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'''संहिता''' अर्थात 'सम्यक' अथवा पूर्वापर रूप में संगृहीत साहित्यिक अथवा आचार-नियम सम्बन्धी सामग्री। संगृहीत और सुसम्पादित [[वैदिक साहित्य]] को इसीलिए 'संहिता' कहा जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=646|url=}}</ref>
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'''संहिता''' अर्थात 'सम्यक' अथवा पूर्वापर रूप में संग्रहीत साहित्यिक अथवा आचार-नियम सम्बन्धी सामग्री। इसीलिए संग्रहीत और सुसम्पादित [[वैदिक साहित्य]] को 'संहिता' कहा जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=646|url=}}</ref>
  
*वैदिक साहित्य संहिता की संख्या चार है-
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*वैदिक साहित्य में संहिता की संख्या चार है-
 
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संहिता अर्थात 'सम्यक' अथवा पूर्वापर रूप में संग्रहीत साहित्यिक अथवा आचार-नियम सम्बन्धी सामग्री। इसीलिए संग्रहीत और सुसम्पादित वैदिक साहित्य को 'संहिता' कहा जाता है।[1]

  • वैदिक साहित्य में संहिता की संख्या चार है-
  1. ऋग्वेद
  2. यजुर्वेद
  3. सामवेद
  4. अथर्ववेद

एवं पुराणासंस्थानं चतुर्लक्षमुदाहृतम।
अष्टादश पुराणानामेवमेव विदुर्बुधा:॥
एवचोपपुराणानामष्टादश प्रकीर्तिता:।
इतिहासो भारतचा वाल्मीकं काव्यमेव च॥
पचकं पंचरात्राणां कृष्णमाहात्म्यमुत्तमम।
वासिष्ठं नारदीयंच कापित गौतमीयकम॥
परं सनत्कुमारीयं पंचरात्रं पंचकम।
पंचकं संहितानांच कृष्णभक्तिसमंविताम॥
ब्रह्मणश्च शिवस्यापि प्रह्लादस्य तथैव च।
गौतमस्य कुमारस्य संहिता: परिकीर्तिता:॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 646 |
  2. अध्याय 1
  3. शिवमाहात्म्य खण्ड, अध्याय 1
  4. (अध्याय 132)

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