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सेवाग्राम आश्रम

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सेवाग्राम आश्रम महाराष्ट्र राज्य के वर्धा ज़िले में स्थित सेवाग्राम नामक गाँव में है। पहले सेवाग्राम गाँव को 'शेगाँव' नाम से जाना जाता था। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ही इस गाँव का नाम बदलकर सेवाग्राम रखा। सेवाग्राम आश्रम भारत में गाँधीजी द्वारा स्थापित दूसरा महत्वपूर्ण आश्रम है। इससे पूर्व गाँधीजी ने गुजरात में साबरमती आश्रम की स्थापना की थी। ये आश्रम गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों एवं उनके राजनीतिक आंदोलन आदि के संचालन का केंद्र हुआ करते थे। यह वह स्थान है, जहाँ महात्मा गाँधी 13 वर्ष, सन 1936 से 1948 तक रहे। ऐसा विश्वास है कि 1930 में जब गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक पदयात्रा प्रारंभ की थी, तब उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक भारत स्वतंत्र नही हो जाता, वे साबरमती में कदम नही रखेंगे।

स्थिति तथा प्रसिद्धि

महात्मा गाँधी का गुजरात में स्थित साबरमती आश्रम दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन उतना ही प्रसिद्ध उनका 'सेवाग्राम आश्रम' भी है, जो वर्धा (महाराष्ट्र) में स्थित है। इस आश्रम की विशेषता है कि गाँधीजी ने अपने संध्या काल के अंतिम 12 वर्ष यहीं बिताए थे। वर्धा शहर से 8 कि.मी. की दूरी पर 300 एकड़ की भूमि पर फैला यह आश्रम इतनी आत्मिक शांति देता है, जिसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। आश्रम की और भी कई ख़ासियत हैं। गाँधीजी ने यहाँ कई रणनीति बनाईं, कईयों से मिले और बहुतों के जीवन को नई दिशा दी। यहाँ आकर ऐसा लगता है, जैसे किसी मंदिर में पहुँच गए हों। सब कुछ शांत और सौम्य। आश्रम को समझने पर गाँधीजी का व्यक्तित्व भी समझ आ जाता है। यह आश्रम बापू के व्यक्तित्व का दर्पण है। यहाँ आकर ही पता चल जाता है कि हम एक ऐसे महान शख्स का उठना-बैठना देख-समझ रहे हैं, जिसने भारत की आजादी का नींव रखी।[1]

गाँधीजी का संकल्प

यदि कोई व्यक्ति वास्तव में महात्मा गाँधी को, उनके दर्शन को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे 'सेवाग्राम आश्रम' अवश्य देखना चाहिए। यहाँ अब भी चरखे पर सूत काता जाता है। पारंपरिकता यहाँ आज भी जीवन्त है। स्वयं गाँधीजी भी जीवन्त हैं। गाँधीजी के साबरमती से सेवाग्राम पहुँचने की कहानी भी काफ़ी रोचक है। 12 मार्च, 1930 को 'भारतीय इतिहास' में प्रसिद्ध 'नमक सत्याग्रह' के लिए साबरमती आश्रम से अपने 78 साथियों के साथ गाँधीजी 'दांडी मार्च' पर निकले थे। वहाँ से चलते समय उन्होंने संकल्प लिया था कि 'स्वराज्य' लिए बिना आश्रम में नहीं लौटूँगा। 6 अप्रैल, 1930 को गुजरात के दांडी समुद्र तट पर गाँधीजी ने नमक का कानून तोड़ा और 5 मई, 1930 को उन्हें गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए यरवदा जेल में डाल दिया गया। 1933 में जेल से रिहा होने के बाद गाँधीजी देशव्यापी हरिजन यात्रा पर निकल गए। स्वराज्य मिला नहीं था, इसलिए वे वापस साबरमती लौट नहीं सकते थे। अतः उन्होंने मध्य भारत के एक गाँव को अपना मुख्यालय बनाने का निश्चय किया। 1934 में जमनालाल बजाज एवं अन्य साथियों के आग्रह से वे वर्धा आए और मगनवाड़ी में रहने लगे। 30 अप्रैल, 1936 को गाँधीजी पहली बार मगनवाड़ी से शेगाँव (अब सेवाग्राम) रहने चले आए। जिस दिन वे शेगाँव आए, उन्होंने वहाँ छोटा-सा भाषण देकर सेवाग्राम में बस जाने का अपना निश्चय गाँव वालों को बताया।

सेवाग्राम नामकरण

आज के सेवाग्राम का नाम शुरू में शेगाँव था। इसी क्षेत्र में नागपुर-भुसावल रेलवे लाइन पर शेगाँव नाम के रेलवे स्टेशन वाला एक बड़ा गाँव होने से गाँधीजी की डाक में बहुत गड़बड़ी होती थी। अतः सुविधा के लिए 1940 में गाँधीजी की इच्छा एवं सलाह से 'शेगाँव' का नाम 'सेवाग्राम' कर दिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बापू के जीवन का दर्पण- सेवाग्राम आश्रम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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