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बौद्ध साहित्य में अयोध्या

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बौद्ध साहित्य में अयोध्या का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है। गौतम बुद्ध का इस नगर से विशेष सम्बन्ध था। उल्लेखनीय है कि गौतम बुद्ध के इस नगर से विशेष सम्बन्ध की ओर लक्ष्य करके 'मज्झिमनिकाय' में उन्हें 'कोसलक' (कोशल का निवासी) कहा गया है।[1]

  • धर्म-प्रचारार्थ वे इस नगर में कई बार आ चुके थे। एक बार गौतम बुद्ध ने अपने अनुयायियों को मानव जीवन की निस्सरता तथा क्षण-भंगुरता पर व्याख्यान दिया था। अयोध्यावासी गौतम बुद्ध के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्होंने उनके निवास के लिए वहाँ पर एक विहार का निर्माण भी करवाया था।[2]
  • संयुक्तनिकाय में उल्लेख आया है कि बुद्ध ने यहाँ की यात्रा दो बार की थी। उन्होंने यहाँ फेण सूक्त[3] और दारुक्खंधसुक्त[4] का व्याख्यान दिया था।
  • इस सूक्त में भगवान बुद्ध को गंगा नदी के तट पर विहार करते हुए बताया गया है।[5] इसी निकाय की अट्ठकथा में कहा गया है कि यहाँ के निवासियों ने गंगा के तट पर एक विहार बनवाकर किसी प्रमुख भिक्षु संघ को दान कर दिया था।[6] *इस प्रकार पालि त्रिपिटक और अट्ठकथा दोनों साक्ष्यों में बुद्धकालीन अयोध्या की स्थिति गंगा नदी के तट पर वर्णित है। सम्भव है कि पालि साहित्यकारों ने दोनों नदियों को पवित्रता के आधार पर एक समझकर प्रयोग किया हो और इसी आधार पर अन्तर स्थापित करने में असफल रहे होंगे। उल्लेखनीय है कि ह्वेन त्सांग ने भी गंगा नदी पार करके अयोध्या में प्रवेश किया था, जबकि वर्तमान अयोध्या गंगा नदी के तट पर स्थित नहीं है।[7] अत: जब तक हम पालि विवरणों को ग़लत न मानें, बुद्धकालीन अयोध्या का वर्तमान अयोध्या से समीकरण सम्भव नहीं है। बहुत सम्भव है कि पालि त्रिपिटक में वर्णित अयोध्या गंगा नदी के किनारे स्थित इसी नाम का कोई अन्य नगर रहा हो।[8]
  • पालि ग्रन्थों में अयोध्या के लिए 'अयोज्झा' तथा 'अयुज्झनगर' शब्द आते हैं। अयुज्झा (अयुज्झनगर) में अरिंदक तथा उसके उत्तराधिकारियों ने शासन किया था।[9] इसे कोशल में स्थित एक नगर से समीकृत किया गया है। घट जातक[10] में अयोध्या के कालसेन नामक नरेश का उल्लेख आया है। इसके शासन काल में अंधकवेण्हु के दस पुत्रों ने इस नगर को बहुत क्षति पहुँचाई थी। उन्होंने आक्रमण करके इसके उद्यानों एवं प्राकारों को क्षतिग्रस्त् कर दिया था।[11]
  • परवर्ती बौद्ध ग्रन्थों में अयोध्या का वर्णन एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मिलता है। धार्मिक क्षेत्र में इसकी महत्ता का कारण सरयू के तट पर इसकी स्थिति तथा इक्ष्वाकु शासकों विशेषकर राम के जीवन के साथ इसका सम्बन्ध था। इसी कारण अयोध्या को इक्ष्वाकुभूमि तथा रामपुरी भी कहते थे।[12]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मज्झिम निकाय, भाग 2, पृष्ठ 124
  2. मललसेकर, डिक्शनरी ऑफ़ पालि प्रापर नेम्स, भाग 1, पृष्ठ 165
  3. संयुक्तनिकाय (पालि टेक्ट्स सोसाइटी), भाग 3, पृष्ठ 140 और आगे
  4. तत्रैव, भाग 4, पृष्ठ 179
  5. संयुक्तनिकाय (हिन्दी अनुवाद), भाग 1, पृष्ठ 382
  6. सारत्थप्पकासिनी, भाग 2, पृष्ठ 320; भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृष्ठ 252
  7. वाटर्स, ऑन युवॉन च्वाँग्स ट्रैवेल्स इन इंडिया, भाग 1, पृष्ठ 354
  8. विनयेंद्रनाथ चौधरी, बुद्धिस्ट सेंटर्स इन ऐश्येंट इंडिया (कलकत्ता, 1969) पृष्ठ 81
  9. दीपवंस, भाग 2, पृष्ठ 15; वमसत्थप्पकासिनी (पालि टेक्ट्स सोसायटी), भाग 1, पृष्ठ 127; विमलचरण लाहा, इंडोलाकिल स्टडीज, भाग 3, पृष्ठ 23
  10. घट जातक, संख्या 454
  11. जाति (फाउसबाल संस्करण), खण्ड 4, पृष्ठ 82-83
  12. विविधतीर्थकल्प, पृष्ठ 24; विमलचरण लाहा, इंडोलाजिकल स्टडीज, भाग 2, पृष्ठ 7

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