तुलुगमा पद्धति

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तुलुगमा पद्धति मध्य काल की एक सुदृढ़ युद्ध नीति थी, जिसका अविष्कारक उज्बेकों को माना जाता है। समरकंद अभियान के दौरान जहीरुद्दीन बाबर ने उज्बेकों से इसे ग्रहण किया था।

सैन्य संयोजन

इस युद्ध नीति में अपने विश्वस्त सिपाहियों के साथ रणभूमि में बीच में मौजूद राजा या बादशाह सेना को चार टुकड़ों में बांट देता था। पहली दो टुकड़ी आगे की ओर बादशाह के दाहिने और बाएं छोर की ओर व अन्य दो टुकड़ी पीछे की ओर इसी तरह तैनात रहती थीं। सबसे आगे पंक्ति में ढेर सारी बैलगाड़ियां रखी जाती थीं और उनको चमड़े के रस्सों से आपस में बांध दिया जाता था। उसके बीच इतनी जगह छोड़ी जाती थी कि दो घुड़सवार सैनिक एक साथ निकल सकें। बैलगाड़ियों की मजबूत रक्षा पंक्ति के पीछे तोपखाना और धनुष, बाण के माहिर निशानेबाज तैनात होते थे।

इसकी खास बात यह थी कि इसमें एक बार में एक ही टुकड़ी बाहर निकलती और जोरदार हमला बोलकर वापस रक्षापंक्ति में चली जाती थी। वहीं इस टुकड़ी के हमले से पहले दुश्मनों पर बाण और तोप के गोलों की बरसात की जाती थी, ताकि दुश्मन को संभलने का मौका ही न मिल सके और इस तरह दुश्मन चाहकर भी इस मजबूत घेरेबंदी को तोड़ नहीं पाता था।

बाबर का आक्रमण

जब बाबर काबुल पर अपना आधिपत्य स्थापित कर रहा था, तब भारत में लोदी साम्राज्य अपनी आपसी रंजिश के कारण अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था। इस समय दिल्ली की गद्दी पर लोदी वंश का एक युवा और अपरिपक्व, कमजोर शासक बैठा था, जिसका नाम था इब्राहिम लोदी। उसका चाचा दौलत खां लोदी लाहौर का गवर्नर था और वहां का स्वतंत्र शासक बने रहना चाहता था, वहीं इब्राहिम लोदी का भाई आलम खां लोदी दिल्ली के तख्त का आकांक्षी था। जब इनको बाबर के बारे में पता चला तो उन्होंने उसे भारत पर आक्रमण करने का लालच दिया। उनको लग रहा था कि शायद बाबर भारत पर हमला कर उन्हें दिल्ली की राजगद्दी सौंप देगा। किन्तु ऐसा नहीं हुआ।

बाबर तो ऐसे ही मौके की तलाश में था। वह सबसे पहले पंजाब पहुंचा और विभिन्न कारणों से दौलत खां लोदी पर विश्वासघात का आरोप लगाकर उसे बंदी बना लिया, फिर आलम खां लोदी भी पराजित हुआ और उसने आत्म समर्पण कर दिया। हमले का समाचार सुनकर इब्राहिम लोदी भौचक्का रह गया। चूंकि, वह इस युद्ध के लिए पहले से तैयार नहीं था, इसलिए आनन-फानन में उसने सेना जुटाई, इसमें अधिकांश अप्रशिक्षित और अयोग्य सैनिक थे। इब्राहिम लोदी ने भी बाबर का मुकाबला करने के लिए दिल्ली से कूच किया।

मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी और बाबर की सेनाएं टकराईं। हालांकि, इब्राहिम लोदी के पास एक विशाल सेना थी, जिसमें घुड़सवार, हाथी और पैदल सैनिक थे, पर वह सभी अप्रशिक्षित थे। वहीं बाबर के पास सैनिकों की संख्या कम थी, लेकिन वह पूरी तरह से सुसज्जित और पर्याप्त प्रशिक्षित प्राप्त थे। इसमें योग्य घुड़सवार, तलवारबाज, निशानची, धनुर्धर, तोपखाना व उस्ताद अली और मुस्तफा जैसे कुशल तोपची भी थे।

इब्राहिम और बाबर की सेना पानीपत के मैदान में टकराई और इब्राहिम लोदी ने अपनी पूरी सेना को आगे बढ़कर हमला बोलने का हुक्म दे दिया। इस तरह इब्राहिम की सेना एक साथ आगे बढ़ी, लेकिन अचानक उनके पांव ठिठक गए। असल में उनके सामने तुलुगमा की मजबूत किलेबंदी थी, चमड़े के रस्सों से बंधी बैलगाड़ियों की श्रृंखला ने उनके कदम रोक लिए। अब वे बाबर के बिछाए जाल में फंस गए थे। इब्राहिम की सेना कुछ समझ पाती इससे पहले उन पर गोलों और तीरों की बौछार शुरू हो गई और बारूद की वजह से लगी आग के कारण उनके हाथी बिदक गए और अपने ही खेमे में उत्पात मचाने लगे।

इसी समय इब्राहिम की बौखलाई सेना पर बाबर की पहली टुकड़ी ने जोरदार हमला बोला और फिर चौथी टुकड़ी ने पीछे से हमला बोल दिया। अब इब्राहिम चौतरफा घिर चुके थे। दोपहर के युद्ध में ही लोदी सल्तनत की सेना धराशाई हो चुकी थी, इब्राहिम लोदी भी मारा गया और इस तरह से एक तुलुगमा कुशल युद्ध नीति के सामने इब्राहिम लोदी की बड़ी सेना को बाबर की छोटी सी सेना के सामने घुटने टेकने पड़े और हिंदुस्तान में मुग़ल वंश की स्थापना हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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