श्रेणी:पद्य साहित्य
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
उपश्रेणियाँ
इस श्रेणी की कुल 16 में से 16 उपश्रेणियाँ निम्नलिखित हैं।
आ
- आधुनिक महाकाव्य (3 पृ)
क
- कविता संग्रह (29 पृ)
- काव्य कोश (2,532 पृ)
ख
द
- दोहा संग्रह (1 पृ)
प
- पद (592 पृ)
- प्रबंध काव्य (खाली)
- प्रबन्ध काव्य (2 पृ)
भ
- भक्तिकालीन साहित्य (629 पृ)
म
- महाकाव्य (58 पृ)
र
- रमैनी (12 पृ)
- रासो काव्य (31 पृ)
- रीतिकालीन साहित्य (126 पृ)
- रुबाई (1 पृ)
"पद्य साहित्य" श्रेणी में पृष्ठ
इस श्रेणी की कुल 8,510 में से 200 पृष्ठ निम्नलिखित हैं।
(पिछला पृष्ठ) (अगला पृष्ठ)ग
- गंग बचन सुनि मंगल मूला
- गंगा -सुमित्रानंदन पंत
- गंगा की विदाई -माखन लाल चतुर्वेदी
- गंगा-स्तुति -विद्यापति
- गंगालहरी
- गंगालहरी (पंडित जगन्नाथ)
- गंगालहरी (पद्माकर)
- गइ मुरुछा तब भूपति जागे
- गइ मुरुछा रामहि सुमिरि
- गई बहोर गरीब नेवाजू
- गईं समीप महेस
- गए अवध चर भरत
- गए जानि अंगद हनुमाना
- गए देव सब निज निज धामा
- गए बिभीषन पास पुनि
- गए लखनु जहँ जानकिनाथू
- गए सुमंत्रु तब राउर माहीं
- गएँ जाम जुग भूपति आवा
- गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा
- गगनोपरि हरि गुन गन गाए
- गननायक बर दायक देवा
- गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा
- गयउ दूरि घन गहन बराहू
- गयउ मोर संदेह सुनेउँ
- गयउ सभा दरबार तब
- गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा
- गयउ सहमि नहिं कछु कहि आवा
- गयउँ उजेनी सुनु उरगारी
- गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे -अदम गोंडवी
- गरइ गलानि कुटिल कैकेई
- गरज आपनी आप सों -रहीम
- गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा
- गरब न कीजै बावरे -मलूकदास
- गरल सुधासम अरि हित होई
- गरुड़ गिरा सुनि हरषेउ कागा
- गरुड़ महाग्यानी गुन रासी
- गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही
- गर्ग संहिता
- गर्जि परे रिपु कटक मझारी
- गर्भ स्रवहिं अवनिप रवनि
- गर्म पकौड़ी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- गर्मी ए शौक़ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय -मीरां
- गलीं सकल अरगजाँ सिंचाईं
- गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई
- गहन है यह अंधकार -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- गहसि न राम चरन सठ जाई
- गहहु घाट भट समिटि सब
- गहि गिरि तरु अकास कपि धावहिं
- गहि गिरि पादप उपल
- गहि गुन पय तजि अवगुण बारी
- गहि पद लगे सुमित्रा अंका
- गहि भूमि पार्यो लात मार्यो
- गहि सरनागति राम की -रहीम
- गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना
- गहेउ चरन गहि भूमि पछारा
- ग़ज़ल को ले चलो अब -अदम गोंडवी
- गा चह पार जतनु हियँ हेरा
- गाँधी -रामधारी सिंह दिनकर
- गाँव गाँव अस होइ अनंदू
- गाँव में चक्का तलाई -अजेय
- गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे -मीरां
- गांधारी से संवाद (1) -कुलदीप शर्मा
- गांधारी से संवाद (2) -कुलदीप शर्मा
- गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ -रैदास
- गाथे महामनि मौर मंजुल
- गाधितनय मन चिंता ब्यापी
- गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि
- गाया तिन पाया नहीं -कबीर
- गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि
- गारीं सकल कैकइहि देहीं
- गाली में गरिमा घोल-घोल -माखन लाल चतुर्वेदी
- गावत राम चरित मृदु बानी
- गावन ही मैं रोवना -कबीर
- गावहिं गीत मनोहर नाना
- गावहिं मंगल कोकिलबयनीं
- गावहिं मंगल मंजुल बानीं
- गावहिं सुंदरि मंगल गीता
- गावहिं सुनहिं सदा मम लीला
- गावैं गुनी गनिका गन्धर्व -रसखान
- गाहि सरोवर सौरभ लै -बिहारी लाल
- गिरत सँभारि उठा दसकंधर
- गिरा अरथ जल बीचि
- गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी
- गिरा मुखर तन अरध भवानी
- गिरि कानन जहँ तहँ भरि पूरी
- गिरि जनि गिरै स्याम के कर तैं -सूरदास
- गिरि ते उतरि पवनसुत आवा
- गिरि त्रिकूट ऊपर बस लंका
- गिरि त्रिकूट एक सिंधु मझारी
- गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीर -माखन लाल चतुर्वेदी
- गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी
- गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही
- गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी
- गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा
- गिरिजा जासु नाम जपि
- गिरिजा संत समागम सम
- गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा
- गिरिबर गुहाँ पैठ सो जाई
- गिरिहहिं रसना संसय नाहीं
- गीत -विद्यापति
- गीत गाने दो मुझे -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- गीत जो गाये नहीं -गोपालदास नीरज
- गीत विहग -सुमित्रानंदन पंत
- गीत-अगीत -रामधारी सिंह दिनकर
- गीत-ग़ज़ल -आरसी प्रसाद सिंह
- गीतांजलि
- गीतावली -तुलसीदास
- गीति रामायण
- गीध देह तजि धरि हरि रूपा
- गीधराज सुनि आरत बानी
- गीधराज सै भेंट भइ
- गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा
- गुंजत मधुकर मुखर अनूपा
- गुंजत मधुकर मुखर मनोहर
- गुंजन -सुमित्रानन्दन पंत
- गुणगान -मैथिलीशरण गुप्त
- गुन कृत सन्यपात नहिं केही
- गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा
- गुन ध्यान निधान अमान अजं
- गुन सील कृपा परमायतनं
- गुनह लखन कर हम पर रोषू
- गुनागार संसार दुख
- गुनातीत सचराचर स्वामी
- गुर अनुरागु भरत पर देखी
- गुर के बचन सुरति करि
- गुर गुरतिय पद बंदि प्रभु
- गुर नित मोहि प्रबोध दुखित
- गुर नृप भरत सभा अवलोकी
- गुर पद कमल प्रनामु
- गुर पद पंकज सेवा
- गुर पद प्रीति नीति रत जेई
- गुर पितु मातु बंधु सुर साईं
- गुर पितु मातु महेस भवानी
- गुर पितु मातु स्वामि सिख पालें
- गुर पितु मातु स्वामि हित बानी
- गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा
- गुर बिनु भव निध तरइ न कोई
- गुर बिबेक सागर जगु जाना
- गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं
- गुर श्रुति संमत धरम
- गुर सन कहब सँदेसु
- गुर सन कहि बरषासन दीन्हे
- गुर समाज भाइन्ह सहित
- गुरजन लाज समाजु
- गुरतिय पद बंदे दुहु भाईं
- गुरहि देखि सानुज अनुरागे
- गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा
- गुरु कुम्हार की गुरुदक्षिणा -नीलम प्रभा
- गुरु के बचन सचिव अभिनंदनु
- गुरु गोविंद तौ एक है -कबीर
- गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन
- गुरुदेव का अंग -कबीर
- गुलों में रंग भरे, बादे-नौबहार -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई
- गुहँ बोलाइ पाहरू प्रतीती
- गुहँ सँवारि साँथरी डसाई
- गूढ़ कपट प्रिय बचन
- गूढ़ गिरा सुनि सिय सकुचानी
- गूलरि फल समान तव लंका
- गृह गृह बाज बधाव
- गे नहाइ गुर पहिं रघुराई
- गै जननी सिसु पहिं भयभीता
- गै निसि बहुत सयन अब कीजे
- गै श्रम सकल सुखी नृप भयऊ
- गो गोचर जहँ लगि मन जाई
- गो द्विज धेनु देव हितकारी
- गोचारण काव्य
- गोपाल राधे कृष्ण गोविंद -मीरां
- गोपीभाव -वंदना गुप्ता
- गोबिंदे तुम्हारे से समाधि लागी -रैदास
- गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा -मीरां
- गोरी गरबीली उठी -देव
- गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि -रसखान
- गोशाला (काव्य)
- गौतम तिय गति सुरति
- गौतम नारि श्राप बस
- गौब्यंदे भौ जल -रैदास
- गौर किसोर बेषु बर काछें
- गौर सरीर स्याम मन माहीं
- गौरी के वर देखि बड़ दुःख -विद्यापति
- ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका
- ग्यान गिरा गोतीत अज
- ग्यान निधान अमान मानप्रद
- ग्यान निधान सुजान
- ग्यान पंथ कृपान कै धारा
- ग्यान प्रकासा गुरु मिला -कबीर
- ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना
- ग्यान बिराग जोग बिग्याना
- ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं
- ग्यानहि भगतिहि अंतर केता
- ग्यानी तापस सूर कबि
- ग्यानी भगत सिरोमनि
- ग्रंथि -सुमित्रानन्दन पंत
- ग्रह ग्रहीत पुनि बात
- ग्रह भेजष जल पवन
- ग्राम निकट जब निकसहिं जाई
- ग्राम श्री -सुमित्रानंदन पंत
- ग्राम्या -सुमित्रानन्दन पंत
- ग्रीषम प्रचंड घाम -देव