साथ सब न चल सकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
लोग रास्ते में रुकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
दूसरों के आँसू अपनी, आँख से जो भी बहाये
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
साथ सब ना चल सकेंगे…
दूसरों को जानते हैं, खुद को पहचाना नहीं है
बात है छोटी मगर सबने इसे माना नहीं है
बौने किरदारों को अक्सर होता है क़द का गुमां
क़द किसी का नापने का भीड़ पैमाना नहीं है
हम तो बस उस आदमी के साथ चलना चाहते हैं
जो अकेले में कभी ना, आईने से मुँह छुपाये
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
साथ सब ना चल सकेंगे…
आवरण भाने लगे तो सादगी का अर्थ भूले
अर्थ की चाहत में पल-पल ज़िन्दगी का अर्थ भूले
छोटी खुशियाँ द्वार पर दस्तकें तो लाईं लेकिन
हम बड़ी खुशियाँ में छोटी हर खुशी का अर्थ भूले
दूसरों की खुशियाँ में जो ढूँढ़कर अपनी खुशी को
भोली-सी मुसकान हरदम अपने होठों पर सजाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
साथ सब ना चल सकेंगे…
हर किसी को ये भरम है, साथ दुनिया का मेला
पर हक़ीक़त में सभी को होना है इक दिन अकेला
ज़िन्दगी ने मुस्कुराकर बस गले उसको लगाया
जिसने भी ज़िदादिली से ज़िंदगी का खेल खेला
दुनिया में उसको सभी मौसम सुहाने लगते हैं
मौत की खिलती कली पर, भँवरा बन जो गुनगुनाये
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए
साथ सब ना चल सकेंगे…