हिन्दी व्याकरण
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जिस विद्या से किसी भाषा के बोलने तथा लिखने के नियमों की व्यवस्थित पद्धति का ज्ञान होता है, उसे 'व्याकरण' कहते हैं।
वर्णमाला
मुख्य लेख : वर्णमाला (व्याकरण)
हिन्दी भाषा में जितने वर्णों का प्रयोग होता है, उन वर्णों के समूह को 'वर्णमाला' कहा जाता है।
हिन्दी वर्णमाला
मुख्य लेख : हिन्दी वर्णमाला (व्याकरण)
- हिन्दी भाषा में जितने वर्ण प्रयुक्त होते हैं, उन वर्णों के समूह को 'हिन्दी-वर्णमाला' कहा जाता है।
स्वर
मुख्य लेख : स्वर (व्याकरण)
- स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण स्वर कहलाते हैं।
व्यंजन
मुख्य लेख : व्यंजन (व्याकरण)
- स्वरों की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण व्यंजन कहलाते हैं।
शब्द
मुख्य लेख : शब्द (व्याकरण)
सार्थक शब्द
मुख्य लेख : सार्थक शब्द (व्याकरण)
- किसी निश्चित अर्थ का बोध कराने वाले शब्दों को सार्थक शब्द कहा जाता है।
- जैसे- आना, ऊपर, जाना, पाना आदि।
निरर्थक शब्द
मुख्य लेख : निरर्थक शब्द (व्याकरण)
- किसी निश्चित अर्थ का बोध नहीं कराने वाले शब्दों को निरर्थक शब्द कहा जाता है।
विकारी शब्द
मुख्य लेख : विकारी शब्द
- वह शब्द जो लिंग, वचन, कारक आदि से विकृत हो जाते हैं विकारी शब्द होते हैं।
- जैसे- मैं→ मुझ→ मुझे→ मेरा, अच्छा→ अच्छे आदि।
अविकारी शब्द
मुख्य लेख : अविकारी शब्द
- वह शब्द जो लिंग, वचन, कारक आदि से कभी विकृत नहीं होते हैं अविकारी शब्द होते हैं।
- इनको 'अव्यय' भी कहा जाता है।
संज्ञा
मुख्य लेख : संज्ञा (व्याकरण)
- यह सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है।
- किंतु जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और इसका रूप भी बदल जाता है।
सर्वनाम
मुख्य लेख : सर्वनाम
- सर्वनाम संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते है।
- संज्ञा की पुनरुक्ति न करने के लिए सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।
विशेषण
मुख्य लेख : विशेषण
- संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द ‘विशेषण’ कहलाते हैं।
क्रिया
मुख्य लेख : क्रिया
- जिन शब्दों से किसी कार्य या व्यापार के होने या किए जाने का बोध होता है उन्हें क्रिया कहते हैं।
- जैसे- उठना, बैठना, सोना जागना।
क्रियाविशेषण
मुख्य लेख : क्रियाविशेषण
- जिन अविकारी शब्दों से क्रिया की विशेषता का बोध होता है वे क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
सम्बन्धबोधक
मुख्य लेख : सम्बन्धबोधक
- जो अविकारी शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के पहले या पीछे आकर उसका सम्बन्ध वाक्य के किसी अन्य शब्द से कराते हैं, उन्हें सम्बन्धबोधक कहते हैं।
- जैसे- पूर्वक, और, वास्ते, तुल्य, समान आदि।
समुच्यबोधक
मुख्य लेख : समुच्यबोधक
- व्याकरण में समुच्यबोधक एक अविकारी शब्द है।
- जो अविकारी शब्द दो शब्दों, दो वाक्यों अथवा दो वाक्यों खण्डों को जोड़ते हैं, उन्हें समुच्यबोधक कहते हैं।
- जैसे- वह यहाँ अवश्य आता, परन्तु बीमार था।
विस्मयादिबोधक
मुख्य लेख : विस्मयादिबोधक
- जो अविकारी शब्द हर्ष, शोक, आश्चर्य, घृणा, क्रोध, तिरस्कार आदि भावों का बोध कराते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं।
- जैसे- वाह, ओह, हाय आदि।
कारक
मुख्य लेख : कारक
- कार्क शब्द का अर्थ है क्रिया को करने वाला अर्थात क्रिया को पूरी करने में किसी न किसी भूमिका को निभाने वाला।
काल
मुख्य लेख : काल
- क्रिया के व्यापार का समय सूचित करने वाले क्रिया रूप को 'काल' कहते हैं।
संधि
मुख्य लेख : संधि
- दो समीपवर्ती वर्णों के मेल से जो विकार होता है, वह संधि कहलाता है।
- जैसे- देव+ आलय= देवालय, मन:+ योग= मनोयोग
उपवाक्य
मुख्य लेख : उपवाक्य
- यदि किसी एक वाक्य में एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं तो वह वाक्य उपवाक्यों में बँट जाता है।
- उसमें जितनी भी समापिका क्रियाएँ होती हैं उतने ही उपवाक्य होते हैं।
वचन
मुख्य लेख : वचन (हिन्दी)
- विकारी शब्दों के जिस रूप से संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं।
- वैसे तो शब्दों का संज्ञा भेद विविध प्रकार का होता है, परन्तु व्याकरण में उसके एक और अनेक भेद प्रचलित हैं।
वर्तनी
मुख्य लेख : वर्तनी (हिन्दी)
- लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं।
- इसे हिज्जे भी कहा जाता है।
उपसर्ग
मुख्य लेख : उपसर्ग
- वे शब्दांश जो यौगिक शब्द बनाते समय पहले लगते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं।
- जैसे- प्रति= प्रतिनिधि, प्रतिकूल, प्रतिष्ठा, प्रत्यक्ष।
रस
मुख्य लेख : रस
- रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
- रस को 'काव्य की आत्मा' या 'प्राण तत्व' माना जाता है।
अलंकार
मुख्य लेख : अलंकार
- अलंकार का शाब्दिक अर्थ है, 'आभूषण' । जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार काव्य अलंकारों से काव्य की।
- हिन्दी के कवि केशवदास एक अलंकारवादी हैं।
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