"पंकज मलिक": अवतरणों में अंतर

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|अन्य जानकारी=[[रवीन्द्र संगीत]] को सफलतापूर्वक फ़िल्मों में लाने वाले पंकज मलिक पहले संगीतकार थे, उन्होंने फ़िल्म 'मुक्ति' में रवीन्द्र संगीत का प्रयोग किया था, जिससे [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|टैगोर]] के गीत आम जनता के सामने पहली बार सिनेमा के रूप में आए।
|अन्य जानकारी=[[रवीन्द्र संगीत]] को सफलतापूर्वक फ़िल्मों में लाने वाले पंकज मलिक पहले संगीतकार थे, उन्होंने फ़िल्म 'मुक्ति' में [[रवीन्द्र संगीत]] का प्रयोग किया था, जिससे [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|टैगोर]] के गीत आम जनता के सामने पहली बार सिनेमा के रूप में आए।
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'''पंकज मलिक''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Pankaj Mullick'', जन्म- [[10 मई]], [[1905]], [[कलकत्ता]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[19 फ़रवरी]], [[1978]], [[पश्चिम बंगाल]]) बांग्ला संगीत और फ़िल्मों में सफलता के साथ-साथ [[हिन्दी]] फ़िल्मों में भी अपनी कामयाबी का परचम लहराने वाले [[भारतीय शास्त्रीय संगीत|शास्त्रीय संगीत]] के विशेषज्ञ थे। उनका पूरा नाम 'पंकज कुमार मलिक' था। वे ऐसे संगीतकार व गायक थे, जिनकी आवाज़ के जादू ने आज भी उनके लाखों प्रशंसकों को बांध रखा है। बहुमखी प्रतिभा के धनी पंकज मलिक को [[संगीत]] और गायन के अलावा अभिनय में भी कुशलता हासिल थी। वह जब भी परदे पर अवतरित हुए कामयाब रहे। उनकी ऐसी हिन्दी फ़िल्मों में 'डाक्टर', 'आंधी', और 'नर्तकी' आदि विशेष चर्चित हैं। जाति प्रथा की समस्या के ख़िलाफ़ संदेश देने वाली फ़िल्म 'डाक्टर' में पंकज मलिक ने कई गाने खुद गाए थे, जो काफ़ी हिट हुए। पंकज मलिक की अपनी विशिष्ट गायन शैली थी, जिसकी बदौलत उन्होंने हज़ारों लोगों को अपना प्रशंसक बनाया। उन्हें हिन्दी फ़िल्मों के सर्वोच्च सम्मान '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' से भी नवाजा गया।
'''पंकज मलिक''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pankaj Mullick'', जन्म- [[10 मई]], [[1905]], [[कलकत्ता]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[19 फ़रवरी]], [[1978]], [[पश्चिम बंगाल]]) बांग्ला संगीत और फ़िल्मों में सफलता के साथ-साथ [[हिन्दी]] फ़िल्मों में भी अपनी कामयाबी का परचम लहराने वाले [[भारतीय शास्त्रीय संगीत|शास्त्रीय संगीत]] के विशेषज्ञ थे। उनका पूरा नाम 'पंकज कुमार मलिक' था। वे ऐसे संगीतकार व गायक थे, जिनकी आवाज़ के जादू ने आज भी उनके लाखों प्रशंसकों को बांध रखा है। बहुमखी प्रतिभा के धनी पंकज मलिक को [[संगीत]] और गायन के अलावा अभिनय में भी कुशलता हासिल थी। वह जब भी परदे पर अवतरित हुए कामयाब रहे। उनकी ऐसी हिन्दी फ़िल्मों में 'डाक्टर', 'आंधी', और 'नर्तकी' आदि विशेष चर्चित हैं। जाति प्रथा की समस्या के ख़िलाफ़ संदेश देने वाली फ़िल्म 'डाक्टर' में पंकज मलिक ने कई गाने खुद गाए थे, जो काफ़ी हिट हुए। पंकज मलिक की अपनी विशिष्ट गायन शैली थी, जिसकी बदौलत उन्होंने हज़ारों लोगों को अपना प्रशंसक बनाया। उन्हें हिन्दी फ़िल्मों के सर्वोच्च सम्मान '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' से भी नवाजा गया।
==जन्म तथा शिक्षा==
==जन्म तथा शिक्षा==
पंकज मलिक का जन्म 10 मई, 1905 को कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम मनीमोहन मलिक और [[माता]] का नाम मनमोहिनी था। उनके पिता पारम्परिक बंगाली संगीत में विशेष रुचि रखते थे। पंकज मलिक ने दुर्गादास बन्धोपाध्याय के संरक्षण में 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' की अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पाई थी। कम उम्र में ही उन्होंने [[ख्याल]], [[ध्रुपद]], [[टप्पा]] और अन्य शास्त्रीय संगीत का ज्ञान हासिल कर लिया था। उन्होंने [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] के 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में अध्ययन किया। शिक्षा समाप्त करने के बाद ही उनके जीवन में एक अहम मोड़ आया। उनका सम्पर्क दीनेन्द्रनाथ टैगोर से हुआ, जो [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] के भतीजे थे। उन्होंने दीनेन्द्रनाथ टैगोर से [[रवीन्द्र संगीत]] सीखा। [[बांग्ला भाषा|बांग्ला भाषियों]] में रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं को लोकप्रिय बनाने में मलिक के गाए गीतों का बड़ा योगदान माना जाता है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.samaylive.com/gallery/620938/12912.html |title=आवाज के जादूगर थे पंकज मलिक|accessmonthday=24 सितम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
पंकज मलिक का जन्म 10 मई, 1905 को कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम मनीमोहन मलिक और [[माता]] का नाम मनमोहिनी था। उनके पिता पारम्परिक बंगाली संगीत में विशेष रुचि रखते थे। पंकज मलिक ने दुर्गादास बन्धोपाध्याय के संरक्षण में 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' की अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पाई थी। कम उम्र में ही उन्होंने [[ख्याल]], [[ध्रुपद]], [[टप्पा]] और अन्य शास्त्रीय संगीत का ज्ञान हासिल कर लिया था। उन्होंने [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] के 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में अध्ययन किया। शिक्षा समाप्त करने के बाद ही उनके जीवन में एक अहम मोड़ आया। उनका सम्पर्क दीनेन्द्रनाथ टैगोर से हुआ, जो [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] के भतीजे थे। उन्होंने दीनेन्द्रनाथ टैगोर से [[रवीन्द्र संगीत]] सीखा। [[बांग्ला भाषा|बांग्ला भाषियों]] में रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं को लोकप्रिय बनाने में मलिक के गाए गीतों का बड़ा योगदान माना जाता है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.samaylive.com/gallery/620938/12912.html |title=आवाज के जादूगर थे पंकज मलिक|accessmonthday=24 सितम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
====फ़िल्मी सफर की शुरुआत====
====फ़िल्मी सफर की शुरुआत====
पंकज मलिक आकाशवाणी से जुड़ने वाले शुरुआती कलाकारों में थे। पंकज मलिक का फ़िल्मी सफर मूक फ़िल्मों के दौर में ही शुरू हो गया था, किंतु उन्हें सही पहचान [[1930]] के दशक में बोलती फ़िल्मों की शुरूआत के साथ मिली। [[हिन्दी]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] दोनों भाषाओं को मिलाकर उन्होंने एक सौ से अधिक फ़िल्मों में संगीत दिया और कई में अभिनय भी किया। उनकी उल्लेखनीय संगीत रचनाओं में 'महिषासुरमर्दिनी' भी शामिल है। आकाशवाणी के लिए बनाए गए बांग्ला और [[संस्कृत]] मिश्रित इस कार्यक्रम में [[हेमंत कुमार]] सहित उस दौर के सभी प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज़ दी। इस कार्यक्रम को आज भी प्रतिवर्ष [[चैत्र मास]] के [[नवरात्र]] से ठीक पहले महालय के अवसर पर आकाशवाणी द्वारा प्रसारित किया जाता है और लोग इसे बेहद रुचि से सुनते हैं।
पंकज मलिक आकाशवाणी से जुड़ने वाले शुरुआती कलाकारों में थे। पंकज मलिक का फ़िल्मी सफर मूक फ़िल्मों के दौर में ही शुरू हो गया था, किंतु उन्हें सही पहचान [[1930]] के दशक में बोलती फ़िल्मों की शुरूआत के साथ मिली। [[हिन्दी]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] दोनों भाषाओं को मिलाकर उन्होंने एक सौ से अधिक फ़िल्मों में संगीत दिया और कई में अभिनय भी किया। उनकी उल्लेखनीय संगीत रचनाओं में 'महिषासुरमर्दिनी' भी शामिल है। आकाशवाणी के लिए बनाए गए बांग्ला और [[संस्कृत]] मिश्रित इस कार्यक्रम में [[हेमंत कुमार]] सहित उस दौर के सभी प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज़ दी। इस कार्यक्रम को आज भी प्रतिवर्ष [[चैत्र मास]] के [[नवरात्र]] से ठीक पहले महालय के अवसर पर आकाशवाणी द्वारा प्रसारित किया जाता है और लोग इसे बेहद रुचि से सुनते हैं।
==सफलता==
==सफलता==
पंकज मलिक के संगीत निर्देशन वाली शुरूआती हिन्दी फ़िल्मों में से एक 'धरती माता' काफ़ी चर्चित हुई। ग्रामीण [[भारत]] के जीवन पर आधारित इस फ़िल्म में किसानों की समस्याएँ और उन्हें मुसीबतों से जूझने का रास्ता दिखाने का प्रयास किया गया था। पंकज मलिक ने इस फ़िल्म में बेहतरीन [[संगीत]] दिया और उनकी धुनों के कारण पूरी फ़िल्म में ग्रामीण परिवेश जीवंत होता दिखाई दिया। 'धरती माता' फ़िल्म में के. एल. सहगल ने आदर्शवादी युवक की भूमिका निभायी थी। इस फ़िल्म के गीत 'प्रभु मोहे बुला गांव में दुनिया रंगरंगीली बाबा दुनिया रंगरंगीली' आदि बेहद कामयाब रहे। 'धरती माता' के बाद पंकज मलिक की कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिन्हें समीक्षकों के अलावा दर्शकों ने काफ़ी पसंद किया। ऐसी फ़िल्मों में 'दुश्मन', 'काशीनाथ', 'ज़िंदगी', 'नर्तकी' और 'मेरी बहन' आदि शामिल हैं। 'नर्तकी' संगीत की दृष्टि से एक अहम फ़िल्म थी। [[देवकी बोस]] निर्देशित इस फ़िल्म में पंकज मलिक ने एक कवि की भूमिका निभायी और कई गीत भी गाए थे। इन गानों में 'ये कौन आया सबेरे सबेरे कौन तुझे समझाए मूरख' विशेष तौर पर याद किए जाते हैं।<ref name="mcc"/>
पंकज मलिक के संगीत निर्देशन वाली शुरूआती हिन्दी फ़िल्मों में से एक 'धरती माता' काफ़ी चर्चित हुई। ग्रामीण [[भारत]] के जीवन पर आधारित इस फ़िल्म में किसानों की समस्याएँ और उन्हें मुसीबतों से जूझने का रास्ता दिखाने का प्रयास किया गया था। पंकज मलिक ने इस फ़िल्म में बेहतरीन [[संगीत]] दिया और उनकी धुनों के कारण पूरी फ़िल्म में ग्रामीण परिवेश जीवंत होता दिखाई दिया। 'धरती माता' फ़िल्म में के. एल. सहगल ने आदर्शवादी युवक की भूमिका निभायी थी। इस फ़िल्म के गीत 'प्रभु मोहे बुला गांव में दुनिया रंगरंगीली बाबा दुनिया रंगरंगीली' आदि बेहद कामयाब रहे। 'धरती माता' के बाद पंकज मलिक की कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिन्हें समीक्षकों के अलावा दर्शकों ने काफ़ी पसंद किया। ऐसी फ़िल्मों में 'दुश्मन', 'काशीनाथ', 'ज़िंदगी', 'नर्तकी' और 'मेरी बहन' आदि शामिल हैं। 'नर्तकी' संगीत की दृष्टि से एक अहम फ़िल्म थी। [[देवकी बोस]] निर्देशित इस फ़िल्म में पंकज मलिक ने एक कवि की भूमिका निभायी और कई गीत भी गाए थे। इन गानों में 'ये कौन आया सबेरे सबेरे कौन तुझे समझाए मूरख' विशेष तौर पर याद किए जाते हैं।<ref name="mcc"/>
====अमर संगीत====
====अमर संगीत====
न्यू थियेटर्स की फ़िल्म 'यात्रिक' पंकज मलिक को विशेष रूप से प्रिय थी। इसमें उन्होंने अमर संगीत दिया है। [[कैलाश पर्वत|कैलाश]], [[केदारनाथ]], और [[बद्रीनाथ]] की यात्रा पर आधारित इस फ़िल्म में पंकज मलिक ने [[संस्कृति]] की कई मशहूर रचनाओं को अपना स्वर दिया और अपने विशेष [[संगीत]] को फ़िल्म का एक ख़ूबसूरत पक्ष बना दिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान [[1940]] के दशक की शुरुआत में न्यू थियेटर्स से जुड़े अधिकतर बड़े नामों ने 'बंबई' (वर्तमान [[मुम्बई]]) की राह पकड़ ली, किंतु पंकज मलिक को अधिक रकम का प्रस्ताव आकर्षित नहीं कर पाया और उन्होंने बंबई जाने से साफ़ इंकार कर दिया।
न्यू थियेटर्स की फ़िल्म 'यात्रिक' पंकज मलिक को विशेष रूप से प्रिय थी। इसमें उन्होंने अमर संगीत दिया है। [[कैलाश पर्वत|कैलाश]], [[केदारनाथ]], और [[बद्रीनाथ]] की यात्रा पर आधारित इस फ़िल्म में पंकज मलिक ने [[संस्कृति]] की कई मशहूर रचनाओं को अपना स्वर दिया और अपने विशेष [[संगीत]] को फ़िल्म का एक ख़ूबसूरत पक्ष बना दिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान [[1940]] के दशक की शुरुआत में न्यू थियेटर्स से जुड़े अधिकतर बड़े नामों ने 'बंबई' (वर्तमान [[मुम्बई]]) की राह पकड़ ली, किंतु पंकज मलिक को अधिक रकम का प्रस्ताव आकर्षित नहीं कर पाया और उन्होंने बंबई जाने से साफ़ इंकार कर दिया।
==प्रमुख फ़िल्में==
==प्रमुख फ़िल्में==
पंकज मलिक की कुछ प्रमुख फ़िल्मों के नाम निम्नलिखित हैं-
पंकज मलिक की कुछ प्रमुख फ़िल्मों के नाम निम्नलिखित हैं-
#यांत्रिक - 1952
#यांत्रिक - [[1952]]
#मंजूर - 1949  
#मंजूर - [[1949]]
#मेरी बहन - 1944
#मेरी बहन - [[1944]]
#नर्तकी - 1940
#नर्तकी - [[1940]]
#जिन्दगी - 1940
#जिन्दगी - [[1940]]
#डाक्टर - 1940
#डाक्टर - [[1940]]
#धरती माता - 1938
#धरती माता - [[1938]]
#[[देवदास (1936)|देवदास]] - 1936
#[[देवदास (1936)|देवदास]] - [[1936]]
#यहूदी की लड़की - 1933
#यहूदी की लड़की - [[1933]]
====पुरस्कार====
====पुरस्कार====
भारत सरकार ने [[संगीत]] के क्षेत्र में पंकज मलिक के विशेष योगदान को देखते हुए उन्हें '[[पद्मश्री]]' ([[1970]]) से सम्मानित किया था। फ़िल्म जगत् के सर्वोच्च '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' ([[1972]]) से नवाजे गए पंकज मलिक को दर्जनों पुरस्कार मिले। इसके साथ ही उन्हें लोगों का भरपूर प्यार भी मिला।<ref name="mcc"/>
[[भारत सरकार]] ने [[संगीत]] के क्षेत्र में पंकज मलिक के विशेष योगदान को देखते हुए उन्हें '[[पद्मश्री]]' ([[1970]]) से सम्मानित किया था। फ़िल्म जगत् के सर्वोच्च '[[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]]' ([[1972]]) से नवाजे गए पंकज मलिक को दर्जनों पुरस्कार मिले। इसके साथ ही उन्हें लोगों का भरपूर प्यार भी मिला।<ref name="mcc"/>
====निधन====
====निधन====
न्यू थियेटर्स से अपार प्रेम करने वाले पंकज मलिक इसके बंद होने तक इससे जुड़े रहे। 'जलजला' और 'कस्तूरी' उनकी आखिरी फ़िल्मों में थी, जिनका संगीत निर्देशन उन्होंने विशेष अनुरोध करने पर ही स्वीकर किया था। इसके बाद वह फ़िल्मों से अलग हो गए और [[संगीत]] की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष तौर पर सक्रिय रहे और अंतत [[19 फ़रवरी]], [[1978]] को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए। पंकज मलिक को अपने जीवन काल में वह सब मिला, जिसकी हसरत किसी कलाकार को होती है।
न्यू थियेटर्स से अपार प्रेम करने वाले पंकज मलिक इसके बंद होने तक इससे जुड़े रहे। 'जलजला' और 'कस्तूरी' उनकी आखिरी फ़िल्मों में थी, जिनका संगीत निर्देशन उन्होंने विशेष अनुरोध करने पर ही स्वीकर किया था। इसके बाद वह फ़िल्मों से अलग हो गए और [[संगीत]] की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष तौर पर सक्रिय रहे और अंतत [[19 फ़रवरी]], [[1978]] को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए। पंकज मलिक को अपने जीवन काल में वह सब मिला, जिसकी हसरत किसी कलाकार को होती है।
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पंकज मलिक के जीवन से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं-
पंकज मलिक के जीवन से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं-
*रवीन्द्र संगीत में दिलचस्पी रखने वाले शशधर सेन के अनुसार- "गुरुदेव [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] के गीत 'नेमेचे आज प्रोथोम बादल' की पहली कमर्शियल रिकॉर्डिंग से पंकज मलिक ने अपने कैरियर की शुरुआत की थी। रवीन्द्र संगीत को पंकज मलिक ने एक तरह से आत्मसात कर लिया था।" सेन के अनुसार यह रिकॉर्डिंग मलिक ने [[1926]] में [[कलकत्ता]] की एक कंपनी के लिए की थी और तब उनकी उम्र 18 साल की थी। यह एलबम हिट रहा और मलिक रवीन्द्र संगीत का एक जाना-माना नाम बन गए। इसके बाद उन्होंने रवीन्द्र संगीत के कई एलबम निकाले, जिन्हें श्रोताओं ने बेहद पसंद किया।<ref name="mdd">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4/%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9C-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95-1110510048_1.htm |title=पंकज मलिक|accessmonthday=24 सितम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
*रवीन्द्र संगीत में दिलचस्पी रखने वाले शशधर सेन के अनुसार- "गुरुदेव [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] के गीत 'नेमेचे आज प्रोथोम बादल' की पहली कमर्शियल रिकॉर्डिंग से पंकज मलिक ने अपने कैरियर की शुरुआत की थी। रवीन्द्र संगीत को पंकज मलिक ने एक तरह से आत्मसात कर लिया था।" सेन के अनुसार यह रिकॉर्डिंग मलिक ने [[1926]] में [[कलकत्ता]] की एक कंपनी के लिए की थी और तब उनकी उम्र 18 साल की थी। यह एलबम हिट रहा और मलिक रवीन्द्र संगीत का एक जाना-माना नाम बन गए। इसके बाद उन्होंने रवीन्द्र संगीत के कई एलबम निकाले, जिन्हें श्रोताओं ने बेहद पसंद किया।<ref name="mdd">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4/%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9C-%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95-1110510048_1.htm |title=पंकज मलिक|accessmonthday=24 सितम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
*वर्ष [[1927]] में पंकज मलिक तत्कालीन कलकत्ता के 'इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन' से जुड़े और फिर आकाशवाणी में संगीतकार आर. सी. बोराल के साथ काम करने लगे। बोराल और मलिक का एक संगीतकार और कलाकार के तौर पर क़रीब 50 वर्ष का साथ रहा था। उन्होंने [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[हिन्दी]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]] और [[तमिल भाषा]] की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया और फ़िल्म जगत् के लिए उनका योगदान क़रीब 38 साल तक रहा, जिसकी शुरुआत उन्होंने [[1931]] से की थी।
*वर्ष [[1927]] में पंकज मलिक तत्कालीन [[कलकत्ता]] के 'इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन' से जुड़े और फिर आकाशवाणी में संगीतकार आर. सी. बोराल के साथ काम करने लगे। बोराल और मलिक का एक संगीतकार और कलाकार के तौर पर क़रीब 50 वर्ष का साथ रहा था। उन्होंने [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[हिन्दी]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]] और [[तमिल भाषा]] की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया और फ़िल्म जगत् के लिए उनका योगदान क़रीब 38 साल तक रहा, जिसकी शुरुआत उन्होंने [[1931]] से की थी।
*[[के. एल. सहगल]], [[एस. डी. बर्मन]], [[हेमंत कुमार]], [[गीता दत्त]] और [[आशा भोंसले]] को पसंद करने वाले मलिक ने अभिनय भी किया। अभिनय के सफर में उनके साथ के. एल. सहगल, पी. सी. बरूआ और [[कानन देवी]] रहे। पंकज मलिक को [[नितिन बोस]] और आर. सी. बोराल के साथ भारतीय सिनेमा में [[पार्श्वगायन]] की शुरुआत करने का भी श्रेय है।
*[[के. एल. सहगल]], [[एस. डी. बर्मन]], [[हेमंत कुमार]], [[गीता दत्त]] और [[आशा भोंसले]] को पसंद करने वाले मलिक ने अभिनय भी किया। अभिनय के सफर में उनके साथ के. एल. सहगल, पी. सी. बरूआ और [[कानन देवी]] रहे। पंकज मलिक को [[नितिन बोस]] और आर. सी. बोराल के साथ भारतीय सिनेमा में [[पार्श्वगायन]] की शुरुआत करने का भी श्रेय है।
*क़रीब 50 साल पहले [[1959]] को जब [[दूरदर्शन]] की शुरुआत हुई थी, तब पंकज मलिक और [[वैजयंती माला]] ने एक विशेष कार्यक्रम पेश किया था।<ref name="mdd"/>
*क़रीब 50 साल पहले [[1959]] को जब [[दूरदर्शन]] की शुरुआत हुई थी, तब पंकज मलिक और [[वैजयंती माला]] ने एक विशेष कार्यक्रम पेश किया था।<ref name="mdd"/>
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==संबंधित लेख==
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05:25, 10 मई 2018 के समय का अवतरण

पंकज मलिक
पंकज मलिक
पंकज मलिक
पूरा नाम पंकज कुमार मलिक
जन्म 10 मई, 1905
जन्म भूमि कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता)
मृत्यु 19 फ़रवरी, 1978
मृत्यु स्थान पश्चिम बंगाल
अभिभावक पिता- मनीमोहन मलिक, माता- मनमोहिनी
कर्म भूमि पश्चिम बंगाल
कर्म-क्षेत्र संगीतकार, गायक और अभिनेता
मुख्य फ़िल्में 'यांत्रिक', 'मंजूर', 'मेरी बहन', 'नर्तकी', 'जिन्दगी', 'डाक्टर', 'धरती माता', 'देवदास', 'यहूदी की लड़की'।
शिक्षा 'भारतीय शास्त्रीय संगीत'
विद्यालय 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज', कलकत्ता विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मश्री' (1970) और 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' (1972)
विशेष योगदान पंकज मलिक को नितिन बोस और आर. सी. बोराल के साथ भारतीय सिनेमा में पार्श्वगायन की शुरुआत करने का श्रेय प्राप्त है।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी रवीन्द्र संगीत को सफलतापूर्वक फ़िल्मों में लाने वाले पंकज मलिक पहले संगीतकार थे, उन्होंने फ़िल्म 'मुक्ति' में रवीन्द्र संगीत का प्रयोग किया था, जिससे टैगोर के गीत आम जनता के सामने पहली बार सिनेमा के रूप में आए।

पंकज मलिक (अंग्रेज़ी: Pankaj Mullick, जन्म- 10 मई, 1905, कलकत्ता, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 19 फ़रवरी, 1978, पश्चिम बंगाल) बांग्ला संगीत और फ़िल्मों में सफलता के साथ-साथ हिन्दी फ़िल्मों में भी अपनी कामयाबी का परचम लहराने वाले शास्त्रीय संगीत के विशेषज्ञ थे। उनका पूरा नाम 'पंकज कुमार मलिक' था। वे ऐसे संगीतकार व गायक थे, जिनकी आवाज़ के जादू ने आज भी उनके लाखों प्रशंसकों को बांध रखा है। बहुमखी प्रतिभा के धनी पंकज मलिक को संगीत और गायन के अलावा अभिनय में भी कुशलता हासिल थी। वह जब भी परदे पर अवतरित हुए कामयाब रहे। उनकी ऐसी हिन्दी फ़िल्मों में 'डाक्टर', 'आंधी', और 'नर्तकी' आदि विशेष चर्चित हैं। जाति प्रथा की समस्या के ख़िलाफ़ संदेश देने वाली फ़िल्म 'डाक्टर' में पंकज मलिक ने कई गाने खुद गाए थे, जो काफ़ी हिट हुए। पंकज मलिक की अपनी विशिष्ट गायन शैली थी, जिसकी बदौलत उन्होंने हज़ारों लोगों को अपना प्रशंसक बनाया। उन्हें हिन्दी फ़िल्मों के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से भी नवाजा गया।

जन्म तथा शिक्षा

पंकज मलिक का जन्म 10 मई, 1905 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ था। उनके पिता का नाम मनीमोहन मलिक और माता का नाम मनमोहिनी था। उनके पिता पारम्परिक बंगाली संगीत में विशेष रुचि रखते थे। पंकज मलिक ने दुर्गादास बन्धोपाध्याय के संरक्षण में 'भारतीय शास्त्रीय संगीत' की अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पाई थी। कम उम्र में ही उन्होंने ख्याल, ध्रुपद, टप्पा और अन्य शास्त्रीय संगीत का ज्ञान हासिल कर लिया था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में अध्ययन किया। शिक्षा समाप्त करने के बाद ही उनके जीवन में एक अहम मोड़ आया। उनका सम्पर्क दीनेन्द्रनाथ टैगोर से हुआ, जो रवीन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे थे। उन्होंने दीनेन्द्रनाथ टैगोर से रवीन्द्र संगीत सीखा। बांग्ला भाषियों में रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं को लोकप्रिय बनाने में मलिक के गाए गीतों का बड़ा योगदान माना जाता है।[1]

फ़िल्मी सफर की शुरुआत

पंकज मलिक आकाशवाणी से जुड़ने वाले शुरुआती कलाकारों में थे। पंकज मलिक का फ़िल्मी सफर मूक फ़िल्मों के दौर में ही शुरू हो गया था, किंतु उन्हें सही पहचान 1930 के दशक में बोलती फ़िल्मों की शुरूआत के साथ मिली। हिन्दी और बांग्ला दोनों भाषाओं को मिलाकर उन्होंने एक सौ से अधिक फ़िल्मों में संगीत दिया और कई में अभिनय भी किया। उनकी उल्लेखनीय संगीत रचनाओं में 'महिषासुरमर्दिनी' भी शामिल है। आकाशवाणी के लिए बनाए गए बांग्ला और संस्कृत मिश्रित इस कार्यक्रम में हेमंत कुमार सहित उस दौर के सभी प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज़ दी। इस कार्यक्रम को आज भी प्रतिवर्ष चैत्र मास के नवरात्र से ठीक पहले महालय के अवसर पर आकाशवाणी द्वारा प्रसारित किया जाता है और लोग इसे बेहद रुचि से सुनते हैं।

सफलता

पंकज मलिक के संगीत निर्देशन वाली शुरूआती हिन्दी फ़िल्मों में से एक 'धरती माता' काफ़ी चर्चित हुई। ग्रामीण भारत के जीवन पर आधारित इस फ़िल्म में किसानों की समस्याएँ और उन्हें मुसीबतों से जूझने का रास्ता दिखाने का प्रयास किया गया था। पंकज मलिक ने इस फ़िल्म में बेहतरीन संगीत दिया और उनकी धुनों के कारण पूरी फ़िल्म में ग्रामीण परिवेश जीवंत होता दिखाई दिया। 'धरती माता' फ़िल्म में के. एल. सहगल ने आदर्शवादी युवक की भूमिका निभायी थी। इस फ़िल्म के गीत 'प्रभु मोहे बुला गांव में दुनिया रंगरंगीली बाबा दुनिया रंगरंगीली' आदि बेहद कामयाब रहे। 'धरती माता' के बाद पंकज मलिक की कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिन्हें समीक्षकों के अलावा दर्शकों ने काफ़ी पसंद किया। ऐसी फ़िल्मों में 'दुश्मन', 'काशीनाथ', 'ज़िंदगी', 'नर्तकी' और 'मेरी बहन' आदि शामिल हैं। 'नर्तकी' संगीत की दृष्टि से एक अहम फ़िल्म थी। देवकी बोस निर्देशित इस फ़िल्म में पंकज मलिक ने एक कवि की भूमिका निभायी और कई गीत भी गाए थे। इन गानों में 'ये कौन आया सबेरे सबेरे कौन तुझे समझाए मूरख' विशेष तौर पर याद किए जाते हैं।[1]

अमर संगीत

न्यू थियेटर्स की फ़िल्म 'यात्रिक' पंकज मलिक को विशेष रूप से प्रिय थी। इसमें उन्होंने अमर संगीत दिया है। कैलाश, केदारनाथ, और बद्रीनाथ की यात्रा पर आधारित इस फ़िल्म में पंकज मलिक ने संस्कृति की कई मशहूर रचनाओं को अपना स्वर दिया और अपने विशेष संगीत को फ़िल्म का एक ख़ूबसूरत पक्ष बना दिया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1940 के दशक की शुरुआत में न्यू थियेटर्स से जुड़े अधिकतर बड़े नामों ने 'बंबई' (वर्तमान मुम्बई) की राह पकड़ ली, किंतु पंकज मलिक को अधिक रकम का प्रस्ताव आकर्षित नहीं कर पाया और उन्होंने बंबई जाने से साफ़ इंकार कर दिया।

प्रमुख फ़िल्में

पंकज मलिक की कुछ प्रमुख फ़िल्मों के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. यांत्रिक - 1952
  2. मंजूर - 1949
  3. मेरी बहन - 1944
  4. नर्तकी - 1940
  5. जिन्दगी - 1940
  6. डाक्टर - 1940
  7. धरती माता - 1938
  8. देवदास - 1936
  9. यहूदी की लड़की - 1933

पुरस्कार

भारत सरकार ने संगीत के क्षेत्र में पंकज मलिक के विशेष योगदान को देखते हुए उन्हें 'पद्मश्री' (1970) से सम्मानित किया था। फ़िल्म जगत् के सर्वोच्च 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' (1972) से नवाजे गए पंकज मलिक को दर्जनों पुरस्कार मिले। इसके साथ ही उन्हें लोगों का भरपूर प्यार भी मिला।[1]

निधन

न्यू थियेटर्स से अपार प्रेम करने वाले पंकज मलिक इसके बंद होने तक इससे जुड़े रहे। 'जलजला' और 'कस्तूरी' उनकी आखिरी फ़िल्मों में थी, जिनका संगीत निर्देशन उन्होंने विशेष अनुरोध करने पर ही स्वीकर किया था। इसके बाद वह फ़िल्मों से अलग हो गए और संगीत की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष तौर पर सक्रिय रहे और अंतत 19 फ़रवरी, 1978 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए। पंकज मलिक को अपने जीवन काल में वह सब मिला, जिसकी हसरत किसी कलाकार को होती है।

प्रमुख तथ्य

पंकज मलिक के जीवन से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं-

  • रवीन्द्र संगीत में दिलचस्पी रखने वाले शशधर सेन के अनुसार- "गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीत 'नेमेचे आज प्रोथोम बादल' की पहली कमर्शियल रिकॉर्डिंग से पंकज मलिक ने अपने कैरियर की शुरुआत की थी। रवीन्द्र संगीत को पंकज मलिक ने एक तरह से आत्मसात कर लिया था।" सेन के अनुसार यह रिकॉर्डिंग मलिक ने 1926 में कलकत्ता की एक कंपनी के लिए की थी और तब उनकी उम्र 18 साल की थी। यह एलबम हिट रहा और मलिक रवीन्द्र संगीत का एक जाना-माना नाम बन गए। इसके बाद उन्होंने रवीन्द्र संगीत के कई एलबम निकाले, जिन्हें श्रोताओं ने बेहद पसंद किया।[2]
  • वर्ष 1927 में पंकज मलिक तत्कालीन कलकत्ता के 'इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन' से जुड़े और फिर आकाशवाणी में संगीतकार आर. सी. बोराल के साथ काम करने लगे। बोराल और मलिक का एक संगीतकार और कलाकार के तौर पर क़रीब 50 वर्ष का साथ रहा था। उन्होंने बांग्ला, हिन्दी, उर्दू और तमिल भाषा की फ़िल्मों के लिए संगीत दिया और फ़िल्म जगत् के लिए उनका योगदान क़रीब 38 साल तक रहा, जिसकी शुरुआत उन्होंने 1931 से की थी।
  • के. एल. सहगल, एस. डी. बर्मन, हेमंत कुमार, गीता दत्त और आशा भोंसले को पसंद करने वाले मलिक ने अभिनय भी किया। अभिनय के सफर में उनके साथ के. एल. सहगल, पी. सी. बरूआ और कानन देवी रहे। पंकज मलिक को नितिन बोस और आर. सी. बोराल के साथ भारतीय सिनेमा में पार्श्वगायन की शुरुआत करने का भी श्रेय है।
  • क़रीब 50 साल पहले 1959 को जब दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी, तब पंकज मलिक और वैजयंती माला ने एक विशेष कार्यक्रम पेश किया था।[2]
  • कहा जाता है कि मलिक को अपना गीत 'दिनेर शेषे घुमेर देशे' गाते हुए सुनकर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें गले से लगा लिया और कहा कि वे उनके गीतों को संगीत दे सकते हैं।
  • पंकज मलिक को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी राष्ट्रगान 'जन गण मन' के लिए संगीत देने के लिए कहा था।
  • रवीन्द्र संगीत को सफलतापूर्वक फ़िल्मों में लाने वाले पंकज मलिक पहले संगीतकार थे, उन्होंने फ़िल्म 'मुक्ति' में रवीन्द्र संगीत का प्रयोग किया था, जिससे टैगोर के गीत आम जनता के सामने पहली बार सिनेमा के रूप में आए।
  • अपने 50 सालों के संगीत कैरियर में पंकज मलिक ने 5,000 गीतों की रचना की थी।
  • भारतीय डाक सेवा ने वर्ष 2006 में पंकज मलिक की जन्म शताब्दी पर एक डाक टिकट भी जारी किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 आवाज के जादूगर थे पंकज मलिक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2012।
  2. 2.0 2.1 पंकज मलिक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2012।

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