"उद्धव कुण्ड गोवर्धन" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==")
 
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Uddhav-Kund-1.jpg|thumb|200px|उद्धव कुण्ड, [[गोवर्धन]]<br /> Uddhav Kund, Govardhan ]]
+
[[चित्र:Uddhav-Kund-1.jpg|thumb|200px|उद्धव कुण्ड, [[गोवर्धन]]]]
[[चित्र:Uddhav-Kund-2.jpg|thumb|200px|उद्धव बिहारी जी, उद्धव कुण्ड, [[गोवर्धन]]<br /> Uddhav Bihari Ji, Uddhav Kund, Govardhan ]]  
+
[[चित्र:Uddhav-Kund-2.jpg|thumb|200px|उद्धव बिहारी जी, उद्धव कुण्ड, [[गोवर्धन]]]]
*[[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], [[गोवर्धन]] के ठीक पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाहिनी ओर उद्धव कुण्ड है ।
+
'''उद्धव कुण्ड''' [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], [[गोवर्धन]] के ठीक पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाहिनी ओर स्थित है। [[पुराण|पुराणों]] आदि में भी इस कुण्ड का बड़ा ही वर्णन किया गया है। [[उद्धव|उद्धव जी]] ने [[द्वारका]] की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी।
*[[स्कन्द पुराण]] के [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]]–माहात्म्य प्रसंग में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है ।
+
==पुराण उल्लेख==
*[[वज्रनाभ]] महाराज ने [[शाण्डिल्य]] आदि ऋषियों के आनुगत्य में यहाँ उद्धव कुण्ड का प्रकाश किया ।
+
[[स्कन्द पुराण]] के [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] माहात्म्य प्रसंग में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है। [[वज्रनाभ]] महाराज ने [[शाण्डिल्य]] आदि ऋषियों के आनुगत्य में यहाँ उद्धव कुण्ड का प्रकाश किया। उद्धव जी यहाँ पास में ही [[गोपी|गोपियों]] की चरणधूलि में अभिषिक्त होने के लिए तृण–गुल्म के रूप में सर्वदा निवास करते हैं।
*उद्धव जी यहाँ पास में ही [[गोपी|गोपियों]] की चरणधूलि में अभिषिक्त होने के लिए तृण–गुल्म के रूप में सर्वदा निवास करते हैं  ।
+
====कथा====
*श्री [[कृष्ण]] लीला अप्रकट होने पर कृष्ण की [[द्वारका]] वाली पटरानियाँ बड़ी दु:खी थीं । एक बार वज्रनाभ जी उनको साथ लेकर यहाँ उपस्थित हुए । बड़े जोरों से संकीर्तन आरम्भ हुआ । देखते–देखते उस महासंकीर्तन में कृष्ण के सभी परिकर क्रमश: आविर्भूत होने लगे ।  [[अर्जुन]] मृदंग वादन करते हुए नृत्य करने लगे । इस प्रकार द्वारका के सभी परिकर उस संकीर्तन मण्डल में नृत्य और कीर्तन करने लगे । हठात महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये । फिर भला कृष्ण ही कैसे रह सकते थे? [[राधा|राधिका]] आदि सखियों के साथ वे भी उस महासंकीर्तन [[रासलीला|रास]] में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तर्धान हो गये ।
+
[[कृष्णलीला]] अप्रकट होने पर [[कृष्ण]] की [[द्वारका]] वाली पटरानियाँ बड़ी दु:खी थीं। एक बार वज्रनाभ जी उनको साथ लेकर यहाँ उपस्थित हुए। बड़े ज़ोरों से संकीर्तन आरम्भ हुआ। देखते–देखते उस महासंकीर्तन में कृष्ण के सभी परिकर क्रमश: आविर्भूत होने लगे। [[अर्जुन]] [[मृदंग]] वादन करते हुए नृत्य करने लगे। इस प्रकार द्वारका के सभी परिकर उस संकीर्तन मण्डल में [[नृत्य]] और कीर्तन करने लगे। हठात महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये। फिर भला कृष्ण कैसे रह सकते थे? [[राधा|राधिका]] आदि सखियों के साथ वे भी उस महासंकीर्तन [[रासलीला|रास]] में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तर्धान हो गये। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी।
*उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी ।
 
  
 +
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}}
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}
 
{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}
[[Category:ब्रज]]
+
[[Category:ब्रज]][[Category:ब्रज के दर्शनीय स्थल]][[Category:ब्रज के धार्मिक स्थल]]
[[Category:ब्रज के दर्शनीय स्थल]]
+
[[Category:पर्यटन कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
[[Category:ब्रज के धार्मिक स्थल]]
 
[[Category:पर्यटन कोश]]
 
[[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

07:49, 28 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

उद्धव कुण्ड, गोवर्धन
उद्धव बिहारी जी, उद्धव कुण्ड, गोवर्धन

उद्धव कुण्ड कुसुम सरोवर, गोवर्धन के ठीक पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाहिनी ओर स्थित है। पुराणों आदि में भी इस कुण्ड का बड़ा ही वर्णन किया गया है। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी।

पुराण उल्लेख

स्कन्द पुराण के श्रीमद्भागवत माहात्म्य प्रसंग में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है। वज्रनाभ महाराज ने शाण्डिल्य आदि ऋषियों के आनुगत्य में यहाँ उद्धव कुण्ड का प्रकाश किया। उद्धव जी यहाँ पास में ही गोपियों की चरणधूलि में अभिषिक्त होने के लिए तृण–गुल्म के रूप में सर्वदा निवास करते हैं।

कथा

कृष्णलीला अप्रकट होने पर कृष्ण की द्वारका वाली पटरानियाँ बड़ी दु:खी थीं। एक बार वज्रनाभ जी उनको साथ लेकर यहाँ उपस्थित हुए। बड़े ज़ोरों से संकीर्तन आरम्भ हुआ। देखते–देखते उस महासंकीर्तन में कृष्ण के सभी परिकर क्रमश: आविर्भूत होने लगे। अर्जुन मृदंग वादन करते हुए नृत्य करने लगे। इस प्रकार द्वारका के सभी परिकर उस संकीर्तन मण्डल में नृत्य और कीर्तन करने लगे। हठात महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये। फिर भला कृष्ण कैसे रह सकते थे? राधिका आदि सखियों के साथ वे भी उस महासंकीर्तन रास में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तर्धान हो गये। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख