चिमन सिंह यादव
चिमन सिंह यादव
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पूरा नाम | चिमन सिंह यादव |
जन्म | 1 जून, 1945 |
जन्म भूमि | गोकुल गड़गाँव, गुरुग्राम, हरियाणा |
सेना | भारतीय नौ सेना |
युद्ध | भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) |
सम्मान | महावीर चक्र (1972) |
नागरिकता | भारतीय |
उपाधि | पेटी ऑफिसर |
अन्य जानकारी | पाकिस्तान से युद्ध दौरान चिमन सिंह यादव को बंदी बना लिया गया था। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन्हें देखने अस्पताल गई थीं। |
अद्यतन | 13:45, 6 नवम्बर 2022 (IST)
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चिमन सिंह यादव (अंग्रेज़ी: Chiman Singh Yadav, जन्म- 1 जून, 1945) भारतीय नौसेना में नाविक थे। उन्होंने सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया था। अपने कार्यों के लिए उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'महावीर चक्र' और बांग्लादेश द्वारा 'फ्रेंड्स ऑफ़ लिबरेशन वॉर पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
परिचय
भारत ने आजादी के बाद कई चुनौतियों का सामना किया। चीन और पाकिस्तान से कई जंग हुए। इन लड़ाइयों में भारत के वीर सपूतों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। ऐसे ही एक वीर योद्धा थे- चिमन सिंह यादव। उन्होंने 1971 की जंग में हिस्सा लिया था। चिमन सिंह यादव का जन्म 1 जून, 1945 को तत्कालीन अविभाजित पंजाब के गुड़गांव जिले के गोकल गढ़ गांव में हुआ था। बचपन से ही चिमन सिंह को गांव के तालाब में तैरने और गोता लगाने का शौक था। 1961 में वह दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड देखने के लिए वरिष्ठ छात्रों के एक समूह के साथ गए। वहां उन्होंने पहली बार नौसेना के जहाज और नाविकों की झांकी देखी। नौ सैनिक बेदाग सफेद कपड़े पहने हुए थे और डेक से गोता लगाने का नकली अभ्यास कर रहे थे। उन्होंने जो देखा, उससे इतना मोहित हो गए कि नेवी में जाने का फैसला कर दिया।[1]
बारूदी सुरंग लगाने में दक्ष
चिमन सिंह यादव ने बीएस अहीर हाई स्कूल रेवाड़ी से मैट्रिक पास किया। वह केवल 16 साल की उम्र में 8 जून, 1961 को एक नाविक के रूप में नौसेना में शामिल हो गए। सात वर्षों के भीतर चिमन लीडिंग सीमैन बन गए। उन्होंने दुश्मन के युद्धपोतों और पनडुब्बियों के खिलाफ बारूदी सुरंग लगाने में विशेषज्ञता हासिल की। पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध से पहले उनको पूर्वी पाकिस्तान के क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी मिली थी।
1971 की जंग
सन 1971 की जंग में चिमन सिंह यादव को पूर्वी पाकिस्तान में मंगला और खुलना बे में दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने का काम सौंपा गया था। वह एक छोटे नौसेना पोत के दल के हिस्सा थे। इस टीम ने 9 दिसंबर से 11 दिसंबर को अपने ऑपरेशन को अंजाम दिया था। खुलना से ऑपरेट करते समय पोत पर दुष्मन ने हवाई हमला किया था, जिससे पोत डूब गया था। हमले के दौरान लीडिंग सीमैन चिमन सिंह पानी में गिर गए थे। छर्रे लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे। दुश्मन के तट रक्षक सैनिकों ने पानी में बचे लोगों पर गोलियां चलाईं थी।[1]
चिमन सिंह यादव ने देखा कि एक घायल अधिकारी सहित जीवित बचे लोगों को बचाए रखना मुश्किल हो रहा था। घायल होने के बाद भी चिमन सिंह ने उन्हें बचाया और दुश्मन की भारी गोलाबारी से बचाकर किनारे तक ले गए। तट पर पहुंचने पर चिमन सिंह दुश्मन की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने दुश्मनों के सामने खुद को उजागर किया ताकि उनके दो साथी पकड़े जाने से बच सकें। चिमन सिंह यादव को बंदी बना लिया गया था। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन्हें देखने अस्पताल गई थीं।
महावीर चक्र
31 मार्च 1972 को चिमन सिंह यादव को 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 दुश्मन के हमले में घायल चिमन सिंह बांग्लादेश के अस्पताल में हुए थे भर्ती, देखने गईं थी इंदिरा गांधी (हिंदी) hindi.asianetnews.com। अभिगमन तिथि: 06 नवंबर, 2022।
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