चेरनोबिल दिवस

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चेरनोबिल दिवस
अन्तरराष्ट्रीय चेरनोबिल आपदा स्मरण दिवस
अन्तरराष्ट्रीय चेरनोबिल आपदा स्मरण दिवस
विवरण 'चेरनोबिल दिवस' प्रत्येक वर्ष 26 अप्रॅल को मनाया जाता है। चेरनोबिल पावर प्लांट में परमाणु दुर्घटना हुई थी जो विश्व में घटित सबसे भयानक परमाणु आपदाओं में से एक थी।
शहर प्रिपरियात
देश यूक्रेन
तिथि 26 अप्रॅल, 1986
अन्य जानकारी आयोडिन 131, सेसियम 137 और स्ट्रॉन्टियम 90 जैसे रेडियोएक्टिव एलीमेंट ने काफी तबाही मचाई। इस हादसे के कारण हजारों लोगों को कैंसर बीमारी ने घेर लिया। रिएक्टर के आसपास बसे 1,35,000 लोगों को सुरक्षित इलाकों में पहुंचाया गया।

चेरनोबिल दिवस प्रत्येक वर्ष 26 अप्रॅल को मनाया जाता है। 26 अप्रॅल, 1986 को यूक्रेन के प्रिपरियात शहर के चेरनोबिल पावर प्लांट में परमाणु दुर्घटना हुई थी। यह विश्व में घटित सबसे भयानक परमाणु आपदाओं में से एक थी। इसी की स्मृति में चेरनोबिल दिवस मनाया जाता है। वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 26 अप्रॅल को 'अन्तर्राष्ट्रीय चेरनोबिल आपदा स्मरण दिवस' के रूप में नामित किया था। वर्ष 2009 में संयुक्त राष्ट्र ने प्रभावित स्थानों को विकसित करने में कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए 'इंटरनेशनल चेरनोबिल रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन नेटवर्क' लॉन्च किया था।

घटनाक्रम

यूक्रेन के चेरनोबिल में हुई परमाणु दुर्घटना को दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा माना जाता है। 26 अप्रॅल 1986 के उस एक घंटे पर जिसमें एक टरबाइन टेस्ट होना था लेकिन हुआ कुछ और ही।[1]

  • 26 अप्रॅल, 1986 : चेरनोबिल न्यूक्लियर प्लांट में स्थानीय बिजली के गुल होने की स्थिति को लेकर टेस्ट किया जा रहा था। कोशिश यह थी कि बिजली जाने और डीजल जेनरेटरों के चलने तक एक टर्बोजेनरेटर फीड वॉटर पम्पों को पावर दे सकता है। यह एक समान्य टेस्ट की तरह रात में शुरू हुआ।
  • रात 12:28 बजे : ऑपरेटर कंप्यूटर को रिप्रोग्राम करने में नाकाम रहे। इसकी वजह से रिएक्ट-4 30 फीसदी पावर पर चलता रहा। इसकी वजह से पैदा होने वाली बिजली में एक फीसदी कमी आई। रिएक्टर में सॉलिड वाटर भर गया। रिएक्टर की स्थिति अस्थिर हो गई।
  • रात 12:32 बजे: पावर को दोबारा मनचाहे स्तर पर लाने के लिए ऑपरेटर ने कोर से कंट्रोल रॉड्स निकाली। कोर में 26 से कम कंट्रोल रॉड्स बचीं। लेकिन ऐसा करने के बावजूद पावर सिर्फ सात फीसदी बढ़ी। इसकी वजह से 'जेनन पॉयजनिंग इफेक्ट' शुरू हुआ। जेनन I-135 का क्षीण रूप है। I-135 न्यूट्रॉन को सोखता है। इसे पॉयजन यानी जहर कहा जाता है। I-135 परमाणु विखंडन की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में मदद करता है। सामान्य स्थिति में न्यूट्रॉन सोखने के साथ यह जलकर बहुत ज्यादा क्षीण हो जाता है। लेकिन पावर लेवल 1600 मेगावॉट से नीचे आने पर I-135 जेनन में अपघटित होने लगता है।
  • रात 1:15 बजे: ऐसी स्थिति में रिएक्टर को ऑटोमैटिक शटिग डाउन से बचाने के लिए इमरजेंसी कोर कूलिंग सिस्टम और दूसरे सिस्टम सर्किट बंद कर दिए गए। जेनन पॉयजनिंग से बचने के लिए फिर ज्यादा कंट्रोल रॉड्स निकाली गईं। इसके बाद कोर में छह कंट्रोल रॉड्स ही बचीं। ऐसी स्थिति में जरूरत पड़ने के बावजूद रिएक्टर को तुरंत शट डाउन नहीं किया जा सकता था।
  • रात 1:20 बजे: सभी आठ कूलिंग पम्प लो पावर पर चलने लगे। सामान्य परिस्थितियों में छह पम्प पूरी पावर से चलते हैं। लेकिन चेरनोबिल में जारी गड़बड़ी की वजह से रिएक्टर-4 में बहुत कम सॉलिड वॉटर बचा। इस स्थिति में सॉलिड वॉटर के उबलने का खतरा पैदा हो गया।
  • रात 1:22 बजे: शुरुआती टेस्ट में टरबाईन ट्रिप (अचानक बंद) हो गई। इसकी वजह से आठ में चार दोबारा सर्कुलेशन करने वाले पम्प बंद हो गए। स्क्रैम सर्किट अब भी बंद था।
  • रात 1:23:35 बजे: ठंडक कम पहुंचने की वजह से प्रेशर ट्यूब खाली पड़ने लगीं। परमाणु प्रतिक्रिया तेज होने लगी और अनियंत्रित ढंग से खूब भाप बनने लगी।
  • रात 1:23:40 बजे: आपरेटर को आशंका हुई। इस स्थिति को इमरजेंसी मानते हुए सभी कोरों में कंट्रोल रॉड्स डालने और रिएक्टर को शट डाउन करने का बटन दबाया।
  • रात 1:23:44 बजे: यह आखिरी कदम ही निर्णायक साबित हुआ। रिएक्टर सिस्टम में एक डिजायन संबंधी कमी थी जिस पर पहले किसी का ध्यान नहीं गया था। कंट्रोल रॉड्स के अंतिम छोर पर छह इंच की ग्रेफाइट की टिप लगी थी। यही टिप पहले कोर में गई और वहां से पानी को हटा दिया। पानी हटते ही कुछ ही सेकेंड में पावर बढ़ गई। सामान्य परिस्थितियों में इतनी पावर बढ़ने का असर बहुत कम देर तक रहता है। लेकिन चेरनोबिल का रिएक्टर नंबर चार सामान्य परिस्थितियों में नहीं चल रहा था। चार सेकेंड में पावर 100 गुना बढ़ गई।
  • रात 1:24 बजे: जबरदस्त गर्मी की वजह से कोर टूटने लगे। ईंधन की बांधने वाले तंत्र में दरारें पड़ गईं। कंट्रोल रॉड चैनल्स का आकार गड़बड़ा गया। लगातार बन रही तेजी से भाप की वजह से स्टीम ट्यूब फट गई। कई टन भाप और पानी सीधे गर्म रिएक्टर में घुस गया। भाप के दबाव की वजह से रिएक्टर में जोरदार धमाका हुआ। धमाका इतना जबरदस्त था कि रिएक्टर के ऊपर सीमेंट से बनाई गई शील्ड उड़ गई। शील्ड रिएक्टर की इमारत के छत को अपने साथ उड़ाते हुए ले गया। इस बड़े सुराख से परमाणु विकिरण सीधे वायुमंडल में फैलने लगा।
  • रात 1:28 बजे: दमकल की 14 गाड़ियां मौके पर पहुंचीं।
  • रात 2:00 बजे: रिएक्टर की छत में लगी भंयकर आग को काबू में किया गया।
  • सुबह 5:00 बजे: ज्यादातर आग पर काबू पा लिया गया लेकिन इन कोशिशों के बावजूद ग्रेफाइट आग पकड़ गई। ग्रेफाइट की आग की वजह से रेडियोएक्टिव तत्व वातावरण में काफी ऊपर तक चले गए।
  • इस तरह चेरनोबिल पावर प्लांट में शुरू हुआ एक टरबाइन टेस्ट 56 मिनट के भीतर दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना में बदल गया।

मिथक

1986 में हुई चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बाद पैदा हुई आशंकाओं और चिंताओं ने कई तरह के मिथकों को जन्म दिया। यूक्रेन में ऐसे कई लोग थे जिनके दिमाग पर इस आपदा ने ऐसा असर छोड़ा कि वो कई तरह के मिथकों को मानने लग गए। ऐसे मिथकों में परमाणु विकिरण के कारण जेनेटिक बदलाव से पैदा हुए भयानक जानवर, इसके शिकार हुए इंसानों की भयावह तस्वीरें और वो प्रतिबंधित क्षेत्र शामिल थे जहाँ ये हादसा हुआ। लेकिन पिछले 30 सालों में परमाणु संयंत्र के इर्द-गिर्द के क्षेत्र पर हुए शोध ने कई आम धारणाओं को ग़लत साबित किया है।

इससे जुड़ा एक मिथक यह है कि परमाणु विकिरण से जानवरों में हुए जेनेटिक बदलाव ने ज़बरदस्त ताकत वाले खूंखार जानवर पैदा किए हैं। ये भी कहा जाने लगा था कि इन में से कई के हाथ-पांव, सिर या पूंछ नहीं होते हैं तो किसी के पास ज्यादा एक से ज़्यादा सिर, हांथ-पाव और पूंछे होती हैं। हालांकि वैज्ञानिकों को इससे जुड़ा कोई सबूत नहीं मिला है। 26 अप्रॅल 1986 को हुए विस्फोट के तुरंत बाद अनेक पक्षी और जानवर मारे गए। अधिक विकिरण वाले क्षेत्र में कुछ ही पेड़ मिले और कुछ ही ऐसे जानवर मिले जिनमें सीज़ियम-137 का स्तर सामान्य से अधिक था। इस घटना से जुड़ा दूसरा मिथक ये था कि विकिरण बिल्कुल भी ख़तरनाक नहीं है क्योंकि प्रतिबंधित क्षेत्र में भेड़िए, हिरण, बीवर और सूअर की अच्छी-खासी आबादी आराम से रह रही है।

शोध से पता चलता है कि बेशक यह इलाका वन्य जीवों के लिए स्वर्ग बना हुआ है लेकिन यहां जानवर इसलिए इतने आराम से रह रहे हैं क्योंकि यहां इंसानों का दख़ल नहीं है। शिकार और खेती जैसी इंसानी गतिविधियां वन्य जीवों के लिए कभी-कभी विकिरण से भी ज्यादा बुरी साबित होती हैं। इस हादसे से जुड़े एक और मिथक के मुताबिक वोदका, वाइन या भरपूर मात्रा में बीयर पीने से विकिरण का जहरीला असर कम हो जाएगा। लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि शराब के अंदर इस तरह का कोई गुण होता है। हालांकि शोधकर्ताओं ने यह जरूर पाया है कि रेड वाइन में प्राकृतिक रूप से एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं जो संभव है विकिरण से होने वाले नुकसान से कोशिकाओं को कुछ हद तक बचा सकते हैं।

एक और मिथक लोगों के दिमाग में यह भी बना हुआ है कि विकिरण का कोई ख़तरनाक प्रभाव लोगों पर नहीं पड़ा है। रिएक्टर के आस-पास के तीस किलोमीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र को जल्द ही हरे-भरे अभ्यारण्य में तब्दील कर दिया जाएगा जिससे पयर्टन को बढ़ावा मिलेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि तीस किलोमीटर क्षेत्र के अंदर रेडियोधर्मी कचरे का होना अब भी ख़तरनाक है और इसने इस पूरे क्षेत्र को इंसानों के रहने के लिहाज़ से बीस हज़ार सालों के लिए असुरक्षित कर दिया है।

एक मिथक तो यह भी है कि चेर्नोबिल संयंत्र के पास बनाए गए प्रतिबंधित क्षेत्र को रिएक्टर की सुरक्षा के लिए नहीं बनाया गया है बल्कि यह हथियारों को छुपाने का ठिकाना है और बड़ा राडार अभी भी इस पर लगा हुआ देखा जा सकता है। हालाँकि असलियत यह है कि परमाणु संयंत्र के नज़दीक दुर्घटना की पूर्व चेतावनी के लिए उच्च सुरक्षा वाले सिस्टम डुगा-1 एबीएम को लगाया गया था जो सोवियत संघ में बना था। यह रडार 2500 किलोमीटर की दूरी से हमला करने वाले बैलिस्टिक मिसाइल को भांप सकता था। 26 अप्रॅल, 1986 की दुर्घटना के बाद सोवियत संघ की सरकार ने इस सुविधा को नष्ट कर दिया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 26 अप्रॅल का वह एक घंटा (हिंदी) dw.com। अभिगमन तिथि: 27 अप्रॅल, 2021। सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "pp" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है

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