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'''ब्रज''' [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] का सर्वप्रमुख प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह सम्पूर्ण [[भारत]] में [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की क्रीड़ास्थली और उनकी लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। 'ब्रज' शब्द के अर्थ का काल-क्रमानुसार ही विकास हुआ है। [[वेद|वेदों]] और [[रामायण]]-[[महाभारत]] के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’, 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये इसका प्रयोग किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द एक प्रदेश के लिए प्रयुक्त न होकर क्षेत्र विशेष का ही प्रयोजन स्पष्ट करता था।
 
'''ब्रज''' [[उत्तर प्रदेश|उत्तर प्रदेश राज्य]] का सर्वप्रमुख प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह सम्पूर्ण [[भारत]] में [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की क्रीड़ास्थली और उनकी लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। 'ब्रज' शब्द के अर्थ का काल-क्रमानुसार ही विकास हुआ है। [[वेद|वेदों]] और [[रामायण]]-[[महाभारत]] के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’, 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये इसका प्रयोग किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द एक प्रदेश के लिए प्रयुक्त न होकर क्षेत्र विशेष का ही प्रयोजन स्पष्ट करता था।
 
==क्षेत्र विस्तार==
 
==क्षेत्र विस्तार==
भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे [[गाँव]] की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘[[ब्रजमंडल]]’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय [[मथुरा]] ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। [[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक रूप में ही कथन किया है।
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[[चित्र:Banke-Bihari-Temple.jpg|thumb|250px|left|[[बांके बिहारी मन्दिर वृन्दावन|बांके बिहारी मन्दिर]], [[वृन्दावन]]]]
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भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे [[गाँव]] की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘[[ब्रजमंडल]]’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय [[मथुरा]] ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। [[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक् रूप में ही कथन किया है।
  
 
[[कृष्ण]] उपासक सम्प्रदायों और ब्रजभाषा कवियों के कारण जब ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र विस्तृत हुआ, तब ब्रज का आकार भी सुविस्तृत हो गया। उस समय मथुरा नगर ही नहीं, बल्कि उससे दूर-दूर के भू-भाग, जो ब्रज की [[संस्कृति]] और [[ब्रजभाषा|ब्रज-भाषा]] से प्रभावित थे, ब्रज अन्तर्गत मान लिये गये। वर्तमान काल में मथुरा नगर सहित मथुरा ज़िले का अधिकांश भाग तथा [[राजस्थान]] के [[डीग भरतपुर|डीग]] और [[काम्यवन|कामवन]] का कुछ भाग, जहाँ से ब्रजयात्रा गुजरती है, ब्रज कहा जाता है। ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र और भी विस्तृत है। उक्त समस्त भू-भाग के प्राचीन नाम- [[मधुवन]], [[शूरसेन]], मधुरा, [[मधुपुरी]], [[मथुरा]] और मथुरा मंडल थे तथा आधुनिक नाम ब्रज या ब्रजमंडल हैं। यद्यपि इनके अर्थ-बोध और आकार-प्रकार में समय-समय पर अन्तर होता रहा है। इस भू-भाग की धार्मिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और संस्कृतिक परंपरा अत्यन्त गौरवपूर्ण रही है।
 
[[कृष्ण]] उपासक सम्प्रदायों और ब्रजभाषा कवियों के कारण जब ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र विस्तृत हुआ, तब ब्रज का आकार भी सुविस्तृत हो गया। उस समय मथुरा नगर ही नहीं, बल्कि उससे दूर-दूर के भू-भाग, जो ब्रज की [[संस्कृति]] और [[ब्रजभाषा|ब्रज-भाषा]] से प्रभावित थे, ब्रज अन्तर्गत मान लिये गये। वर्तमान काल में मथुरा नगर सहित मथुरा ज़िले का अधिकांश भाग तथा [[राजस्थान]] के [[डीग भरतपुर|डीग]] और [[काम्यवन|कामवन]] का कुछ भाग, जहाँ से ब्रजयात्रा गुजरती है, ब्रज कहा जाता है। ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र और भी विस्तृत है। उक्त समस्त भू-भाग के प्राचीन नाम- [[मधुवन]], [[शूरसेन]], मधुरा, [[मधुपुरी]], [[मथुरा]] और मथुरा मंडल थे तथा आधुनिक नाम ब्रज या ब्रजमंडल हैं। यद्यपि इनके अर्थ-बोध और आकार-प्रकार में समय-समय पर अन्तर होता रहा है। इस भू-भाग की धार्मिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और संस्कृतिक परंपरा अत्यन्त गौरवपूर्ण रही है।
 
==श्रीकृष्ण की जन्मस्थली==
 
==श्रीकृष्ण की जन्मस्थली==
मथुरा और उसका निकटवर्ती भू-भाग प्राचीन काल से ही अपने सघन वनों, विस्तृत चारागाहों, गोष्ठों और सुन्दर [[गाय|गायों]] के लिये प्रसिद्ध रहा है। [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] का जन्म यद्यपि मथुरा नगर में हुआ था, तथापि राजनैतिक कारणों से उन्हें जन्म लेते ही [[यमुना]] पार की गोप-वस्ती में भेज दिया गया। उनकी वाल्यावस्था एक बड़े गोपालक [[नंद]] के घर में [[गोप]], [[गोपी]] और गो-वृंद के साथ बीती थी। उस काल में उनके पालक नंद आदि गोपगण अपनी सुरक्षा और गोचर-भूमि की सुविधा के लिये अपने [[गोकुल]] के साथ मथुरा निकटवर्ती विस्तृत वन-खण्डों में घूमा करते थे। श्रीकृष्ण के कारण उन गोप-गोपियों, गायों और गोचर-भूमियों का महत्त्व बहुत बड़ गया था।
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[[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-7.jpg|thumb|250px|left|[[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
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मथुरा और उसका निकटवर्ती भू-भाग प्राचीन काल से ही अपने सघन वनों, विस्तृत चारागाहों, गोष्ठों और सुन्दर [[गाय|गायों]] के लिये प्रसिद्ध रहा है। [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] का जन्म यद्यपि मथुरा नगर में हुआ था, तथापि राजनैतिक कारणों से उन्हें जन्म लेते ही [[यमुना]] पार की गोप-बस्ती में भेज दिया गया। उनकी बाल्यावस्था एक बड़े गोपालक [[नंद]] के घर में [[गोप]], [[गोपी]] और गो-वृंद के साथ बीती थी। उस काल में उनके पालक नंद आदि गोपगण अपनी सुरक्षा और गोचर-भूमि की सुविधा के लिये अपने [[गोकुल]] के साथ मथुरा निकटवर्ती विस्तृत वन-खण्डों में घूमा करते थे। श्रीकृष्ण के कारण उन गोप-गोपियों, गायों और गोचर-भूमियों का महत्त्व बहुत बढ़ गया था।
  
पौराणिक काल से लेकर [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव सम्प्रदायों]] के आविर्भाव काल तक जैसे-जैसे कृष्णौ-पासना का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे श्रीकृष्ण के उक्त परिकरों तथा उनके लीला स्थलों के गौरव की भी वृद्धि होती गई। इस काल में यहां गो-पालन की प्रचुरता थी, जिसके कारण ब्रजखण्डों की भी प्रचुरता हो गई थी। इसलिये श्रीकृष्ण के जन्म स्थान मथुरा और उनकी लीलाओं से सम्वधित मथुरा के आस-पास का समस्त प्रदेश ही [[ब्रज]] अथवा ब्रजमण्डल कहा जाने लगा था।
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पौराणिक काल से लेकर [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव सम्प्रदायों]] के आविर्भाव काल तक जैसे-जैसे कृष्णौ-पासना का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे श्रीकृष्ण के उक्त परिकरों तथा उनके लीला स्थलों के गौरव की भी वृद्धि होती गई। इस काल में यहां गो-पालन की प्रचुरता थी, जिसके कारण ब्रजखण्डों की भी प्रचुरता हो गई थी। इसलिये श्रीकृष्ण के जन्म स्थान मथुरा और उनकी लीलाओं से सम्बंधित मथुरा के आस-पास का समस्त प्रदेश ही [[ब्रज]] अथवा ब्रजमण्डल कहा जाने लगा था।
 
==प्रमुख श्रीकृष्ण लीलास्थल==
 
==प्रमुख श्रीकृष्ण लीलास्थल==
[[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने [[भागवत पुराण]] के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश की गोप-बस्ती को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', 'मधुपुरी' या 'मधुवन' से प्रथक वतलाया है। आजकल मथुरा नगर सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बधित है, ब्रज कहलाता है। इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन [[शूरसेन महाजनपद|शूरसेन प्रदेश]] का अपर नाम और उसका एक छोटा रूप है। इसमें [[मथुरा]], [[वृन्दावन]], [[गोवर्धन]], [[गोकुल]], [[महावन]], [[बल्देव मथुरा|बल्देव]], [[नन्दगाँव]], [[बरसाना]], [[डीग]] और [[काम्यकवन]] आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। उक्त ब्रज की सीमा को चौरासी कोस माना गया है।
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[[चित्र:Potra-kund-mathura-1.jpg|thumb|250px|left|[[पोतरा कुण्ड मथुरा|पोतरा कुण्ड]], [[मथुरा]]]]
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[[सूरदास]] तथा अन्य [[ब्रजभाषा]] के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने [[भागवत पुराण]] के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश की गोप-बस्ती को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', 'मधुपुरी' या 'मधुवन' से प्रथक वतलाया है। आजकल मथुरा नगर सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बंधित है, ब्रज कहलाता है।
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इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन [[शूरसेन महाजनपद|शूरसेन प्रदेश]] का अपर नाम और उसका एक छोटा रूप है। इसमें [[मथुरा]], [[वृन्दावन]], [[गोवर्धन]], [[गोकुल]], [[महावन]], [[बल्देव मथुरा|बल्देव]], [[नन्दगाँव]], [[बरसाना]], [[डीग]] और [[काम्यकवन]] आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। उक्त ब्रज की सीमा को चौरासी कोस माना गया है।
  
  
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ब्रज विषय सूची
ब्रज का परिचय
ब्रज के विभिन्न दृश्य
विवरण भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए ही प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था।
ब्रज क्षेत्र आज जिसे हम ब्रज क्षेत्र मानते हैं उसकी दिशाऐं, उत्तर दिशा में पलवल (हरियाणा), दक्षिण में ग्वालियर (मध्य प्रदेश), पश्चिम में भरतपुर (राजस्थान) और पूर्व में एटा (उत्तर प्रदेश) को छूती हैं।
ब्रज के केंद्र मथुरा एवं वृन्दावन
ब्रज के वन कोटवन, काम्यवन, कुमुदवन, कोकिलावन, खदिरवन, तालवन, बहुलावन, बिहारवन, बेलवन, भद्रवन, भांडीरवन, मधुवन, महावन, लौहजंघवन एवं वृन्दावन
भाषा हिंदी और ब्रजभाषा
प्रमुख पर्व एवं त्योहार होली, कृष्ण जन्माष्टमी, यम द्वितीया, गुरु पूर्णिमा, राधाष्टमी, गोवर्धन पूजा, गोपाष्टमी, नन्दोत्सव एवं कंस मेला
प्रमुख दर्शनीय स्थल कृष्ण जन्मभूमि, द्वारिकाधीश मन्दिर, राजकीय संग्रहालय, बांके बिहारी मन्दिर, रंग नाथ जी मन्दिर, गोविन्द देव मन्दिर, इस्कॉन मन्दिर, मदन मोहन मन्दिर, दानघाटी मंदिर, मानसी गंगा, कुसुम सरोवर, जयगुरुदेव मन्दिर, राधा रानी मंदिर, नन्द जी मंदिर, विश्राम घाट , दाऊजी मंदिर
संबंधित लेख ब्रज का पौराणिक इतिहास, ब्रज चौरासी कोस की यात्रा, मूर्ति कला मथुरा
अन्य जानकारी ब्रज के वन–उपवन, कुन्ज–निकुन्ज, श्री यमुना व गिरिराज अत्यन्त मोहक हैं। पक्षियों का मधुर स्वर एकांकी स्थली को मादक एवं मनोहर बनाता है। मोरों की बहुतायत तथा उनकी पिऊ–पिऊ की आवाज़ से वातावरण गुन्जायमान रहता है।

ब्रज उत्तर प्रदेश राज्य का सर्वप्रमुख प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह सम्पूर्ण भारत में भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली और उनकी लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। 'ब्रज' शब्द के अर्थ का काल-क्रमानुसार ही विकास हुआ है। वेदों और रामायण-महाभारत के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’, 'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था, वहीं पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये इसका प्रयोग किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द एक प्रदेश के लिए प्रयुक्त न होकर क्षेत्र विशेष का ही प्रयोजन स्पष्ट करता था।

क्षेत्र विस्तार

भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्र विशेष को इंगित करते हुए प्रयुक्त हुआ है। वहाँ इसे एक छोटे गाँव की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेश के अर्थ में होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तब उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय मथुरा ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। सूरदास तथा अन्य ब्रजभाषा के कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक् रूप में ही कथन किया है।

कृष्ण उपासक सम्प्रदायों और ब्रजभाषा कवियों के कारण जब ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र विस्तृत हुआ, तब ब्रज का आकार भी सुविस्तृत हो गया। उस समय मथुरा नगर ही नहीं, बल्कि उससे दूर-दूर के भू-भाग, जो ब्रज की संस्कृति और ब्रज-भाषा से प्रभावित थे, ब्रज अन्तर्गत मान लिये गये। वर्तमान काल में मथुरा नगर सहित मथुरा ज़िले का अधिकांश भाग तथा राजस्थान के डीग और कामवन का कुछ भाग, जहाँ से ब्रजयात्रा गुजरती है, ब्रज कहा जाता है। ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र और भी विस्तृत है। उक्त समस्त भू-भाग के प्राचीन नाम- मधुवन, शूरसेन, मधुरा, मधुपुरी, मथुरा और मथुरा मंडल थे तथा आधुनिक नाम ब्रज या ब्रजमंडल हैं। यद्यपि इनके अर्थ-बोध और आकार-प्रकार में समय-समय पर अन्तर होता रहा है। इस भू-भाग की धार्मिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक और संस्कृतिक परंपरा अत्यन्त गौरवपूर्ण रही है।

श्रीकृष्ण की जन्मस्थली

मथुरा और उसका निकटवर्ती भू-भाग प्राचीन काल से ही अपने सघन वनों, विस्तृत चारागाहों, गोष्ठों और सुन्दर गायों के लिये प्रसिद्ध रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म यद्यपि मथुरा नगर में हुआ था, तथापि राजनैतिक कारणों से उन्हें जन्म लेते ही यमुना पार की गोप-बस्ती में भेज दिया गया। उनकी बाल्यावस्था एक बड़े गोपालक नंद के घर में गोप, गोपी और गो-वृंद के साथ बीती थी। उस काल में उनके पालक नंद आदि गोपगण अपनी सुरक्षा और गोचर-भूमि की सुविधा के लिये अपने गोकुल के साथ मथुरा निकटवर्ती विस्तृत वन-खण्डों में घूमा करते थे। श्रीकृष्ण के कारण उन गोप-गोपियों, गायों और गोचर-भूमियों का महत्त्व बहुत बढ़ गया था।

पौराणिक काल से लेकर वैष्णव सम्प्रदायों के आविर्भाव काल तक जैसे-जैसे कृष्णौ-पासना का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे श्रीकृष्ण के उक्त परिकरों तथा उनके लीला स्थलों के गौरव की भी वृद्धि होती गई। इस काल में यहां गो-पालन की प्रचुरता थी, जिसके कारण ब्रजखण्डों की भी प्रचुरता हो गई थी। इसलिये श्रीकृष्ण के जन्म स्थान मथुरा और उनकी लीलाओं से सम्बंधित मथुरा के आस-पास का समस्त प्रदेश ही ब्रज अथवा ब्रजमण्डल कहा जाने लगा था।

प्रमुख श्रीकृष्ण लीलास्थल

सूरदास तथा अन्य ब्रजभाषा के भक्त कवियों और वार्ताकारों ने भागवत पुराण के अनुकरण पर मथुरा के निकटवर्ती वन्य प्रदेश की गोप-बस्ती को ब्रज कहा है और उसे सर्वत्र 'मथुरा', 'मधुपुरी' या 'मधुवन' से प्रथक वतलाया है। आजकल मथुरा नगर सहित वह भू-भाग, जो श्रीकृष्ण के जन्म और उनकी विविध लीलाओं से सम्बंधित है, ब्रज कहलाता है।


इस प्रकार ब्रज वर्तमान मथुरा मंडल और प्राचीन शूरसेन प्रदेश का अपर नाम और उसका एक छोटा रूप है। इसमें मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, महावन, बल्देव, नन्दगाँव, बरसाना, डीग और काम्यकवन आदि भगवान श्रीकृष्ण के सभी लीला-स्थल सम्मिलित हैं। उक्त ब्रज की सीमा को चौरासी कोस माना गया है।



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