दहसाला व्यवस्था
अकबर के वित्तमंत्री के रूप में राजा टोडरमल ने राजस्व एकत्र करने की नयी व्यावस्था शुरू की, जो कि 'ज़ब्ती व्यवस्था' या 'दहसाला व्यवस्था' के नाम से जानी गयी। इस व्यवस्था में दस वर्ष में हुई फ़सल की पैदावार तथा उत्पादन लागत का सावधानीपूर्वक सर्वेक्षण किया जाता था। यह व्यवस्था अकबर के द्वारा लागू की गई थी। इसमेंं पिछले दस साल में उत्पादित विभिन्न फ़सलों तथा उनके औसत मूल्य की गणना करके औसत पैदावार का एक तिहाई भाग राज्य को दे दिया जाता था। इतिहासकारो का विश्वास है कि यह मूल्यांकन की विधि सबसे महत्वपूर्ण थी। इस व्यवस्था की शुरूआत शेरशाह सूरी के दौर में हुई थी। अकबर के शासनकाल में इस व्यावस्था को लागू करने से पहले इसमें अनेक सुधार किये गये थे। यह व्यवस्था अकबर के साम्राज्य के केवल मुल्तान, दिल्ली, इलाहाबाद, अवध, आगरा और लाहौर जैसे प्रमुख राज्योंं में ही लागू थी।
दस साल में हुई पैदावार औऱ उत्पादन लागत का बहुत ही सर्तकता और व्यापकता के साथ सर्वेक्षण किया जाता था। इसी व्यापक सर्वे के आधार पर हर फ़सल का कर नकदी में तय किया जाता था। हर राज्य को राजस्व खंडोंं या दस्तूर में बाटां गया था, जिनमें हर राज्य के कर की अलग-अलग दरें थीं। सभी के पास दस्तूर-ए-अमल यानि अपने राज्य की फ़सलों की सूची होती थी। यह व्यवस्था केवल उन्हीं राज्योंं में लागू की गई थी, जिन राज्योंं में मुग़ल प्रशासन सर्वेक्षण कर सकता था और उनका रिकार्ड रख सकता था। इसी कारण गुजरात औऱ बंगाल में यह व्यावस्था लागू नहींं की गई थी।[1]
विशेषताएँ
इतिहासकारों के मुताबिक़ प्रशासनिक स्तर पर इस व्यावस्था में निम्नलिखित विशेषतांए थींं-
- निश्चित औऱ स्थायी दस्तूर व्यवस्था के कारण अनिश्चितता और राजस्व की मांंग में कमी व ज़्यादती लगभग खत्म हो गयी।
- माप के द्वारा हमेशा ज़मीनोंं की दोबारा जांच की जाती थी व पता लगाया जाता था।
- निश्चित दस्तूर के कारण स्थानीय अधिकारियोंं को मनमानी करने का कोई मौका नहींं मिलता था।
सीमाएँ
इतिहासकारों ने ज़ब्ती व्यावस्था की कई सीमाएं भी बतायीं हैं-
- प्रति बीघा का कर ज़ाबीताना कहलाता था जो कि माप की रख-रखाव पर खर्च होता था, जिससे यह व्यावस्था काफी खर्चीली हो जाती थी।
- इसमें अधिकरियों के ज़रिये अपनी शक्ति का दुरूपयोग होता था और वह जमीन की माप में धोकाधड़ी करते थे।
- यह उस समय प्रयोग में नहीं आता था, जब ज़मीन की उत्पादक क्षमता कम हो जाए।
- यदि फ़सल उम्मीद के मुताबकि नहीं होती थी तो उसका सारा नुकसान किसान को उठाना पड़ता था।
- अबुल फ़ज़ल के मुताबिक़ यदि किसान ज़ब्ती नहीं दे पाता था तो उसकी फ़सल का एक-तिहाई भाग राजस्व के तौर पर ले लिया जाता था।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दहसाला व्यवस्था (हिंदी) dothebest.in। अभिगमन तिथि: 24 फरवरी, 2020।
- ↑ दहसाला व्यवस्था (हिंदी) jagranjosh.com। अभिगमन तिथि: 24 फरवरी, 2020।