ध्रुव धारावर्ष
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- 772 ई. में कृष्णराज की मृत्यु होने पर उसका पुत्र गोविन्द राजा बना।
- वह भोग-विलास में मस्त रहता था, और राज्य-कार्य की उपेक्षा करता था।
- आठवीं सदी में कोई ऐसा व्यक्ति सफलतापूर्वक राजपद नहीं सम्भाल सकता था, जो 'उद्यतदण्ड' न हो। अतः उसके शासन काल में भी राज्य का वास्तविक संचालन उसके भाई ध्रुव के हाथों में था।
- अवसर पाकर ध्रुव स्वयं राजसिंहासन पर आरूढ़ हो गया। उसका शासन काल 779 ई. में शुरू हुआ था। इस युग में उत्तरी भारत में दो राजशक्तियाँ प्रधान थीं, गुर्जर प्रतिहार राजा और मगध के पालवंशी राजा।
- गुर्जर प्रतिहार राजा वत्सराज और पाल राजा धर्मपाल राष्ट्रकूट राजा ध्रुव के समकालीन थे।
- ध्रुव ने सिंहासन पर बैठने के उपरान्त वेंगी के चालुक्य नरेश विष्णु वर्धन, पल्लव नरेश दंति वर्मन एवं मैसूर के गंगो को पराजित किया।
- उत्तर भारत के ये दोनों राजा प्रतापी और महत्त्वाकांक्षी थे, और उनके राज्यों की दक्षिणी सीमाएँ राष्ट्रकूट राज्य के साथ लगती थीं। अतः यह स्वाभाविक था, कि इनका राष्ट्रकूटों के साथ संघर्ष हो। यह संघर्ष ध्रुव के समय में ही शुरू हो गया था, पर उसके उत्तराधिकारियों के शासन काल में इसने बहुत उग्र रूप धारण कर लिया।
- शुरू में ध्रुव की शक्ति अपने भाई गोविन्द के साथ संघर्ष में व्यतीत हुई। अनेक सामन्त राजा और ज़ागीरदार ध्रुव के विरोधी थे और गोविन्द का पक्ष लेकर युद्ध के लिए तत्पर थे। ध्रुव ने उन सबको परास्त किया, और अपने राज्य में सुव्यवस्था स्थापित कर दक्षिण की ओर आक्रमण किया।
- मैसूर के गंग वंश को परास्त कर उसने काञ्जी पर हमला किया, और पल्लवराज को एक बार फिर राष्ट्रकूटों की अधीनता स्वीकृत करने के लिए विवश किया।
- दक्षिण की विजय के बाद वह उत्तर की ओर बढ़ा। सबसे पूर्व भिन्नमाल के गुर्जर प्रतिहार राजा वत्सराज के साथ उसकी मुठभेड़ हुई। वत्सराज परास्त हो गया।
- अब ध्रुव ने कन्नौज पर आक्रमण किया। इस समय कन्नौज का राजा इन्द्रायुध था। वह ध्रुव का सामना नहीं कर सका, और राष्ट्रकूट विजेता की अधीनता को स्वीकृत करने के लिए विवश हुआ।
- ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक था जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु 'त्रिपक्षीय संघर्ष' में भाग लेकर प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया।
- उसने गंगा-यमुना दोआब तक अधिकार कर लिया था।
- कन्नौज के राज्य को अपना वशवर्ती बनाने के उपलक्ष्य में ध्रुव ने गंगा और यमुना को भी अपने राजचिन्ह्नों में शामिल कर लिया। इस प्रकार अनेक राज्यों की विजय कर 794 ई. में ध्रुव की मृत्यु हुई।
- ध्रुव को 'धारावर्ष' भी कहा जाता था।
- इसके अतिरिक्त उसकी अन्य उपाधि 'निरुपम', 'कालीवल्लभ' तथा 'श्री वल्लभ' था।
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