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− | '''नरबहादुर थापा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narbahadur Thapa'') [[भारतीय सेना]] के जांबाज सैनिक थे। वह उन लोगों में से एक थे, जिन्हें पहली बार शान्ति समय के सर्वोच्च सैन्य सम्मान '[[अशोक चक्र (पदक)|अशोक चक्र]]' से सम्मानित किया गया था। नरबहादुर थापा पहली बार इसे प्राप्त करने वाले तीन लोगों में से एक थे।<br/> | + | {{सूचना बक्सा सैनिक |
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+ | }}'''नरबहादुर थापा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narbahadur Thapa'') [[भारतीय सेना]] के जांबाज सैनिक थे। वह उन लोगों में से एक थे, जिन्हें पहली बार शान्ति समय के सर्वोच्च सैन्य सम्मान '[[अशोक चक्र (पदक)|अशोक चक्र]]' से सम्मानित किया गया था। नरबहादुर थापा पहली बार इसे प्राप्त करने वाले तीन लोगों में से एक थे।<br/> | ||
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*वह ऑपरेशन पोलो में हैदराबाद पुलिस कार्रवाई के दौरान एक कंपनी, 5/5 गोरखा राइफल्स की दूसरी प्लाटून के साथ तैनात थे। | *वह ऑपरेशन पोलो में हैदराबाद पुलिस कार्रवाई के दौरान एक कंपनी, 5/5 गोरखा राइफल्स की दूसरी प्लाटून के साथ तैनात थे। | ||
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07:58, 30 अगस्त 2022 के समय का अवतरण
नरबहादुर थापा
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पूरा नाम | नरबहादुर थापा |
सेना | भारतीय सेना |
पद | नायक |
यूनिट | 5/5 गोरखा राइफल्स |
सेवा काल | 11 नवंबर, 1940 से - |
युद्ध | ऑपरेशन पोलो |
सम्मान | अशोक चक्र, 1952 |
सेवा संख्या | 10341 |
नरबहादुर थापा (अंग्रेज़ी: Narbahadur Thapa) भारतीय सेना के जांबाज सैनिक थे। वह उन लोगों में से एक थे, जिन्हें पहली बार शान्ति समय के सर्वोच्च सैन्य सम्मान 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया था। नरबहादुर थापा पहली बार इसे प्राप्त करने वाले तीन लोगों में से एक थे।
- नायक नरबहादुर थापा 11 नवंबर, 1940 को 5/5 गोरखा राइफल्स के साथ ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
- वह ऑपरेशन पोलो में हैदराबाद पुलिस कार्रवाई के दौरान एक कंपनी, 5/5 गोरखा राइफल्स की दूसरी प्लाटून के साथ तैनात थे।
- 13 सितंबर 1948 को उनकी पलटन तुंगभद्रा रेलवे पुल के बाईं ओर तैनात थी। अचानक दुश्मन ने उन पर भारी गोलाबारी शुरू कर दी। नायक नरबहादुर थापा ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा और जीवन पर कोई ध्यान नहीं दिया और दुश्मन की भारी गोलाबारी के तहत खुले मैदान में 100 गज की दूरी पर दौड़ पड़े।
- उन्होंने अपने कर्तव्य और राष्ट्र के लिए बहुत साहसी कार्य किया। नरबहादुर थापा ने अपनी खुकरी का इस्तेमाल किया और दुश्मन के मशीनगन चालक को मार गिराया और उसकी पोस्ट को तबाह कर दिया।
- उनकी साहसी कार्रवाई और असाधारण समर्पण के कारण ए कंपनी की दूसरी प्लाटून, 5/5 गोरखा राइफल्स तुंगभद्रा रेलवे पुल को सुरक्षित करने में सक्षम थी।
- बटालियन की सर्वोच्च परंपरा के तहत नरबहादुर थापा को अपने दायित्व, साहस, व्यक्तिगत बहादुरी, श्रेष्ठ नेतृत्व और अपने कर्तव्य के प्रति असाधारण समर्पण के लिये भारत के पहले वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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