शानदार तरीके से निभाया। अलग-अलग तरह के 60 से भी ज्यादा विमान उड़ाने वाले अर्जन सिंह ने भारतीय वायु सेना को दुनिया की सबसे शक्तिशाली वायु सेनाओं में से एक बनाने और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को पंजाब के लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में ब्रिटिशकालीन भारत के एक प्रतिष्ठित सैन्य परिवार हुआ था। उनके [[पिता]] रिसालदार थे। वे एक डिवीजन कमांडर के एडीसी के रूप में सेवा प्रदान करते थे। उनके दादा रिसालदार मेजर हुकम सिंह सन [[1883]] और [[1917]] के बीच कैवलरी से संबंधित थे। उनके दादा, नायब रिसालदार सुल्ताना सिंह, 1854 में मार्गदर्शिका कैवलरी की पहली दो पीढ़ियों में शामिल थे। वे सन [[1879]] के [[अफ़ग़ान]] अभियान के दौरान शहीद हुए थे। अर्जन सिंह मांटगोमरी (अब पाकिस्तान में) में शिक्षित थे। उन्होंने [[1938]] में आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल में प्रवेश किया और [[दिसंबर]], [[1939]] में एक पायलट अधिकारी के रूप में नियुक्ति पाई। इसके बाद सन [[1944]] में उन्होंने [[भारतीय | अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को पंजाब के [[लायलपुर]] (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में ब्रिटिशकालीन भारत के एक प्रतिष्ठित सैन्य परिवार हुआ था। उनके [[पिता]] रिसालदार थे। वे एक डिवीजन कमांडर के एडीसी के रूप में सेवा प्रदान करते थे। उनके दादा रिसालदार मेजर हुकम सिंह सन [[1883]] और [[1917]] के बीच कैवलरी से संबंधित थे। उनके दादा, नायब रिसालदार सुल्ताना सिंह, 1854 में मार्गदर्शिका कैवलरी की पहली दो पीढ़ियों में शामिल थे। वे सन [[1879]] के [[अफ़ग़ान]] अभियान के दौरान शहीद हुए थे। अर्जन सिंह मांटगोमरी (अब पाकिस्तान में) में शिक्षित थे। उन्होंने [[1938]] में आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल में प्रवेश किया और [[दिसंबर]], [[1939]] में एक पायलट अधिकारी के रूप में नियुक्ति पाई। इसके बाद सन [[1944]] में उन्होंने [[भारतीय वायु सेना]] की नंबर 1 स्क्वाड्रन का अराकन अभियान के दौरान नेतृत्व किया। [[1944]] में उन्हें प्रतिष्ठित फ्लाइंग क्रॉस से सम्मानित किया गया और [[1945]] में उन्होंने भारतीय वायु सेना की प्रथम प्रदर्शन उड़ान की कमान संभाली। | ||
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11:45, 17 सितम्बर 2017 का अवतरण
अर्जन सिंह
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पूरा नाम | अर्जन सिंह |
जन्म | 16 अप्रॅल, 1919 |
जन्म भूमि | लायलपुर, पंजाब |
मृत्यु | 16 सितम्बर, 2017 |
स्थान | दिल्ली |
सेना | भारतीय वायु सेना |
युद्ध | द्वितीय विश्व युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965) |
शिक्षा | आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल |
सम्मान | 'पद्म विभूषण' (1965) |
प्रसिद्धि | प्रथम भारतीय एयर चीफ़ मार्शल |
नागरिकता | भारतीय |
नेतृत्व | नंबर 1 स्क्वाड्रन आईएएफ अंबाला वायु सेना स्टेशन पश्चिमी कमान |
विशेष | दिल्ली के पास अपने फार्म को बेचकर अर्जन सिंह ने 2 करोड़ रुपए ट्रस्ट को दे दिए थे। ये ट्रस्ट सेवानिवृत्त एयरफोर्स कर्मियों के कल्याण के लिए बनाया गया था। |
अन्य जानकारी | अर्जन सिंह ने अराकान अभियान के दौरान 1944 में जापान के खिलाफ एक स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया। इम्फाल अभियान के दौरान हवाई अभियान को अंजाम दिया और बाद में यांगून में अलायड फोर्सेज का काफी सहयोग किया। |
अर्जन सिंह (अंग्रेज़ी: Arjan Singh, जन्म- 16 अप्रॅल, 1919, पंजाब; मृत्यु- 16 सितम्बर, 2017, दिल्ली) भारतीय वायु सेना के सबसे वरिष्ठ और पांच सितारा वाले रैंक तक पहुँचने वाले एकमात्र मार्शल थे। उन्हें 2002 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया था। अर्जन सिंह को 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। उन्हें 44 साल की उम्र में ही भारतीय वायु सेना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे उन्होंने शानदार तरीके से निभाया। अलग-अलग तरह के 60 से भी ज्यादा विमान उड़ाने वाले अर्जन सिंह ने भारतीय वायु सेना को दुनिया की सबसे शक्तिशाली वायु सेनाओं में से एक बनाने और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
परिचय
अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को पंजाब के लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में ब्रिटिशकालीन भारत के एक प्रतिष्ठित सैन्य परिवार हुआ था। उनके पिता रिसालदार थे। वे एक डिवीजन कमांडर के एडीसी के रूप में सेवा प्रदान करते थे। उनके दादा रिसालदार मेजर हुकम सिंह सन 1883 और 1917 के बीच कैवलरी से संबंधित थे। उनके दादा, नायब रिसालदार सुल्ताना सिंह, 1854 में मार्गदर्शिका कैवलरी की पहली दो पीढ़ियों में शामिल थे। वे सन 1879 के अफ़ग़ान अभियान के दौरान शहीद हुए थे। अर्जन सिंह मांटगोमरी (अब पाकिस्तान में) में शिक्षित थे। उन्होंने 1938 में आरएएफ कॉलेज क्रैनवेल में प्रवेश किया और दिसंबर, 1939 में एक पायलट अधिकारी के रूप में नियुक्ति पाई। इसके बाद सन 1944 में उन्होंने भारतीय वायु सेना की नंबर 1 स्क्वाड्रन का अराकन अभियान के दौरान नेतृत्व किया। 1944 में उन्हें प्रतिष्ठित फ्लाइंग क्रॉस से सम्मानित किया गया और 1945 में उन्होंने भारतीय वायु सेना की प्रथम प्रदर्शन उड़ान की कमान संभाली।
कोर्ट मार्शल
अर्जन सिंह को कोर्ट मार्शल का भी सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने फ़रवरी, 1945 में केरल के एक आबादी वाले इलाके के ऊपर बहुत नीची उड़ान भरी। उन्होंने ये कहते हुए अपना बचाव किया कि- "ये एक प्रशिक्षु पायलट (बाद में एयर चीफ़ मार्शल दिलबाग सिंह) का मनोबल बढ़ाने की कोशिश थी।"
दायित्व
1 अगस्त, 1964 से 15 जुलाई, 1969 तक अर्जन सिंह वायुसेनाध्यक्ष थे। [[1965 में उन्हें 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया था। 1965 के युद्ध में वायु सेना में अपने योगदान के लिए उन्हें वायुसेनाध्यक्ष के पद से पद्दोन्नत होकर 'एयर चीफ़ मार्शल' बनाया गया था। वे भारतीय वायुसेना के पहले एयर चीफ़ मार्शल थे। उन्होंने 1969 में 50 साल की उम्र में अपनी सेवाओं से सेवानिवृत्ति ली। 1971 में, सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत नियुक्त किया गया था। उन्होंने समवर्ती वेटिकन के राजदूत के रूप में भी सेवा की थी।
उल्लेखनीय तथ्य
- मार्शल रैंक फ़ील्ड मार्शल के बराबर होता है, जो केवल थल सेना के अफ़सरों को दिया जाता रहा था। के. एम. करियप्पा और सेम मानेकशॉ दो ऐसे थल सेना के जनरल थे, जिन्हें फ़ील्ड मार्शल बनाया गया था। अर्जन सिंह वायु सेना और ग़ैर थल सेना के ऐसे पहले अफ़सर थे, जिन्हें मार्शल का रैंक दिया गया था।
- देश जब 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ, तब अर्जन सिंह को 100 भारतीय वायु सेना के उन विमानों का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी, जो दिल्ली और लाल क़िले के ऊपर से गुज़रे थे।
- 1 अगस्त, 1964 को 45 साल की उम्र में अर्जन सिंह भारतीय वायु सेना के प्रमुख बने और वे ऐसे पहले वायु सेना प्रमुख थे, जिन्होंने चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ यानी प्रमुख रहते हुए भी वे विमान उड़ाते रहे और अपनी फ्लाइंग कैटिगरी को बरकार रखा।
- अर्जन सिंह ने अपने कार्यकाल में 60 तरह के विमान उड़ाए, जिनमें दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त के बाइप्लेन से लेकर नैट्स और वैम्पायर प्लेन शामिल हैं।
- चीन के साथ 1962 की लड़ाई के बाद 1963 में उन्हें वायु सेना उप-प्रमुख बनाया गया था। 1 अगस्त, 1964 को जब वायु सेना अपने आप को नई चुनौतियों के लिए तैयार कर रही थी, उस समय एयर मार्शल के रूप में अर्जन सिंह को इसकी कमान सौंपी गई थी।
- अर्जन सिंह न केवल निडर पायलट थे, बल्कि उन्हें वायु सेना की गहरी जानकारी थी। पाकिस्तान के खिलाफ 1965 में हुई लड़ाई में अर्जन सिंह ने भारतीय वायु सेना की कमान संभाली और पाकिस्तानी वायु सेना को जीत हासिल नहीं करने दी, जबकि अमेरिकी सहयोग के कारण पाकिस्तानी वायु सेना बेहतर सुसज्जित थी।
- आईएएफ के पूर्व उप-प्रमुख कपिल काक के अनुसार- "भारतीय वायु सेना के लिए अर्जन सिंह का योगदान अविस्मरणीय है। आईएएफ उनके साथ आगे बढ़ा। वह अद्भुत विवेक वाले सैन्य नेतृत्व के महारथी थे, इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि उन्हें वायु सेना में मार्शल रैंक से सम्मानित किया गया।" काक का यह भी कहना था कि- "उनका सर्वाधिक यादगार योगदान पाक के खिलाफ युद्ध में रहा।" युद्ध में उनकी भूमिका की प्रशंसा करते हुए तत्कालीन रक्षामंत्री वाईबी चव्हाण ने अर्जन सिंह के लिए कहा था कि- "एयर मार्शल अर्जन सिंह एक असाधारण व्यक्ति हैं, काफी सक्षम और दृढ़ हैं, काफी सक्षम नेतृत्व देने वाले हैं।"
- मार्शल अर्जन सिंह ने अराकान अभियान के दौरान 1944 में जापान के खिलाफ एक स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया था। इम्फाल अभियान के दौरान हवाई अभियान को अंजाम दिया और बाद में यांगून में अलायड फोर्सेज का काफी सहयोग किया। उनके इस योगदान के लिए दक्षिण पूर्व एशिया के सुप्रीम अलायड कमांडर ने उन्हें 'विशिष्ट फ्लाइंग क्रास' से सम्मानित किया था और वह इसे प्राप्त करने वाले पहले पायलट थे।
- अर्जन सिंह बहुत कम बोलने वाले शख्स के तौर पर पहचाने जाने जाते थे। वह ना केवल निडर लड़ाकू पायलट थे, बल्कि उनको हवाई शक्ति के बारे में गहरा ज्ञान था, जिसका वह हवाई अभियानों में व्यापक रूप से इस्तेमाल करते थे। उन्हें 1965 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया था।
- सितंबर, 1965 में पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के तहत भारत पर हमला बोल दिया था। अखनूर जैसे अहम शहर को निशाना बनाया गया। उस समय रक्षामंत्री ने वायुसेना प्रमुख रहे अर्जन सिंह को अपने दफ्तर में बुलाया और एयर सपोर्ट मांगा। अर्जन सिंह से पूछा गया कि वायुसेना को तैयारी में कितना वक्त लगेगा। अर्जन सिंह का जवाब था- एक घंटा.. और उसी के मुताबिक वायुसेना ने एक घंटे के अंदर पाकिस्तान पर हमला बोल दिया था।
- दिल्ली के पास अपने फार्म को बेचकर अर्जन सिंह ने 2 करोड़ रुपए ट्रस्ट को दे दिए थे। ये ट्रस्ट सेवानिवृत्त एयरफोर्स कर्मियों के कल्याण के लिए बनाया गया था। अर्जन सिंह दिसंबर, 1989 से दिसंबर, 1990 तक वे दिल्ली के उपराज्यपाल भी रहे।
- 27 जुलाई, 2015 को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के निधन के बाद अंतिम दर्शन के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत कई नेता पहुंचे थे। अर्जन सिंह व्हीलचेयर पर उन्हें दर्शन करने पहुंचे थे। कलाम को देखते ही खुद चलकर पास आए और तनकर सलामी दी।
मृत्यु
अर्जन सिंह को शनिवार सुबह सेना के रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था. दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- नहीं रहे भारत के एकमात्र मार्शल अर्जन सिंह
- सेना से कभी रिटायर नहीं हुए मार्शल अर्जन सिंह का निधन, 1965 युद्ध में थी बड़ी भूमिका
- राजकीय सम्मान के साथ होगा मार्शल अर्जन सिंह का अंतिम संस्कार, आधा झुका रहेगा तिरंगा
- https://khabar.ndtv.com/news/file-facts/know-all-about-marshal-of-indian-air-force-arjan-singh-1751217 10 प्वॉइंट्स में जानें 1965 की जंग के 'हीरो' मार्शल अर्जन सिंह को ]