अमोघवर्ष प्रथम
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- 814 ई. में गोविन्द तृतीय की मृत्यु हो जाने पर उसका पुत्र अमोघवर्ष मान्यखेट के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
- उसने पूर्वी चालुक्यों एवं गंगो से लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी।
- वह योग्य शासक होने के साथ-साथ जिनसेन 'आदिपुराण' के रचनाकार, महावीरचार्य 'गणितसार-संग्रह' के रचनाकार एवं सक्तायाना 'अमोघवर्ष 'के रचनाकार जैसे विद्धानों का आश्रयदाता भी था।
- उसने स्वयं ही कन्नड़ के प्रसिद्ध ग्रंथ 'कविराज मार्ग' की रचना की।
- अमोघवर्ष ने ही 'मान्यखेत' को राष्ट्रकूट की राजधानी बनाया।
- तत्कालीन अरब यात्री सुलेमान ने अमोघवर्ष की गणना विश्व के तत्कालीन चार महान शासकों मे की थी।
- वह जैन मतावलम्बी होते हुए भी हिन्दू देवी देवताओं का सम्मान करता था।
- वह महालक्ष्मी का अनन्त भक्त था।
- संजन ताम्रपत्र से यह पता चलता है कि उसने एक अवसर पर देवी को अपने बाएं हाथ की उंगली चढ़ा दी थी। उसकी तुलना शिव, दधिचि जैसे पौराणिक व्यक्तियों से की जाती है।
- राष्ट्रकूट साम्राज्य में उसके विरोधियों की भी कमी नहीं थी। इस स्थिति से लाभ उठाकर न केवल अनेक अधीनस्थ राजाओं ने स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया, अपितु विविध राष्ट्रकूट सामन्तों और राजपुरुषों ने भी उसके विरुद्ध षड़यंत्र आरम्भ कर दिए।
- अमोघवर्ष का मंत्री करकराज था। अपने सामन्तों के षड़यंत्रों के कारण कुछ समय के लिए अमोघवर्ष को राजसिंहासन से भी हाथ धोना पड़ा। पर करकराज की सहायता से उसने राजपद पुनः प्राप्त किया।
- आंतरिक अव्यवस्था के कारण अमोघवर्ष राष्ट्रकूट साम्राज्य को अक्षुण्ण रख सकने में असमर्थ रहा, और चालुक्यों ने राष्ट्रकूटों की निर्बलता से लाभ उठाकर एक बार फिर अपने उत्कर्ष के लिए प्रयत्न किया। इसमें उन्हें सफलता भी मिली।
- अमोघवर्ष के शासन काल में ही कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार राजा मिहिरभोज ने अपने विशाल साम्राज्य का निर्माण किया, और उत्तरी भारत से राष्ट्रकूटों के शासन का अन्त कर दिया।
- गुर्जर प्रतिहार लोग किस प्रकार कन्नौज के स्वामी बने, और उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
- यह सर्वथा स्पष्ट है, कि अमोघवर्ष के समय में राष्ट्रकूट साम्राज्य का अपकर्ष प्रारम्भ हो गया था।
- अमोघवर्ष ने 814 से 878 ई. तक शासन किया।
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