शहर में चाके गिरेबाँ हुए नापैद अब के
कोई करता ही नहीं ज़ब्त की ताक़ीद अब के
लुत्फ़ कर ऐ निगह-ए-यार कि ग़म वालों ने
हसरते-दिल की उठाई नहीं तमहीद अब के
चाँद देखा तेरी आँखों में न होंटों पे शफ़क़
मिलती जुलत है शबेग़म से तेरी दीद अबके
दिल दुखा है न वो पहला सा, न जाँ तड़पी है
हम भी ग़ाफ़िल थे कि आई ही नहीं ईद अब के
फिर से बुझ जाएँगी शम'एँ जो हवा तेज़ चली
लाख रक्खो सरे महफ़िल कोई ख़ुर्शीद अब के