जयंत विष्णु नार्लीकर

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जयंत विष्णु नार्लीकर
जयंत विष्‍णु नार्लीकर
जयंत विष्‍णु नार्लीकर
पूरा नाम जयंत विष्‍णु नार्लीकर
अन्य नाम जयंत नार्लीकर
जन्म 19 जुलाई, 1938
जन्म भूमि कोल्हापुर, महाराष्ट्र
अभिभावक पिता- विष्णु वासुदेव नार्लीकर
कर्म-क्षेत्र भौतिकी विज्ञान
भाषा अंग्रेज़ी, हिन्दी और मराठी
शिक्षा पी-एच. डी. (गणित)
विद्यालय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मभूषण' (1965) तथा 'पद्मविभूषण' (2004)
प्रसिद्धि भारतीय वैज्ञानिक
विशेष योगदान जयंत विष्णु नार्लीकर ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञान साहित्‍य में भी अपना अमूल्‍य योगदान दिया।
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
अन्य जानकारी जयंत विष्णु नार्लीकर ने फ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी के हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।
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जयंत विष्णु नार्लीकर (अंग्रेज़ी:Jayant Narlikar, जन्म- 19 जुलाई, 1938, कोल्हापुर, महाराष्ट्र) प्रसिद्ध भारतीय भौतिकीय वैज्ञानिक हैं। वह ब्रह्माण्ड के स्थिर अवस्था सिद्धान्त के विशेषज्ञ और फ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी के हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त के प्रतिपादक भी हैं। उन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए अंग्रेज़ी, हिन्दी और मराठी में अनेक पुस्तकें लिखी हैं।

परिचय

जयंत विष्णु नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई, 1938 को कोल्हापुर, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित विभाग के अध्यक्ष थे, इसलिए उनकी शिक्षा-दीक्षा भी वहीं से हुई। उन्होंने 1963 में गणित में पी-एच. डी. की डिग्री हासिल की। बाद में खगोल-भौतिकी में उनकी रूचि बढ़ी और उन्होंने उसमें प्रवीणता हासिल की।

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति विशाल विस्फोट (Big Bang) के द्वारा हुई थी। इसके साथ साथ ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में एक और सिद्धान्त प्रतिपादित है, जिसका नाम स्थायी अवस्था सिद्धान्त (Steady State Theory) है। इस सिद्धान्त के जनक फ्रेड हॉयल हैं। अपने इंग्लैंड के प्रवास के दौरान, नार्लीकर ने इस सिद्धान्त पर फ्रेड हॉयल के साथ काम किया। इसके साथ ही उन्होंने आइंस्टीन के आपेक्षिकता सिद्धान्त और माक सिद्धान्त को मिलाते हुए हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। वह 1963 से 1972 तक किंग्स कॉलेज के फेलो रहे और 1966 से 1972 तक इंस्टीट्यूट ऑफ़ थिओरेटिकल एस्ट्रोनामी के संस्थापक सदस्य के रूप में जुड़े रहे। 1970 के दशक में नार्लीकर भारतवर्ष वापस लौट आये और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान में कार्य करने लगे। 1988 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा उन्हे खगोलशास्त्र एवं खगोलभौतिकी अन्तरविश्वविद्यालय केन्द्र स्थापित करने का कार्य सौंपा गया। उन्होने यहाँ से 2003 में अवकाश ग्रहण कर लिया। अब वे वहीं प्रतिष्ठित अध्यापक हैं।[1]

पुस्तकें एवं प्रकाशन

कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित जयंत विष्णु नार्लीकर ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञान साहित्‍य में भी अपना अमूल्‍य योगदान दिया। विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशति उनके सद्य प्रकाशि‍त संग्रह 'कृष्ण विवर और अन्य विज्ञान कथाएं' में उनकी 14 विज्ञान कथाओं को संग्रहीत किया गया है, जिसमें उनकी चर्चित कहानियां कृष्ण विवर, नौलखा हार और धूमकेतु भी शामिल हैं। इनके अतिरिक्त संग्रह में शामिल विज्ञान कथाएं हैं: अंतिम विकल्प, दाईं सूंड के गणेशजी, टाइमस मशीन का करिश्मा, पुत्रवती भव, अहंकार, वायरस, ताराश्म, ट्राय का घोड़ा, छिपा हुआ तारा, विस्फोट एवं यक्षों की देन। यद्यपि उनकी एक अन्य चर्चित विज्ञान कथा 'हिम प्रलय' इस संग्रह में शामिल नहीं है, तथापि इसे एक तरह से नार्लीकर की प्रतिनिधि विज्ञान कथाओं का संग्रह कहा जा सकता है। आलोच्य संग्रह में शामिल रचनाओं में नौलखा हार, दाई सूंड के गणेशजी, पुत्रवती भव एवं ट्राय का घोड़ा बेहद रोचक कहानियां हैं। इसके अतिरिक्त अन्य रचनाएं भी विषय के स्तर पर विविधता लिए हुए हैं और पहले ही पैराग्राफ से पाठक को बांधने में सक्षम हैं।

सम्मान एवं पुरस्कार

  • जयंत विष्णु नार्लीकर ने 1962 में 'स्मिथ पुरस्कार', 1967 में 'एडम्स पुरस्कार' प्राप्त किए।
  • जयंत विष्णु नार्लीकर को कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले, जिनमें भटनागर पुरस्कार, एम.पी. बिड़ला पुरस्कार तथा कलिंग पुरस्कार प्रमुख हैं।
  • उन्हें भारत सरकार द्वारा 1965 में 'पद्मभूषण' तथा 2004 में 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किया गया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जयंत विष्णु नार्लीकर की अद्भुत विज्ञान कथाएं। (हिंदी) www.scientificworld.in। अभिगमन तिथि: 11 जुलाई, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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