रावण के भानजे तथा खरदूषण के बेटों के नाम 'शंबूक' तथा 'सुंद' थे। शंबूक ने वन में रहकर, बारह वर्ष और सात दिन तक अभ्यास करने का निश्चय किया था। साथ ही इस अवधि में किसी को भी वहाँ देखकर मार डालने की बात कही थी। बारह वर्ष और तीन दिन बाद लक्ष्मण उधर जा निकला। उसने धरती पर रखी हुई शंबूक की तलवार उठा ली। उस तलवार से उसने निकटवर्ती बांसों पर प्रहार किया। इतनें में उसके सम्मुख शंबूक का कटा हुआ सिर धरती पर आ पड़ा। लक्ष्मण ने यथावत् राम से कह सुनाया। शंबूक की माँ (चंद्रनखा) प्रतिदिन उससे मिलने जाती थी। उस दिन बेटे को मरा हुआ देखकर वह बहुत दुखी हुई। वह शत्रु को ढूँढने के लिए आगे बढ़ी तो राम और लक्ष्मण के सौंदर्य पर मुग्ध होकर उनसे सम्पर्क के लिए आतुर हो उठी। उसने एक सुन्दरी का रूप धारण किया। राम और लक्ष्मण की उपेक्षा देखकर उसने अपने शरीर पर स्वयं ही नखक्षत अंकित कर लिये और पति से जाकर राम और लक्ष्मण की झूठी शिक़ायत लगाई तथा अपने पुत्र के हनन की बात भी बताई। वह युद्ध के लिए तैयार होकर निकला। रावण को भी उसने यह समाचार भेज दिया।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
विद्यावाचस्पति, डॉक्टर उषा पुरी भारतीय मिथक कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 302।
- ↑ पउम चरितम, 43, 44|1-24
संबंधित लेख
|