प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा...
खिड़की से मत कूद के आना, बंद किंवाड़े तोड़ के आना ।।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा, सारे वैभव छोड़ के आना ।।
प्रेम-डगर है राह कँटीली, मित्र तुम्हारा साथ न देंगे ।
हाथ बढ़ाते लोग मिलेंगे, हाथों में पर हाथ न देंगे ।
अपने पैरों से कहना तुम, काँटो पर वो चलना सीखें ।
जलने वाले सड़कों पर हैं, ये तुमको फुटपाथ न देंगे ।
प्रेम समर्थक खुद को कहते, इनका भंडा फोड़ के आना ।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा.....
प्रेम नहीं है सुख की बारिश, ये दु:ख का अभ्यास कराये ।
ये न दिखाये कल का सपना, ये कल का इतिहास बताये ।
प्रेम किया है जिसने जग में, उसके अनुभव पूछ के आना ।
प्रेम नहीं है अमृत जैसा, अक्सर जगको रास न आये ।
प्रेम पढ़ा है जिन ग्रंथों में, उनके पन्ने मोड़ के आना ।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा.....
मेरी सूनी पर्णकुटी में, खिड़की की तुम आस न रखना ।
गर्म हवा से तपते तन में, ठन्डे जल की प्यास न रखना ।
अपना मन भी छल सकता है, अपने ही दृढ़ विश्वासों को ।
मन की बात समझ खुद लेना, मुझमें तुम विश्वास न रखना ।
घाटा, लाभ तुम्हें क्या होगा, गुणा-भाग सब जोड़ के आना ।
प्रेम अगर है लक्ष्य तुम्हारा.....