शम्मी
शम्मी
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पूरा नाम | नरगिस रबाड़ी (वास्तविक नाम) |
प्रसिद्ध नाम | शम्मी आंटी |
जन्म | 24 अप्रैल, 1929 |
जन्म भूमि | गुजरात |
पति/पत्नी | सुल्तान अहमद |
कर्म भूमि | अभिनेत्री |
कर्म-क्षेत्र | मुम्बई |
मुख्य फ़िल्में | ‘बाग़ी’, ‘आग का दरिया’, ‘मुन्ना’, ‘रुखसाना’, ‘पहली झलक’, ‘लगन’, ‘बंदिश’, 'मुसाफ़िरखाना', ‘आज़ाद’ और 'दिल अपना और प्रीत परायी' |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शम्मी का जीवन को लेकर नज़रिया पूरी तरह से स्पष्ट है। वो कहती हैं, मैंने जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और जो कुछ पाया, उसे ईश्वर का प्रसाद समझा है। मैं खुश हूं कि मुझे लोगों का भरपूर प्यार और इक़बाल जैसा क़ाबिल बेटा मिला। अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं। |
शम्मी (अंग्रेज़ी: Shammi, मूल नाम- नरगिस रबाड़ी, जन्म: 24 अप्रैल, 1929, गुजरात) भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री है, जो दो सौ से अधिक हिंदी फ़िल्मों में अभिनय कर चुकी है। क़रीब साढ़े छह दशक पहले उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। शुरुआती दौर में कई फ़िल्मों में नायिका और सहनायिका के तौर पर नज़र आने के बाद उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की ओर रुख किया। इस लम्बे अंतराल में उनकी अभिनय यात्रा बिना किसी विराम के लगातार जारी रही। ये उनके जादुई व्यक्तित्व और मधुर व्यवहार का ही असर है कि आज समूचा सिने जगत उन्हें प्यार और सम्मान से 'शम्मी आंटी' कहकर बुलाता है।[1]
परिचय
शम्मी का जन्म 24 अप्रैल, 1929 को गुजरात के नारगोल संजान में अपने नाना के घर हुआ था। पारसी माता-पिता की संतान शम्मी आंटी कुछ ही महिनों की थीं जब उनके पिता परिवार को साथ लेकर मुम्बई चले आए थे। बकौल शम्मी आंटी, फ़िल्मी दुनिया से उनके परिवार का दूर-दूर तक का सम्बन्ध नहीं था। घर में पारसी-पुरोहित पिता और गृहिणी मां के अलावा एक बड़ी बहन मणि रबाड़ी थीं जिन्होंने आगे चलकर न सिर्फ़ फ़ैशन डिज़ाईनिंग की दुनिया में नाम कमाया, बल्कि अपनी कला के दम पर उस ज़माने में राष्ट्रपति-पुरस्कार भी हासिल किया था।
विवाह
साल 1970 में शम्मी आंटी ने निर्माता-निर्देशक सुल्तान अहमद से विवाह कर लिया था। लेकिन कुछ ख़ास वज़हों से महज़ सात साल बाद उन्हें पति से अलग हो जाना पड़ा। सात साल के वैवाहिक जीवन के दौरान उन्हें सुल्तान अहमद के छोटे भाई के बेटे इक़बाल रिज़वी से इतना प्यार और लगाव था कि इक़बाल आज भी उन्हें को मां का दर्जा देते हैं। इक़बाल रिज़वी टेलिविज़न के सफल निर्देशकों में जाने जाते हैं।
भक्ति भाव
शम्मी आंटी को संगीत सुनने और पढ़ने का हमेशा से शौक़ रहा जिसका अंदाज़ा किताबों और सी.डी. के उनके संग्रह को देखकर ही लगाया जा सकता था। आध्यात्म और पूजापाठ की तरफ़ भी शुरु से ही उनका झुकाव रहा। भगवान गणेश की भक्त शम्मी आंटी के संग्रह में विभिन्न आकार-प्रकार की सैकड़ों गणेश-मूर्तियां मौजूद हैं। शम्मी आंटी के अनुसार उनकी सुबह ललिता सहस्रनाम और हनुमान चालीसा के पाठ से होती है और वो जब भी घर पर होती हैं तो घर में हमेशा ही विष्णु सहस्रनाम स्त्रोतम की सी.ड़ी. बजती रहती है। जीवन को लेकर उनका का नज़रिया पूरी तरह से स्पष्ट है। वो कहती हैं, “मैंने जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और जो कुछ पाया, उसे ईश्वर का प्रसाद समझा। मैं खुश हूं कि मुझे लोगों का भरपूर प्यार और इक़बाल जैसा क़ाबिल बेटा मिला। अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं।“
फ़िल्मी सफ़र
फ़िल्मों में शम्मी आंटी का आना सिर्फ़ एक संयोग था, हालांकि रिश्तेदारी-बिरादरी में उनके इस क़दम का उस वक़्त विरोध भी बहुत हुआ था। जब वो सिर्फ़ तीन साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया। आय का कोई साधन था नहीं, इसलिए दोनों बेटियों के पालन-पोषण के लिए उनकी मां को बहुत तक़लीफ़ें सहनी पड़ीं। जब वो दोनों थोड़ी बड़ी हुईं तो उन्हें अपनी पढ़ाई का ख़र्च ख़ुद उठाने के लिए टाटा की खिलौना फैक्ट्री में काम करना पड़ा। बड़ी बहन पीपुल्स थिएटर की सक्रिय सदस्या थीं इसलिए उनके साथ नाटकों की रिहर्सल में शम्मी आंटी का भी अक्सर आना-जाना होता था, जहां उनकी मुलाक़ात महबूब ख़ान के सहायक चिमनकांत गांधी से हुई थी।
- पहली फ़िल्म
चिमनकांत गांधी ने उन्हें न सिर्फ़ फ़िल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि निर्माता-निर्देशक-अभिनेता शेख़ मुख़्तार से भी मिलवाया जो उन दिनों फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ में सहनायिका की भूमिका के लिए किसी नई लड़की की तलाश में थे। शेख़ मुख़्तार के घर पर उनसे मुलाक़ात हुई तो उनका पहला सवाल था, हिन्दी बोल लेती हो? इस पर उन्होंने कहा, “आपसे बात कर रही हूं तो बोल ही लेती हूँ।“ उनका ये बेबाक अंदाज़ शेख़ मुख़्तार को इतना पसन्द आया कि उन्होंने उसी वक़्त उन्हें फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ की दूसरी नायिका की भूमिका के लिए साईन कर लिया।“ क़रीब डेढ़ साल में तैयार हुई ‘उस्ताद पेड्रो’ साल 1951 में प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में ख़ुद शेख़ मुख़्तार, एन.ए.अंसारी और बेगम पारा थे और संगीतकार थे सी.रामचन्द्र। शम्मी आंटी ने इस फ़िल्म में एन.ए.अंसारी की नायिका की भूमिका निभायी थी।
फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ के निर्देशक तारा हरीश उन दिनों गायक मुकेश द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘मल्हार’ का भी निर्देशन कर रहे थे। फ़िल्म ‘उस्ताद पेड्रो’ में शम्मी आंटी की लगन और मेहनत को देखकर तारा हरीश ने फ़िल्म ‘मल्हार’ की नायिका की भूमिका भी शम्मी आंटी को ही दे दी। इस फ़िल्म में शम्मी आंटी के नायक थे अर्जुन। ये फ़िल्म भी साल 1951 में ही प्रदर्शित हुई थी। शम्मी आंटी का असली नाम नरगिस रबाड़ी है, लेकिन चूंकि नरगिस उस जमाने की एक बहुत बड़ी स्टार थीं इसलिए तारा हरीश ने उन्हें ये नया नाम ‘शम्मी आंटी’ दिया जो फ़िल्म ‘मल्हार’ के चरित्र का नाम था।“ साल 1952 में दिलीप कुमार और मधुबाला के साथ फ़िल्म ‘संगदिल’ में शम्मी आंटी सहनायिका की भूमिका में नज़र आयीं। इस फ़िल्म से दिलीप कुमार के साथ हुई उनकी दोस्ती आज भी बरकरार है।
- फ़िल्म निर्माण के रूप में
शम्मी आंटी अपने पति निर्माता-निर्देशक सुल्तान अहमद के साथ मिलकर फ़िल्म ‘हीरा’ (1973) और ‘गंगा की सौगंध’ (1978) का निर्माण किया, जिनका निर्देशन ख़ुद सुल्तान अहमद ने किया था। इसके साथ ही शम्मी आंटी बाहर की फ़िल्मों में अभिनय भी करती रहीं। लेकिन कुछ ख़ास वजहों से महज़ सातसाल बाद उन्हें पति से अलग हो जाना पड़ा। पति से अलगाव के बाद शम्मी आंटी ने संगीतकार कल्याण जी के बेटे रमेश शाह के साथ मिलकर फ़िल्म ‘पिघलता आसमान’ का निर्माण किया था। साल 1985 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में शशि कपूर, राखी और रति अग्निहोत्री थे। इस फ़िल्म के संगीतकार थे कल्याण जी आनंद जी।
धारावाहिक निर्माण
आशा पारेख के साथ मिलकर शम्मी आंटी ने ‘बाजे पायल’, ‘कोरा क़ागज़’, ‘कंगन’ और ‘कुछ पल साथ तुम्हारा’ जैसे धारावाहिकों का निर्माण भी किया और आज भी दोनों अभिनेत्रियां बहुत अच्छी दोस्त हैं। अपने अब तक के कॅरियर में क़रीब दो सौ फ़िल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाने के साथ ही उन्हें ‘देख भाई देख’, ‘श्रीमान श्रीमती’, ‘कभी ये कभी वो’ जैसे कई टी. वी. धारावाहिकों में भी अभिनय किया। ‘सहारा वन’ चैनल के धारावाहिक ‘घर एक सपना’ में वो आलोक नाथ की मां की भूमिका में नज़र आयी थीं।
मुख्य फ़िल्म
1950 के दशक में शम्मी आंटी ने ‘बाग़ी’, ‘आग का दरिया’, ‘मुन्ना’, ‘रुखसाना’, ‘पहली झलक’, ‘लगन’, ‘बंदिश’, 'मुसाफ़िरखाना', ‘आज़ाद’ और 'दिल अपना और प्रीत परायी' जैसी कई फ़िल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायीं। अब तक की उनकी अन्तिम फ़िल्म ‘शिरीन फ़रहाद की तो निकल पड़ी’ है जो साल 2012 में प्रदर्शित हुई थी।
चरित्र अभिनेत्री
शम्मी ने अपने कॅरियर को न तो कभी प्लान किया और न ही बहुत ज़्यादा महत्वाकांक्षाएं पालीं। बस जो भी काम उन्हें मिलता रहा, बिना ना-नुकुर किए करती चली गयी। यही वजह है कि जल्द ही उनकी पहचान महज़ एक चरित्र अभिनेत्री के रूप में ही रह गयी। नायिका के तौर पर भले ही वो ज़्यादा काम नहीं कर पायी लेकिन चरित्र अभिनेत्री बनने का उन्हें ये फ़ायदा हुआ कि उन्हें बिना काम के कभी बैठना नहीं पड़ा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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